राजनीति विज्ञान / Political Science

लोक प्रशासन की प्रकृति (Nature of Public Administration)

लोक प्रशासन की प्रकृति (Nature of Public Administration)
लोक प्रशासन की प्रकृति (Nature of Public Administration)

लोक प्रशासन की प्रकृति की विस्तार से व्याख्या कीजिए।

लोक प्रशासन की प्रकृति

लोक प्रशासन की प्रकृति के सम्बन्ध में भी विद्वानों के विचारों में मतैक्यता का अभाव है। वैसे इस विषय की प्रकृति के निर्धारण में बहुत सी बातें महत्त्व रखती हैं; जैसे- सामाजिक व्यवस्था कैसी है? विज्ञान तथा समाज की आर्थिक स्थिति कैसी है ? समाज में रहने वाले लोगों के बीच का पारस्परिक सम्बन्ध कैसा है ? तथा राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप कैसा है ? चूँकि इन बिन्दुओं पर विभिन्न देशों के बीच विविधता पायी जाती है, इसलिए विभिन्न देशों में लोक प्रशासन की प्रकृति में अन्तर दृष्टिगोचर होता है। वस्तुतः सामाजिक परिवेश के साथ-साथ शैक्षणिक स्तर से भी लोक प्रशासन की प्रकृति निर्धारित होती रही है, यही कारण है कि एक देश में भी लोक प्रशासन की प्रकृति परिवर्तित होती रहती है। वर्तमान भारत में लोक प्रशासन की प्रकृति से अलग प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में लोक प्रशासन की प्रकृति रही है। इतना ही नहीं, स्वतंत्र भारत में 1990 के पूर्व के लोक प्रशासन की प्रकृति वर्तमान लोक प्रशासन की प्रकृति से बहुत भिन्न प्रतीत हो रही है।

लोक प्रशासन की प्रकृति निर्धारण के संदर्भ में दो दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हैं-

(i) प्रबन्धकीय दृष्टिकोण (Managerial View ) – इस दृष्टिकोण के समर्थक विद्वानों साइमन, स्मिथवर्ग (Smithbourg), थॉमसन (Thompson) तथा लूथर गुलिक का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। इन विद्वानों का मानना है कि लोक प्रशासन की प्रकृति केवल सरकार के प्रबन्धकीय कार्यों से निर्धारित होती है। लूथर गुलिक ने इसी दृष्टिकोण पर आधारित पोस्टकोर्ब (POSDCORB) सिद्धान्त का निर्माण किया है। प्रबन्धकीय दृष्टिकोण संगठन में सत्ता के सर्वोच्च पद को अपने अध्ययन का महत्वपूर्ण विषय बनाता है तथा प्रशासन को इसके द्वारा प्रबन्ध की तकनीक के रूप में स्वीकार किया जाता है।

(ii) एकीकृत दृष्टिकोण (Integrated View) – फिफनर, एफ.एम. मार्क्स (F.M. Marx), एल.डी. ह्वाइट प्रशासन के एकीकृत दृष्टिकोण के समर्थक हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सम्पादित की जाने वाली क्रियाओं का समग्र योग है। यहाँ समस्त क्रियाओं का आशय सोपान के निम्न से उच्च स्तर के तमाम कार्मिकों के कार्य सम्पादन से है। फिफनर ने इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए कहा है कि “लोक प्रशासन का अर्थ है- सरकार का काम करना, फिर चाहे वह कार्य स्वास्थ्य प्रयोगशाला में एक्स-रे मशीन को संचालित करने का हो अथवा टकसाल में सिक्के ढालने का …। प्रशासन का तात्पर्य है, लोगों के प्रयत्नों में समन्वय स्थापित करके कार्य को सम्पन्न करना जिससे वे परस्पर मिलकर कार्य कर सकें अथवा अपने निश्चित कार्य को पूरा कर सकें।” स्पष्टतः यह एक व्यापक दृष्टिकोण है इससे विशिष्टीकरण के स्थान पर समग्रता को अपनाया जाता है। एकीकृत दृष्टिकोण को एकीकृत कहने का प्रमुख कारण इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत एवं प्रबन्धकीय कार्यों के साथ सभी प्रकार के प्रशासनिक कार्यों को शामिल करना है।

लोक प्रशासन की प्रकृति के सम्बन्ध में प्रबन्धकीय तथा एकीकृत दोनों दृष्टिकोण में आधारभूत भिन्नता है। प्रबन्धकीय दृष्टिकोण केवल प्रबन्ध के तकनीक को महत्वपूर्ण मानता है, जबकि एकीकृत दृष्टिकोण से सम्पूर्ण प्रशासनिक कार्य व्यवहार का अध्ययन होता है। लोक प्रशासन के अध्ययन में दोनों ही दृष्टिकोण का महत्व है। इसलिए डिमॉक तथा कोइनिंग का यह कहना सही प्रतीत होता है कि दोनों दृष्टिकोण के बीच समन्वय होना चाहिए।

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Anjali Yadav

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