लोक प्रशासन की पारिस्थितिकी उपागम का विस्तृत वर्णन कीजिए।
लोक प्रशासन एवं उसका परिवेश एक दूसरे पर परस्पर प्रभाव डालते हैं तथा इस प्रक्रिया की गतिशीलता को समझने प्रशासन की संरचना एवं प्रकार्यों को समझने के लिए आवश्यक है। इस समझ को पारिस्थितिकीय उपागम का नाम दिया जाता है। पारिस्थितिकी जीव विज्ञान से लिया गया शब्द है। यह जीवों और उनके परिवेश के परस्पर सम्बन्धों के विज्ञान से सम्बन्ध रखता है। इसमें यह जानने की कोशिश की जाती है कि जीवों और उनके भौतिक एवं सामाजिक परिवेश के परस्पर सम्बन्ध कैसे होते हैं तथा जीव एवं पर्यावरण जीवित रहने और अन्य महत्व लक्ष्यों के लिए कैसे संतुलन कायम करते हैं। लोक प्रशासन के परिवेश में, प्रशासन और उसके पर्यावरण के परस्पर सम्बन्ध का विज्ञान होने के कारण, समाज और उसकी कार्यशीलता को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की गहरी समझ जरूरी है।
लोक प्रशासन के अध्ययन में पारिस्थितिकीय उपागम (परिवेश अध्ययन) का प्रारम्भिक सूत्रपात फ्रेड रिग्स से बहुत पहले जे. एम. गॉस, रॉबर्ट ए. डहल और रॉबर्ट ए. मर्टन ने किया था। जे. एम. गॉस के अनुसार पौधे के लिए खाद का जो महत्व है वही प्रशासन के लिए परिवेश की उपादेयता है। सन् 1945 में प्रकाशित अपनी कृति ‘रिफ्लेक्शन्स ऑफ ऐडमिनिस्ट्रेशन’ में पारिस्थितिकीय उपागम का विवेचन करते हुए गाँस ने सरकारी क्रियाकलापों को उस परिवेश से जोड़ने की संकल्पना का समर्थन किया जिसमें जनता, परिवेश, वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी, सामाजिक प्रौद्योगिकी, इच्छाएं और आकांक्षाएं, संकट और व्यक्तित्व जैसे कारक सम्मिलित हैं।
रॉबर्ट डहल ने जिस पारिस्थितिकीय उपागम का विवेचन किया है वह तीन सामयिक समस्याजन्य मसलों पर आधारित है- प्रथम- किसी राष्ट्र-राज्य के अनुभवों एवं ऐतिहासिक विरासत पर आधारित प्रशासनिक सामान्यीकरणों को सभी प्रकार के विभिन्न परिवेश दृश्य पटल में कार्यरत प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर लागू नहीं किया जा सकता। द्वितीय- लोक प्रशासन के सिद्धान्तों एवं संकल्पनाओं को सूत्रबद्ध करने से पूर्व यह आवश्यक है कि सभी प्रकार के सामाजिक परिवेश में उनके औचित्य का अनुभवजन्य परीक्षण कर लिया जाये जिससे सार्वभौमिक सिद्धान्तों को समझना सरल हो जाये तथा तृतीय- लोक प्रशासन का स्वरूप अनिवार्यतः अन्तः अनुशासनात्मक और पारिस्थिक होना चाहिए जिससे जहाँ एक ओर इसका अध्ययन क्षेत्र विस्तृत होगा वहीं दूसरी ओर सभी प्रकार के समाजों का अध्ययन करके वैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन सुगम हो सकेगा। जे.एम. गॉस एवं रॉबर्ट ए. डहल के विचार उल्लेखनीय हैं तथापि वह फ्रेड रिंग्स ही थे जिन्होंने इस उपागम को विशिष्ट योगदान प्रदान किया। वस्तुतः फ्रेड रिग्स लोक प्रशासन में पारिस्थितिक उपागम के अग्रणी प्रतिपादकों में से हैं। रिग्स ने ‘अग्रेरिया-ट्रैजिशिया- इंडस्ट्रिया’ और ‘फ्यूज्ड-प्रिज्मैटिक-डिफ्रैक्टेड’ समाजों के मॉडल प्रस्तुत कर यह प्रतिपादन किया कि सामान्य रूप से पर्यावरणिक घटक और विशेष रूप से सांस्कृतिक घटक, समाज में प्रभावशाली परिवर्तन लाने का प्रयास करने वालों के लिए महत्वपूर्ण प्रासंगिकता रखते हैं।
रिग्स के अनुसार किसी भी समाज के अन्तर्गत राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में विकास की प्रक्रिया में प्रशासनिक व्यवस्था से अन्तःक्रिया करती है। अर्थात् सभी सामाजिक तन्त्र (प्रशासनिक तंत्रों सहित) अपने पर्यावरण के साथ आदान-प्रदान की प्रक्रिया में संलग्न होते हैं और उससे प्रभावित होते हैं। एक प्रशासनिक व्यवस्था उसके पर्यावरण से आने वाली मांगों और समर्थन द्वारा सटीक रूप से प्रभावित होती है तथा यह माँग एवं समर्थन रूपी ‘आगत’ (inputs) प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा इसके ‘निर्गत’ (outputs) के जरिये नया रूप ग्रहण करते हैं। प्रशासनिक व्यवस्थाओं का सामाजिक परिवेश एक बहुपक्षीय स्वरूप लिए होता है तथा प्रशासनिक तन्त्र के साथ गतिशील पारस्परिक क्रिया करता है।
संक्षेप में, पारिस्थितिकीय उपागम प्रशासन और पर्यावरण के सम्बन्ध पर जोर देता है। पारिस्थितिकीय उपागम में यह माना जाता है कि प्रशासनिक व्यवहार प्रशासनिक संस्कृति के उन मूल्यों से विशेष रूप से परिचालित होता है जिनमें यह कार्य करता है और प्रशासनिक संस्कृति उन मूल्यों सामाजिक व्यवस्था के साथ प्रशासनिक व्यवस्था के मूल्यों और विशेषताओं की आपसी क्रिया का परिणाम है। प्रशासन और उसके परिवेश के बीच आपसी अन्तःक्रिया के परिणामस्वरूप संगठनों, संरचनाओं, प्रकार्यों और लक्ष्यों का अधिकांश रूप में सृजन और परिवर्तन होता है।
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