राजनीति विज्ञान / Political Science

एल्टन मेयो द्वारा प्रतिपादित मानव-सम्बन्ध सिद्धान्त

एल्टन मेयो द्वारा प्रतिपादित मानव-सम्बन्ध सिद्धान्त
एल्टन मेयो द्वारा प्रतिपादित मानव-सम्बन्ध सिद्धान्त

एल्टन मेयो द्वारा प्रतिपादित मानव-सम्बन्ध सिद्धान्त की मुख्य धारणाओं का पुनरावलोकन एवं विश्लेषण कीजिए। 

एल्टन मेयो मानव सम्बन्धवादी आन्दोलन के प्रसिद्ध प्रवक्ता हैं जिनका विचार टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्धवादी विचारधारा की प्रतिक्रिया से जन्म लिया। प्रबन्ध या संगठन में मानवीय तत्व को सर्वोपरि बना दिया है। टेलर ने प्रबन्ध को विज्ञान मानकर वैज्ञानिक प्रबन्ध के क्षेत्र का विस्तार किया और मानव को मशीन मान बैठा लेकिन मेयो ने टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध की सारी मान्यताओं को अपने बैंक वायरिंग प्रयोग में एक-एक करके परखा और निष्कर्ष निकाला कि प्रबन्ध में मानवीय सहयोग का बड़ा महत्व है। उनका पूरा विचार ही मनोविज्ञान पर आधारित है। इनके हार्थोन प्रयोग सम्पूर्ण रूप से श्रमिकों की मानसिकता का अध्ययन है और इसलिए मेयो को मनोवैज्ञानिक उपागम का संस्थापक माना जाता है।

मेयो ने मानव सम्बन्धों का महत्व एक साधन के रूप में माना है जिसका साध्य है, संगठन के कार्य कुशलता को बढ़ाना, संगठन के कार्मिकों के मनोबल को ऊँचा उठाना, संगठन के विभिन्न सिद्धान्तों को प्रभावित करना तथा इस प्रकार संगठन के लक्ष्य को प्रभावित करना । मेयो के अनुसार, “संगठन का कोई अधिकारी अपनी संस्था के अन्य अधिकारियों एवं कर्मचारियों के साथ सम्बन्ध इसलिए बढ़ाना नहीं चाहता कि मात्र उसे लोकप्रियता मिले, वरन् इसलिए भी कि वह संगठन के कार्यों को सम्पन्न करने में अन्य कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त कर सकें।’

प्रबन्ध एवं संगठन में मानवीय सम्बन्ध का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसी की पुष्टि हेतु मेयो तथा उसके अन्य साथियों ने 1927 से 1932 तक अमेरिका के हार्थोन नामक स्थान पर वेस्टर्न इलेक्ट्रिकल कम्पनी के हार्थोन कारखाने के श्रमिकों पर अनेक प्रयोग किए। इस प्रयोग में सर्वप्रथम प्रकाश का उत्पादन पर प्रभाव तथा इसमें मानव सम्बन्ध के योगदान का परीक्षण एवं अध्ययन किया। तत्पश्चात मेयो तथा उसके अन्य साथियों ने संगठन एवं प्रबन्ध में कार्मिकों के ऊपर विश्राम एवं अवकाश का प्रभाव कितना पड़ता है। फिर इन लोगों ने मानवीय तत्व का संगठन में प्रभाव को मानने के लिए बैंक वायरिंग प्रयोग कर टेलर के मशीनी प्रभाव को समाप्त कर दिया। मेयो तथा उसके साथियों का सम्मिलित प्रयोग के निष्कर्ष संगठन में मानव प्रबन्ध की प्रमुखता का बोध कराता है। इन प्रयोगों के निष्कर्ष निम्नलिखित हैं-

  1. एक मजदूरों द्वारा किए जाने वाले कार्यों की मात्रा उसके शारीरिक सामर्थ्य द्वारा निर्णीत होते हैं।
  2. मजदूरों का कार्य की प्रेरणा देने तथा उनमें प्रसन्नता लाने के लिए अर्थेत्तर पुरस्कारों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।
  3. सर्वोच्च विशेषीकरण को श्रम विभाजन का सर्वाधिक कुशल रूप नहीं कहा जा सकता।
  4. प्रबन्ध के आदर्शों एवं पुरस्कारों के प्रति कर्मचारी एक व्यक्ति के रूप में प्रतिक्रिया न कर एक समूह के सदस्य के रूप में करते हैं।

संगठन में मानवीय सम्बन्ध का स्पष्टीकरण मेयो के 14 (चौदह) कर्मचारियों के प्रयोग द्वारा पूर्णतः हो जाता है। इस प्रयोग में कार्य था- ‘टेलीफोन के स्वीच बोर्ड में तार लगाना।’ इस कार्य में कुछ को तो व्यक्तिगत रूप से कार्य करना था और कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर। सारे श्रमिकों को वेतन एवं कार्य की समस्त सुविधाएँ समान थीं। जब कभी कार्य किसी ऐसे कारणों से रुक जाता जिस पर व्यक्ति का कोई अधिकार न था तो कार्य कुशल श्रमिकों को आलसी श्रमिकों की अपेक्षा कुछ विशेष भत्ता की व्यवस्था थी। प्रबन्धात्मक मान्यताएँ भी वही थीं जो टेलर के थे। अर्थात् अधिक काम करने वाले को अधिक मजदूरी दिया जाता है। इसलिए अवश्य उतना काम करेगा जितना उसकी क्षमता होगी। यहीं पर टेलर तथा मेयो के बीच भिन्नता स्पष्ट परिलक्षित होती है।

प्रयोग के परिणाम स्वरूप यह ज्ञात हुआ कि प्रत्येक उद्योग में मजदूर उत्पादन का आदर्श निश्चित कर लेता है। उस आदर्श से अधिक उत्पादन करने वाले सर्वाधिक कार्यकुशल माने जाते हैं और जो उससे कम कार्य करते हैं उनको आलसी एवं मुफ्तखोर की संज्ञा दी जाती है। सारे प्रयोग के फलस्वरूप यह स्पष्ट हो गया कि थोड़े दिनों बाद कुल उत्पादन का औसत उतना ही हो जाता है जितना उस समूह ने उत्पादन का आदर्श बनाया था। होता यह है कि अनेक दबाव के कारण कोई मजदूर अपने फोरमैन या किसी अन्य को यह नहीं कह पाता कि उत्पादन इससे अधिक भी किया जा सकता है क्योंकि ऐसा करने से संगठन में कम उत्पादन करने वालों पर कार्य भार बढ़ेगा। उनके वेतन में कटौती की जायेगी अथवा उनको सेवा मुक्त भी किया जा सकता है। दूसरी ओर मजदूर समूह से कम उत्पादन करेगा जितना कि उस समूह ने अपना आदर्श बनाया था तो यह प्रबन्ध के प्रति अन्याय होगा। इसके अतिरिक्त उसके स्वयं के लिए भी परेशानियाँ पैदा हो सकती हैं।

स्पष्ट है कि मानव सम्बन्ध प्रबन्ध जगत के कर्मचारियों एवं अधिकारी दोनों के मनोबल को ऊंचा उठाता है। जब अधिकारियों को यह प्रतीत होता है कि उनके आदेशों एवं निर्देशों की आशातीत प्रतिक्रिया हो रही है और उसे अधीनस्थ कर्मचारी का पूरा-पूरा सहयोग हो रहा है तो उसमें एक नवीन उत्साह का संचार होता है तथा अपने दायित्वों के निर्वाह करने में वह वह पूरी शक्ति लगा देता है। दूसरी ओर अपने उच्चाधिकारी के कार्य में अतिशय उत्साह देखकर संगठन के अधीनस्थ कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा उठता है। जिस प्रकार युद्धभूमि में सेनापति की वीरता एवं साहस उसके पक्ष के विजय की प्रथम शर्त होती है उसी प्रकार संगठन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन लोगों को योग्य एवं परिश्रमी होना नितान्त जरूरी है जिनके हाथ में नेतृत्व की बागडोर है। सेनापति के मर जाने अथवा युद्धभूमि से पलायन कर जाने से सारी सेना का मनोबल गिर जाता है और वह छिन्न-भिन्न होकर भाग खड़ा होता है। संगठन में भी उच्च अधिकारियों तथा अन्य सारी सुविधाएँ उसी प्रकार दिया गया जिस प्रकार कम्पनी के अन्य कार्मिकों को दिया जाता था। इन्हें वेतन घंटे के अनुसार दिया गया साथ में कुछ बोनस भी दिया गया। जब कभी कार्य विशेष कारणों से रुक जाता था जिस पर कर्मचारी का कोई अधिकार नहीं था (जैसे बिजली कट जाना) तब कार्यकुशलमजदूर (जो उस स्थिति में भी काम किया) को आलसी मजदूरों की तुलना में प्रोत्साहन देने के लिए इस प्रकार के भत्ते की व्यवस्था की गई जिससे उसे अन्य की अपेक्षा कुछ ज्यादा पारिश्रमिक हो जाता था। प्रबन्ध की अन्य सारी मान्यताएँ भी वही थीं जो टेलर की थीं।

प्रयोग के परिणाम स्वरूप यह ज्ञात हुआ कि प्रत्येक उद्योग में मजदूर कार्य का एक आदर्श निश्चित कर लेता है। उस आदर्श से अधिक काम करने वाले को सर्वाधिक कुशल माना जाता है उसे आदर्श से कम काम करने वाले को आलसी और मुफ्तखोर माना जाता था। अनेक प्रयोग के फलस्वरूप यह भी स्पष्ट हुआ कि थोड़े दिनों बाद कुल उत्पादन का औसत उतना हो जाता है जितना कि उस समूह ने उत्पादन का लक्ष्य बनाया था। होता यह है कि अनेक दबावों के कारण कोई भी मजदूर अपने बॉस से यह नहीं कह पाता कि उत्पादन इससे भी अधिक किया जा सकता है। क्योंकि ऐसे करने से कम उत्पादन करने वालों पर कार्यभार बढ़ता, उनका वेतन कटौती की जाती है। अन्ततः उन्हें सेवा मुक्त भी किया जा सकता है।

मेयो का यह प्रयोग स्पष्ट करता है कि कर्मचारियों की कार्यकुशलता तथा उत्पादन की मात्रा को केवल भौतिक वातावरण ही प्रभावित नहीं करता बल्कि प्रेरणात्मक योजनाएँ भी उसे प्रभावित करती हैं।

प्रयोग के निष्कर्ष

हार्थोन प्रयोग के निम्नलिखित निष्कर्ष हैं-

1. मेयो ने विभिन्न संगठनों के अध्ययन द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है कि एक मजदूर द्वारा किए जाने वाले कार्य की मात्रा उसकी शारीरिक सामर्थ्य द्वारा निश्चित होती है।

2. मजदूरों के कार्य की प्रेरणा देने एवं उनमें प्रसन्नता लाने के लिए आर्थिक पुरस्कारों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।

3. सर्वोच्च विशेषीकरण को श्रम विभाजन का सर्वाधिक कुशल रूप नहीं कहा जा सकता।

4. प्रबन्ध के आदर्शों एवं पुरस्कारों के प्रति कर्मचारी एक व्यक्ति के रूप में प्रतिक्रिया न कर एक समूह के सदस्य के रूप में करते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि किसी भी प्रशासनिक या प्रबन्धकीय संस्थान तथा कारखाने आदि में उत्पादन बढ़ाने हेतु आर्थिक प्रेरणाएँ ही न दी जाएँ वरन उस मानवीय सम्बन्धों के आधार पर कर्मचारियों में उचित सम्मान प्राप्ति की भावना का विकास होना चाहिए।

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Anjali Yadav

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