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परिवार के क्या कार्य हैं ? What are the functions of the family?

परिवार के क्या कार्य हैं ? What are the functions of the family?
परिवार के क्या कार्य हैं ? What are the functions of the family?

परिवार के क्या कार्य हैं ? वर्णन कीजिए।

परिवार के कार्य (Functions of Family)

परिवार का समाज में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका प्रमुख कारण इसके द्वारा विविध प्रकार के कार्यों का निष्पादन है। ऑगबर्न तथा निमकॉफ ने कहा है कि किसी भी संस्कृति में परिवार के महत्त्व का मूल्यांकन करने के लिए यह ज्ञात करना आवश्यक है कि उसके क्या कार्य हैं तथा किस सीमा तक उन्हें पूर्ण किया जाता है। परिवार के कार्यों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है—

मौलिक तथा सार्वभौमिक कार्य (Basic and Universal Functions)

ये मौलिक कार्य संसार के समस्त देशों के परिवारों में पाए जाते हैं। इन्हें हर परिवार के प्राणिशास्त्रीय कार्य (Biological Functions) भी कह सकते हैं। ये कार्य निम्नांकित हैं—

1. यौन इच्छाओं की पूर्ति का कार्य (Function of satisfying sex needs) – परिवार विवाह की संस्था के माध्यम से स्त्री तथा पुरुष को पत्नी व पति के रूप में यौन सम्बन्ध स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार यह उनकी प्राणिशास्त्रीय आवश्यकता (यौन सन्तुष्टि) की पूर्ति करने में सहायता देता है। यदि कोई व्यक्ति विवाह न कर यौन सम्बन्ध स्थापित करता है तो उसे उचित नहीं समझा जाता है।

2. सन्तानोत्पत्ति (Reproduction) – समाज की निरन्तरता के लिए यह आवश्यक है कि समाज में नए सदस्यों का जन्म हो। इस महत्त्वपूर्ण कार्य को परिवार सन्तानोत्पत्ति द्वारा करता है।

3. सुरक्षा (Safety) – मनुष्य समस्त जीवधारियों में एक ऐसा प्राणी है, जिसे जन्म से लेकर बहुत वर्षों तक दूसरों की सहायता की आवश्यकता होती है। अगर उसे यह सहायता न मिले तो वह समाप्त हो जाएगा। यह सहायता, सुरक्षा के रूप में, परिवार अपने सदस्यों को देता है। परिवार निश्चित आयु तक उनका भरण-पोषण करके उन्हें इस योग्य बनाता है कि वे भौगोलिक तथा सामाजिक पर्यावरण में रह सकें। सुरक्षा की प्रकृति सिर्फ प्राणिशास्त्रीय ही नहीं, अपितु मानसिक भी होती है।

परम्परागत कार्य (Traditional Functions)

 ये वे कार्य हैं, जिनका निर्धारण समाज विशेष की प्रथाओं तथा मान्यताओं द्वारा होता है। परम्परागत कार्यों को हम निम्न श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं-

(I) सामाजिक कार्य (Social Functions) 

परिवार के प्रमुख सामाजिक कार्य निम्नांकित हैं—

1. समाजीकरण (Socialization)– समाजीकरण में परिवार का योगदान मत्त्वपूर्ण है। परिवार में मानव का जन्म होता है और पूरा जीवन इसी में व्यतीत होता है। इसे बच्चे की प्रथम पाठशाला कहा गया है। इसी के माध्यम से सामाजिक मूल्यों एवं सांस्कृतिक दुनिया से उसका परिचय कराया जाता है। परिवार मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियों (यथा लोभ, क्रोध व हिंसा आदि) को नियन्त्रित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. मनोरंजन (Recreation) – परिवार अनौपचारिक एवं प्राकृतिक मनोरंजन का केन्द्र है। परिवार सदस्यों को विविध प्रकार से मनोरंजन के अवसर प्रदान करता है, जैसे-आपस के वार्तालाप से या बच्चों की तोतली बोली से। त्यौहार के समय सब इकट्ठे होकर भी मनोरंजन करते हैं। कई बार अकेले दादी के पास बैठे कहानी सुनकर भी बच्चों का मनोरंजन होता है।

3. सामाजिक प्रस्थिति प्रदान करना (To provide social status) – परिवार अपने सदस्यों की प्रस्थिति (स्थिति) तथा भूमिकाएँ (कार्य) स्पष्ट करता है। इस प्रकार परिवार सामाजिक संरचना में उनका पद स्पष्ट करने में सहायता प्रदान करता है।

4. शैक्षणिक कार्य (Educational functions) – प्लेटो ने परिवार को जीवन की प्रारम्भिक पाठशाला कहा है। यहाँ पर जो पाठ उसे पढ़ाया जाता है, वह जीवन भर अमिट रहता है। यह औपचारिक शिक्षा का प्रमुख माध्यम है।

5. सामाजिक नियन्त्रण (Social control)- परिवार अपने सदस्यों को शिशुकाल से ही सामाजिक मान्यताओं के अनुकूल व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है। यह समाजीकरण द्वारा उनका व्यक्तित्व इस प्रकार ढालता है कि वे समाज विरोधी कार्यों से दूर रहें तथा समाज की प्रगति में योगदान दें।

(II) आर्थिक कार्य (Economic Functions) 

परिवार निम्नलिखितं आर्थिक कार्यों को भी सम्पादित करता है-

1. श्रम-विभाजन (Division of labour) – सभी परिवारों में श्रम-विभाजन पाया जाता है। श्रम विभाजन के दो प्रमुख आधार हैं—(अ) आयु, तथा (ब) लिंग। जिस प्रकार प्रत्येक परिवार में बच्चे, युवक व वृद्ध के कार्यों में अन्तर मिलता है, ठीक उसी प्रकार स्त्री और पुरुष के कार्यों में भिन्नता पाई जाती है।

2. उत्पादक इकाई (Production unit) – आदिम तथा कृषि प्रधान समाजों में परिवार एक प्रमुख उत्पादक इकाई है। कुटीर उद्योगों में भी परिवार को एक महत्त्वपूर्ण इकाई माना जाता है।

3. सम्पत्ति (Property) – प्रत्येक परिवार का अपनी सम्पत्ति पर नियन्त्रण होता है। सम्पत्ति चाहे चल हो या अचल, उसका सही ढंग से बँटवारा परिवार ही करता है। परिवार ही यह निश्चित करता है कि कौन सम्पत्ति का स्वामी होगा।

4. उत्तराधिकार की व्यवस्था (System of inheritance) – परिवार उन नियमों को बनाता है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति को अपनी वंशानुगत सम्पत्ति प्राप्त हो सके। अगर ये उत्तराधिकार के नियमों की व्यवस्था न हो तो जिसके पास अधिक अधिकार तथा शक्ति होगी, वही सारी सम्पत्ति को अपने अधिकार में ले लेगा।

(III) मनोवैज्ञानिक कार्य (Psychological Functions)

परिवार सदस्यों को मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करने का भी प्रमुख माध्यम है। यह तीन प्रमुख मनोवैज्ञानिक कार्यों का सम्पादन भी करता है-

1. मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करना (To provide psychological security) – परिवार सदस्यों में पारस्परिक प्रेम एवं सद्भावना का विकास करके उन्हें वात्सल्य प्रदान करता है। परिवार असहाय एवं अपंग बच्चों को भी पूर्ण मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह उन्हें कोई कठिन कार्य नहीं सौंपता। हर प्रकार से भी उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाती है।

2. व्यक्तित्व का विकास (Development of personality) – परिवार बच्चों की ठीक प्रकार से देख-रेख करके उनमें अहम् का विकास करता है। अहम् उनके व्यक्तित्व के निर्माण में सहायता प्रदान करता है। बच्चों का व्यक्तित्व परिवार पर निर्भर करता है।

3. मूलभूत मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति (Satisfaction of basic psychological needs) – परिवार सदस्यों की मौलिक मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ (जैसे स्नेह एवं प्रेम इत्यादि) भी पूरी करता है। वास्तव में, व्यक्ति की अधिकांश आवश्यकताएँ परिवार में ही पूरी होती हैं।

(IV) सांस्कृतिक कार्य (Cultural Functions) 

प्रत्येक समाज की अपनी एक संस्कृति होती है। परिवार संस्कृति के हस्तान्तरण का भी प्रमुख माध्यम है। परिवार सांस्कृतिक कार्यों की शिक्षा अपने सदस्यों को देता है। परिवार समाज के रीति-रिवाजों, नियमों, परम्पराओं तथा जनरीतियों आदि को सुरक्षित रखता है। परिवार अपनी संस्कृति से सम्बन्धित आदशों, प्रथाओं व परम्पराओं को बच्चों को सिखाता है।

(V) धार्मिक कार्य (Religious Functions)

परिवार धार्मिक कार्यों के सम्पादन में विशेष स्थान रखता है। प्रत्येक परिवार में किसी न किसी धर्म को महत्त्व दिया जाता है। परिवार में ही मानव किसी न किसी धर्म को मानता है तथा उसका अनुयायी बनता है। परिवार अपने सदस्यों को धार्मिक विश्वासों, मूल्यों व दृष्टिकोणों से परिचित कराता है। माता-पिता के धार्मिक विचारों एवं दृष्टिकोणों का भी बच्चों के जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।

(VI) राजनीतिक कार्य (Political Functions)

परिवार का राजनीतिक कार्यों के सम्पादन में भी प्रमुख स्थान है। मजूमदार का कथन है कि कर्त्ता परिवार का वास्तविक शासक होता है। वही सदस्यों के व्यवहार को नियन्त्रित करता है। परिवार जिस प्रकार समाज की सबसे छोटी इकाई है, उसी प्रकार वह राज्य की भी सबसे छोटी इकाई है। इसीलिए परिवार को कभी-कभी लघु राज्य की संज्ञा दी जाती है। परिवार मनुष्यों में उन गुणों का विकास करता है, जिससे वह राजनीतिक जीवन में भी सफल हो सके। अच्छे नागरिक के लिए अनुशासन, समानता तथा मित्रता आदि के भावों को जानना अत्यन्त आवश्यक । इन महत्त्वपूर्ण गुणों का विकास परिवार में ही होता है।

समाजीकरण के एक साधन के रूप में परिवार (Family as an Agency of Socialization)

परिवार एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिक समूह है। बच्चे को सामाजिक गुण सिखाने में (अर्थात् उसका समाजीकरण करने में) परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चार्ल्स कूले के अनुसार, आदर्शों एवं सामाजिक स्वभाव के निर्माण में परिवार प्राथमिक होते हैं। इसे प्राथमिक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि बच्चा सबसे पहले जिस समूह के सम्पर्क में आता है, वह परिवार ही है। इसीलिए परिवार का प्रभाव बच्चे पर काफी स्थायी प्रकृति का होता है। माँ उसे दूध पिलाती है तथा उसकी रक्षा करती है। साथ-साथ पिता तथा परिवार के अन्य सदस्य शिशु के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हुए उसकी आवश्यकताओं को पूर्ण करने का प्रयत्न करते हैं। इससे शिशु के मन में सुरक्षा की भावना पनपती है। वह जानने लगता है कि किस प्रकार के कार्य करने से उसे किस प्रकार का व्यवहार प्राप्त होगा। इसके साथ-साथ भाषा का ज्ञान परिवार से ही होता है। परिवार के प्रत्येक सदस्य के अपने विचार तथा व्यवहार के ढंग आदि होते हैं। लेकिन बच्चे के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण सभी उसके साथ घनिष्ठता से रहते हैं। इस प्रकार बच्चा उनसे अनुकूलन करना सीखता है। कुछ बड़ा होने पर वह नियमों और परम्पराओं के अनुसार कार्य करना सीखता है। यदि परिवार में कोई कमी है या समाजीकरण त्रुटिपूर्ण रहा है, तो उस दशा में व्यक्तित्व विघटित हो जाता है। परिवार के माध्यम से व्यक्ति सामाजिक व्यवहार, भाषा, कपड़े पहनने का ढंग, भोजन का तरीका तथा अपनी संस्कृति के अनुरूप व्यवहार करना सीखता है।

अनेक विद्वानों ने परिवार के समाजीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए इसे संस्कृति तथा परम्पराओं का वाहक कहा है। बहुत हद तक यह बात ठीक भी है। अपनी संस्कृति के बारे में बच्चे का ज्ञान सर्वप्रथम परिवार में ही होता है। परिवार ही, वास्तव में, समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित करने का एक प्रमुख माध्यम है।

सामाजिक नियन्त्रण में परिवार की भूमिका (Role of Family in Social Control)

सामाजिक नियन्त्रण में परिवार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बच्चे के सीखने से लेकर उसके समाजीकरण तथा अन्ततः उसके व्यवहार को नियन्त्रित करने में परिवार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वे कार्य जिनके द्वारा परिवार सदस्यों के व्यवहार को नियन्त्रित करता है, निम्न प्रकार हैं

1. जागरूकता एवं सामाजिक मानसिकता जाग्रत करना (To awaken consciousness and social mentality) – परिवार वह संगठन है, जो बच्चों को समाज के प्रति जागरूक बनाता है। आरम्भ में बच्चा माता-पिता तथा स्वयं को ही संसार मानता है। परिवार बच्चे का परिचय बाह्य संसार से कराता है। बाह्य जगत से परिचय के बाद ही बच्चा समाज की विद्यमानता को स्वीकार करता है। उसे यह ध्यान रखना पड़ता है कि वह दूसरों से क्या आशाएँ करता है तथा दूसरे उससे क्या आशाएँ रखते हैं। परिवार बच्चे में सामाजिकता का विकास करता है। सामाजिक मानसिकता समाज को ही देन है, क्योंकि उसे हम समाज के बाहर कहीं नहीं सीख सकते। जब तक किसी व्यक्ति में सामाजिक मानसिकता का विकास नहीं होता, तब तक उसका व्यवहार पशुवत् अधिक रहता है। वह अपने व्यवहार पर नियन्त्रण करना तभी सीख सकता है, जबकि वह इस मानसिकता का विकास कर ले।

2. प्रस्थिति एवं प्रकार्यों को परिभाषित करना (To define status and roles) – सामाजिक नियन्त्रण का अर्थ सामाजिकं प्रस्थिति तथा कार्यों में सन्तुलन है। यदि इन दोनों में सन्तुलन न रहे तो सदस्य सामाजिक मतैक्य (एकमत) के अनुरूप नहीं, बल्कि अपनी इच्छा के अनुरूप कार्य करने लगते हैं। मतैक्य इस बात पर निर्भर करता है कि सदस्य अपनी जिम्मेदारी कहाँ तक याद रखते हैं और अपने उत्तरदायित्व को किस सीमा तक निभाते हैं ? परिवार में बच्चे को यह बताया जाता है कि उसकी परिवार की संरचना में क्या प्रस्थिति है ? उससे समाज को क्या आशाएँ हैं ? इस प्रकार परिवार व्यक्तियों के कर्त्तव्यों तथा अधिकारों की स्पष्ट परिभाषा करके सामाजिक नियन्त्रण में सहायता प्रदान करता है।

3. अनेक सामाजिक तथा मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना (To provide many social and mental necessities) – मनुष्य की अनेक सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ होती हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति परिवार में ही हो सकती है। संसार की अन्य कोई संस्था या समिति ऐसा नहीं कर सकती। यौन सन्तुष्टि तो परिवार का आधार है। परिवार न केवल जैविक एवं शारीरिक सन्तुष्टि प्रदान करता है, बल्कि यह हमारी सामाजिक आवश्यकताओं की भी पूर्ति करता है।

4. व्यक्तिगत तथा प्रत्यक्ष प्राथमिक सम्बन्ध स्थापन द्वारा (By establishing personal and face-to-face relations) – परिवार एक प्राथमिक समूह है। प्राथमिक समूहों में व्यक्तिगत एवं आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं। इन सम्बन्धों की यह विशेषता होती है कि बच्चे अपने बड़ों में इतनी श्रद्धा विकसित कर लेते हैं कि उनका विरोध करने की उनकी कभी हिम्मत नहीं होती। व्यक्ति के जिस व्यवहार को राज्य के बड़े-बड़े कानून नियन्त्रित करने में असफल हो जाते हैं, वह पत्नी के बोलना छोड़ने अथवा परिवार के सब सदस्यों द्वारा सदस्य विशेष के साथ बैठकर भोजन न करने से नियन्त्रित किया जा सकता है।

5. पारिवारिक उत्सवों तथा त्योहारों के सम्पादन द्वारा (By performing family ceremonies and festivals) – प्रत्येक परिवार के कुछ विशिष्ट उत्सव तथा पर्व होते हैं। इन्हें परिवार परम्परागत रूप से मनाता है। त्यौहारों एवं उत्सवों के अवसर पर कार्य करने का एक विशेष तरीका होता है। अतः यह कहा जा सकता है कि इन त्यौहारों तथा उत्सवों के अनुसार हमारे व्यवहार होने का तात्पर्य है हमारे एवं समूह के बीच में एकरूपता। इस प्रकार, उत्सवों एवं त्यौहारों को मनाकर भी परिवार अपने सदस्यों के व्यवहार में एकरूपता लाकर उन्हें नियन्त्रित करता है।

6. समाजीकरण तथा ‘स्व’ को विकसित करना (Socialization and development of self) – परिवार बच्चों को सामाजिक बनाता है एवं उनके पशुवत् व्यवहार को नियन्त्रित करके सामाजिक व्यवहार के रूप में ढालता है। परिवार में समाजीकरण द्वारा बच्चा सामाजिक मूल्यों एवं आदर्शों को सीखता है। इनके ही अनुसार वह व्यवहार करने का प्रयत्न करता है। इससे सामाजिक नियन्त्रण में सहायता मिलती है। साथ ही, समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा परिवार बच्चों के ‘स्व’ को विकसित करने में सहायता देता है। यदि व्यक्ति का समाजीकरण ठीक हुआ है तो उसके पथभ्रष्ट व्यवहार को रास्ते पर लाने में कोई कठिनाई नहीं होती है।

7. सामाजिक गुणों को विकसित करके (By developing social qualities) – परिवार व्यक्ति के ‘स्व’ तथा व्यक्तित्व को विकसित करता है। इसके लिए सामाजिक मानसिकता, जागरूकता, प्रकृति तथा आदर्शों को ढालने के लिए परिवार ही आधारभूत भूमिका अदा करता है। हम सारे सामाजिक गुण परिवार में ही सीखते हैं। सहयोग, समालोचना, सहानुभूति, प्रेम, आत्म-नियन्त्रण, त्याग, सहिष्णुता, अनुशासन, वफादारी, कर्त्तव्य-पालन, उत्तरदायित्व, आज्ञा पालन, बड़ों में निष्ठा, परोपकार, ईमानदारी, हर परिस्थिति में अनुकूलन, प्रभुत्व तथा अधीनता की शिक्षा आदि हम परिवार से ही लेते हैं। इस प्रकार, परिवार के सभी सदस्य अपने व्यवहार को स्वच्छन्द न छोड़कर पारिवारिक रीति-रिवाजों के अनुसार नियन्त्रित करते हैं।

8. सामाजिक सीख तथा अनुशासन के अनुकरण द्वारा (By imitating social learning and discipline) – बच्चा सर्वप्रथम किसी परिवार का ही सदस्य बनता है। जीवन भर वह किसी न किसी परिवार का सदस्य बना रहता है। परिवार में बच्चा सब कुछ सीखता है। खाना, पहनना, उठना, बैठना, बातचीत करना, कायदे कानून आदि सभी चीजों को वह परिवार में सीखता रहता है। इसीलिए यह कहा जाता है कि परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला है। बच्चों को कर्तव्य तथा अधिकारों का प्रथम पाठ परिवार में ही पढ़ाया जाता है। परिवार में बच्चे अनुकरण द्वारा अनुशासन सीख जाते हैं और बड़े भाई, पिता या परिवार के कर्ता की आज्ञा का सदैव पालन करते हैं। बहने तथा माँ भी पिता या कर्ता की आज्ञाओं का पालन करती हैं। अतः नियन्त्रण को मानना बच्चा परिवार से ही सीखता है। यदि बच्चे ने नियन्त्रण एवं अनुशासन का पाठ घर में न पढ़ा हो तो उसे राज्य के कानून भी नियन्त्रित नहीं कर सकते हैं।

9. परम्पराओं तथा रूढ़ियों के अनुरूप व्यवहार द्वारा (By behaving according to traditions and mores ) – परिवार बच्चे को परम्परागत रूप से चली आ रही प्रथाओं एवं रूढ़ियों का सम्मान करना सिखाता है। इसके कारण ही सदस्यों का व्यवहार इन रूढ़ियों तथा परम्पराओं के अनुरूप नियमित एवं चालित हो जाता है। परिवार इन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित करता रहता है। इस प्रकार, परिवार के सभी सदस्य इन परम्पराओं एवं रूढ़ियों के अनुसार अपने व्यवहार को करते हैं तथा इससे वह स्वयं नियन्त्रित हो जाते हैं।

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Anjali Yadav

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