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पाठ्यचर्या विकास के मॉडल | MODELS OF CURRICULUM DEVELOPMENT IN HINDI

पाठ्यचर्या विकास के मॉडल | MODELS OF CURRICULUM DEVELOPMENT IN HINDI
पाठ्यचर्या विकास के मॉडल | MODELS OF CURRICULUM DEVELOPMENT IN HINDI

पाठ्यचर्या विकास के मॉडल (MODELS OF CURRICULUM DEVELOPMENT)

पाठ्यचर्या निर्माण एक अत्यन्त जटिल प्रक्रिया है क्योंकि पाठ्यचर्या विकास (निर्माण) में विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखना पड़ता है। जैसे- छात्रों की आवश्यकता, रुचियाँ, शिक्षण विधियाँ, समाज की आवश्यकता, शैक्षिक लक्ष्य एवं उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री, प्रश्नों का स्वरूप, मूल्य, उपयोगिता, महत्त्व आदि। इसके साथ ही प्रत्येक देश एवं राज्य की अपनी शिक्षा के प्रति विशेष नीति होती है। उसको भी ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है। पूँजीवादी देशों की शिक्षा नीति समाजवादी देशों की शिक्षा नीति से अलग होती है। इन नीतियों (अर्थव्यवस्था) के आधार पर भी पाठ्यचर्या के निर्माण (विकास) के सिद्धान्त अलग-अलग हो जाते हैं। इन समस्त तथ्यों में भिन्नता के बावजूद पाठ्यचर्या में कुछ समानता भी विद्यमान रहती है।

प्रतिमान अंग्रेजी के मॉडल शब्द का पर्यायवाची है। किसी आदर्श के अनुरूप व्यवहार क्रिया को ढालने तथा क्रिया की ओर निर्देशित करने की प्रक्रिया मॉडल या प्रतिमान होती है। दूसरे शब्दों में प्रतिमान किसी वस्तु व्यक्ति अथवा क्रिया का ऐसा परिकल्पनात्मक या कार्यात्मक रूप है जिससे उसके वास्तविक स्वरूप का बोध होता है। पाठ्यचर्या प्रतिमान का अर्थ पाठ्यचर्या के स्वरूप से है। पाठ्यचर्या प्रतिमान का स्वरूप शैक्षिक लक्ष्यों पर आधारित होता है। सामाजिक परिवर्तनों के साथ-साथ शिक्षा के लक्ष्यों में भी परिवर्तन होता रहता है। इससे पाठ्यचर्या विकास के प्रतिमान भी बदलते रहते हैं। पाठ्यक्रम में तीन तथ्यों उद्देश्य, प्रक्रिया एवं परिस्थिति को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

पाठ्यचर्या प्रतिमानों को मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

1) उद्देश्य का मूल्यांकन प्रतिमान

2) प्रक्रिया प्रतिमान एवं

3) परिस्थिति प्रतिमान।

पाठ्यचर्या के उद्देश्य प्रतिमान का आधार व्यावहारिक मनोविज्ञान है। इसमें शैक्षिक उद्देश्यों पर अधिक बल देते हुए पाठ्यचर्या के प्रारूप को विकसित किया जाता है। छात्रों के अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के रूप में उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। व्यवहार परिवर्तन का ज्ञान मूल्यांकन से होता है। अतः इसे मूल्यांकन प्रतिमान भी कहा जाता है।

पाठ्यचर्या के प्रक्रिया प्रतिमान में प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जाती है। इसके अन्तर्गत पाठ्य-वस्तु की सहायता से मानवीय गुणों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। इसीलिए इस प्रकार की पाठ्यचर्या को ‘मानववादी पाठ्यचर्या भी कहा जाता है। इसमें शिक्षक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है।

परिस्थिति प्रतिमान के अन्तर्गत परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लिया जाता है कि पाठ्यचर्या का स्वरूप क्या होगा अर्थात् विषय केन्द्रित, बाल केन्द्रित, शिल्प कला केन्द्रित, सुसम्बद्ध पाठ्यचर्या आदि का विकास किया गया है। पाठ्यचर्या विकास के कुछ प्रमुख प्रतिमान होते हैं जो निर्माणकर्ता को पाठ्यचर्या में आवश्यक प्रक्रियाओं, विषयवस्तु तथा छात्रों के सर्वांगीण विकास से सम्बन्धित तथ्यों को सम्मिलित करने के लिए निर्देश देते हैं।

पाठ्यचर्या विकास के प्रतिमान निम्नलिखित हैं-

1) सेलर, एलेक्जेण्डर एवं लेविस का प्रशासनिक पाठ्यचर्या मॉडल (Saylor, Alexander and Lewis’s Administrative Curriculum Model)

2) ग्रास रूट/हिल्दा टाबा मॉडल (Grassroot/Hilda Taba’s Model)

3) टाइलर का पाठ्यचर्या विकास मॉडल या प्रदर्शन प्रतिमान (Tylor Curriculum Development Model or Demonstration Model)

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Anjali Yadav

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