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हरिप्रसाद चौरसिया का जीवन परिचय | Hariprasad Chaurasia Biography in Hindi

हरिप्रसाद चौरसिया का जीवन परिचय | Hariprasad Chaurasia Biography in Hindi
हरिप्रसाद चौरसिया का जीवन परिचय | Hariprasad Chaurasia Biography in Hindi

हरिप्रसाद चौरसिया का जीवन परिचय (Hariprasad Chaurasia Biography in Hindi)

हरिप्रसाद चौरसिया का जीवन परिचय | Hariprasad Chaurasia Biography in Hindi- भगवान श्रीकृष्ण के अधरों पर बांसुरी जिस प्रकार से सजी नजर आती थी, वैसे ही पंडित हरी प्रसाद चौरसिया के अधरों से लगने के पश्चात् वह संगीतमयी मुद्रा में सक्रिय हो उठती थी और लोग उसके मधुर स्वरों में खो जाते थे। इन्होंने बांसुरी पर शास्त्रीय वादन में कई प्रयोग किए व परंपरागत संगीत को क्रमोन्नत करने का कार्य भी किया। इन्होंने पाश्चात्य संगीत के साथ भी तारतम्य स्थापित किया। इनके कई एलबम आए और इनका संगीत फिल्मों में भी सुनाई दिया। इन्हें कई सम्मान व पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।

हरिप्रसाद चौरसिया
हरिप्रसाद चौरसिया भुवनेश्वर मे , 2015
हरिप्रसाद चौरसिया भुवनेश्वर मे , 2015
पृष्ठभूमि
जन्म Allahabad, Uttar Pradesh, India
विधायें Hindustani classical music, film score
पेशा Flutist, composer
वाद्ययंत्र Bansuri
सक्रियता वर्ष 1957-
वेबसाइट hariprasadchaurasia.com

पंडित हरी प्रसाद चौरसिया का जन्म 1 जुलाई, 1938 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। ये बाल्यावस्था में ही संगीत की मोहक धुन की ओर आकृष्ट हो गए थे। इन्होंने 15 वर्ष की उम्र में पंडित राजाराम से शास्त्रीय स्वर संगीत सीखना आरंभ कर दिया था। यद्यपि एक दिलचस्प बात यह अवश्य है कि इनका जन्म ऐसे घराने में हुआ था, जहां पहलवानों की परंपरा पुरानी रही थी।

जैसा कि बाल्यावस्था में होता है, बच्चों की रुचि व शौक शीघ्रता से बदलते हैं। इनके साथ भी ऐसा ही हुआ और पंडित भोलानाथ से बांसुरीवादन सुनने के पश्चात् ये बांसुरीवादन की दिशा में आकृष्ट हो गए। पंडित भोलानाथ उस समय वाराणसी रेडियो पर बांसुरीवादन किया करते थे। इन्होंने पंडित भोलानाथ के शिष्य के रूप में 8 वर्षों तक बांसुरीवादन की कला को आत्मसात् करने का प्रयास किया, फिर 1957 में ये उड़ीसा आ गए और एक कलाकार के रूप में संगीत सुरों का निष्पादन कार्य करने लगे। उड़ीसा के कटक में ये ऑल इंडिया रेडियो के संगीत स्टाफ में से एक थे।

कालांतर में इनका स्थानांतरण ऑल इंडिया रेडियो मुंबई में हो गया। यहां आने के पश्चात् ये अपनी भावी गुरु मां अन्नपूर्णा देवी से मिले, जो सुरबहार वादिका थीं। गुरु मां के चरणों में इन्होंने अभ्यास किया। ये स्वर्गीय उस्ताद अल्लाउद्दीन खान की पुत्री थीं और सरोदवादक अली अकबर खान की बहन थीं। इन्होंने ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी त्याग दी, ताकि ये बांसुरीवादन में ही स्वतंत्र रूप से अपना भविष्य बना सकें। इस निर्णय के पश्चात् इन्होंने कभी भी नौकरी की चाह नहीं रखी।

ये संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते हुए संगीत सभाओं में बांसुरीवादन करते रहे और लगभग डेढ़ वर्ष तक इन्होंने हॉलैंड को भी अपना घर बनाया और फिर यहां से ये मुंबई आए और जन्माष्टमी पर्व पर इन्होंने 24 घंटे के संगीत काव्य पाठ का आयोजन किया। इन्होंने विख्यात व महान संगीतकारों यथा यहूदी मेन्हुइन, जॉन मैकलागुलिन और जीन पीयरे रामपाल के साथ संगीत प्रस्तुती का विलक्षण अनुभव किया व दर्शकों को भी करवाया। इन्होंने पश्चिम की लोकप्रिय संगीत धुनों यथा पॉप, जैज व रॉक के शास्त्रीय स्वरूप को भारत के परंपरागत शास्त्रीय संगीत के साथ प्रस्तुत किया। इन्होंने कई संगीत एलबम भी तैयार किए, जिनमें इनके संगीत का संयोजन विविध रूपों में निबद्ध था । इन्होंने फिल्मों में संगीत रचनाएं भी प्रस्तुत कीं। इनके मित्र रहे संतूर प्रवक्ता पंडित शिव कुमार शर्मा के साथ इन्होंने फिल्म ‘सिलसिला’ और ‘डर’ के लिए संगीत दिया, जिसे सामान्य लोगों के बड़े वर्ग द्वारा भी सराहा गया।

1984 में संगीत में इनके विलक्षण योगदान को पहचान मिली और उस पहचान को ‘नेशनल संगीत अकादमी’ ने राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया। 1990 में इन्हें ‘महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार’ और 1992 ‘पद्म भूषण’ सम्मान भी प्रदान किया गया। इसी वर्ष इन्हें ‘कोणार्क सम्मान’ भी प्रदान किया गया, जो उड़ीसा राज्य सरकार ने दिया। 1994 में इन पर ‘यश भारती सम्मान’ न्योछावर किया गया, जिसे उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने प्रदान किया। संगीत के प्रति समर्पित इन महान शख्स द्वारा योग्य शिष्यों को भी संगीत का अभ्यास करवाया गया है। ये 75 वर्ष की उम्र प्राप्त कर चुके हैं। ईश्वर इन्हें स्वस्थ रखते हुए दीर्घायु प्रदान करें।

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Anjali Yadav

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