Contents
प्रबन्धन में संचार की भूमिका
प्रबन्ध अथवा प्रशासन के सिद्धान्तों में संचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, जिससे संगठन को प्रशासनिक प्रक्रियाओं के निर्वहन में सुविधा मिलती है तथा संगठन अपने लक्ष्य को प्रापत करता है। प्रबन्ध में संचार की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए मिलेट ने इसे प्रशासनिक संगठन की रक्तधारा कहा है, जबकि फिफनर ने संचार को प्रबन्ध का हृदय कहा है। संचार प्रबन्ध का हृदय है, इस कथन की विवेचना के पूर्व यह आवश्यक हो जाता है कि संचार के अर्थ को स्पष्ट किया जाए। सामान्य तौर पर संचार को आदेशों, सुझावों का आदान-प्रदान समझा जाता है।
लेकिन इसका अर्थ व्यापक है। संचार के व्यापक अर्थ को स्पष्ट करते हुए यह कहा जा सकता है कि यह संगठन में कार्यरत वरिष्ठ एवं अधीनस्थ कार्मिकों के बीच आदेश-निर्देश के माध्यम से आपसी समझ को कायम करना है। संचार को दो या दो से अधिक पक्षों के बीच आपसी समझ तो माना ही जाता है, यह प्रबन्ध व्यवस्था के निर्धारण व क्रियान्वयन का आधार भी है। एफ.जी. मायर ने संचार की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “मानवीय विचारों को शब्दों संदेशों या अन्य माध्यमों से आदान-प्रदान करना ही संचार है।” हेमेन नामक विद्वान ने कहा है कि “संचार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के समक्ष हस्तांतरित करने की प्रक्रिया है। स्पष्टतः संचार एक- दूसरे व्यक्तियों के बीच समझ है जो लिखित अथवा अलिखित स्वरूप के साथ अनेक माध्यमों से प्रभावकारी होता है।
संचार को प्रबन्ध का हृदय कहने का प्रमुख कारण यही है कि संचार पर ही संगठन की सम्पूर्ण प्रक्रियाओं के क्रियान्वयन का निर्वहन होता है। सभी प्रकार की प्रशासनिक प्रक्रियाओं में संचार की भूमिका प्रभावकारी होती है। प्रबन्ध में संचार के महत्व को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-
1. प्रबन्ध के अन्तर्गत नियोजन का महत्व सबसे अधिक होता है तथा नियोजन जैसी व्यापक प्रशासनिक प्रक्रिया को सफल बनाने से संचार की भूमिका सबसे प्रभावकारी होती है। दूसरे शब्दों में, यदि प्रबन्ध की सफलता संचार पर आधारित होती है तो नियोजन की सफलता संचार पर आधारित होती है। प्रबन्ध में नियोजन को पर्यावरणीय एवं व्यावहारिक बनाने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि नियोजनकर्ता प्रबन्ध के सम्पूर्ण आयाम के संदर्भ में एक-दूसरे के विचारों से अवगत हो तथा ऐसा तभी हो सकता है जब उनके बीच संचार के प्रति जागरूकता कायम हो । स्पष्टतः सफल नियोजन के लिए संचार अनिवार्य सिद्धान्त है।
2. प्रबन्ध के अन्तर्गत नियोजन के साथ संगठन की प्रक्रिया एवं व्यवस्था व्यापक तथा निरन्तर रूप में संचालित होती रहती है। संगठन को यदि व्यापक रूप में लिया जाए तो उसमें प्रबन्ध के प्रति व्यक्ति का आचरण, अभिवृति तथा मनोवृति सब कुछ शामिल हो जाता है। यही कारण है कि संगठन तथा संचार को एक-दूसरे से सम्बद्ध करके देखा जाता है। चेस्टर बर्नार्ड ने तो कहा है संगठन को एक सरकारी व्यवस्था को सफल बनाने में सहकारी प्रकृति आधारित संचार महत्वपूर्ण व प्रभावी होता है।
3. प्रबन्ध व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य निष्पादन हेतु प्रशिक्षण आवश्यक है तथा प्रशिक्षण में संचार की भूमिका महत्वपूर्ण रूप में सन्निहित है। सफल संचार के प्रभाव में ही प्रशिक्षण को प्रभावी बनाया जाता है तथा प्रभावी संचार से प्रबन्ध का कार्य सम्पादन आसान होता है। इस संदर्भ में भी संचार को प्रबन्ध व्यवस्था का हृदय कहना सही प्रतीत होता है।
4. प्रबन्ध व्यवस्था में निर्देशन, पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण को महत्वपूर्ण माना जाता है तथा इन प्रशासनिक प्रक्रियाओं के निष्पादन में संचार की भूमिका केन्द्रीय होती है। वस्तुतः संचार से ही वरिष्ठ पदाधिकारी अपने अधीनस्थों को सही रूप में निर्देशित एवं पर्यवेक्षित कर सकता है अथवा अधीनस्थ कार्मिकों के द्वारा अपनी बातों को वरिष्ठ पदाधिकारियों के पास पहुँचाया जा सकता है। स्पष्टतः निर्देशन एवं पर्यवेक्षण में संचार की भूमिका अहम है।
5. प्रबन्ध या संगठन में संचार के महत्व को समन्वय के संदर्भ में भी रेखांकित किया जा सकता है। किसी समूह के प्रयासों को संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप एक निश्चित दिशा में बढ़ाने के लिए समन्वय आवश्यक है। मेरी कुशिंग नाइल्स के अनुसार, “अच्छा समन्वय के लिए अनिवार्य है।” चेस्टर बर्नार्ड के अनुसार, “संचार वह साधन है जिसके द्वारा किसी संगठन में व्यक्तियों को एक समान उद्देश्य की प्राप्ति हेतु परस्पर संयोजित किया जा सक है। “
6. संचार के महत्व को निर्णय निर्माण के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण माना जा स है। जब तक सही रूप में संचार कायम नहीं होता तब तक निर्णयन प्रभावकारी नहीं हो सकत तथा प्रभावकारी निर्णयन के अभाव में प्रबन्ध का विकास बाधित हो सकता है। सही निर्णय लेने के लिए सही समय एवं पर्याप्त सूचनाओं एवं आँकड़ों की जानकारी आवश्यक है, जो किसी प्रभावी संचार व्यवस्था से ही सम्भव हो सकती है।
7. अभिप्रेरणा के सम्बन्ध में भी संचार को प्रबन्ध का हृदय बताया जा सकता है, क्योंकि प्रबन्ध की सफलता उसमें कार्यरत कार्मिकों के बीच कायम अभिप्रेरणा के महत्वपूर्ण तत्वों पर निर्भर करता है। इस सम्बन्ध में पीटर एफ. ड्रकर के विचार को प्रस्तुत किया जा सकता है “सूचनाएँ प्रबन्ध का एक विशेष अस्त्र है।” प्रबन्ध व्यक्तियों को हांकने का कार्य नहीं करता है, बल्कि वह उनको अभिप्रेरित, निर्देशित एवं संगठित करता है। ये सभी कार्य करने हेतु मौखिक अथवा लिखित शब्दों अथवा अंकों की भाषा ही उसका एक मात्र यंत्र है। अतः प्रबन्धकों द्वारा कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए संचार की आवश्यकता पड़ती है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रशासन एवं प्रबन्ध के लिए प्रभावी संचार अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसके अभाव में कुशल प्रबन्ध की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्रबन्ध के अन्तर्गत समन्वय, संगठन, नियंत्रण, पर्यवेक्षण, निर्णय-निर्माण अभिप्रेरणा जैसे सभी प्रक्रियाओं के सफल निष्पादन में संचार महत्वपूर्ण है।
Important Link
- अधिकार से आप क्या समझते हैं? अधिकार के सिद्धान्त (स्रोत)
- अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
- भारार्पण के तत्व अथवा प्रक्रिया | Elements or Process of Delegation in Hindi
- संगठन संरचना से आप क्या समझते है ? संगठन संरचना के तत्व एंव इसके सिद्धान्त
- संगठन प्रक्रिया के आवश्यक कदम | Essential steps of an organization process in Hindi
- रेखा और कर्मचारी तथा क्रियात्मक संगठन में अन्तर | Difference between Line & Staff and Working Organization in Hindi
- संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले संयोगिक घटक | contingency factors affecting organization structure in Hindi
- रेखा व कर्मचारी संगठन से आपका क्या आशय है ? इसके गुण-दोष
- क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं ? What do you mean by Functional Organization?
Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com