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रक्षा युक्तियों का शिक्षक एवं शिक्षार्थी हेतु शैक्षिक निहितार्थ (Educational Implications of Defensive Mechanism for Teacher and Learner)
रक्षा युक्तियों का शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि जब छात्र अधिगम शिक्षा प्राप्त कर रहा होता है तो उसे अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं का समाधान वह किस प्रकार से करेगा तथा इसके लिए उसे दूसरों से किस प्रकार मदद लेगा तथा उसे कौन मदद देगा? यह प्रश्न मुख्य रूप से उठता है। ऐसी स्थिति में छात्र की सहायता शिक्षक के द्वारा की जाती है। शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्य केवल यांत्रिक सम्बन्ध नहीं होते हैं बल्कि ये सम्बन्ध भावात्मक स्तर के होते हैं। इन सम्बन्धों के ही कारण छात्र माता-पिता के पश्चात् अपनी अधिकाँश समस्याओं के समाधान के लिए शिक्षक के पास जाता है जो उनका यथोचित निराकरण करता है। छात्र उचित रूप से अधिगम को तब तक नहीं कर सकता है जब तक वह मानसिक एवं शारीरिक रूप से चिन्ता से मुक्त नहीं होगा।
इसी प्रकार कक्षा-कक्ष में शिक्षकों को भी अध्यापन के दौरान अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता। जैसे- छात्रों द्वारा शोरगुल करना, झगड़ा करना, तथ्यों को समझाते समय ध्यान न देना, अनुशासनहीनता इत्यादि। इन सबके बावजूद एक शिक्षक अपने शिक्षण कार्य को शान्ति एवं धैर्यपूर्वक करता रहता है। इसका मुख्य कारण यह है कि शिक्षक जानता है कि छात्र यन्त्रवत् होकर शिक्षण कार्य नहीं कर सकते हैं तथा उनका मस्तिष्क भी बहुत सक्रिय रहता है और वे प्रत्येक कार्य को आनन्दपूर्वक तरीके से प्राप्त करना चाहते हैं। अनावश्यक रूप से क्रोधित नहीं होना चाहिए।
उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि चाहे छात्र हो या शिक्षक दोनों को अपने-अपने कार्यों में अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएँ प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में उठानी पड़ती है। इन समस्याओं को जो छात्र/शिक्षक जितने अच्छे से सामना कर लेता है, वह उतना ही अच्छा परिणाम देता है।
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