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राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीयता का अर्थ एवं परिभाषा | राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएँ | अध्यापक या शिक्षा का राष्ट्रीय एकता में योगदान

राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीयता का अर्थ एवं परिभाषा | राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएँ | अध्यापक या शिक्षा का राष्ट्रीय एकता में योगदान
राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीयता का अर्थ एवं परिभाषा | राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएँ | अध्यापक या शिक्षा का राष्ट्रीय एकता में योगदान

राष्ट्रीय एकता से आप क्या समझते हैं ? राष्ट्रीय एकता के मार्ग में कौन-कौन सी बाधाएँ हैं ? शिक्षा इन समस्याओं को दूर करने तथा छात्रों में राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करने के लिए किस प्रकार सहायता कर सकती है ?

राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीयता का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of National Integration or Nationalism)

राष्ट्रीय एकता राष्ट्रीयता का पर्याय है, राष्ट्रीयता का अर्थ किसी राष्ट्र के नागरिकों की एकता की भावना से होता है। यह भावना किसी भी राष्ट्र के विकास के लिये आवश्यक है। राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना ही राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीयता है। विभिन्न विद्वानों के द्वारा राष्ट्रीय एकता की व्याख्या विभिन्न प्रकार की गयी है, जो निम्न प्रकार है-

राष्ट्रीय एकता सम्मेलन की रिपोर्ट (1961) के अनुसार, “राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों के हृदयों में एकता, संगठन, सन्निकटता की भावना, सामान्य नागरिकता की भावना और राष्ट्र के प्रति भक्ति की भावना का विकास किया जाता है।”

National integration is Psychological and educational process involving the development of a feeling of unity, solidarity and cohesion in the hearts of the people, a sense of common citizenship and a feeling of loyalty to the Nation.”             – National Integration Conference Report, 1961

बूबेकर (Brubacher) के मतानुसार, “राष्ट्रीयता साधारण रूप में, देश-प्रेम की अपेक्षा देश भक्ति के अधिक व्यापक क्षेत्र की ओर संकेत करती है। राष्ट्रीयता में स्थान के सम्बन्ध के साथ-साथ जाति, भाषा, इतिहास, संस्कृति और परम्पराओं के सम्बन्ध भी प्रदर्शित होते हैं।

“Nationalism ordinarily indicates a wider scope of loyalty than patriotism. In addition to ties of place nationalism is evidenced by such other tices as race, language, history, culture and tradition.”      – J. S. Brubacher

कोठारी शिक्षा आयोग की रिपोर्ट के अनुसार,राष्ट्रीय एकता अपने में राष्ट्रीय भविष्य में विश्वास, उन्नत जीवन मूल्यों एवं कर्त्तव्यों की भावना, स्वच्छ प्रशासन का विश्वास और पारस्परिक सद्भाव सम्मिलित किये हुए है।”

“National integration includes a confidence in the Nations future, a continuous rise in the standard of living, development of feeling of values and duties, a good and impartial administration system and mutual understanding.” – Kothari Commission Report, 1964-66

डॉ० हुमायूँ कवीर के शब्दों में, “राष्ट्रीयता वह है जो राष्ट्र के प्रति अपनत्व की भावना पर आधारित होती है।”

“Nationalism is that which depends on “we feeling” towards the Nation.” – Dr. Humayun Kabir

इन सभी परिभाषाओं के आधार पर हम राष्ट्रीयता के अर्थ को स्पष्ट कर सकते हैं। राष्ट्रीयता की भावना में देश-प्रेम के तत्त्व निहित होते हैं जो देश के नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास करते हैं। सच्ची राष्ट्रीयता वही है जिसमें व्यक्ति देश हित व राष्ट्रहित के लिए सभी कुछ त्याग देने के लिए तत्पर रहता है।

राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएँ (Obstacles in the Way of National Integration)

भारत जैसे प्रजातान्त्रिक देश के लिये राष्ट्रीय एकता अत्यन्त आवश्यक है, विशेषकर वर्तमान समय में हमारे देश को बाहर के आक्रमणों का खतरा है तथा अन्दर आतंकवाद, साम्प्रदायिकता, प्रान्तीयवाद, भाषावाद, जातिवाद तथा क्षेत्रीयवाद आदि गतिशील हैं। इस सम्बन्ध में किसी पत्रकार ने ठीक ही लिखा है-“कि हमारे देश को यह पाँच सिरों वाला जहरीला नाग इस रहा है। विघटनकारी तत्त्व हमारे देश का सर्वनाश करने पर तुले हुये हैं।”

राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं-

1. जातिवाद (Casteism) – भारत में विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं; जैसे-वैश्य, शूद्र, क्षत्रिय और ब्राह्मण आदि। इन जातियों में भी अनेक उपजातियाँ हैं। प्राचीन भारत में इन जातियों का निर्माण कुछ लाभों को ध्यान में रखकर किया गया था। उस समय जाति विभाजन कर्म के आधार पर होता था न कि जन्म के आधार पर तथा एक व्यक्ति के एक जाति से दूसरी जाति में प्रवेश करने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता था। परन्तु समय के साथ-साथ जातीयता के बन्धन और भी कड़े होते गए। जातिवाद का सबसे बड़ा कुप्रभाव चुनावों के समय देखने में आता है। आज के चुनाव जातीयता के आधार पर लड़े जाते हैं। विभिन्न राजनैतिक दल किसी व्यक्ति को टिकट देते समय इस बात को ध्यान में रखते हैं कि उम्मीदवार उस जाति का हो जिस जाति के लोग उस विशेष क्षेत्र में अधिक मात्रा में रहते हैं। भारत में अधिकांश लोग अशिक्षित हैं। अज्ञानवश वे राजनैतिक दलों के प्रचार का शिकार बन जाते हैं। जातीयता की बुराई की सीमा तो इतनी अधिक हो गई है कि चुनाव में यदि किसी क्षेत्र में दो उम्मीदवार एक जाति के होते हैं तो भी लोग उनके गुणों की तुलना नहीं करते। जब तक लोगों में यह जातीयता की भावना रहेगी तब तक राष्ट्रीय भावना के विकास की बात सोची भी नहीं जा सकती।

2. साम्प्रदायिकता (Communalism) – ‘भारत एक विशाल देश है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक यह 2,000 किलोमीटर लम्बा तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 1,800 किलोमीटर चौड़ा है। भारत में विभिन्न धर्मों के लोग, जैसे—हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि लोग निवास करते हैं। इसी प्रकार, विभिन्न धर्मों में भी अलग-अलग विश्वास के लोग हैं, जैसे—हिन्दुओं में सनातनी और आर्य समाजी आदि, मुसलमानों में शिया तथा सुन्नी, सिक्खों में निरंकारी, नामधारी, ईसाइयों में कैथोलिक तथा प्रोटैस्टेन्ट आदि इनके उदाहरण हैं। लेकिन खेद की बात है कि विभिन्न धर्मों एवं उनके सम्प्रदायों में परस्पर सद्भावना का होना तो एक ओर, अपितु आपसी झगड़े होते रहते हैं और कई बार तो यह झगड़े भयानक रूप ले लेते हैं। इसके कुछ उदाहरण हैं-पंजाब के उग्रवादी, मेरठ, अलीगढ़, मुरादाबाद आदि स्थानों पर हिन्दू-मुस्लिम दंगे, मुम्बई बम धमाके (Mumbai Bomb Blast) तथा अयोध्या में राम मन्दिर तथा बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर झगड़ा। इन हिंसात्मक झगड़ों में राष्ट्रीय एकता नष्ट हो रही है तथा लोगों का मानसिक सन्तुलन बड़ी तेजी से बिगड़ रहा है।

3. क्षेत्रीयवाद (Regionalism) – क्षेत्रीयवाद भी एक प्रकार से प्रान्तीयता का एक रूप है। क्षेत्र के नाम से देश के विभिन्न भागों में अधिकतर हिंसक तनाव भड़कता ही रहता है। शैक्षिक संस्थाओं में क्षेत्र के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। प्रवेश के समय Domicile Certificate लाना इसका प्रमाण है। भारत के दो प्रान्त महाराष्ट्र और कर्नाटक बैलगाम क्षेत्र के लिए सदैव लड़ते रहते हैं। क्षेत्रों के आधार पर बहुत से राज्यों में सेनाएँ बन गई हैं। जैसे महाराष्ट्र में ‘शिव सेना’ तथा असम में ‘लचित सेना’ । महाराष्ट्र की शिव सेना की माँग है कि महाराष्ट्र केवल उन लोगों का है, जिसका मूल निवास महाराष्ट्र है तथा सभी गैर-महाराष्ट्रीयों को यहाँ से निकाल देना चाहिए। इस प्रकार के बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं।

4. भाषावाद (Linguism)- जब हमारा देश इतना विशाल है तो यह बात स्वाभाविक है कि इसमें बहुत सी भाषाएँ बोली जाती होंगी। भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित किया गया है तथा 14 अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है, परन्तु देश में भाषावाद अपना भद्दा सिर ऊपर उठा रहा है। उदाहरण के तौर, दक्षिणी भारत में विशेषकर तमिलनाडु में हिन्दी विरोधी अभियान चलता रहता है। कई बार उन सिनेमा हालों को जला दिया जाता है या दूसरे तरीकों से क्षति पहुँचाने का प्रयास किया जाता है, जो हिन्दी फिल्में दिखाते हैं। हिन्दी पढ़ाने वाले स्कूलों को भी छोड़ा नहीं जाता है। दक्षिणी भारत के लोग एक विदेशी भाषा अंग्रेजी को तो सहन कर सकते हैं, परन्तु हिन्दी को नहीं। इसी प्रकार स्वतन्त्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी यू० पी० तथा राजस्थान आदि को छोड़ कर बहुत-से भारतीयों ने अंग्रेजी के प्रति अपना मोह नहीं छोड़ा। पंजाब में भी बहुत बार हिन्दी विरोधी अभियान चलाया गया है। इसी प्रकार हरियाणा में भी लगभग 35 से 40% लोग पंजाबी बोलने वाले हैं। हिन्दी के बाद यह राज्य की सबसे अधिक जनसंख्या द्वारा बोलने • वाली भाषा है, परन्तु सरकार ने पंजाबी के स्थान पर तेलगु को राज्य की तीसरी भाषा घोषित किया है। भाषा को लेकर प्रतिदिन कहीं न कहीं, किसी न किसी प्रान्त में प्रत्येक दिन झगड़ा होता रहता है।

5. प्रान्तीयवाद (Provincialism) – प्रत्येक देश प्रशासन का कार्यक्रम कुशलतापूर्वक चलाने हेतु अपने आपको प्रान्तों में बाँट देता है। वास्तविकता तो यह है कि समस्त प्रान्त एक ही देश के भाग हैं, परन्तु बड़े दुःख से कहना पड़ता है कि बहुत-से प्रान्तों का आपस में सम्बन्ध मधुर नहीं है। पंजाब और हरियाणा, महाराष्ट्र और कर्नाटक, असम और नागालैण्ड प्रान्तों का आपसी तनाव इसका उदाहरण है।

6. राजनैतिक दल (Political Parties) – लोकतन्त्र में राजनैतिक दलों का अपना महत्त्व है, क्योंकि इनके द्वारा नागरिकों में राष्ट्रीय जागरूकता का निर्माण होता है। हमारे देश में राजनैतिक दलों का संगठन राजनैतिक विचारधाराओं के आधार पर किया जाता है न कि राष्ट्रहित को ध्यान में रख कर। फलस्वरूप कई ऐसी पार्टियाँ हैं, जो राजनैतिक कार्यवाही के लिए विदेशों से निर्देश लेती हैं। इस प्रकार कई बार राष्ट्रहित को क्षति पहुँचती है। भारत में कुछ राजनैतिक दलों का संगठन जाति, धर्म, सम्प्रदाय तथा क्षेत्र के आधार पर किया जाता है और इन्हीं का सहारा लेकर वोट माँगी जाती है। इस प्रकार राजनैतिक दल राष्ट्रीय एकता पर भीषण कुठाराघात करते हैं।

7. असमानता (Inequality)- भारत के संविधान के अनुसार सभी को समान माना गया है, लेकिन व्यावहारिक रूप में ऐसा नहीं दिखाई देता। देश भर में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा धार्मिक असमानता व्याप्त है। अल्पसंख्यक भयभीत हैं। धनी तथा निर्धन में अन्तर बढ़ता जा रहा है। इसलिए असंतोष होना स्वाभाविक है। इस असमानता के युग में राष्ट्रहित की ओर किसी का भी ध्यान नहीं ।। सभी अपने स्वार्थ हित को पूरा करने में लगे हुए हैं।

8. राष्ट्रीय चरित्र का अभाव (Lack of National Character)- भारत में राष्ट्रीय चरित्र का अभाव है। राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण करने में एक अच्छे नेतृत्व की आवश्यकता है, जोकि भारत में इस समय उपलब्ध नहीं है। नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है तथा अराजकता तथा अशान्ति का युग चल रहा है। जीवन के प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार, बेईमानी, विश्वासघात, देश-द्रोह आदि विघटनकारी प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं। इनके कारण राष्ट्रीय एकता के मार्ग में कई बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं। नागरिक स्वार्थ की भावना के लिए राष्ट्रीयता की भावना को भूल रहे हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि अनेक तत्व समाज में असन्तुलन बनाने में लगे हुए हैं। यह तत्त्व भी राष्ट्रहित की ओर कोई ध्यान नहीं देते। इन सभी बाधाओं को हटाना अनिवार्य है। यदि इस ऐसा नहीं कर पायेंगे तो देश की स्वतन्त्रता को खतरा उत्पन्न हो जाएगा तथा राष्ट्र विकसित नहीं हो पायेगा।

अध्यापक या शिक्षा का राष्ट्रीय एकता में योगदान (Role of Education and Teacher for Developing National Integration)

शिक्षा राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति का सबसे प्रमुख साधन है। इसकी उपयोगिता राष्ट्रीय एकता समिति ने भी स्वीकार की थी। वर्तमान भारत में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करने के लिये निम्नलिखित कार्यक्रम किये जा सकते हैं-

1. राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली (National System of Education) – देश में राष्ट्रीय एकता लाने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक ही शिक्षा प्रणाली होनी चाहिये। वर्तमान शिक्षा 10+2+3 को यदि अच्छी प्रकार से सारे देश में लागू करने का प्रयास किया जाये तो यह राष्ट्रीय एकता लाने में सहायता दे सकती है। हमारे प्रधानमन्त्री ने राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा प्रणाली बनाने पर बल दिया है। प्रान्तीय सरकार और केन्द्रीय सरकार मिलकर एक ऐसा कार्यक्रम तैयार करें कि सभी बच्चे एक ही राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली अपनायें। शिक्षा के क्षेत्र में सभी प्रकार के भेदभावों को मिटा देना चाहिये। शिक्षा के पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाकर राष्ट्र सेवा, त्रिभाषी फार्मूला इत्यादि को अनिवार्य बना देना चाहिये।

2. शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन (Change in the Aims of Education) – आज हमने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक उद्देश्य रखे हुये हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि हमारी शिक्षा परीक्षा प्रधान है। उसमें बच्चों के स्वास्थ्य, आचरण, भावनाओं इत्यादि को कोई स्थान प्राप्त नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट हों और उनके माध्यम से छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना भरने का प्रयास किया जाये।

3. दैनिक सामूहिक सभा कार्यक्रम (Daily Morning Assemble Programme) – सभी विद्यालयों का कार्यक्रम 15 मिनट की दैनिक सामूहिक सभा से आरम्भ होना चाहिये। इसमें राष्ट्रगान, नैतिक शिक्षा आदि की बातें बच्चों को बताई जानी चाहियें। समय-समय पर राष्ट्रीय एकता पर भाषण दिये जाने चाहियें। बच्चों को अपनी राष्ट्र भाषा, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करने के बारे में बताना चाहिये।

4. शिक्षा विधियों में सुधार (Reforms in Methods of Teaching)- शिक्षण विधियों में भी पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है। शिक्षण विधियों का सम्बन्ध परोक्ष रूप में अध्यापक के छात्रों के साथ व्यवहार से होता है। अतः शिक्षण की उन विधियों का चुनाव करना चाहिये, जिनमें अध्यापक सभी बच्चों की समान रूप से सहायता कर सके और सभी बच्चों को अपनी योग्यता अनुसार विकसित होने के समान अवसर प्राप्त हों।

5. राष्ट्रीय नेताओं के जन्म दिवस मनाना (Celebration of the Birth Days of National Leaders) – विद्यालयों में राष्ट्रीय नेताओं के जन्म दिवस मनाकर भी बच्चों में राष्ट्रीय एकता की भावना भरी जा सकती है। इनके जन्म दिवस मनाते हुये हम बच्चों को नेताओं द्वारा राष्ट्रीय एकता के लिये किये गये कार्यों का मूल्यांकन कर सकते हैं और उन्हें भी इन राष्ट्रीय नेताओं के पदचिन्हों पर चलने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।

6. राष्ट्रीय पर्वो का मनाना (Celebration of National Festivals)- विद्यालय में राष्ट्रीय पर्वो-26 जनवरी, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर को धूमधाम से मनाकर भी बच्चों में राष्ट्रीय एकता की भावना भरने का प्रयास किया जाना चाहिये।

7. भ्रमण (Excursions) – अध्यापक एवं छात्रों में राष्ट्रीय एकता लाने के लिये देश के विभिन्न भागों, विशेषकर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक और राष्ट्रीय महत्त्व के स्थानों का भ्रमण करने के अवसर दिये जाने चाहियें। इससे उन्हें अपने देश की विशालता और राष्ट्र की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का ज्ञान होगा और उनमें एकता की भावना का विकास होगा।

अध्यापक बच्चों के लिये आदर्श हैं, इस दृष्टि से यह आवश्यक है कि अध्यापक स्वयं राष्ट्रीयता की भावना से पूर्ण हो। उसको राष्ट्रप्रेमी होना चाहिये। राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्रभाषा के प्रति उसमें श्रद्धापूर्ण सम्मान होना चाहिये। यदि अध्यापक राष्ट्रध्वज के नीचे खड़ा होकर पहले अपने आपको भारत राष्ट्र का नागरिक समझता है तो बच्चे भी उनका अनुसरण करेंगे। समाज सेवा तथा राष्ट्र सेवा अध्यापक का धर्म होना चाहिये और इस भावना का प्रदर्शन उन्हें विद्यालयों में अपने कार्य को पूरा करके बताना चाहिये। अध्यापक को सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार रखना चाहिये। अध्यापक को अपने नैतिक प्रवचनों में इस बात पर बल देना चाहिये कि जाति, धर्म, सम्प्रदाय और किसी भी अन्य से ऊँचा राष्ट्र होता है। शिक्षा के क्षेत्र में ऊपर लिखित कार्यक्रमों को सही दिशा तभी दी जा सकती है, जब अध्यापक स्वयं राष्ट्रीयता का प्रतीक बनकर सामने आए।

8. राष्ट्रीय स्तर पर छात्रों का आदान-प्रदान (Exchange of Students at National Level) – राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों का एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में आदान-प्रदान होना चाहिये। एक प्रान्त के बच्चों को दूसरे प्रान्तों में अध्ययन करने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए, जिससे अन्तर्सास्कृतिक एवं अन्तर्प्रान्तीय भावना का विकास होगा तथा यह राष्ट्रीय एकता के विकास में भी सहायक होगा।

9. राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों का आदान-प्रदान (Exchange of Teachers at National Level)- माध्यमिक स्तर पर अध्यापकों तथा विश्वविद्यालय स्तर पर प्राध्यापकों का राष्ट्रीय स्तर पर आदान-प्रदान होना चाहिए। जब भिन्न-भिन्न भाषा, जाति, धर्म और सम्प्रदाय के अध्यापक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जायेंगे तो इनके माध्यम से भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का तालमेल होगा, इनका यह तालमेल बच्चों में सांस्कृतिक भावना का विकास करेगा और यह राष्ट्रीय एकता में विकास में भी सहायक होगा तथा पूरा देश एकता के सूत्र में बँधेगा।

10. राष्ट्र भाषा हिन्दी का विकास (Development of Hindi as National Language) – राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी भाषा के विकास के लिए प्रयास किए जाने चाहिएँ। यद्यपि हमारे देश में संविधान के अनुसार 15 भाषाओं की मान्यता है, लेकिन हमने हिन्दी को राष्ट्र भाषा का स्थान दे रखा है। अतः राष्ट्र भाषा के विकास के लिए विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि राष्ट्र भाषा हमें एकता के सूत्र में बाँधती है।

11. पाठ्य पुस्तकों में सुधार (Reforms in the Test Books)- पाठ्य पुस्तकों का पुनः अवलोकन किया जाना चाहिए और उनमें से ऐसी सामग्री निकाल दी जानी चाहिए, जो राष्ट्रीय एकता में बाधक हो। इन पुस्तकों में राष्ट्रीय एकता में सहायक होने वाली सामग्री का समावेश होना चाहिए। इसके लिए देश की विभिन्न सभ्यता एवं संस्कृति से सम्बन्धित विषय-सामग्री का चुनाव करना चाहिए ।

12. धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा (Religious and Moral Education) – राष्ट्रीय एवं भावात्मक शिक्षा के लिए धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा का होना बड़ा आवश्यक है। धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा द्वारा चरित्र का निर्माण होता है। सभी व्यक्ति एक ही ईश्वर में विश्वास रखते हैं। ऐसे लोग जो संकीर्ण भावनाओं के नहीं होते उनमें भावात्मक एकता आ जाती है।

13. रेडियो तथा टेलीविजन का प्रयोग (Use of Radio and Television) – रेडियो तथा टेलीविजन पर ऐसे शैक्षिक कार्यक्रम प्रसारित किए जायें जो राष्ट्रीय एकता के विकास में सहायक हों। हमारे देश में ऐसे प्रयास किए भी जाते हैं। रेडियो तथा टेलीविजन पर विभिन्न भाषाओं के पाठ तथा विभिन्न भाषाओं, धर्मो, सभ्यता एवं संस्कृति से सम्बन्धित कथा, नाटक, गीत और कविताएँ आदि प्रसारित होते रहते हैं। इससे बच्चों को पूरे देश की झांकी देखने में सहायता मिलती है।

14. पैन फ्रैण्ड्स तथा उपहार (Pen friends and Gifts) – कई बार समय या धन के अभाव के कारण भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के विद्यार्थी प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित नहीं कर सकते, परन्तु उनमें पत्रों द्वारा मित्रता स्थापित हो सकती है। कुछ पत्रिकाएँ भी इसमें योगदान दे सकती हैं। ये पत्रिकाएँ ऐसे विद्यार्थियों के पते और रूचि आदि का विवरण दे सकती हैं, जो पत्र मित्रता स्थापित करना चाहते हैं। इन पत्रों में वे अपने क्षेत्रों के पक्षों की महत्वपूर्ण जानकारी अपने मित्रों को दे सकते हैं। कभी-कभी कोई छोटी-मोटी सौगात भेज कर अपने क्षेत्र की कला की जानकारी दे सकते हैं। इसलिए राष्ट्रीय एकता में बढ़ावा मिल सकता है।

15. पुस्तकालय (Libraries) – पाठशाला के पुस्तकालयों में अधिक और ठीक प्रकार की पुस्तकें होनी चाहिए। पुस्तकालय में ऐसी पुस्तकें होनी चाहिए, जिनको पढ़ने से भावात्मक एकता को प्रोत्साहन मिले न कि दूसरे धर्मों, जातियों तथा क्षेत्रों के प्रति घृणा के भाव आएँ।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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