प्रशासन में नेतृत्व की भूमिका
प्रशासन में नेतृत्व की भूमिका अथवा महत्व – प्रबन्ध या प्रशासन में नेतृत्व की भूमिका को सर्वव्यापक रूप में स्वीकार किया जाता है। नेतृत्व के माध्यम से प्रशासनिक प्रक्रियाओं का व्यवस्थित एवं सफल निष्पादन होता है। नेतृत्व की भूमिका तथा महत्व के संदर्भ में पीटर एफ. ड्रकर ने ठीक ही कहा है कि “अधिकांश व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के असफल होने का प्रमुख कारण अकुशल नेतृत्व ही है।” नेतृत्व की भूमिका या महत्व को अग्रलिखित रूप में रेखांकित किया जा सकता है-
प्रथम- नेतृत्व अभिप्रेरणा का स्रोत है। इसकी जड़ें मानवीय सम्बन्धों से जुड़ी हुई हैं और मानवीय सम्बन्धों का विकास कुशल नेतृत्व के द्वारा ही होता है। नेतृत्व एक ऐसा गुण है जो व्यक्तियों के समूह के उद्देश्यों एवं प्रयत्नों को एकता प्रदान करता है, सदस्यों को प्रेरणा देता है तथा उनका मार्गदर्शन करता है। इसके द्वारा अधीनस्थों के व्यक्तिगत गुण उभरते हैं तथा उन्हें अपनी योग्यता दिखाने का सुअवसर मिलता है।
द्वितीय- कुशल नेतृत्व किसी व्यावसायिक उपक्रम में कार्य करने वाले कर्मचारियों को उसके उद्देश्यों के प्रति निष्ठावान बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उनके प्रयत्नों में निष्क्रियता के स्थान पर सक्रियता लाता है। यही कारण है कि किसी उपक्रम का आधार जितना अधिक बड़ा होगा, उसके संचालन के लिए उतने ही अधिक ऊँचे स्तर के नेतृत्व की आवश्यकता होगी। कुशल संरचना खण्डित हो सकती है तथा शीर्ष प्रबन्ध के शुभेच्छापूर्ण प्रयास भी व्यर्थ सिद्ध हो सकते हैं।
तृतीय- सामूहिक क्रियाओं का संचालन करने हेतु कुशल नेतृत्व की आवश्यकता पड़ती है, जिसके अभाव में समूह व्यवस्थित नहीं रह सकता। अव्यवस्थित समूह के सदस्य पृथक्- पृथक् व्यक्तिगत रूप से कितना भी अच्छा कार्य क्यों न करे, सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति कुशलता के साथ नहीं की जा सकती।
चतुर्थ – नेतृत्व विभिन्न व्यक्तियों के मध्य सहयोग की आधारशिला है। इसके अभाव में कर्मचारियों में द्वेष की भावना जन्म लेती है तथा छोटे-छोटे कार्यों को लेकर आपस में विवाद उठ खड़े होते हैं।
पंचम- किसी व्यावसायिक संस्था की सफलता अथवा असफलता बहुत हद तक नेतृत्व की प्रकृति पर निर्भर करती है। जहाँ एक ओर कुशल नेतृत्व व्यवसाय को प्रगति पर ले जाता है, वहीं दूसरी ओर अकुशल नेतृत्व व्यवसाय को पतन अथवा असफलता की ओर ले जाता है। पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार, “व्यवसायिक नेता किसी व्यवसायिक उपक्रम का आधारभूत एवं दुर्लभ साधन है। अनेक व्यवसायिक उपक्रमों की असफलता का मूल कारण अकुशल नेतृत्व ही है। “
षष्ठी – कुशल नेतृत्व के माध्यम से प्रबन्धन एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित हो जाता है। परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर कर्मचारी उपक्रम की प्रगति के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर होते हैं, वही दूसरी ओर प्रबन्धन भी उनके लिए हर सम्भव सुविधाएँ (जैसे- आवास, शिक्षा, विद्युत, यातायात, पानी, चिकित्सा, भविष्य निधि आदि) प्रदान करने को सहर्ष तैयार हो जाता है।
अन्त में- प्रबन्ध में नेतृत्व के महत्व को कई रूपों में देखा जा सकता है। यह समन्वय स्थापित करने के लिए आवश्यक है, यह अधिकारी वर्ग को सुविधा प्रदान करने के लिए आवश्यक है, यह अधीनस्थों के व्यक्तित्व का विकास करने के लिए आवश्यक है तथा यह संगठन को क्रियाशील बनाने के लिए भी आवश्यक है। संगठन में नेतृत्व के महत्व को देखते हुए यह कहा गया है कि “नेतृत्व रूपी घोड़ा दबने पर ही संगठन की क्रिया रूपी बन्दूक चल सकती है, अन्यथा नहीं।”
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