जिला प्रशासन में जिलाधीश की भूमिका/कार्यों का वर्णन कीजिए।
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जिला प्रशासन में जिलाधीश या कलेक्टर की भूमिका (Role of collector in District Administration)
भारत में जिलाधीश का पद ब्रिटिश शासन की देन है। इस पद की स्थापना सन् 1772 में भारत में वारेन हेस्टिंग के शासन काल में हुई थी। तब से लेकर आज तक कलेक्टर जिला प्रशासन की धुरी रहा है। जिलाधीश को अनेक कार्य करते होते हैं। वस्तुस्थिति तो यह है कि उसके कार्य परिभाषित होने के स्थान पर अपरिभाषित अधिक है। वह अपने उत्तरदायित्वों एवं कार्यो का निर्वाह निम्नलिखित रूपों में करता है-
- राजस्व अधिकारी के रूप में (As a Revenue Officer)
- जिला प्रशासके के रूप में (As a District Officer)
- जिला मजिस्ट्रेट (दण्डाधिकारी) के रूप में (As a District Magistrate)
- जिला विकास अधिकारी के रूप में (As a District Development Officer)
(i) राजस्व अधिकारी के रूप में – वह अनेक प्रकार के कार्यों का सम्पादन करता है। इनमें से कुछ कार्य है राजस्व, नहरी बकाया एवं बकायों का संग्रहण, बकाया ऋण का वितरण और वसूली, फसलों की क्षति का अनुमान लगाना तथा राहत के लिए सिफारिशें करना, विपत्ति तकावी का विवरण, अग्निकाण्ड से पीड़ित व्यक्तियों को राहत पहुंचाना, भू-अधिग्रहण कार्य, वर्षा, फसल आदि से सम्बन्धित सभी प्रकार की कृषि सांख्यिकी का संग्रहण, कोषालय और उपकोषाध्यक्ष का अधीक्षण, जागीर उन्मूलन, मुआवजा भुगतान, मुद्रांक अधिनियम को वर्त करना, बाढ़, अकाल, अतिवृष्टि, आदि प्राकृतिक विपदाओं के समय राहत कार्य आदि ।
(ii) जिला प्रशासन के रूप में – वह अनेकों कार्यों का सम्पादित करता है। कुछ मुख्य कार्य है: जिले के तहसीलदारों एवं नायब तहसीलदारों की पद स्थापना, स्थानान्तरण एवं अवकाश, जिलाधीश कार्यालय, उपखण्ड कार्यालय, तहसील आदि कार्यालयों में दफ्तरी अमले की नियुक्ति करने व उन्हे दण्डित करना, कनिष्ठ अधिकारियों को कार्यालय प्रक्रिया एवं प्रशासनिक कार्य एवं व्यक्तिगत आचरण में प्रशिक्षित करना, जिले में सरकार के सामान्य हितों की देख-रेख करना, समस्त जिला स्तरीय अधिकारियों के कार्यो में समन्वय स्थापित करना, जिले में सरकारी वकील नियुक्त करना तथा वर्कीलों का पेनल तैयार करना आदि।
(iii) जिला मजिस्ट्रेट के रूप में – इस रूप में अनेक कार्य करता है। जैसे जिले में फौजदारी प्रशासन का संचालन करना, जेल और पुलिस का नियन्त्रण रखना, सार्वजनिक शान्ति और व्यवस्था भंग होने की आशंका होने पर आदेश प्रचारित करना, श्रम समस्याओं तथा हड़ताल, आदि से सम्बन्धित कार्य पेड़ों को काटने के लिए परमिट प्रदान करना, नजूल भूमि का प्रशासनपारपत्र एवं वीसा प्रदान करने की सिफारिश करना, अधिवास, अनुसूचित एवं पिछड़ी जाति और जनजाति सम्बन्धी प्रमाण-पत्र देना, आदि। जिला मजिस्ट्रेट के रूप में वह जिले की पुलिस का नियन्त्रण रखने तथा अपराध से सम्बन्धित प्रशासन के लिए जिला स्तर पर सर्वेसर्वा है।
(iv) जिला विकास अधिकारी के रूप में – इस रूप में जिलाधीश के कार्यों में अपार वृद्धि हुई है। सामुदायिक विकास कार्यक्रमों और पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना के फलस्वरूप कलक्टर विकास अधिकारी के रूप में कार्य करने लगा है। जिले में विकास कार्य का समन्वय करना, विकास कार्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निराकरण करना, विकास कार्यों के सम्बन्ध में सामयिक एवं तत्कालिक प्रतिवेदन उच्च अधिकारियों को भेजना आदि उसके प्रमुख उत्तरदायित्व हैं। वह जिले के विकास तथ समाज कल्याण विभागों के अध्यक्षों को निर्देशन, परामर्श एवं सहयोग प्रदान करता है। जिले के विकास अधिकारियों के सम्बन्ध में कलेक्टर को प्रशासनिक और अनुशासनात्मक नियन्त्रण की शक्तियां प्राप्त है। उसको पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वह अनेक राज्यों में जिला परिषद् का पदेन सदस्य होता है। वह जिला परिषदों की बैठकों में भाग लेता है। वह पंचायत समितियों एवं पंचायतों का बाहर से नियन्त्रित करता है तथा यह देखता है कि उक्त संस्थाएं अपने क्षेत्राधिकार में रहकर उत्तरदायित्वों का निर्वाह करती है या नहीं।
इन कार्यों के अतिरिक्त जिले में राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उसे अन्य कार्य करने पड़ते हैं, जैसे- जिले में जनगणना करवाना, लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय संस्थाओं के चुनाव करवाना, ठहरने की व्यवस्था, भ्रमण कार्यक्रम, आदि प्रोटोकॉल दायित्व।
जिलाधीश जिला प्रशासन की धुरी है। सामान्यतः वह भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है। जिलाधीश भारतीय प्रशासनिक सेवा में सीधी भर्ती तथा राज्य सेवाओं से पदोन्नत दोनों उप-समूहों से लिये जाते हैं। जिलाधीश सम्भाग आयुक्त के प्रति उत्तरदायी होता है तथा उसके माध्यम से शासन के प्रति उत्तरदायी रहता है।
जिलाधीश या कलेक्टर का संक्षेप में कार्यों का वर्णन निम्नलिखित है-
- जिले में कानू एवं व्यवस्थ बनाये रखना
- तत्परता तथा निष्पक्षतापूर्वक भू-राजस्व तथा अन्य करों का संग्रह करना,
- विकास योजनाओं का निर्देशन और उन्हे पूर्ण कराना, जिन पर देश का भविष्य निर्भर है,
- शासन के अनेक नियामक एवं कन्ट्रोल कार्य, जैसे- खाद्यान्न का राशनिंग, कृषि-उपज का क्रय करना, वस्तुओं को भेजने की व्यवस्था करना आदि,
- प्राकृतिक प्रकोप, दुर्घटनाओं आदि में तत्काल कार्रवाई करना,
- शासन के कार्यक्रमों एवं विकास कार्यो का क्रियान्वयन,
- प्रशासन तथा नागरिकों के मध्य प्रतिरोधी (buffer) की भूमिका, एक को दूसरे के द्वारा सम्भाविद परेशान करने से बचाना और शीघ्र न्याय दिलाना, और
- जिले में पदस्थ शासकीय अधिकारियों-कर्मचारियों से मैत्री सम्बन्ध रखना और अपने कार्यालय की कार्यकुशलता बनाये रखना।
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