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अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
किसी भी संगठन की कार्यकुशलता एवं उत्पादकता में वृद्धि के पीछे उत्प्रेरणा या अभिप्रेरणा की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, जिसे प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है। यही कारण है कि रेंसिस लिकर्ट जैसे प्रशासनिक विचारक ने इसे प्रबन्ध का हृदय कहा है। वास्तव में, अभिप्रेरणा मानवीय सहयोग की प्राप्ति तथा उसके व्यवहार को निर्देशित करने की एक कला है। अभिप्रेरणा या प्रेरणा के कई सिद्धान्त प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ को परम्परागत तथा कुछ को आधुनिक विचारधारा के अन्तर्गत रखा जाता है। परम्परागत सिद्धान्त या विचारधारा के अन्तर्गत भय एवं दण्ड का सिद्धान्त, पुरस्कार का सिद्धान्त तथा कैरट व स्टिक सिद्धान्त को रखा जाता है। जबकि प्रेरणा की आधुनिक विचारधारा के अन्तर्गत मास्लो का आवश्यकता सोपान सिद्धान्त, डगलस मैकग्रेगर का एक्स (X) व वाई (Y) सिद्धान्त तथा हर्जबर्ग के द्विघटक सिद्धान्त प्रमुख हैं।
अभिप्रेरणा की परम्परागत विचारधारा के अन्तर्गत तीन विचारधाराएँ प्रमुख हैं-
1. भय एवं दण्ड का सिद्धान्त- भय एवं दण्ड का सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि व्यक्ति से भय एवं दण्ड के आधार पर काम कराया जा सकता है। अगर व्यक्ति काम करने में आनाकानी करता है, तो नौकरी से निकालने का भय देकर ज्यादा-से-ज्यादा काम कराया जा सकता है। दूसरी बात है कि उसे काम में कोताही के लिए दण्ड भी दिया जा सकता है। यह सिद्धान्त इस मान्यता को लेकर चलता है कि व्यक्ति पेट के लिए कुछ भी कर सकता है, इसलिए उसे नौकरी से निकालने और भूखे मरने का डर बना रहता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि औद्योगिक क्रान्ति के पीछे इसे सिद्धान्त का भरपूर उपयोग हुआ है, गरीबों को भूखे मरने का भय दिखाकर सस्ती मजदूरी पर काम कराया गया है, परन्तु आज यह सिद्धान्त अमानवीय है और मानवाधिकार का उल्लघंन करता है। दूसरी तरफ इस सिद्धान्त के बल पर हमेशा मजदूरों से काम भी नहीं कराया जा सकता है।
2. पुरस्कार का सिद्धान्त- फ्रेडरिक डब्ल्यू. टेलर इस सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं, जिनका मानना है कि मजदूर वर्ग से ज्यादा काम कराने के लिए सर्वाधिक सही उपाय पुरस्कार के सिद्धान्त को अपनाना है, अर्थात् मजदूरों के बीच यह ऐलान कर दिया जाए कि जो जितना परिश्रम करेगा उसे उतना ज्यादा पारिश्रमिक मिलेगा तो मजदूर स्वयं ही उत्पादन की दर को बढ़ा देंगे। स्पष्टतः पुरस्कार का सिद्धान्त मानवीय भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए पैसों के बल पर मजदूरों की श्रम क्षमता बढ़ाने और उनका दोहन करने की बात करता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इसी सिद्धान्त के आधार पर ही विभेदात्मक मूल्य पद्धति (Differential Rate System) की अनुशंसा की गई है। यह सिद्धान्त एडम स्थिम के सिद्धान्तों से भी मेल खाता है, हालांकि पीटर ड्रकर ने इस सिद्धान्त को प्रेरणा के लिए अप्रभावकारी बताया है।
3. स्टिक व कैरट सिद्धान्त – यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि जो उत्पादन में ज्यादा कारगर एवं प्रभावकारी भूमिका निभाए, उसे पुरस्कार तथा जो काम में कोताही बरते, उसे दण्ड देना चाहिए। स्पष्ट है कि यह सिद्धान्त उपर्युक्त दोनों सिद्धान्तों की मान्यता को लेकर चलता है। अतः आवश्यकता के अनुसार पुरस्कार एवं दण्ड दोनों का सहारा लिया जाना चाहिए। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि यह सिद्धान्त नीचे वाले, जो संगठन में संलग्न हैं, उनमें भय एवं दण्ड से काम लेने की वकालत करता है।
अभिप्रेरणा की आधुनिक विचारधारा के अन्तर्गत मास्लो का विचार महत्वपूर्ण है-
मास्लो का आवश्यकता सोपान सिद्धान्त
प्रेरणा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त के रूप में अब्राहम मास्लो का आवश्यकता सोपान सिद्धान्त समझा जाता है। अब्राहम मास्लो ने 1943 ई. में ‘A Theory of Motivation’ नामक निबन्ध में अपने आवश्यकता सोपान सिद्धान्त की रूपरेखा को प्रस्तुत किया तथा संगठनों एवं व्यक्तियों के बीच के सम्बन्धों का मानव आवश्यकताओं की दृष्टि से विश्लेषण किया। मास्लो का कहना है कि आवश्यकता ही संगठन के निर्माण का कारण है। व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संगठन का निर्माण करता है।
मास्लो ने व्यक्ति की प्रेरणात्मक आवश्यकताओं को सोपान-दर-सोपान व्यवस्थित किया। उसके अनुसार मानव की पाँच आवश्यकताएँ हैं, जिनमें-
सर्वप्रथम- शारीरिक आवश्यकताएँ आती हैं। शारीरिक आवश्यकताएँ वे हैं, जो मूल शारीरिक क्रिया से जुड़ी हैं, जैसे- भोजन और निद्रा ।
दूसरे- व्यक्ति की जब शारीरिक आवश्यकताएँ जब पूरी हो जाती हैं, तो उसके समक्ष सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं का जन्म हो जाता है। व्यक्ति जिस संगठन से जुड़ता है, वह अपनी नौकरी और कार्य स्थल की सुरक्षा चाहता है, ताकि व्यक्ति को मानसिक स्तर पर संतुष्टि मिल सके।
तीसरे- शारीरिक और सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं के बाद व्यक्ति के लिए सामाजिक आवश्यकताएँ महत्वपूर्ण हो जाती हैं, इसके अन्तर्गत व्यक्ति के समाज के सम्बन्धों से जुड़ी आवश्यकताएँ, जैसे- प्रेम, आदर, स्नेह, सामाजिक प्रतिमानों में भागीदारी आदि आती हैं।
चौथे- शारीरिक, सुरक्षा सम्बन्धी एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद, सम्मान की आवश्यकताएँ सामने आती हैं, जिसे मानव के उच्च स्तर की आवश्यकता मानी जाती जा सकती है। इस स्तर पर मानव शक्ति उपलब्धि तथा प्रतिष्ठा प्राप्ति का प्रयास करता है। यहाँ यह स्पष्ट हो कि सम्मान का अर्थ स्व-सम्मान एवं अन्य लोगों द्वारा मिले सम्मान दोनों से है।
पाँचवें- उपर्युक्त चारों आवश्यकताओं की प्राप्ति के बाद व्यक्ति स्व-पहचान की आवश्यकता की पूर्ति चाहता है। यह सभी अन्य आवश्यकता से सर्वोच्च और उच्चस्तरीय मानवीय आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति से व्यक्ति काम तथा जीवन से संतुष्टि प्राप्त करता है। व्यक्ति अपनी योजना एवं क्षमता से अपनी पहचान कायम रखना चाहता है।
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