नियन्त्रण प्रक्रिया की कौन सी विभिन्न तकनीकें हैं? What are the different, techniques of control process ?
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नियन्त्रण की तकनीकें (Techniques of Control)
नियन्त्रण की तकनीकें, विधियाँ, प्रणालियाँ या साधन प्रबन्ध के उपकरण हैं, जिनके द्वारा नियन्त्रण किया जाता है। आधुनिक प्रबन्ध अपने उपक्रम की क्रियाओं पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने के लिए नियन्त्रण की विभिन्न विधियों का उपयोग करते हैं। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से नियन्त्रण की विभिन्न विधियों को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है।
(I) नियन्त्रण की सामान्य तकनीकी (General Techniques of Control) –
नियन्त्रण की सामान्य तकनीकी से आशय ऐसी विधियों से है, जिसका उपयोग सामान्य रूप में प्रबन्धकों द्वारा उपक्रम की क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिये किया जाता है। इन विधियों में प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) सांख्यिकीय आँकड़े – उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं से सम्बन्धित आँकड़ों का विश्लेषण करके उन्हें उत्पादन, किस्म, स्टॉक, लागत आदि के नियन्त्रण में उपयोग किया जा सकता है।
(2) व्यक्तिगत अवलोकन – व्यक्तिगत अवलोकन नियन्त्रण की सबसे प्रभावशाली एवं विश्वसनीय विधि है व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा कर्मचारियों के अभिप्रेरणा एवं मनोबल में वृद्धि होती है और प्रबन्धक उनके सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकता है। इसके माध्यम से कर्मचारियों की कठिनाइयों एवं समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है।
(3) आन्तरिक अंकेक्षण – अंकेक्षण नियन्त्रण का एक उपयोगी रूप है। आन्तरिक अंकेक्षण में अंकेक्षक लेखों की निरन्तर जाँच-पड़ताल करते हैं इससे योजनाओं और कार्यक्रमों का मूल्यांकन होता है और तुलनात्मक अध्ययन द्वारा कार्यकुशलता की जाँच की जाती है। कुटज एवं ओ० डोनेल के शब्दों में “क्रियात्मक अंकेक्षण विस्तृत अर्थ में व्यवसाय की लेखांकन, वित्तीय तथा अन्य क्रियाओं का आन्तरिक अंकेक्षणों द्वारा एक नियमित एवं निष्पक्ष मूल्यांकन है।”
(4) नीतियाँ – नीतियाँ वे सामान्य विवरण हैं, जो एक संस्था के दैनिक कार्यों के निष्पादन के मार्गदर्शक तत्व के रूप में काम में लायी जाती हैं। इनके आधार पर भविष्य में क्या करना है इसको पहले से ही निर्धारित है करना सम्भव हो जाता है। इसीलिये इन्हें नियन्त्रण का एक साधन माना जाता है।
(5) विशेष प्रतिवेदन एवं विश्लेषण – प्रबन्धकीय नियन्त्रण के लिये साधारण अभिलेख एवं प्रतिवेदन प्रायः अनुपयुक्त होते हैं। विशेष समस्याओं को समझने एवं उनका निराकरण करने के लिये आँकड़ों का विशिष्ट विश्लेषण एवं प्रतिवेदन तैयार करने पड़ते हैं। इसके लिये प्रायः विशेषज्ञों की सहायता लेनी पड़ती है।
(6) लेखांकन – लेखांकन प्रणाली नियन्त्रण की एक प्राचीन विधि है। पहले वित्तीय लेखांकन और उनसे प्राप्त लाभ-हानि विवरण द्वारा संस्था के विभिन्न विभागों का तुलनात्मक मूल्यांकन, उत्तरदायित्व लेखांकन, प्रबन्धकीय लेखांकन नियन्त्रण की महत्वपूर्ण तकनीक हैं।
(7) सम विच्छेद विश्लेषण- नियन्त्रण की इस तकनीक का प्रचलन निरन्तर बढ़ रहा है। इसके अन्तर्गत विक्रय, आय, लागत तथा लाभ-हानि के पारस्परिक सम्बन्ध का विश्लेषण किया जाता है। इससे उस बिन्दु का ज्ञान होता है, जिस पर आय लागत के बराबर होती है और संस्था पहले से ही निर्धारित करना सम्भव हो जाता है। इसीलिये इन्हें नियन्त्रण का एक साधन माना जाता है।
(8) आचरण- एक अधिकारी यदि अपने अधीनस्थों के व्यवहारों को नियन्त्रित करना चाहता है तो उसको स्वयं अपने श्रेष्ठ व्यवहार एवं अधिक कार्य का उदाहरण कर्मचारियों के सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिये । अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत किया गया उदाहरण अधीनस्थों के लिये एक आदर्श बन जाता है और अधीनस्थ उसी आदर्श को अपने प्रयासों द्वारा प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं।
(9) बजट – आधुनिक व्यावसायिक जगत में नियन्त्रण के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में बजट का प्रयोग किया जाता है। बजट योजना का एक वित्तीय विवरण है जिसे पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये एक निश्चित समयाविधि के मध्य लागू किया जाता है। यह नियन्त्रण के साधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। वास्तविक कार्यों और योजनाओं के मध्य निरन्तर तुलना करने में यह आधार प्रदान करता है। थियो हमैन के शब्दों में, “नियन्त्रण प्रबन्ध का सर्वाधिक प्रभावशाली यन्त्र बजट है।”
(10) अनुशासनात्मक कार्यवाही — नियन्त्रण की यह विधि ऋणात्मक है। इसके अन्तर्गत यदि कोई अधीनस्थ गलत कार्य करता है तो उसे दण्ड दिया जाता है ताकि भविष्य में उन गलतियों की पुनरावृत्ति न करें।
(11) अनुपात विश्लेषण – अनुपात विश्लेषण के माध्यम से व्यवसाय में लाभदायकता, तरलता, शोधन क्षमता, विनियोग आदि को सरलता से नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके लिए विभिन्न अनुपातों का प्रयोग किया जाता है।
(12) चार्ट्स तथा पुस्तिकायें- किसी भी उपक्रम का संगठन चार्ट उसके अधिकारियों और प्रबन्धकों के सम्बन्ध को बनाता है। इस प्रकार चार्ट संस्था की योजना में परिवर्तित करने तथा नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं। संस्था की प्रगति को बतलाने वाले चार्ट्स, ग्राफ्स आदि का प्रयोग प्रबन्धक नियन्त्रण के एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कर सकते हैं। इसी तरह पुस्तिकाएँ भी प्रबन्धकीय नियन्त्रण के उद्देश्यों को पूरा करते हैं।
(13) लिखित निर्देश – नियन्त्रण की इस विधि के अन्तर्गत कर्मचारियों को कार्य करने के सम्बन्ध में आदेश एवं निर्देश लिखित रूप में दिये जाते हैं, जिनका वे पालन करते हैं। ये आदेश एवं निर्देश जितने अधिक व्यापक एवं स्पष्ट होंगे कर्मचारी उनका उतने ही अधिक प्रभावी ढंग से पालन करेंगे।
(14) अभिप्रेरणा— कर्मचारियों को अभिप्रेरित करके भी इनकी क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है। यह एक प्रकार से स्व नियन्त्रण है। जब कर्मचारीगण अभिप्रेरित होते हैं तो वे आपस में स्वतः सहयोग करते हैं, जिससे स्वतः नियन्त्रण स्थापित हो जाता है।
(15) कार्यपद्धतियाँ – कार्य पद्धतियाँ किये जाने वाले कार्यों के क्रम एवं आवश्यक औपचारिकताओं को स्पष्ट करती हैं। ये क्रियाओं को निर्देश प्रदान करती है। इससे निष्पादन में स्वेच्छाचारिता व विचलन उत्पन्न होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है।
(16) सूचना सेवाएँ – अनेक उद्योगों में नियन्त्रण कार्य को प्रभावशाली बनाने के लिए सूचना सेवाओं की स्थापना की जाती है। ये सेवाएं विभिन्न प्रकार की सूचनाओं का एकत्रीकरण व विश्लेषण करके सम्बन्धित उच्चाधिकारियों को प्रेषित करती है। इन सूचनाओं के आधार पर प्रबन्धक महत्वपूर्ण नियन्त्रण निर्णय ले सकते है।
(II) मित्र की विशिष्ट तकनीकी (Specific Techniques of Control) –
नियन्त्रण की विशिष्ट विधियों के अन्तर्गत निम्न को शामिल किया जा सकता है-
(1) बजट नियन्त्रण- आधुनिक व्यावसायिक जगत में नियन्त्रण के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में बजट का प्रयोग किया जाता है। बजट योजना का एक वित्तीय विवरण है जिसे पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये एक निश्चित समयावधि के मध्य लागू किया जाता है। वास्तविक कार्यों और योजनाओं के मध्य निरन्तर तुलना करने में यह आभार प्रदान करता है। प्रो० थियो हेमैन के शब्दों में, “नियन्त्रण प्रबन्ध का सर्वाधिक प्रभावशाली यन्त्र बजट है।” क्योंकि नियोजन योजना को निश्चितता प्रदान करता है, पूर्व विचार को प्रोत्साहित करता है, साधनों के विवेकपूर्ण तथा कुशल उपयोग को सम्भव बनाता है, व्ययों को सीमाओं के अन्दर रखता है, सन्तुलन स्थापित करता है और व्यापक नियन्त्रण को सम्भव बनाता है। व्यवहार में अनेक प्रकार के बजट बनाये जाते हैं जिनके माध्यम से नियन्त्रण स्थापित किया जाता है।
(2) लागत नियन्त्रण – लागत नियन्त्रण भी नियन्त्रण की प्रमुख विधि है। लागत नियन्त्रण से आशय व्यवसायों को चलाने तथा वस्तुओं के उत्पादन व वितरण पर आने वाले विभिन्न व्ययों को उपयुक्त विश्लेषण तथा विभाजन के द्वारा नियन्त्रित करने से है। इसका प्रमुख उद्देश्य व्यावसायिक व्ययों और उत्पादन लागत को न्यूनतम करके उसकी कार्यक्षमता को अधिकतम करना होता है। लागत नियन्त्रण की विधि को काम में लेने हेतु लागत का विश्लेषण करके प्रभावित लागत मानक निर्धारित किये जाते हैं, तत्पश्चात् वास्तविक व्ययों के लेखे तैयार किये जाते हैं, फिर अनुगानित एवं वास्तविक व्ययों का अन्तर मालूम किया जाता है। लागत नियंत्रण की विधि को उत्पादन, क्रय विक्रय प्रबन्ध आदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से प्रयास किया जा सकता है।
(3) उत्पादन नियन्त्रण- उत्पादन नियन्त्रण से आशय निर्माण क्रियाओं का संचालन एवं प्रबन्ध करने से है। इसके अन्तर्गत न केवल गुण नियन्त्रण बल्कि लागत विधि नियन्त्रण भी सम्मिलित होता है। इस प्रकार उत्पादन नियन्त्रण में कारखाने में उत्पादन के कार्य को इस प्रकार से नियोजित तथा नियन्त्रित करना है कि समस्त कार्य एक व्यवस्था के अनुसार बिना किसी विलम्व तथा हस्तक्षेप से चलता रहे तथा संयन्त्र सुविधाओं का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके।
(4) किस्म नियन्त्रण- किस्म नियन्त्रण से आशय उत्पादित माल की किस्म के नियन्त्रण से लगाया जाता है। इस नियन्त्रण का उद्देश्य निर्धारित किस्म, रूप, रंग, आकार, डिजाइन, परिधि आदि के अनुसार उत्पादनों का निर्माण करना होता है। किस्म नियन्त्रण वस्तुतः नियन्त्रण को वह तकनीक होती है, जो इस बात को सम्भव बनाती हैं कि वांछित माल ही ग्राहक तक पहुँच रहा है।
(5) सामग्री नियन्त्रण- सामग्री नियन्त्रण वह तकनीक है जिसके माध्यम से कच्चे माल आदि की पूर्ति को आवश्यकतानुसार बनाये रखा जाता है। सामग्री नियन्त्रण हेतु बिनकार्ड, क्रय आदेश बिन्दुओं का निर्धारण, स्टाक लेवल का निर्धारण तथा ABC नियन्त्रण विधियों को अपनाया जाता है।
(6) वित्तीय नियन्त्रण – वित्तीय नियन्त्रण प्रशासन एवं प्रबन्ध की वह महत्वपूर्ण शाखा है जिसके अन्तर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि वित्त व्यवस्था से सम्बन्धित योजनाओं को इस प्रकार क्रियान्वित किया जाय जिससे कि पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। इसके अन्तर्गत न केवल सिद्धान्तों व नीतियों का ही अध्ययन करते हैं बल्कि उन्हें सफलतापूर्वक कार्य रूप में करने की रीतियों का भी अध्ययन करते हैं। सामान्यतः वित्तीय नियन्त्रण में तीन बातों का समावेश किया जाता है— (i) वित्तीय परिणामों से सम्बन्धित आदेश व उपयुक्त प्रमापों की स्थापना करना; (ii) वास्तविक परिणामों की प्रमाप से तुलना करना तथा अन्तर का पता लगाना; और (iii) अन्तर के कारणों का पता लगाने के लिये व्यक्तिगत उत्तरदायित्व निर्धारित करना तथा जहाँ तक सम्भव हो सके, अन्तर को दूर करने के लिये प्रयास करना ।
(III) नियन्त्रण की आधुनिक तकनीकें (Modern Techniques of Control) –
वर्तमान समय में व्यवसाय की जटिलता के कारण नियन्त्रण की अनेक विकसित तकनीकों का प्रयोग किया जाने लगा है। कुछ आधुनिक तकनीकें निम्नलिखित है-
1. क्रियात्मक अनुसन्धान
2. विद्युत समंक विश्लेषण
3. नेटवर्क विश्लेषण-
- कार्य मूल्यांकन एवं पुनर्वीक्षा तकनीक (P.E.R.T.)
- विवेचक मार्ग विधि (C.D.M.)
- साधन आवंटन एवं बहुयोजना सूचीयन (R.A.M.P.S.)
- माइलस्टोन बजटिंग
4. मानव संसाधन लेखांकन
5. प्रबन्धकीय अंकेक्षण
6. प्रबन्ध सूचना प्रणाली
7. अपवाद द्वारा प्रबन्ध
8. परियोजना
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