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बजट क्या है?
बजट का अर्थ- बजट (Budget) शब्द की व्युत्पति फ्रांसीसी शब्द ‘बूजे’ से हुई है, जिसका अर्थ है- चमड़ें का छोटा थैला। वर्ष 1733 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री, रॉबर्ट वॉलपोल देश की आर्थिक स्थिति का लेखा-जोखा चमड़े के एक बैग (थैले में रखकर लाए थे। कारण स्वरूप कालांतर में इसे बजट कहा जाने लगा।
भारत में सर्वप्रथम बजट प्रस्तुत करने का श्रेय लॉर्ड केनिंग के कार्यकाल में कार्यरत वित्तीय सदस्य जेम्स विल्सन को है। इसीलिए श्री विल्सन को ‘भारतीय बजट का प्रणेता’ माना जाता है। भारतीयों की बजट परंपरा की जड़ें 1944 में निर्मित बम्बई प्लान से जुड़ी हुई मानी जाती हैं। इस प्लान की रचना जॉन मथाई, जीडी बिरला और जेआरडी टाटा ने की थी। 26 नवम्बर, 1947 को स्वतंत्र भारत का पहला बजट वित्त मंत्री आर के शण्मुखन चेट्टी ने प्रस्तुत किया था। यह मात्र अर्थ व्यवस्था की समीक्षा थी। संविधान के अनुच्छेद 265 में कहा गया है कि कानूनी प्रावधान के बिना कोई भी कर नहीं लगाया जा सकता और न ही उसकी उगाही की जा सकती। संविधान के अनुच्छेद 266 में कहा गया है क संसदीय अनुमति के बिना कोई भी व्यय नहीं किया जा सकता। प्रत्येक वित्त वर्ष के लिए सालाना वित्तीय लेखा-जोखा संसद के सामने रखना आवश्यक है।
बजट में अगले वित्त वर्ष यानी एक अप्रैल से लेकर 31 मार्च तक की अवधि की वित्तीय योजना होती है। इसमें विगत का लेखा-जोखा देते हुए आगत की तैयारी का इंतजाम होता है। संविधान के अनुच्छेद 112 के अन्तर्गत सरकार को हर साल फरवरी में अगले वित्त वर्ष के अनुमानित खर्चे और आमदनी का ब्योरा संसद में रखना पड़ता है। इस बजट की तैयारी नवम्बर माह से ही शुरू हो जाती है। बजट में आमतौर पर 3 चीजें होती हैं। पिछले वित्त वर्ष के अंतिम आंकड़े, चालू वित्त वर्ष के संशोधित आंकड़े और अगले वित्त वर्ष के प्रस्तावित अनुमान।
बजट की तैयारी के काम में केन्द्रीय वित्त मंत्री के अलावा वित्त सचिव, राजस्व राजस्व सचिव (व्यय), सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के साथ-साथ राजस्व विभाग का टैक्स रिसर्च यूनिट (टीआरयू) खास तौर पर जुड़ा रहता है। टीआरयू की विशेष भूमिका रहती हैं टैक्स लगाने, कम करने या फिर बिल्कुल हटाने का काम यही विभाग करता है। बजट पेश करने के 75 दिन की अवधि के अन्दर बजट को पारित करना आवश्यक होता है।
बजट के प्रकार
बजट के पाँच प्रकार हैं-
1. पारम्परिक बजट (Traditional Budget) – आज के आम बजट का प्रारम्भिक रूप ही पारम्परिक बजट है। इस प्रकार के बजट का मुख्य उद्देश्य विधायिका का कार्यपालिका पर वित्तीय नियंत्रण स्थापित करना रहा है।
2. निष्पादन बजट (Performance Budget) – कार्य के परिणामों को आधार बनाकर निर्मित होने वाले बजट को निष्पादन बजट या कार्यपूर्ति बजट कहा जाता है। निष्पादन बजट का श्रीगणेश प्रथम हूपर आयोग (1949) के सिफारिश पर U.S.A. की संघीय सरकार द्वारा 1951 में हुआ था। हमारे देश में भी इस प्रणाली को 1968 से प्रयोग में लाया जा रहा है।”
3. आउटकम बजट (Outcome Budget) – जब किसी एक वित्तीय वर्ष के लिए किसी मंत्रालय अथवा विभाग को आबंटित किए गए बजट में अनुश्रवण तथा मूल्यांकन किए जा सकने वाले भौतिक लक्ष्यों का निर्धारण इस उद्देश्य से किया जाता है ताकि बजट के क्रियान्वयन की गुणवत्ता ‘को परखा जाना सम्भव हो सके तो ऐसे बजट को आउटकम बजट कहते हैं। देश के संसदीय इतिहास में पहली बार 25 अगस्त, 2005 को आउटकम बजट वित्त मंत्री द्वारा संसद से प्रस्तुत किया गया था। ध्यातव्य है कि यह प्रयोग के तौर पर केवल आयोजनागत बजट के लिए ही किया गया था।
4. शून्य आधारित बजट (Zerobase Budget) – बजट की वह प्रक्रिया जिसमें किसी भी विभाग अथवा संगठन द्वारा प्रस्तावित व्यय के प्रत्येक मद पर पुनर्विचार करके प्रत्येक मद को बिल्कुल नूतन मद (शून्य) मानते हुए उसका नये सिरे से मूल्यांकन करना ही शून्य प्रणाली बजट कहलाता है। भारत में जीरोबेस बजटिंग प्रक्रिया की शुरुआत सरकारी क्षेत्र के एक प्रमुख शोध संगठन ‘काउन्सिल ऑफ साइटिफिक एण्ड इन्डस्ट्रियल रिसर्च’ (सी.एस.आई.आर.) द्वारा की गई। केन्द्र सरकार के सभी मंत्रालयों तथा विभागों में लागू करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा इसे बजट वर्ष 1987-88 से लागू करने का निर्णय लिया गया। आज भी केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा पूर्णरूपेण न सही तो आंशिक रूप से इसे लागू किया जा रहा है।
5- जेण्डर बजटिंग (Gender Budgeting) – संसार में सर्वप्रथम ऑस्ट्रेलिया में जेण्डर बजटिंग वाला बजट 1984 में पेश किया गया था। भारत में महिला अधिकारिता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में बजट के योगदान को स्वीकार करते हुए केन्द्र सरकार द्वारा जेण्डर बजटिंग की शुरुआत विगत कुछ वर्षों से की गई है। जेण्डर बजटिंग के माध्यम से सरकार द्वारा महिलाओं के विकास, कल्याण और सशक्तिकरण से सम्बन्धित योजनाओं और कार्यक्रम के लिए प्रतिवर्ष बजट में एक निर्धारित राशि की व्यवस्था सुनिश्चित करने के प्रावधान किए जाते हैं।
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