प्रधान कार्यालय (मुख्यालय) तथा क्षेत्रीय कार्यालय ‘बीच के सम्बन्धों’ की विवेचना कीजिए।
विशाल देशों के प्रशासन को एक स्थान से संचालित नहीं किया जा सकता है तथा व्यापक लक्ष्य की प्राप्ति के संदर्भ में भी ऐसा करना सम्भव नहीं है। केवल दिल्ली और पटना में पोस्ट-ऑफिस खोलकर सम्पूर्ण देश की जनता को सुविधा प्रदान नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि प्रशासन को प्रधान कार्यालय तथा क्षेत्रीय कार्यालय में भौगोलिक एवं कार्यात्मक आधार पर विभाजित कर दिया जाए। प्रशासन को देश या राज्य की राजधानी में जिस संगठन के माध्यम से संचालित किया जाता है उसे प्रधान कार्यालय या मुख्यालय कहा जाता है, दूसरी ओर मुख्यालय की शाखाएँ देश या राज्यों में स्थापित होती हैं, उसे क्षेत्रीय कार्यालय कहा जाता है।
प्रधान कार्यालय को सचिवालय, मंत्रालय, विभाग या सदर के नाम से भी जाना जाता है, यह सामान्यतः देश या राज्य की राजधानी में अवस्थित होता है तथा यहीं से सम्पूर्ण देश या राज्य में प्रशासनिक कार्यों को संचालित किया जाता है। क्षेत्रीय कार्यालयों को वृक्ष की शाखा के समान माना जा सकता है, जिसकी प्रकृति केन्द्रीयकरण या विकेन्द्रीकरण दोनों सिद्धान्तों पर आधारित हो सकती है।
यदि संगठन में क्षेत्रीय कार्यालयों को केन्द्रीकरण के सिद्धान्तों पर संगठित किया जाता है तो उसे कम शक्ति प्राप्त होती है। दूसरी ओर यदि संगठन को विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्तों पर आधारित किया जाता है तो क्षेत्रीय कार्यालयों को अधिक शक्ति प्राप्त होती है। क्षेत्र एवं शक्ति की दृष्टि से क्षेत्रीय सेवाएँ बहुस्तरीय होती हैं, बिल्कुल प्याज के छिलके के समान होती हैं। भारतीय प्रशासन के बहुस्तरीय स्वरूप को केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, कमिश्नरी, जिला, सबडिविजन, पंचायत तथा ग्रामीण स्तर के रूप में देखा जा सकता है। यदि दिल्ली सचिवालय मुख्यालय है तो सभी राज्यों समेत उसमें फैले सभी कार्यालय क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
संगठन के लिए मुख्यालय का महत्व है कि वहाँ से निर्देशन, पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण को बेहतर ढंग से सम्पन्न किया जाता है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समस्याओं के बीच सामंजस्य की स्थापना करने, मुख्यालय के कार्यभार को हल्का करने, क्षेत्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने, विधायिका के समय की बचत करने, लोककल्याणकारी राज्य की सार्थकता को पूरा करने, कर्मचारियों में मनोबल को कायम करने तथा उनमें सहयोगात्मक भावना का विकास करने के लिए क्षेत्रीय सेवाओं की आवश्यकता है। वस्तुतः क्षेत्रीय कार्यालय के माध्यम से ही लोकतंत्र एवं व्यापक विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। यह उल्लेखनीय है कि क्षेत्रीय सेवाएँ केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीकरण अथवा एकल एवं बहुल पद्धति पर आधारित होती है। मुख्यालय तथा क्षेत्रीय कार्यालय के बीच समन्वय एवं सहयोगात्मक सम्बन्ध की स्थापना से ही संगठन का विकास होता है।
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