मानव विकास की ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि लिखिए।
मानव विकास की अवधारण विकासात्मक मनोविज्ञान की अत्यन्त यथार्थवादी एवं आधुनिक विचारों को पोषित करने वाली अवधारणा है जिसके विकास के फलस्वरूप मानव के जन्म के पूर्व गर्भाधान से जन्म के पश्चात् के सम्पूर्ण विकास का अध्ययन करना सम्भव हुआ है।
प्राचीन काल से ही विचारकों एवं दार्शनिकों ने बालकों के व्यवहार तथा उनके मनोवैज्ञानिक विकास के सम्बन्ध में गहने रुचि एवं जिज्ञासा व्यक्त की है। बाह्यरूप से ऐसा प्रतीत होता है कि बाल विकास के विषय में उच्च अनुसंधान तथा सैद्धान्तिक ज्ञान की जो स्थिति आधुनिक काल में देखने में आयी है, वह 20वीं शताब्दी की ही देन है। परन्तु जब इस विषय में गहन अध्ययन किया गया तब यह स्पष्ट हुआ कि इस अध्ययन की जड़ें बहुत गहरी एवं प्राचीनतम है। प्लेटो ने बाल विकास तथा प्रशिक्षण के सम्बन्ध मे अपने अत्यन्त सूक्ष्म एवं विलक्षण तर्क एवं प्रेक्षण प्रस्तुत किये हैं। अपने इन अध्ययनों एवं अवलोकनों के आधार पर ही उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि बालक की क्षमताओं योग्यताओं में व्यापक स्तर पर जन्मजात व्यक्तिगत भेद देखने में आते हैं। इस सम्बन्ध में उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि प्रत्येक बालक को उसकी अभिक्षमता के अनुसार ही प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए अर्थात् उस बालक को उसी कार्य का सेवा हेतु प्रशिक्षित किया जाना चाहिए जिसकी उसमें स्वाभाविक क्षमता विद्यमान हो। इस परिप्रेक्ष्य के सम्बन्ध मे प्लेटो को अभिक्षमता परीक्षण के क्षेत्र में व्यक्ति या पथ प्रदर्शक की संज्ञा दी जा सकती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया जाये, तो प्लेटो के अलावा भी कुछ विचारक एवं दार्शनिक ऐसे हैं, जिनके विचार अत्यन्त मौलिक एवं विचारणीय हैं, इन्होंने अपने व्यक्तिगत सूक्ष्म अनुभवों के आधार पर बालकों की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का वर्णन करते हुए बालकों को रचनात्मक ‘दिशा में प्रशिक्षित करने पर जोर दिया है। उनके मतानुसार बालकों में नवीन रचनात्मक एवं सामाजिक आदतों का निर्माण एवं विकास एक सर्वोपरि आवश्यकता है। इसके सम्बन्ध में सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध दार्शनिक जॉन लॉक ने बालकों के जीवन के आरम्भिक वर्षों में नवीन आदतों के निर्माण पर बल दिया था तथा यह स्पष्ट किया था कि यह कार्य नियमित अभ्यास से ही सम्भव है।
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