राज्यसभा की शक्ति और कार्यों पर टिप्पणी कीजिए।
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राज्यसभा की शक्ति और कार्य
राज्यसभ की शक्ति और कार्यों का वर्णन निम्न है-
1. राज्यसभा की विधायी शक्तियाँ – राज्यसभा का विधि निर्माण सम्बन्धी कार्य सीमित है। संविधान के द्वारा अवित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्यसभा दोनों को बराबर शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। अवित्तीय विधेयक दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पहले प्रस्तावित किया जा सकता है और दोनों सदनों से पारित होने के बाद ही राष्ट्रपति के पास- हस्ताक्षर के लिए जाता है। व्यवहार में स्थिति यह है कि सामान्यतया सभी महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं राज्यसभा में नहीं।
अनुच्छेद 108 के अनुसार किसी साधारण विधेयक के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्यसभा में मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो उस विधेयक पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में विचार किया जायेगा और विधेयक के भाग्य का निर्णय बहुमत के आधार पर होगा।
2. राज्यसभा की संविधान संशोधन की शक्ति – संविधान संशोधन के सम्बन्ध में राज्यसभा को लोकसभा के समान ही शक्ति प्राप्त है। संशोधन प्रस्ताव तभी स्वीकृत समझा जाएगा, जबकि संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दिया जाए। संशोधन प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में असहमति होने पर संविधान में संशोधन का प्रस्ताव गिर जाएगा। संविधान संशोधन के प्रसंग में राज्यसभा की शक्ति का परिचय इस बात से मिलता है कि 45वा संविधान संशोधन विधेयक (44वां संवैधानिक संशोधन) उसी रूप में पारित हुआ, जिस रूप में राज्यसभा चाहती थी। 1989 में 64वां और 65वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में दो- तिहाई बहुमत प्राप्त न होने के कारण समाप्त हो गये।
3. राज्यसभा की वित्तीय शक्ति – राज्यसभा को कुछ वित्तीय शक्ति प्राप्त है। यद्यपि इस सम्बन्ध में संविधान के द्वारा राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में निर्बल स्थिति प्रदान की गयी है। संविधान के अनुसार वित्त विधेयक पहले लोकसभा में ही प्रस्तावित किये। जायेंगे। लोकसभा से स्वीकृत होने पर वित्त विधेयक राज्यसभा में भेजे जायेंगे, जिसके द्वारा अधिक से अधिक 14 दिन तक इस विधेयक पर विचार किया जा सकेगा। राज्यसभा वित्त विधेयक के सम्बन्ध में अपने सुझाव लोकसभा को दे सकती है, लेकिन यह लोकसभा की इच्छा पर निर्भर है कि उन प्रस्तावों को माने या न माने।
4. राज्यसभा की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति – संसदात्मक शासन व्यवस्था में मन्त्रिपरिषद् संसद के लोकप्रिय सदन के प्रति ही उत्तरदायी होती है। अतः भारत में भी मन्त्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है, राज्यसभा के प्रति नहीं। राज्यसभा के सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं और उनकी आलोचना भी कर सकते हैं, परन्तु इन्हें अविश्वास प्रस्ताव द्वारा मन्त्रियों को हटाने का अधिकार नहीं है।
5. राज्यसभा की विविध शक्तियाँ – उपर्युक्त शक्तियों के अतिरिक्त राज्यसभा को कुछ अन्य शक्तियाँ भी प्राप्त हैं, जिनका प्रयोग वह लोकसभा के साथ मिलकर करती है। ये शक्तियाँ और कार्य निम्न हैं-
(अ) राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं।
(ब) राज्यसभा के सदस्य लोकसभा के सदस्यों के साथ मिलकर उप-राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
(स) राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा कुछ पदाधिकारियों पर महाभियोग लगा सकती है। महाभियोग का प्रस्ताव तभी पारित समझा जाता है, जब दोनों सदन इस प्रकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लें।
(द) राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर बहुमत से प्रस्ताव पास कर उप-राष्ट्रपति को उसके पद से हटा सकती है। उपराष्ट्रपति को पद से हटाने का प्रस्ताव प्रथम बार राज्यसभा में ही पारित होकर लोकसभा के पास जाता है।
(य) एक माह से अधिक अवधि तक यदि आपातकाल लागू रखना हो, तो इस प्रकार के प्रस्ताव का अनुमोदन लोकसभा और राज्यसभा दोनों के द्वारा पृथक-पृथक अपने विशेष बहुमत से किया जाना आवश्यक है। लोकसभा के भंग हो जाने की स्थिति में केवल राज्यसभा का विशेष बहुमत से अनुमोदन ही आवश्यक है। आपातकाल में मौलिक अधिकारों के निलम्बन के लिए दिये गये आदेशों को भी यथाशीघ्र संसद के दोनों सदनों के सामने रखा जाना चाहिए।
राज्यसभा की अनन्य शक्तियाँ :- अन्त में राज्यसभा को दो ऐसे अनन्य अधिकार ‘भी प्राप्त हैं जो लोकसभा को प्राप्त नहीं हैं और जिनका प्रयोग अकेले राज्यसभा ही करती है। इस प्रकार की शक्तियों का सम्बन्ध देश के संघीय ढांचे से है और राज्यसभा को राज्यों का एकमात्र प्रतिनिधि होने के नाते इस प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हैं :
1. अनुच्छेद 249 के अनुसार, राज्यसभा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से राज्यसूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित कर सकती है। राज्यसभा द्वारा ऐसा प्रस्ताव पास कर दिये जाने पर संसद उस विषय पर कानून का निर्माण कर सकती है। ऐसा प्रस्ताव प्रारम्भ में एक वर्ष के लिए पारित किया जायगा, किन्तु उसका काल बढ़ाया जा सकता है।
2. संविधान के अनुच्छेद 312 के अनुसार, राज्यसभा ही अपने दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास कर नयी अखिल भारतीय सेवाएं स्थापित करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दे सकती है। राज्यसभा जब तक इस प्रकार का प्रस्ताव पारित न कर दे, तब तक संसद या भारत सरकार किन्हीं नवीन अखिल भारतीय सेवाओं की व्यवस्था नहीं कर सकती है।
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