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पंडित रविशंकर का जीवन परिचय (Pt. Ravi Shankar biography in hindi)
पंडित रविशंकर का जीवन परिचय- सितार का नाम लेते ही रविशंकर का नाम जहन में आ जाता है। यह तयशुदा कथन मानना चाहिए कि 20वीं शताब्दी के महान कलाकारों में पंडित रविशंकर ने अपनी कालजयी छाप छोड़ी है, वह आगामी कई सदियों तक शाश्वत रहेगी। इसमें भी शक नहीं कि ये सितार के महान जादूगर थे, किंतु इनकी विशिष्टता यह रही कि इन्होंने वाद्य संगीत को जिस उच्च स्तर तक विश्व भर में पहुंचाया है, उसकी अन्य मिसाल नहीं। पंडित रविशंकर ने बेजान सितार के तारों को मोहक सुर प्रदान किए। इनके मोहक स्वरों ने संपूर्ण दुनिया के संगीत प्रेमियों को सीमाओं से मुक्त करके एक करने का कार्य किया। यह इनके संगीत की महानता ही कही जानी चाहिए कि ये सिर्फ भारत के ही नागरिक नहीं रहे, ये विश्व नागरिक बन चुके थे। कुछ महान लोग देश तक सीमित रहते हैं, किंतु विरले ही होते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महान कहलाते हैं। सितार सिखाने हेतु रविशंकर ने जिस स्वरलिपि-पद्धति को क्रमोन्नत किया,
उसकी ओर बेहद कम लोगों का ही ध्यान गया है। हिंदुस्तानी संगीत को रविशंकर ने रागों के संदर्भ में भी खासा समृद्ध किया है। वैसे तो इन्होंने परमेश्वरी, कामेश्वरी, गंगेश्वरी, जोगेश्वरी, वैरागी तोड़ी, कौशिकतोड़ी, मोहनकौंस, रसिया, मनमंजरी और पंचम इत्यादि अनेकानेक नए राग बनाए हैं, किंतु वैरागी और नटभैरव रागों का उनका सृजन सर्वाधिक जनप्रिय हुआ है। कदाचित् ही कोई दिन ऐसा जाता होगा, जब किसी-न-किसी प्रकार से कोई कलाकार इनके निर्मित इन दो रागों का उपयोग न करता हो। अपने जीवित रहते ही स्व-निर्मित रागों को ऐसी लोकप्रियता देने वाले पंडित जी एक अनुपम उदाहरण रहे हैं। संगीतबद्धता के रूप में भी रविशंकर ने वाद्यवृंदों से लेकर फिल्मों तक अपार प्रसिद्धि प्राप्त की है। ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ शीर्षक गीत की, जो धुन आज संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है, उसका सृजन पंडित जी ने 25 वर्ष की उम्र में ही कर दिया था।
पंडित रविशंकर
जन्म: | 7 अप्रैल, 1920 |
मृत्यु: | 11 दिसंबर, 2012 |
पिता: | श्याम शंकर चौधरी |
माता: | विसालक्षी रत्नम |
जीवनसंगी: | अन्नपूर्णा देवी और सुकन्या रंजन |
बच्चे: | शुभेन्द्र शंकर, नोराह जोन्स और अनुष्का शंकर |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
धर्म : | हिन्दू |
अवॉर्ड: | भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार |
पं. रविशंकर का जन्म 1920 में बनारस में हुआ था। इनके बड़े भ्राता उदयशंकर सुप्रसिद्ध नर्तक थे। उदयशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को संसार के प्रत्येक स्थान पर सम्मान प्रदान करवाया।
पं. रविशंकर प्रथमतः अपने बड़े भ्राता की नर्तक मंडली के साथ नृत्य- प्रदर्शन कार्य में संलग्न रहे, किंतु कुछ समय पश्चात् इन्होंने नृत्य छोड़कर सितारवादन का अभ्यास आरंभ किया। इन्होंने अलाउद्दीन खां साहब से सितारवादन सीखा और उसके पश्चात् सितारवादन ही इनकी जिंदगी का प्रमुख उद्देश्य बन गया। पं. रविशंकर को दुनिया की सभी संस्थाओं ने, विश्वविद्यालयों ने, सरकारों ने कई बार मानद डॉक्टरेट की उपाधि व सम्मानों से नवाजा है, लेकिन ये अपने देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ को सर्वाधिक महत्व देते थे।
शुरू में पंडित जी ने अमेरिका के विख्यात वायलिन वादक येहुदी मेन्युहिन के साथ जुगलबंदी करते हुए पूरे विश्व का भ्रमण किया। तबला के महान उस्ताद अल्लाहरक्खा ने भी पंडित जी के साथ जुगलबंदी की है। वस्तुतः इस प्रकार की जुगलबंदियों से ही इन्होंने भारतीय वाद्य संगीत को एक नया स्वरूप प्रदान किया है।
पंडित जी ने अपनी लंबे संगीत- जीवन में अपने व अपने विषय में कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं। ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’ के अलावा इनकी ‘रागमाला’ नामक पुस्तक विदेशी प्रकाशक द्वारा प्रकाशित की गई है। इनका निधन सेन डियागो में 11 दिसंबर, 2012 को हो गया।
पण्डित रवि शंकर देश प्रश्नोत्तर (FAQs):
Q- पण्डित रवि शंकर का जन्म कब हुआ था?
Ans- पण्डित रवि शंकर का जन्म 07 अप्रैल 1920 को बनारस, ब्रिटिश भारत में हुआ था।
Q- पण्डित रवि शंकर क्यों प्रसिद्ध हैं?
Ans- पण्डित रवि शंकर को 1968 में ग्रैमी पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय के रूप में जाना है।
Q- पण्डित रवि शंकर की मृत्यु कब हुई थी?
Ans- पण्डित रवि शंकर की मृत्यु 11 दिसम्बर 2012 को हुई थी।
Q- पण्डित रवि शंकर के पिता का क्या नाम था?
Ans- पण्डित रवि शंकर के पिता का नाम श्याम शंकर था।
Q- पण्डित रवि शंकर की माता का नाम क्या था?
पण्डित रवि शंकर की माता का नाम हेमंगिनी देवी था।
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