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मक़बूल फिदा हुसैन का जीवन परिचय (M F Husain Biography in Hindi)
मक़बूल फिदा हुसैन जैसे कलात्मक व्यक्तित्व को रेखांकित करने से पूर्व यह उपयुक्त होगा कि कलाकारों के बारे में मनोवैज्ञानिकों के विश्लेषणात्मक कथन को स्वर प्रदान किया जाए। मनोवैज्ञानिक कथन यह है कि प्रत्येक कलाकार सनकी होता है और सनक की प्रतिक्रिया से ही उसकी कला में निखार भी आता है। इस विश्लेषण की कसौटी पर मक़बूल फिदा हुसैन को कसा जाए तो देखते हैं कि इन्होंने नंगे पांवों रहना आरंभ कर दिया था। इसके अलावा कला की अनेकानेक विधाओं में यथा; चित्रकला, कविता, सिनेमा, प्रिंट मेकिंग, मूर्तिकला और फोटोग्राफी में रुचि लेना आरंभ कर दिया था। मूलतः ये चित्रकार व पेंटर ही थे और इसके लिए इन्हें अनेक सम्मान व पुरस्कारों से भी नवाजा गया है।
मकबूल फ़िदा हुसैन | |
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जन्म | 17 सितंबर 1915 पंढरपुर |
मृत्यु | 9 जून 2011 लंदन |
मृत्यु का कारण | प्राकृतिक मृत्यु हृदयाघात |
नागरिकता | भारत, क़तर |
व्यवसाय | चित्रकार, फ़िल्म निर्देशक, राजनीतिज्ञ, कलाकार, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्माता, फोटोग्राफर |
धार्मिक मान्यता | इस्लाम |
बच्चे | शमशाद हुसैन |
पुरस्कार | पद्म भूषण, कला में पद्मश्री श्री, पद्म विभूषण |
मक़बूल फिदा हुसैन का जन्म पंढरपुर (महाराष्ट्र) में 1915 में हुआ। फिर इनका परिवार इंदौर में जाकर रहने लगा था। मक़बूल ने अपनी प्राथमिक शिक्षा व चित्रकला की शिक्षा यहीं पर प्राप्त की। मुंबई में ये 22 वर्ष की अवस्था में अर्थात् 1937 में पहुंचे। यहां आने के बाद इन्होंने बड़ी संख्या में सिनेमा के पट विज्ञापन (होर्डिंग्स) और फर्नीचर व खिलौने डिजाइन करके अपना जीवनयापन किया। पोस्टर बनाने का कार्य इन्हें धन तो दे रहा था, लेकिन इस कार्य से ये संतुष्ट नहीं थे।
इनके अंदर का चित्रकार जब भी समय मिलता था, विशुद्ध चित्रकला कार्य भी कर रहा था। ये स्वयं निर्मित कलाकार के रूप में अपनी कला को निखार रहे थे। लोककला और परंपरावादी कलाकारिता को अभिकल्पना व निरूपण के आधार पर समझने की इनकी योग्यता ने इन्हें भारतीय कला का सिद्धहस्त या प्रामाणिक शख्स बना दिया था। इसी रूप में इन्हें फ्रांसिस न्यूटन सोउजा ने प्रथम पेंटिंग प्रदर्शन करने के पश्चात् आमंत्रित किया था। जाहिर है कि कला के पारखी संपूर्ण विश्व में थे और इनके कार्य पर उनकी निगाह भी थी और वे इन्हें सराह भी रहे थे। इन्हें 1986-92 के मध्य राज्यसभा के लिए कलाकार के रूप में सांसद नामांकित किया गया। इस समय की घटनाओं को इन्होंने चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया, जिन्हें 1994 में प्रकाशित भी किया गया।
भारत सरकार द्वारा इन्हें 1966 में पद्मश्री व 1973 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया, लेकिन सम्मान का यह सफर इन्होंने स्वयं को विदेशों में प्रमाणित करके तय किया था। इनकी सफल प्रदर्शनियां टोकियो, फ्रेंकफर्ट, न्यूयॉर्क और रोम में सराही जा चुकी थीं। इन्हें उच्च कोटि का रंग संयोजक कलाकार भी मान लिया गया था।
1971 में ये पाब्लो पिकासो की चित्रकला के प्रदर्शन के अवसर पर विशेष रूप से ब्राजील निमंत्रित किए गए। इन्होंने त्रि- वार्षिक व द्वि-वार्षिक आधार पर ‘सेफ्रोनार्ट’ व ‘पंडोल’ कला दीर्घा न्यूयॉर्क में 2001 व 2002 में अनेक प्रदर्शनियों का आयोजन किया था।
कलाकारों ने इनके 83वें जन्मदिन पर 1998 में 83 पेंटिंग्स का प्रदर्शन देश के विभिन्न शहरों में और विदेशों में भी किया। इन पेंटिंग्स के प्रिंट भी सीमित पुस्तकों में छापकर वितरित किए गए।
हां, जीवन के अंतिम पड़ाव में ये माधुरी दीक्षित के बहुत बड़े प्रशंसक बन गए थे। इन्हें माधुरी दीक्षित में नारी की पूर्णता नजर आती थी। इस कारण इन्होंने ‘गजगामिनी’ नामक फिल्म का निर्माण भी किया। जाहिर है कि फिल्म में माधुरी दीक्षित ने ही कार्य किया था। कला के बल पर इन्होंने करोड़ों रुपया कमाया था, लेकिन भारतीय देवी-देवताओं की विद्रूप पेंटिंग बनाकर ये विवादों में भी फंसे और इससे क्षुब्ध होकर देश छोड़ गए।
8 जून, 2011 को 96 वर्ष की उम्र में इनका निधन लंदन में हो गया। इनका लंबा जीवन यह बताने को काफी है कि जीने की कला इन्हें आती थी। कला जगत से जुड़े लोग इनसे प्रेरणा लेते रहेंगे।
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