राजनीति विज्ञान / Political Science

नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य | Goals of New Public Administration in Hindi

नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य | Goals of New Public Administration in Hindi
नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य | Goals of New Public Administration in Hindi

नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य

नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य अत्यधिक समाजोन्मुखी तथा चिन्ताओं से परिपूर्ण दिखाई देते हैं। ये हैं-

1. प्रासंगिकता – परम्परागत लोक प्रशासन सदैव से ही कार्यकुशलता तथा मितव्ययिता पर बल देता रहा है जबकि समकालीन मुद्दों या विषयों पर बहुत कम ध्यान देता है। मिन्नोब्रुक सम्मेलन में लोक प्रशासन के ज्ञान तथा व्यवहार पर किंचित महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए थे-

(क) हमें किन प्रश्नों का अध्ययन करना चाहिए और कैसे करना चाहिए तथा विषय में चुनाव का निर्णय करने के लिए हम किन मानदण्डों का प्रयोग करते हैं?

(ख) हमारे लिए हमारे प्रश्नों और प्राथमिकताओं को कौन निर्धारित या परिभाषित करता है?

(ग) लोक प्रशासन में ज्ञान, सामाजिक एवं नैतिक निहितार्थों के विषय में हम किस सीमा तक जागरूक हैं?

(घ) सामाजिक एवं राजनीति विज्ञान के रूप में लोक प्रशासन के क्या उपयोग हैं?

(ङ) क्या लोक प्रशासन वर्तमान में ऐसा ज्ञान पैदा करता है जो समाज की कुछ निश्चित संस्थाओं (सामान्यतः प्रभुत्वशाली) उपयोगी हो, दूसरों के लिए नहीं ?

इस प्रकार के प्रश्नों ने लोक प्रशासन की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रासंगिकता सहित व्यावहारिकता को भी महत्वपूर्ण बनाने में सहायता की है।

2. मूल्य- नवीन लोक प्रशासन स्पष्ट रूप से आदर्शात्मक (Normative) है। यह पूर्व के लोक प्रशासन के मूल्यों को छुपाने तथा प्रक्रियात्मक तटस्थता को अस्वीकार करते हुए समाज के दलित, दमित तथा सुविधाहीन वर्ग के प्रति सुझाव को महत्व देता है। निग्रो एवं नियो के अनुसार, “जब से नवीन लोक प्रशासन का उदय हुआ है, मूल्यों और नैतिकता के प्रश्न लोक प्रशासन के मुख्य विषय रहे हैं। “

3. सामाजिक समानता- नवीन लोक प्रशासन के प्रणेता सामाजिक समता के सिद्धान्त पर बल देते हैं। इस सम्बन्ध में फ्रेडरिक्सन वकालत करते हुए बताते हैं- “वह लोक प्रशासन जो परिवर्तन लाने में असफल है, जो अल्पसंख्यकों के अभावों को दूर करने का प्रयास करता है, सम्भवतः उसका प्रयोग अन्ततः उन्हीं अल्पसंख्यकों को सुविधाओं से वंचित करने के लिए किया जाएगा।” अतः लोक प्रशासन को जनोन्मुखी ही होना चाहिए।

4. परिवर्तन- सामाजिक विकास, कल्याण तथा समता के लिए आवश्यक है कि लोक प्रशासन परिवर्तनों को बढ़ावा दे। केवल शक्तिशाली हित समूहों या दबाव समूहों के अधीन लोक प्रशासन को कार्य नहीं करना चाहिए बल्कि इसे तो सम्पूर्ण सामाजिक आर्थिक तन्त्र में परिवर्तन का अगुवा बनना चाहिए।

नवीन लोक प्रशासन, परम्परागत लोक प्रशासन की अपेक्षा जातिगत कम और सार्वजनिक अधिक, वर्णनात्मक कम और आदेशात्मक अधिक, संख्या-उन्मुख कम और जनोन्मुख अधिक तथा तटस्थ कम और आदर्शात्मक अधिक होना चाहिए साथ ही इसका दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक हो।

फ्रेडरिक्सन ने नवीन लोक प्रशासन की विशेषताओं में परिवर्तन तथा प्रशासनिक अनुक्रियाशीलता, तर्क संगति, प्रबन्धक कर्मचारी सम्बन्धों, संरचनाओं में गतिशीलता तथा लोक प्रशासन विषय में शिक्षा विविधता को समाहित करते हुए सामाजिक समता तथा प्रशासनिक मूल्यों को मूल संकल्पना स्वीकार किया है। विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों में दृष्टव्य कतिपय प्रवृत्तियों ने कुछ नई दिशाएँ भी तय की हैं। इनमें सार्वजनिक नीतियों तथा विकेन्दीकरण का प्रसार, प्रशासनिक उत्तरदायित्व तथा राजनीतिक निर्देशन, प्रशासनिक कार्यों की जटिलता तथा कुशलता में वृद्धि तथा कार्मिक संघों का सशक्तीकरण प्रमुख हैं। परिस्थिति एवं आवश्यकतावश आज का लोक प्रशासन तुलनात्मक होता जा रहा है।

नवीन लोक प्रशासन किस सीमा तक नवीन है? कैम्पबेल का मानना है कि नवीन लोक प्रशासन की भिन्नता केवल परिभाषा के कारण ही है। सहज रूप में यह कहा जा सकता है। कि नवीन लोक प्रशासन का विषय मौलिक अध्याय की अपेक्षा पुनर्व्याख्या पर अधिक बल देता है। यह वास्तव में समाज के प्रति अधिक संवेदनशील है। रॉबर्ट टी. गोलम्ब्यूस्की का विचार है। कि नवीन लोक प्रशासन शब्दों में क्रान्तिवाद का उद्घोष करता है किन्तु वास्तव में यह परम्परागत सिद्धान्तों तथा पद्धतियों की वही यथास्थिति है। वस्तुतः यह आलोचना सहजता से किसी को भी स्वीकार्य नहीं है। संक्षेप में नवीन लोक प्रशासन, सिद्धान्त एवं व्यवहार दोनों क्षेत्रों में व्यापक, प्रकृति में वर्णनात्मक के साथ आदर्शात्मक तथा विषय वस्तु में वह विषयी होने के साथ-साथ तुलनात्मक भी है।

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Anjali Yadav

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