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जे.आर.डी. टाटा की जीवनी – J. R. D. Tata Biography in Hindi

जे.आर.डी. टाटा की जीवनी - J. R. D. Tata Biography in Hindi
जे.आर.डी. टाटा की जीवनी – J. R. D. Tata Biography in Hindi

जे.आर.डी. टाटा की जीवनी (J. R. D. Tata Biography in Hindi)

जे.आर.डी. टाटा की जीवनी (J. R. D. Tata Biography in Hindi)- दादाभाई (दादाभाय भी कहते हैं) टाटा इनका संपूर्ण नाम था। इसमें ‘रतनजी’ इनके पिता का नाम हैं। जे. आर. डी. टाटा को यदि सर्वकालिक एवं सार्वभौमिक आधार पर महान व्यक्ति के रूप में चिह्नित किया जाए तो हमें इनके कृतित्वों की जानकारी अवश्य ही होनी चाहिए। भारत के महान औद्योगिक घराने की नींव वस्तुतः इन्होंने ही रखी थी। यद्यपि इनके पूर्वज भी उद्योगपति रहे और व्यवसाय भी करते थे, लेकिन औद्योगिक संरचना को कामयाबी के साथ जे.आर.डी. टाटा ने ही स्थापित किया था। ये सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी थे। 1941 में मुंबई का ‘टाटा मेमोरियल सेंटर फॉर कैंसर’ इनकी ही देख- रेख में तैयार करवाया गया था। इसके पूर्व टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की स्थापना 1936 में की। जबकि 1945 में इन्होंने नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स’ की स्थापना की गई। 1932 में ही इन्होंने टाटा एयरलाइंस बनाई थी। इसे ही आजादी के पश्चात् एयर इंडिया नाम दिया गया था। इन्हें विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से नवाजा गया । ‘भारत रत्न’ भी इन्हें प्रदान किया गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश की आजादी के पश्चात् जिस देश की कल्पना की थी, उसमें जे.आर.डी. टाटा ने यथार्थवादी रंग भरने का कार्य करते हुए भारतीय उद्योगों की स्थापना की व इनके स्वरूप को निरंतर सुधारा भी। एक उद्योगपति के रूप में इन्होंने राष्ट्र निर्माण का अनुपम कार्य किया।

जे॰आर॰डी॰ टाटा
J.R.D. Tata (1955).jpg
वर्ष 1955 में टाटा
जन्म 29 जुलाई 1904
पेरिस, फ्रांस
मृत्यु 29 नवम्बर 1993 (उम्र 89)
जिनेवा, स्विट्ज़रलैण्ड
नागरिकता फ्रांस (1904–1928)
भारत (1929–1993)
व्यवसाय व्यवसायी
प्रसिद्धि कारण टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा मोटर्स, टाइटन इंडस्ट्रीज, वोल्टास और एअर इंडिया के संस्थापक
जीवनसाथी थेल्मा टाटा
माता-पिता रतनजी दादाभाई टाटा
सुज़ैन “सूनी” ब्रियरे
संबंधी टाटा परिवार देखें
पुरस्कार भारत रत्न

इस महान उद्योग पुरुष का जन्म 29 जुलाई, 1904 को पेरिस में हुआ था। इनके पुरखे ईरान से उस समय भारत आए थे, जब वहां कट्टर धार्मिक उन्माद के कारण प्रजा के सभी लोगों को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया जा रहा था। जे.आर.डी. की शिक्षा सबसे पहले पेरिस के ही एक अच्छे विद्यालय में हुई । इसके पश्चात् ये उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन गए। अध्ययन के साथ ये टाटा उद्योग के कार्यों में भी अपना सहयोग प्रदान किया करते थे। अपने पिता की चार संतानों में इनका क्रम दूसरा था।

कहते हैं कि पिता रतन टाटा का पेरिस स्थित आवास वहां के प्रसिद्ध ऐफिल टावर के नजदीक था। वहां से जे.आर.डी. विमानों को सुदूर आसमान में उड़ान भरते हुए देखते तो इनके दिल में एक विचित्र अनुभूति पैदा होती। इन्होंने वहीं से विमान उड़ाने की एक कल्पना को अपने हृदय में उठता अनुभव किया।

पेरिस में इनका एक इंजीनियर पड़ोसी था। उसके पास अपना व्यक्तिगत विमान था और वह उसे समुद्रतट पर बने एक शेड में खड़ा रखता था । जे. आर. डी. प्रायः ही उस विमान को देखते और इनके हृदय का संकल्प मजबूत होता जाता कि वे भी विमान उड़ाया करेंगे।

प्रथम विश्वयुद्ध के समय जर्मनी ने जब पेरिस पर अपने विमानों द्वारा भीषण बमवर्षा की तो संपूर्ण पेरिस में खौफ का वातावरण बन गया था। लोग तहखानों में छिपकर अपनी जिंदगी बचाने की कोशिश कर रहे थे, किंतु जे. आर. डी. निडरता के साथ अपने आवास की छत से उस बमवर्षा को निहारा करते, गोया वह कोई दर्शनीय व मनोरंजक नजारा हो।

टाटा उद्योग में कार्य करने के दौरान जे. आर. डी. को कार्लाइल का यह कथन प्रायः स्मरण हो आता था, ‘जिस देश के पास फौलाद होगा, उसी के पास स्वर्ण भी होगा ।’ जमशेदपुर में टाटा उद्योग का, जो इस्पात का कारखाना है, उसे लगाने वाले जमशेद टाटा थे। इन्हीं के नाम पर जमशेदपुर भी बसा हुआ है।

जिस दौरान जे. आर. डी. के पिता रतन टाटा का निधन हुआ, उस समय उनकी कंपनी कर्ज में डूबी थी। कंपनी के अतिरिक्त तीन भाई-बहनों की परवरिश की जिम्मेदारी भी जे. आर. डी. पर ही आ गई। उस समय ये यौवन के द्वार पर आए ही थे। तब इनके पिता कंपनी से सालाना तीन लाख रुपये वेतन पाया करते थे, किंतु जे.आर.डी. ने कंपनी की स्थिति को देखते हुए महज 9 हजार रुपया वेतन लेना ही स्वीकार किया। 15 दिसंबर, 1930 को इन्होंने ‘थेली’ नाम की एक सुंदर युवती से विवाह कर लिया।

बचपन के स्वप्न को इन्हें पूरा करना था । अतः जब इन्हें अनुज्ञा पत्र (लाइसेंस) प्राप्त हुआ तो लंदन जाकर इन्होंने एक विमान क्रय किया। भारत में विमान सेवा की प्रथमतः स्थापना करने वाले भी यही थे। 3 मई, 1930 को इन्होंने प्रथम बार कराची से इंग्लैंड तक की हवाई यात्रा की थी। इनके द्वारा किया गया यह साहसिक कार्य बाद में टाटा एयर लाइंस की स्थापना की वजह भी बना। जे. आर. डी. टाटा की इस अतिरिक्त योग्यता से हम समझ सकते हैं कि इंसान उस स्वप्न को पूरा करने का प्रयास अवश्य ही करता है, जिसके बारे में उसने बाल्यावस्था में काफी कुछ सोचा होता है।

मुंबई में जे. आर. डी. अपने हवाई जहाज को जुहू के मैदान पर उतारते थे। जब समुद्र में ज्वार आता था, तब इनका विमान जलमग्न भी हो जाया करता था। यह वह दौर था, जब मुंबई हवाई अड्डा नहीं हुआ करता था। इस समस्या से मुक्त होने के लिए इन्होंने पूना में हवाई अड्डे का निर्माण कार्य करवाया। इनके द्वारा आरंभ की गई एयरलाइंस का नाम टाटा एयरलाइंस था। तदनंतर इसका ही नाम एयर इंडिया इंटरनेशनल रख दिया गया था। एयर इंडिया का आरंभ 1948 में हुआ था और तब इसके अध्यक्ष जे. आर. डी. टाटा ही थे। जे.आर.डी. ने देश की भलाई और आम नागरिक हितों को दृष्टिगत रखकर कार्य किया था। नेहरू परिवार के साथ इनके नजदीकी रिश्ते रहे थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि नेहरू एवं जे. आर. डी. दोनों ही देश का औद्योगिक विकास चाहते थे। इन्हें आभास था कि देशवासियों को समृद्ध बनाने के लिए नए युग प्रवेश करना है और नया युग शिक्षा व तकनीक का है। में जे.आर.डी. के ही परामर्श पर नेहरू जी द्वारा ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कोष’ की स्थापना भी की गई थी। जे. आर. डी. कर्म के प्रति आस्था भाव रखते थे। इनका मानना था कि यदि व्यक्ति कर्म से मानवतावादी हो और इंसान की जिंदगी सुखद बनाता हो तो यह परंपरागत ईश-वंदना के ही समतुल्य है। जे. आर. डी. ने राजनीति से सदैव दूरी बनाकर रखी। उद्यमी के रूप में इन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन देशहित में किया।

यद्यपि इन्होंने वृद्धावस्था के दबावों को स्वयं पर हावी नहीं होने दिया और ये प्रतिवर्ष स्विट्जरलैंड की सैर करने जाया करते थे, लेकिन अनहोनी अपनी छाया डाल चुकी थी। जिनेवा प्रवास के समय 29 नवंबर, 1993 के दिन इनका जीवन रथ थम गया। अपने हिस्से का पुरुषार्थ पूर्ण करने के पश्चात् ये विश्रांति की गोद में सो गए। इनके निधन पर राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया। संसद में भी कार्य स्थगित किया गया। देश ने अपने कर्मठ पुत्र को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। जे. आर. डी. ने अपने समकालीन जी.डी. बिड़ला के साथ भविष्य के उद्यमियों को यह संदेश अपने जीवन से दिया कि राष्ट्रीय विकास में सहभागिता के लिए औद्योगिक वातावरण बनाया जाना चाहिए। जे. आर. डी. एक ऐसे औद्योगिक घराने के सदस्य रहे हैं, जो आज संपूर्ण विश्व में जाना जाता है। टाटा का नाम आज उच्च स्तरीय विश्वास व गुणवत्ता का दूसरा नाम बन चुका है।

जे आर डी टाटा का पूरा नाम क्या है?

जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा को जेआरडी टाटा के नाम से भी जाना जाता है।

जेआरडी टाटा को भारत रत्न क्यों मिला?

 
 

1992 में, उनके निस्वार्थ मानवीय प्रयासों के कारण , टाटा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

जेआरडी टाटा किस लिए प्रसिद्ध है?

जेआरडी टाटा को हर कोई उस व्यक्ति के रूप में जानता है जिसने 50 वर्षों तक टाटा समूह का नेतृत्व किया, जो इसके विकास की कल्पना और मार्गदर्शन करता था। हम उन्हें भारतीय विमानन के पिता के रूप में जानते हैं, और वह व्यक्ति जिसने टाटा समूह के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान परोपकारी और राष्ट्रीय महत्व के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की।

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Anjali Yadav

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