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एम. बालामुरलीकृष्ण का जीवन परिचय (M. Balamuralikrishna Biography in Hindi)
एम. बालामुरलीकृष्ण का जीवन परिचय- कर्नाटक संगीत के प्रतिभाशाली संगीतकार डॉक्टर बाला मुरली कृष्णा का व्यक्तित्व बहुआयामी हो चुका है। ये बेहतरीन गायक होने के साथ ही संगीत संयोजन भी करते हैं। वायलिन, वीणा, मृदंगम और खंजिरा वाद्ययंत्रों पर इनका अद्भुत नियंत्रण रहता है। इसी साधना के कारण इन्हें 1981 में वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी प्रदान की गई। सरस्वती की आराधना करने वाले इस महान कलाकार को अनेकानेक सम्मान एवं पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
मुरली कृष्णा का जन्म 6 जुलाई, 1930 शंकरागुप्तम (आंध्र प्रदेश) में एक शास्त्रीय कलाकार परिवार में हुआ । इनके पिता मंगलम पल्ली पट्टाभिरमय्या एक विख्यात बांसुरीवादक रहे थे और माता सूर्यकाथम्मा वीणा वादिका रही थीं। बाला मुरली कृष्णा ने कम उम्र में ही संगीत का अभ्यास पारूपल्ली रामा कृष्णय्या पंटुलु से लेना आरंभ कर दिया था। जब ये महज आठ वर्ष के थे तो इन्होंने प्रथम सार्वजनिक प्रदर्शन विजयवाड़ा में ‘सद्गुरु अरंधनोत्सव’ के तहत किया। इन्हें ‘बाला’ उपनाम मसुनुरी सत्यनारायण द्वारा दिया गया, जो प्रख्यात हरीकथा वाचक थे। युवा मुरली कृष्णा ने संगीत के मूल स्वरों को 14 वर्ष की उम्र में ही वृहद रूप से लिखने की क्षमता का प्रदर्शन भी किया था।
इन्होंने महज छठी कक्षा के बाद विद्याध्ययन करना बंद कर दिया, क्योंकि निरंतर संगीत सम्मेलनों में जाते हुए ये स्वयं को संगीत के प्रति ही समर्पित रखना चाहते थे। इन्होंने नए रागों की रचना की और 300-400 संगीत धुनें भी तैयार कीं। विभिन्न रागों को इन्होंने विभिन्न धुनों पर आधारित किया। इन्होंने कई एलबम भी इन रागों और धुनों पर तैयार किए।
इन्हें विभिन्न सम्मान एवं पुरस्कारों से नवाज जाता रहा है। इनमें पद्म विभूषण, पद्मश्री, सर्वोत्तम पार्श्व गायक (1976), सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन (1987) का पुरस्कार भी राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रदान किया। इनके अतिरिक्त यूनेस्को महात्मा गांधी रजत पदक, राज्य संगीतकार तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश, अस्थाना विद्वान, तिरूमाला तिरूपति देवस्थानम, शृंगेरी पीतम, आदिव्याधि हर भक्त अंजनेय स्वामी नानगन्नालूर इत्यादि भी इन्हें प्रदान किए गए।
इन्होंने एक न्यास भी बनाया, जो कला और संस्कृति में विकास के लिए उचित अभ्यास की सुविधा भी प्रदान करता है। इन्होंने एक अकादमी की भी स्थापना की है, जो कला एवं शोध हितार्थ अपना कार्य स्विट्जरलैंड में कर रही है। संगीत चिकित्सा पर भी इनके द्वारा कार्य किया जा रहा है। इन्होंने अखिल विश्व में अनगिनत संगीत कार्यक्रम भी किए हैं और शास्त्रीय पद्धति पर अपनी नई शास्त्रीय धुनों को भी सजाया और श्रोताओं ने भी इन्हें काफी पसंद किया। अतः कला एवं संस्कृति की साधना का जो महान कार्य इनके द्वारा किया जाता रहा है, निश्चय ही इसके लिए इन्हें सदैव स्मरण रखा जाएगा।
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