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आवृत्ति वितरण का अर्थ | आवृत्ति वितरण के पद क्रम सोपान | आँकड़ों का सारिणीयन

आवृत्ति वितरण का क्या अभिप्राय है? आवृत्ति वितरण के विभिन्न सोपानों (पदक्रम) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

आवृत्ति वितरण (Frequency-Distribution)

आवृत्ति वितरण का अर्थ- किसी परीक्षा या परीक्षण में व्यक्ति का निष्पादन प्रायः प्राप्तांक के रूप में व्यक्त करते है। माना, एक बुद्धि-परीक्षण एक कक्षा में 50 विद्यार्थियों को दिया जाता है तथा बुद्धि-परीक्षण के प्राप्तांक ज्ञात कर लिए गए। प्रश्न यह है कि 50 विद्यार्थियों के इन प्राप्तांकों को किस प्रकार व्यवस्थित किया जाये जिससे एक दृष्टि में कहा जा सके कि कितने विद्यार्थी किस वर्ग में आते है। परीक्षण से प्राप्त आँकड़ों या प्राप्तांकों को सार्थक बनाने के लिए अनुसंधानकर्ता उन्हें वर्गीकृत अथवा व्यवस्थित करता है। आँकड़ों को क्रमबद्ध रीति से विभिन्न वर्गों में व्यवस्थित करने की क्रिया को वर्गीकरण या आवृत्ति वितरण (Frequency Distribution) कहते है। आवृत्ति वितरण से हमें ज्ञात होता है कि वर्गों में प्राप्तांक किस प्रकार वितरित हैं तथा किसी वर्ग अन्तराल में प्राप्तांक पाने वाले व्यक्तियों (विद्यार्थियों) की संख्या कितनी है।

उदाहरणार्थ- (1) 40 विद्यार्थियों के अंकगणितीय योग्यता परीक्षण में प्राप्तांक निम्नांकित हैं। इनका आवृत्ति वितरण बनाइए-

प्राप्तांक- 15, 17, 19, 14, 18, 14, 13, 12, 20, 25, 30, 34, 36, 22, 21, 23, 35, 38, 42, 27, 25, 13, 13, 17, 19, 25, 28, 31, 34, 37, 29, 34, 14, 17, 19, 23, 28, 38,42

आवृत्ति वितरण के पद क्रम सोपान

(1) अंक-विस्तार ज्ञात करना- वितरण के अधिकतम निम्नतम प्राप्तांकों के अन्तर को अंक विस्तार कहते हैं। अंक विस्तार को प्रसार भी कहते हैं। अतः प्रसार की गणना निम्न सूत्र से की जाती है-

प्रसार (Range) = अधिकतम प्राप्तांक – न्यूनतम प्राप्तांक

उपरोक्त उदाहरण में अधिकतम प्राप्तांक 42 है और न्यूनतम प्राप्तांक 12 है। अतः प्रसार = 42-12 = 30 है।

(2) वर्गों की संख्या तथा प्रत्येक वर्ग का आकार निश्चित करना- वर्गों के आकार का तात्पर्य है कि प्रत्येक वर्ग के अन्तर्गत कितने प्राप्तांक रखे जाये। वर्गों की संख्या तथा वर्ग का आकार मुख्य क्रम से प्रसार (Range) पर निर्भर करता है। वर्गों की संख्या एवं आकार निश्चित करते समय निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है-

वर्गों की संख्या = प्रसार (Range)

वर्ग विस्तार (Size of C.I)+1

सामान्य वर्ग विस्तार (अन्तरालों की लम्बाई) को 35, या 10 इकाई में चुनते हैं। वर्ग विस्तार (Size of C.I.) को चुनने का एक अच्छा नियम यह है कि इसका मान ऐसा लिया जाये, जिससे वर्गों की संख्या 5 से कम एवं 15 से अधिक न हो। उदाहरण में प्रसार 30 है, यदि हम वर्ग-विस्तार को 5 लेते हैं तो उपर्युक्त सूत्र के अनुसार-

वर्गों की संख्या = 30/5+1=6+1=7

(3) वर्ग अन्तरालों को लिखना (Writing the C.I.) – वर्गों की संख्या तथा वर्ग विस्तार निश्चित करने के बाद वर्ग अन्तरालों को अंकित किया जाता है। वर्ग अन्तराल को लिखने के दो नियम प्रचलित हैं, जिन्हें नीचे दिया जा रहा है-

प्रथम- सबसे सरल नियम यह है कि सबसे छोटे वर्ग अन्तराल को न्यूनतम प्राप्तांक से प्रारम्भ किया जाये।

द्वितीय- वर्ग अन्तराल को आरम्भ करने का दूसरा नियम यह है कि सबसे छोटे अर्थात् प्रथम वर्ग अन्तराल को न्यूनतम प्राप्तांक से नीचे किसी ऐसी संख्या से आरम्भ किया जाये कि जो वर्ग-विस्तार (Size of C.I.) से विभाजित हो जाये।

(4) संकेत चिन्ह (Talley Mark) लगाना- वर्ग अन्तराल को लिखने के बाद प्रत्येक वर्ग अन्तराल में आने वाले प्राप्तांकों की संख्या ज्ञात की जाती हैं। जितने प्राप्तांक है। वर्गों की आवृत्ति ज्ञात करने के लिए संकेत चिन्ह (Talley Mark ) लगाते हैं। प्रत्येक प्राप्तांक के लिए एक संकेत चिन्ह (I) उसके संगत वर्ग के सामने बना देते हैं। उपर्युक्त उदाहरण का आवृत्ति विवरण निम्नांकित रूप में प्रदर्शित किया गया है-

वर्ग अन्तराल (Class Interval) संकेत चिन्ह (Tallies) आवृत्ति (Frequency)
40-45 ll 2
35-40 llll l 6
30-35 llll 5
25-30 llll llll 10
20-25 llll llll 09
15-20 llll lll 08
10-15 llll ll 07

इस प्रश्न में पहला प्राप्तांक 15 है जिसे संकेत चिन्ह (Talley) के द्वारा अन्तराल 10-15 के सम्मुख लिखा गया है। दूसरा प्राप्तांक 17 है जिसे अन्तराल 15-20 के सामने टैली द्वारा व्यक्त किया गया है। तीसरा प्राप्तांक 19 है जिसे टैली द्वारा दूसरे वर्ग अन्तराल 15-20 के सामने अंकित किया गया है। शेष सभी प्राप्तांक इसी रीति से क्रमशः सारणीबद्ध किए गए हैं। जब सभी प्राप्तांकों का अंकन हो गया, तब प्रत्येक वर्ग अन्तराल के संकेतों चिह्नों या टैली को गिनकर उस वर्ग अन्तराल के सामने लिख दिया जाता । इसे वर्ग अन्तराल की आवृत्ति कहते हैं। उपर्युक्त सारणी में आवृत्तियों को कालम (3) में व्यक्त किया गया है। कालम 3 में व्यक्त सभी आवृत्तियों के कुल योग को N द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस उदाहरण में N = 40 है। अव्यवस्थित आँकड़ों में कुल 40 प्राप्तांक दिए गए हैं। अत: आवृत्ति-वितरण सही है।

विद्यार्थियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि पहला वर्ग अन्तराल (C.I.) 10-15 है। जबकि निम्नवत प्राप्तांक 12 है। वास्तव में, सैद्धांतिक रूप से तथा आंकिक दृष्टि से 10-15 तथा 12-17 के अन्तराल उतने ही अच्छे हैं। ये कोई अन्तर उत्पन्न नहीं करते हैं। किन्तु 10-15 का अन्तराल गणितीय दृष्टि से अधिक सरल हैं।

उदाहरण 2- निम्नलिखित प्राप्तांकों को आवृत्ति वितरण में व्यवस्थित कीजिये । वर्गान्तर 5 होना चाहिये।

31, 33, 47, 40, 36, 50, 49, 48, 48, 38, 38, 37, 36, 42, 42, 42, 41, 31, 30, 54, 52, 44, 43, 42, 42, 40, 40, 37, 35, 47, 46, 45, 36, 52

कुल अंक (प्राप्तांक) N= 35

आँकड़ों का सारिणीयन

वर्गान्तर (Class Interval) मिलान पद (Tallies)  आवृत्तियाँ (Frequency)
50-54 llll 4
45-49 llll l 6
40-44 llll llll ll 12
35-39 llll lll 8
30-34 llll 5
N=35

(1) न्यूनतम अंक 30 तथा अधिकतम 54 अंक ज्ञात करके इन्हें आपस से घटाया। यथा 54-30= 24 यह प्रसार क्षेत्र हुआ।

(2) प्रसार क्षेत्र ज्ञात करने के बाद वर्गान्तर की संख्या इस प्रकार ज्ञात की-

= प्रसार क्षेत्र/वर्गान्तर का आकार + 1 = 24/5 +1=6

(3) अब वर्गान्तर 30 में 5 जोड़कर समावेशी (Inclusive) विधि से बनाये। इन इस प्रकार आरोह क्रम में बनाया गया।   50-59,  50 – 54 आदि होंगे।

(4) फिर अव्यवस्थित आँकड़ों से वर्गान्तर में मिलान किया।

(5) मिलान होने के बाद मिलान पदों को आवृत्ति के कॉलम में गिनकर रख दिय।

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Anjali Yadav

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