प्रभावशाली शैक्षिक पर्यवेक्षण में क्या बाधाएँ हैं ? विद्यालय के पर्यवेक्षकीय कार्यों में प्रधानाचार्य की क्या भूमिका है ?
Contents
प्रभावशाली शैक्षिक पर्यवेक्षण में बाधाएँ (Barriers to Effective Supervision)
शैक्षिक पर्यवेक्षण यद्यपि शिक्षा की नीतियों तथा उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होता है। पर्यवेक्षण का उद्देश्य विद्यालय के वातावरण को शिक्षा के अनुकूल बनाना, शिक्षक एवं शिक्षण की दशाओं में सुधार करना, शैक्षिक उन्नति के लिए उपयोगी सुझाव देना समझा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में पर्यवेक्षण का कार्य ‘प्राचार्य’ वरिष्ठ शिक्षक, शिक्षाधिकारी (जिला विद्यालय निरीक्षक, उप शिक्षा निदेशक आदि), टोली निरीक्षण के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इन सभी पर्यवेक्षकों के सुझाव महत्वपूर्ण होने चाहिएँ, किन्तु व्यावहारिक रूप में यह देखा जाता है कि पर्यवेक्षण का कार्य आशाजनक उन्नति में सहायक नहीं हो पाता। विद्यालयों तथा महाविद्यालयों के शिक्षकों से वार्तालाप करने पर ज्ञात होता है कि शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य में अनेक बाधाएँ सम्मुख आती हैं। इन प्रमुख बाधाओं का विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है-
1. पक्षपातपूर्ण व्यवहार (Favouritism) – शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य में पक्षपातपूर्ण व्यवहार पर्यवेक्षण के उद्देश्य को ही समाप्त कर देता है। पर्यवेक्षकों द्वारा किसी के प्रति सहानुभूति और किसी के प्रति कठोर व्यवहार करना उचित प्रतीत नहीं होता। कोई भी शिक्षक या कर्मचारी हो, उसकी त्रुटियों के प्रति उपेक्षा भाव नहीं रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त भाई-भतीजावाद, जातिवाद तथा अन्य संकीर्णता के जाल में फंसकर दोषयुक्त व्यक्ति को क्षमा करना अनुचित है। इसमें सन्देह नहीं कि पक्षपातपूर्ण व्यवहार शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य में बाधक सिद्ध होता है।
2. शिक्षकों में पर्यवेक्षण का भय (Fear of Teachers for Supervision)- पर्यवेक्षण का भय तथा आतंक भी शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य में बाधक होता है। विद्यालय के अधिकांश शिक्षकों में यह प्रवृत्ति होती है कि वे अपनी स्वतन्त्र गति से ही शिक्षण का कार्य करते हैं। जब कभी प्राचार्य या अन्य कोई पर्यवेक्षक उनके शिक्षण कार्य का निरीक्षण करता है तो वे अशान्त हो जाते हैं। ऐसा देखा जाता है कि टोली निरीक्षण के समय भी अधिक भयभीत शिक्षक अवकाश ले लेते हैं। वास्तव में, किसी न किसी प्रकार का अभाव शिक्षकों को ऐसा करने के लिए विवश करता है। इस प्रकार भय तथा आशंका की मनोवृत्ति भी पर्यवेक्षण के कार्य में रुकावट उत्पन्न करती है।
3. वास्तविक अनुभवों का अभाव (Lack of actual experience) – ऐसा देखने में आता है कि शैक्षिक पर्यवेक्षकों में दीर्घानुभव की कमी होती है। शिक्षण संस्थाओं का निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण भी वे अपनी असाधारण योग्यता और दूरदर्शिता से नहीं कर पाते। पर्यवेक्षकों को इस सम्बन्ध में कोई विशेष प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता। परिणाम यही होता है कि ऐसे शैक्षिक पर्यवेक्षण से विद्यालयों को कोई लाभ नहीं पहुँचता ।
4. आलोचना के प्रति विरोध भावना की आशंका (Fear of antagonism against criticism) – पर्यवेक्षकों द्वारा शिक्षकों की आलोचना करने का परिणाम कभी भी अच्छा नहीं होता। प्राचार्य भी जब शिक्षकों को समझाते हैं या उनके कार्यों का निरीक्षण करते हैं तो शिक्षकों द्वारा विरोध किया जाता है, जिससे विद्यालय का वातावरण भी तनावूपर्ण बन जाता है। अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि अच्छा या बुरा कोई भी शिक्षक अपनी आलोचना कराना पसन्द नहीं करता। इस प्रकार की भावना भी पर्यवेक्षण के कार्य में बाधा पहुँचाती है।
5. अधिक सीमित तथा अपर्याप्त सम्बन्ध (Limited and Insufficient Contact of Supervisors) – यदि पर्यवेक्षण के रूप में चाहे प्राचार्य हो, चाहे कोई और अधिकारी, उसका सम्बन्ध यदि शिक्षकों से निरन्तर रहता है तो पर्यवेक्षक का शिक्षकों पर गहरा प्रभाव होता है। उन पर्यवेक्षकों को जिन्हें शिक्षक, पर्यवेक्षण के समय अल्पकाल के लिए ही देखते हैं, प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में नहीं अपनाते ।
6. पर्यवेक्षकों में प्रभावशीलता का अभाव (Lack of Effectiveness in Supervisors)- वास्तव में, पर्यवेक्षण कार्य करने वाले व्यक्ति प्रौढ़ तथा आदर्श व्यक्ति होने चाहिएँ। जिनका पर्यवेक्षण करने के लिए वे जाते हैं, उनकी अपेक्षा •पर्यवेक्षकों में अधिक ज्ञान, योग्यता एवं प्रभावशीलता होनी चाहिए। पर्यवेक्षण के समय कक्षा भवनों में पर्यवेक्षकों को यदि आदर्श पाठ का प्रस्तुतीकरण करना पड़े तो उन्हें अपनी योग्यता का उत्तम प्रदर्शन करना चाहिए।
7. रचनात्मक सुझावों का अभाव (Lack of Constructive Suggestions) – शैक्षिक पर्यवेक्षण का सम्पूर्ण कार्य जब सैद्धान्तिक अधिक होता है और जब वह केवल खाना पूरी करने के लिए होता है तो उसमें रचनात्मक सुझावों का अभाव होता है। टोली निरीक्षण के अवसर पर पर्यवेक्षक आतिथ्य सत्कार से प्रसन्न होकर अपना कर्तव्य ही भूल जाते हैं। कभी-कभी तो इस प्रकार के पर्यवेक्षण कार्य की आख्या (Report) ही नहीं दी जाती तथा यदि दी भी जाती है, तो उसमें रचनात्मक सुझाव नहीं होते।
उपर्युक्त अभाव सचमुच ऐसे हैं, जिनसे शैक्षिक पर्यवेक्षण का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इन दोषों और अभावों को शैक्षिक पर्यवेक्षकों की योग्यता एवं कार्य तत्परता ही दूर कर सकती है। इन अभावों का निराकरण करके ही शैक्षिक पर्यवेक्षण के उद्देश्य में सफलता मिल सकती है।
विद्यालय के पर्यवेक्षकीय कार्यों में प्रधानाचार्य की भूमिका (Role of Principal in Supervisory Functions of School)
विद्यालय के सम्पूर्ण प्रशासन का संचालन करने के लिए जिस प्रभावशाली व्यक्ति की आवश्यकता होती है, वह व्यक्ति प्रधानाचार्य ही होता है। प्रधानाचार्य ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो अनेक गुणों से युक्त हो। विद्यालय में प्रधानाचार्य की भूमिका सर्वप्रमुख होती है। प्रधानाचार्य के स्थान के सम्बन्ध में रायबर्न के अनुसार-“विद्यालय में प्रधानाचार्य का स्थान उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना एक जहाज में कप्तान का।” प्रधानाचार्य के महत्व को प्रदर्शित करने में पी० सी० रेन का निम्न कथन भी उल्लेखनीय है- “एक घड़ी में जो उसकी मुख्य स्प्रिंग का काम है तथा मशीन में जो पहिये का स्थान है अथवा पानी के जहाज में जो स्थान इंजिन का है, विद्यालय में वही स्थान प्रधानाध्यापक का है।”
वस्तुत: प्रधानाचार्य ही ऐसा व्यक्ति होता है, जो अपने विद्यालय को गति प्रदान करता है। समय-समय पर विद्यालय में नवीन बातों को लाने की प्रेरणा केवल प्रधानाचार्य ही देता है। किसी भी विद्यालय पर उसके प्रधानाचार्य के व्यक्तित्व की छाप पूर्णरूप से होती है। प्रधानाचार्य के गुणों के कारण ही एक विद्यालय की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुआ करती है। अतः प्रधानाचार्य को उत्तम प्रशासक, उत्तम शिक्षक तथा उत्तम पर्यवेक्षक होना चाहिए। प्रधानाचार्य को विद्यालय में रहकर अनेक कार्यों की देखभाल करनी पड़ती है। उसे प्रत्येक क्षेत्र में योग्य तथा गुण सम्पन्न होना चाहिए।
प्रधानाचार्य के कार्य (Functions of Principal)- प्रधानाचार्य के विद्यालय में अनेक कार्य होते हैं। जैसे-
- समय-सारिणी सम्बन्धी कार्य ।
- सहायक सामग्री व्यवस्था के कार्य।
- पुस्तकालय सम्बन्धी कार्य ।
- शिक्षण सम्बन्धी कार्य ।
- कार्यशाला सम्बन्धी कार्य ।
- बजट सम्बन्धी कार्य ।
- विद्यालय भवन सम्बन्धी कार्य ।
- क्रीड़ा क्षेत्र सम्बन्धी कार्य ।
- अनुशासन सम्बन्धी कार्य ।
- प्रबन्ध समिति से सम्बन्धित कार्य।
- शिक्षणेत्तर कर्मचारियों से सम्बन्धित कार्य।
- छात्रों से सम्बन्धित कार्य ।
- छात्रावास सम्बन्धी कार्य ।
- समुदाय से सम्बन्धित कार्य ।
- शिक्षा विभाग से सम्बन्धित कार्य ।
वास्तव में, प्रधानाचार्य के कार्यों का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है। समय तथा परिस्थिति के अनुसार इन कार्यों में वृद्धि होती चली जाती है।
प्रधानाचार्य के पर्यवेक्षकीय कार्य- प्रधानाचार्य का पर्यवेक्षक के रूप में प्रमुख उत्तरदायित्व होता है। इस कार्य में उसे अत्यधिक निपुण तथा योग्य होना चाहिए। प्रधानाचार्य के पर्यवेक्षकीय कार्य निम्नलिखित हो सकते हैं-
- पाठ्यक्रम की रचना करना ।
- पाठ्यसहगामी तथा पाठ्येत्तर क्रियाओं की व्यवस्था तथा निरीक्षण करना।
- विद्यालय के सम्पूर्ण वातावरण को विविध योजनाओं तथा कार्य-कलापों द्वारा प्रगतिशील बनाना।
- शैक्षिक निर्देशन तथा शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उनका निरीक्षण करना।
- विद्यालय के विकास हेतु शिक्षण अधिगम की व्यवस्था करना तथा मूल्यांकन करना।
- कार्यालय के प्रयोग में आने वाले रजिस्टरों तथा कार्यालय के व्यक्तियों का निरीक्षण करना।
उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त भी प्रधानाचार्य के पर्यवेक्षकीय कार्यों की सूची तैयार की जा सकती है।
पर्यवेक्षकीय कार्यों में प्रधानाचार्य की भूमिका – वस्तुतः प्रधानाचार्य की सूझबूझ तथा उसके असाधारण गुण ही पर्यवेक्षकीय कार्यों को सफलता प्रदान कर सकते हैं-इन कार्यों को करने के लिए प्रधानाचार्य की कुछ विशेष योग्यताओं का उल्लेख नीचे की पंक्तियों में किया जा रहा है-
1. प्रधानाचार्य को विद्यालय की उन्नति हेतु शिक्षकों तथा संरक्षकों के विचारों का आदर और उनका कार्यान्वयन करना चाहिए।
2. विद्यालय की उन्नति में सहयोग देने वाले तथा उत्तम शिक्षण करने वाले शिक्षकों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
3. शिक्षण तथा अधिगम का मूल्यांकन करने के लिए प्रधानाचार्य को उपुयक्त तथा पर्याप्त समय निर्धारित करना चाहिए।
4. प्रधानाचार्य को अपने विद्यालय में ऐसे अभ्यागत तथा अन्य शिक्षण संस्थाओं के शिक्षकों को आमन्त्रित करना चाहिए, जो विद्यालय की उन्नति में सहायक सिद्ध हो सकें।
5. प्रधानाचार्य को उत्तम कार्य करने वाले छात्रों को प्रोत्साहन तथा कार्य करने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
6. प्रधानाचार्य द्वारा कार्यालय के व्यक्तियों के उत्तरदायित्वों का ठीक विभाजन करना चाहिए।
7. विद्यालय के छात्रावासों के प्रबन्ध को भी प्रधानाचार्य द्वारा देखा जाना चाहिए। छात्रावासों में भोजन की व्यवस्था, भोजन कक्ष, छात्रावास के कमरों आदि की व्यवस्था को ध्यानपूर्वक देखा जाना चाहिए।
8. प्रधानाचार्य को पर्यवेक्षण के सभी कार्यों में धैर्य, सहिष्णुता तथा उदारता का पालन करना चाहिए।
9. प्रधानाचार्य को विद्यालय के विकास शिक्षकों को प्रेरित करना चाहिएँ।
10. प्रधानाचार्य के निर्देशन, आदर्श पाठ, भाषण, कक्षाभ्रमण आदि प्रभावशाली होने चाहिएँ ।
11. विद्यालय में आयोजित पाठ्य सहगामी क्रियाओं के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
12. प्रधानाचार्य को विद्यालय के कार्यों का संचालन करने के लिए शिक्षकों की योग्यता एवं रुचि के अनुसार विभिन्न के योजनाओं का निर्माण करना चाहिए।
13. प्रधानाचार्य को विद्यालय के बजट तथा कार्यालय के रजिस्टरों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए तथा समय-समय पर उनका निरीक्षण करना चाहिए।
14. विद्यालय का सम्पूर्ण निरीक्षण करने के लिए प्रधानाचार्य में पूर्ण क्षमता होनी चाहिए।
15. विद्यालय की सम्पूर्ण शिक्षण व्यवस्था का निरीक्षण करना प्रधानाचार्य का मुख्य कर्त्तव्य है। अतएव शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया को उत्तरोत्तर उन्नत करने के लिए प्रधानाचार्य द्वारा अत्यधिक प्रयास किया जाना चाहिए।
पर्यवेक्षक के रूप में प्रधानाचार्य के गुण (Qualities of the Principal as Supervisor) – प्रधानाचार्य के गुणों का उल्लेख अनेक विद्वानों ने किया है। उसके कतिपय गुणों का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है- (1) कुशल प्रशासक (2) प्रभावशाली व्यक्तित्व, (3) व्यापक दृष्टिकोण, (4) शिक्षण संस्था के प्रति आस्थावान, (5) शिक्षण तथा अधिगम के नवीन उपागमों को जानने वाला, (6) सहकर्मियों के प्रति मित्रवत व्यवहार करने वाला, (7) मानवीय सम्बन्धों में दक्ष, (8) चरित्रवान, (9) न्यायप्रिय, (10) उत्तम संगठनकर्त्ता तथा प्रभावशाली शिक्षा शास्त्री, (11) व्यावसायिक ज्ञान रखने वाला, (12) दूरदर्शी, (13) प्रभावशाली वक्ता, (14) कर्त्तव्यपरायण, (15) कार्यालय के कार्यों में दक्ष, (16) वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने वाला, (17) समुदाय की आवश्यकताओं को जानने वाला, (18) प्रभावशाली व्यक्तित्व, (19) निष्पक्ष, (20) समय की पाबन्दी रखने वाला।
अनेक विद्वानों ने पर्यवेक्षक के अन्य गुणों पर भी प्रकाश डाला है। वस्तुतः पर्यवेक्षक का प्रभावशाली व्यक्तित्व तथा उसके चारित्रिक गुण ही उसे उत्तम पर्यवेक्षक बनाने में सहायक होते हैं। पर्यवेक्षक के गुणों का संक्षेप में इस प्रकार उल्लेख किया जा सकता है-
पर्यवेक्षक के गुण
गुण निर्देशक | गुण |
1. एस० ई० ब्रे (S. E. Brey) | कर्त्तव्यनिष्ठ, सहानुभूतिपूर्ण, निर्णय शक्ति रखने वाला, चरित्र पारखी, कार्य एवं व्यवसाय के प्रति रुचि रखने वाला, आत्म-संयमी, चरित्रवान, दृढनिश्चयी, ओजस्वी वक्ता । |
2. फिफनर (Fifner) | सत्यनिष्ठ, ईमानदार, शीघ्र निर्णायक, साहसी एवं दूरदर्शी, निःस्वार्थ, निष्पक्ष, सहयोगी, चरित्रवान, नैतिक उदार एवं बौद्धिक । |
3. रीडर, वार्ड जी० (Reader, Ward, G.) | शिक्षा सिद्धान्त का ज्ञाता, कार्यों का उत्तम संचालक, समस्या समाधान कर्त्ता, निर्णय करने में कुशल, स्वावलम्बी, सहायता के लिए दूसरों का न ताकने वाला, आत्मविश्वासी, सहयोग का आकांक्षी, विद्यालय के क्रियाकलापों में सामंजस्यकारी, प्रभावशाली अभिव्यक्ति करने वाला तीव्र तथा स्पष्ट स्मृति वाला। |
4. ब्रिग्स तथा जस्टमैन ( Briggs & Justman) | व्यक्ति, परिस्थिति पारखी, आत्म विश्वासी, आशावादी, जिज्ञासु, ईमानदार, निष्पक्ष, दृढ निश्चयी, स्पष्टवादी, कुशल वक्ता, कुशलवार्ताकार, सहानुभूतिपूर्ण, कठोर परिश्रमी, बुराई से दूर, साहसी, दूरदर्शी, मौलिक चिन्तक, पर्याप्त शक्ति रखने वाला, शिक्षक हितैषी। |
5. रायबर्न (Rayburn) | चरित्रवान, निष्ठावान, व्यवसाय प्रेमी, छात्र हितैषी, शिक्षक कल्याणकारी, प्रेरणा दाता, सहानुभूतिपूर्ण सहयोगी, मित्रवत् व्यवहार करने वाला। |
6. मैकिन एवं मिल्स (Makkin & Mills) |
(क) वैयक्तिक गुण- आशावादी दृष्टिकोण वाला, विनोद प्रिय, मृदुल व्यवहारी, शैक्षिक समस्याओं को सुलझाने वाला; विचारों में मौलिक एवं स्पष्ट, शिक्षकों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील (ख) व्यवसायिक गुण – नेतृत्व में कुशल, मूल्यांकन प्रक्रिया में दक्ष, शिक्षण तथा अधिगम प्रक्रिया के नवीन उपागमों को जानने वाला, उत्तम शिक्षक, शिक्षण विधि एवं सहायक सामग्री का ज्ञात |
इसमें सन्देह नहीं कि शैक्षिक पर्यवेक्षक को उत्तम ढंग से चलाने के लिए पर्यवेक्षक में वैयक्तिक तथा व्यावसायिक गुणों की अत्यन्त आवश्यकता होती है। पर्यवेक्षकों का सुडौल शरीर, गम्भीर व्यक्तित्व, ख्याति प्राप्त विद्वता, निर्णय शक्ति आदि सभी गुणों का संकलन पर्यवेक्षण को प्रभावशाली बनाता है। उपर्युक्त जिन गुणों का उल्लेख किया गया है, वास्तव में वे गुण पर्यवेक्षकों में ही पाए जाते हैं। पर्यवेक्षक एवं प्रधानाचार्य को शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य में अपने गुणों को इस ढंग से प्रकट करना चाहिए, जिससे ऐसा लगे कि प्रधानाचार्य की विद्यालय में नियुक्ति, उसकी वैयक्तिक योग्यता के आधार पर ही हुई है। इसके विपरीत यदि किसी पर्यवेक्षक की नियुक्ति सिफारिश, जातिवाद अथवा अन्य अनुचित साधनों के बल पर हुई है और उसमें गुणों का भी अभाव होता है तो वह शिक्षकों, छात्रों तथा पर्यवेक्षकों के बीच हँसी तथा निन्दा का पात्र ही बना रहता है।
IMPORTANT LINK
- अध्यापक के सामान्य गुण तथा कर्त्तव्य | General Qualities and Duties of a Teacher in Hindi
- पाठ्यक्रम के प्रकार | Types of Curriculum in Hindi
- पाठ्यक्रम का अर्थ, उद्देश्य, आधार एवं सिद्धान्त
- पुरस्कार एवं दण्ड की भूमिका | Role of Reward and Punishment in Hindi
- विद्यालय में अनुशासन स्थापित करने के सुझाव | Suggestions to Maintain Proper Discipline in School in Hindi
- आधुनिक युग में अनुशासनहीनता के क्या कारण हैं ?
- अनुशासन का अर्थ, महत्व एंव सिद्धान्त | Meaning, Importance and Principles of Discipline in Hindi
- कक्षा प्रगति से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by class Promotion?
- छात्रों के वर्गीकरण से आप क्या समझते हैं ? वर्गीकरण की आवश्यकता एवं महत्व
- अध्यापक के कार्य एवं उत्तरदायित्व | Functions and Duties of the Teacher in Hindi
- स्टाफ के साथ प्रधानाध्यापक के सम्बन्ध | Headmaster’s Relations with the Staff in Hindi
- विद्यालय के प्रधानाध्यापक के प्रमुख कर्त्तव्य | Duties Of School Headmaster In Hindi
- विद्यालय प्रबन्ध में प्रधानाध्यापक की भूमिका | Role of a Headmaster in School Administration in Hindi
- शिक्षा प्रशासन का प्रारूप | Structure of Educational Administration in Hindi
- शिक्षा प्रशासन का अर्थ | Meaning of Educational Administration in Hindi
- विद्यालय संगठन का अर्थ | Meaning of School Organisation in Hindi
- शिक्षा में विद्यालय संगठन की भूमिका | Role of school organization in education in Hindi
- जनतान्त्रिक शिक्षा प्रशासन के नियम | Principles of Democratic Educational Administration in Hindi
- शिक्षा प्रशासन के नियम | Principles of Educational Administration in Hindi
- शिक्षा प्रशासन के सिद्धान्त | Theories of Educational Administration in Hindi
- मोहिल्सन के अनुसार शैक्षिक प्रशासक के कार्य | Duties of Educational Administrator in Hindi
- शिक्षा प्रशासन के उद्देश्य तथा कार्य | Objectives and Functions of Education Administration in Hindi
Disclaimer