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अच्छे मापन उपकरण की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF GOOD MEASURING TOOL)
मापन एवं मूल्यांकन के लिए कुछ उपकरणों / परीक्षणों का प्रयोग किया जाता हैकिसी भी मूल्यांकन उपकरण को तब तक उपयुक्त नहीं माना जा सकता है जब तक कि वह कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। अतः किसी भी मूल्यांकन उपकरण की गुणवत्ता एवं उपयोगिता में वृद्धि करने के लिए उसकी जाँच विभिन्न विशेषताओं के आधार पर की जानी चाहिए।
मूल्यांकन उपकरण के द्वारा विभिन्न परीक्षणों का आयोजन किया जाता है तथा परीक्षण व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों, गुणों एवं उपलब्धियों का पता लगाते हैं। अतः एक परीक्षण को उत्तम तथा गुणयुक्त होना चाहिएउत्तम परीक्षण कहे जाने के लिए उसमें कुछ विशेषताओं का होना आवश्यक है।
उत्तम परीक्षण कहे जाने के लिए विशेषताओं का होना आवश्यक है। उत्तम परीक्षण / मूल्यांकन की विशेषताएँ इस प्रकार है-
1) वस्तुनिष्ठता (Objectivity) – एक उत्तम परीक्षण उपकरण का गुण उसका वस्तुनिष्ठ होना है। जब कोई परीक्षा वस्तुनिष्ठ होती है तब उसके प्रश्नों के उत्तरों पर अंक देते समय व्यक्तिगत मत न हो अर्थात् उस पर परीक्षण का व्यक्तिगत प्रभाव न हो, कोई भी मूल्यांकन करे परीक्षार्थी को सदैव उतने ही अंक मिलने चाहिए जितने प्रथम बार में मिले हैं। वस्तुनिष्ठता का अर्थ है कि परीक्षण के उत्तरों / प्रतिक्रियाओं का अंकन करते समय वह परीक्षण की व्यक्तिगत पसन्द / नापसन्द के प्रभाव से मुक्त हो तथा परीक्षक मानक फलांकन उत्तर पत्रिका की सहायता से पूर्व निर्धारित सही / गलत उत्तरों को दिए जाने वाले अंक (जो परीक्षण निर्माता द्वारा निर्धारित किए गए होते हैं) के आधार पर ही परीक्षण का अंकन करें। इसमें परीक्षक कोई भी हो, फलांकन कभी भी किया जाए तथा चाहे फलांकन अनेक परीक्षकों द्वारा किया जाए, फलांकन सदैव एक से ही प्राप्त होंगे। किसी भी प्रकार का मापन उपकरण हो, वह तभी एक अच्छा उपकरण साबित हो सकता है जब वह वस्तुनिष्ठ हो। इस परीक्षण की विशिष्ट विशेषता यही होती है कि उसका फलांकन कोई भी करे, कभी भी करे, कहीं भी करे, परिणाम सदैव एक ही प्राप्त होंगे।
2) व्यावहारिकता (Partibility) – व्यावहारिकता आंकलन में धन, समय एवं बहुत कम प्रयासों की आवश्यकता होती है। एक व्यावहारिकता आंकलन निर्माण में, प्रशासन में, निर्धारण में एवं परिणामों की व्याख्या करने में सरल होता है। ब्राउन के अनुसार परीक्षण आवश्यकता के अनुसार व्यवहार में, प्रशासन में, वित्तीय सीमाओं, बाधाओं में एवं व्याख्या में सरल हो को परीक्षण की व्यावहारिकता को स्पष्ट करता है। एक अत्यधिक खर्चीला परीक्षण अव्यावहारिक होता है।
भाषा प्रवीणता एक छात्र को पूर्ण करने में कम-से-कम पाँच घण्टे का समय लेती है। इस प्रकार यह अधिक समय लेने वाला अव्यावहारिक परीक्षण है। यह अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने में निर्धारित समय की अपेक्षा अधिक समय ले रहा है। एक परीक्षण में व्यावहारिक प्रश्नों के अत्यधिक विस्तार एवं लघु, ग्रेडिंग में सरलता, एवं छात्रों के प्रति सुविधापूर्णता को निर्दिष्ट करता है।
परीक्षण पूर्ण करने में लगने वाला अनुमानित समय, उसकी लम्बाई अर्थात् प्रश्नों की संख्या, स्कोर आदि में व्यावहारिक होना चाहिए। स्कोरिंग एवं उत्तर देने में परीक्षण बहुत लम्बे अथवा कठिन नहीं होने चाहिए। इस प्रकार व्यावहारिकता से अभिप्राय अंकन आर्थिक, स्कोरिंग, प्रशासन, व्याख्या में सरल हो।
3) विश्वसनीयता (Reliability) – यदि एक परीक्षण उपकरण को एक ही समूह में दुबारा प्रयोग किया जाए तथा उनके अंकों में कोई अन्तर न हो तो वह परीक्षण उपकरण की विश्वसनीयता कहलाती है। एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसका विश्वसनीय होना है। विश्वसनीयता का तात्पर्य ऐसे परीक्षण से है जो बार-बार प्रयोग किए जाने पर एक ही निष्कर्ष प्रदान करें। जैसे किसी विद्यार्थी को गणित की परीक्षा में 40 अंक प्राप्त होते हैं, कुछ दिन पश्चात् वही परीक्षण दोबारा देने पर भी यदि उसको लगभग इतने अंक प्राप्त होते हैं तो हम कह सकते हैं कि हमारी परीक्षा विश्वसनीय है। परीक्षण को आयु-प्रसार, समूह-प्रसार, फलांक-प्रसार परीक्षण की लम्बाई आदि तत्त्व प्रभावित करते हैं।
फ्रीमैन के अनुसार, “किसी परीक्षण की विश्वसनीयता इस बात को इंगित करती है कि उस परीक्षण में आंतरिक संगति कितनी है और उस परीक्षण के बार-बार प्रयोग करने से प्राप्त परिणामों या अंकों में कितनी संगति है।”
क्रोनबैक ने अपनी पुस्तक ‘Essential of psychological testing’ में वस्तुनिष्ठता के विषय में लिखा है- ‘एक वस्तुनिष्ठ परीक्षण वह है जिसमें प्रत्येक परीक्षक किसी प्रश्न के उत्तर या निष्पादन को देखकर एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।”
4) वैधता (Validity) – यदि कोई परीक्षण उसी गुण का मापन करता है जिसके लिए उसे बनाया गया तो वह परीक्षण वैध कहलाता है। किसी भी परीक्षण के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि वह विश्वसनीय होने के साथ-साथ वैध भी हो। परीक्षण की वैधता से हमारा आशय यह है कि परीक्षण उस उद्देश्य की पूर्ति करता हो जिसके हेतु उसका निर्माण किया गया है। यदि परीक्षण द्वारा उस उद्देश्य की पूर्ति हो रही है तो हमारा परीक्षण वैध परीक्षण कहलाएगा अन्यथा नहीं। परीक्षण की वैधता विभिन्न प्रकार की होती है, जैसे- संक्रिया, पूर्वकथित, अंकित, विषय-वस्तु कारक आदि। वैधता ज्ञात करने में सह-सम्बन्ध विधि का प्रयोग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
क्रोनबैक के अनुसार, “वैधता वह सीमा है जिस सीमा तक परीक्षण वही मापता है जिसके लिए इसका निर्माण किया गया है।”
5)पद-विश्लेषण (Item-Analysis) – परीक्षण के प्रत्येक पद की उपयुक्तता का,सांख्यिकीय विश्लेषण ही पद विश्लेषण कहलाता है। कोई भी परीक्षण कितना उपयोगी होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि परीक्षण के प्रत्येक पद का विश्लेषण किया गया है अथवा नहीं। जिन परीक्षणों के पदों का विश्लेषण किया जाता है वह परीक्षण अधिक गुण सम्पन्न एवं उपयोगी माना जाता है। पद, विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य परीक्षण के प्रत्येक पद का कठिनाई स्तर ज्ञात करना है।
पद-विश्लेषण के द्वारा हमें प्रत्येक पद की स्थिति का ज्ञान हो जाता है तथा हम अपने उद्देश्यानुसार पदों का चयन कर लेते हैं। परीक्षण की प्रथम जाँच के दौरान परीक्षण सम्बन्धी मुख्य कठिनाइयों, पदों की उपयुक्तता एवं निर्देशों की अस्पष्टता का सरलता से आभास हो जाता है जिन्हें बाद में दूर कर दिया जाता है। पद-विश्लेषण से उपयुक्त शिक्षण विधि के चयन में भी सहायता मिलती है। पद-विश्लेषण की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके माध्यम से लम्बी परीक्षाओं को संक्षिप्त स्वरूप प्रदान किया जा सकता है। यह एक चक्रीय प्रविधि है। पद-विश्लेषण के माध्यम से परीक्षार्थियों की क्षमता के बारे में पूर्ण ज्ञान हो जाता है।
6) मानक (Standards) – मानकों का निर्धारण प्रभावीकरण प्रक्रिया का एक आवश्यक पक्ष है। बिना मानक के परीक्षण-प्राप्तांक की व्याख्या नहीं की जा सकती है। मानक न केवल समूह में व्यक्ति विशेष की स्थिति का ज्ञान कराते हैं बल्कि इसके द्वारा एक व्यक्ति की तुलना दूसरे व्यक्ति से की जा सकती है। एक उत्तम मानकीकृत परीक्षण की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उसके मानक स्थापित होते हैं। मानक किसी विशेष समूह में व्यक्तियों के औसत कार्य या निष्पादन की इकाई है। अधिकांशतः आयु, श्रेणी, शतांशीय तथा प्रमासिक फलांक मानकों या टी-फलांक को ज्ञात किया जाता है फिर इन मानकों की सहायता से किसी परीक्षण पर प्राप्त व्यक्ति के मूल प्राप्तांकों (Raw Scores) का विवेचन किया जाता है।
7) विभेदकारिता (Discrimination) – यदि कोई परीक्षण उच्च व निम्न योग्यता वाले विद्यार्थियों में विभेद कर सके तो यह कहाँ जाता है कि परीक्षण में विभेदकारिता का गुण है। विभेदीकरण से हमारा तात्पर्य उस विभेदशक्ति से होता है जो किसी पहलू के माध्यम से दो वर्गों में विभेद स्पष्ट करे अर्थात् वह यह इंगित कर सके कि किसी समूह में एक व्यक्ति की योग्यता क्या है? तथा अन्य व्यक्तियों की योग्यता क्या है? या किसी कार्य में एक समूह रुचिकर है तो दूसरा समूह अरुचिकर है आदि। यहाँ यह स्मरणीय है कि किसी भी पद का विभेद मूल्य समूह के उच्चतम एवं निम्नतम वर्गों पर ज्ञात किया जाता है तथा इस सम्बन्ध में मध्यम वर्ग की कोई उपयोगिता नहीं होती है। यदि परीक्षण के समस्त पद विभेदकारी हो तो हमारा परीक्षण भी निश्चित रूप से विभेदकारी होगा, जो एक उत्तम परीक्षण की मान्य तकनीकी कसौटी है।
8) विशिष्टता (Specificity) – परीक्षण की यह विशेषता वस्तुनिष्ठता की पूरक है जहाँ यदि परीक्षण इस प्रकार का है जबकि उसकी प्रकृति से भिज्ञ परीक्षार्थी परीक्षण में उच्च फलांक प्राप्त करते हैं तथा अनभिज्ञों को कम फलांक प्राप्त होते हैं। ऐसे परीक्षण को विशिष्ट (Specific) परीक्षण कहा जाएगा।
9) व्यावहारिकता (Practibility) – व्यावहारिकता आंकलन में धन, समय एवं बहुत कम प्रयासों की आवश्यकता होती है। एक व्यावहारिकता आंकलन निर्माण में, प्रशासन में, निर्धारण में एवं परिणामों की व्याख्या करने में सरल होता है।
ब्राउन के अनुसार परीक्षण आवश्यकता के अनुसार व्यवहार में, प्रशासन में, वित्तीय सीमाओं, बाधाओं में एवं व्याख्या में सरल हो को परीक्षण की व्यावहारिकता को स्पष्ट करता है। एक अत्यधिक खर्चीला परीक्षण अव्यावहारिक होता है। भाषा प्रवीणता एक छात्र को पूर्ण करने में कम-से-कम पाँच घण्टे का समय लेती है। इस प्रकार यह अधिक समय लेने वाला अव्यावहारिक परीक्षण है। यह अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने में निर्धारित समय की अपेक्षा अधिक समय ले रहा है। एक परीक्षण में व्यावहारिक प्रश्नों के अत्यधिक विस्तार एवं लघु, ग्रेडिंग में सरलता, एवं छात्रों के प्रति सुविधापूर्णता को निर्दिष्ट करता है।
परीक्षण पूर्ण करने में लगने वाला अनुमानित समय, उसकी लम्बाई अर्थात् प्रश्नों की संख्या, स्कोर आदि में व्यावहारिक होना चाहिए। स्कोरिंग एवं उत्तर देने में परीक्षण बहुत लम्बे अथवा कठिन नहीं होने चाहिए। इस प्रकार व्यावहारिकता से अभिप्राय अंकन आर्थिक, स्कोरिंग, प्रशासन, व्याख्या में सरल हो।
10) मानकीकरण (Standardisation) – मानकीकरणत से आशय ऐसे परीक्षण उपकरणों से है जिसमें अनुभवों के आधार पर विषय-वस्तु का चयन किया गया हो, जिनके मानक निर्धारित हों, जिनके प्रशासन एवं फलांकन में समरूप विधियों का प्रयोग हुआ हो तथा जिनके फलांकन में सापेक्ष तथा वस्तुनिष्ठ विधि का प्रयोग किया गया हो। इसमें किसी प्रकार के पक्षपात की सम्भावना नहीं होती है। इसके मानकीकरण में व्यक्ति की आयु, लिंग, सामाजिक, आर्थिक स्थिति, उपलब्धि आदि के अनुसार मानकों को निर्धारित किया जाता है। एक उत्तम परीक्षण की यह प्रमुख कसौटी है कि उसका मानकीकरण किया जाए।
11) उद्देश्यपूर्णता (Purposiveness) – प्रत्येक परीक्षण के उद्देश्य एवं, विशिष्ट उद्देश्यों का निर्धारण कर परीक्षण का निर्माण करना ही उद्देश्यपूर्णता है। किसी भी परीक्षण की प्रमुख विशेषता उसका निश्चित उद्देश्य निर्धारित होना है अर्थात् उत्तम परीक्षण का निर्माण तब ही सम्भव है जब हमारे पास कोई उद्देश्य, लक्ष्य या समस्या हो। अमूर्त परिस्थितियों में परीक्षण का निर्माण सम्भव नहीं हो सकता क्योंकि परीक्षण सदैव किसी उद्देश्यपूर्ति हेतु ही बनाए जाते हैं।
12) व्यापकता (Comprehensiveness) – व्यापकता से आशय है कि परीक्षण में इस प्रकार के पदों या प्रश्नों को स्थान दिया जाए कि वह उस क्षेत्र में समस्त पहलुओं का मापन कर सकें अर्थात् वह व्यवहार का विस्तृत रूप से प्रतिदर्श कर सकें। दूसरे शब्दों में, यह भी कहा जा सकता है कि परीक्षण इतना व्यापक होना चाहिए कि वह अपने लक्ष्य की पूर्ति कर सके। उसमें उन समस्त पहलुओं से सम्बन्धित प्रश्नों को स्थान मिलना चाहिए जिनका मापन करना है। जैसे- बुद्धि परीक्षण की रचना में संख्यात्मक, समस्यात्मक, अमूर्त वस्तुओं, स्मृति, शाब्दिक योग्यता आदि प्रकार के प्रश्न जो विभिन्न प्रकार की योग्यताओं का मापन करते हैं, शामिल किया जाना चाहिए। इस प्रकार से परीक्षण के द्वारा व्यक्ति के विस्तृत व्यवहार का उचित रूप से अध्ययन सम्भव है।
13) मितव्ययिता (Economical) – एक परीक्षण समय तथा धन की दृष्टि से मितव्ययी होना चाहिए। एक उत्तम मनोवैज्ञानिक परीक्षण के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रत्येक दृष्टिकोण से मितव्ययी हो। उसका निर्माण समय, धन एवं व्यक्ति को दृष्टि में रखते हुए होना चाहिए क्योंकि आज के इस व्यस्त वैज्ञानिक एवं औद्योगिक युग में मितव्ययी होना व्यक्ति के जीवन में अत्यन्त आवश्यक हो गया है। इसके अतिरिक्त परीक्षण की विषय सामग्री ऐसी होनी चाहिए कि उसके निर्माण में अत्यधिक समय, धन एवं व्यक्तियों की आवश्यकता न हो। यदि हमारा परीक्षण इन तीनों व्यावहारिक तथ्यों के अनुकूल है तो निश्चित रूप से वह उत्तम परीक्षण होगा।
14) उपयोगिता (Utility) – परीक्षण के प्रशासन में सुविधा तथा सरलता हो तभी उसकी उपयोगिता प्रयोग करने में सिद्ध होती है। किसी भी परीक्षण की सार्थकता तभी है जब उसकी उपयोगिता भी स्पष्ट हो। मनोवैज्ञानिक या अनुसन्धानकर्ताओं को ऐसे परीक्षण की रचना करनी चाहिए जिसका प्रशासन उसकी परिस्थितियों के अनुकूल किया जा सके। निर्देश एकदम स्पष्ट एवं संक्षिप्त होने चाहिए जिसे परीक्षार्थी आसानी से समझ लें तथा अध्यापकों को उन्हें उस परीक्षण से होने वाले लाभों को बता देना चाहिए।
15) ग्राह्यता (Acceptability) – एक उत्तम परीक्षण की एक प्रमुख विशेषता उसकी ग्राह्यता है। ग्राह्यता से तात्पर्य है किसी भी परीक्षण का उन व्यक्तियों पर तथा उन परिस्थिति में सफलतापूर्वक प्रशासन करना जिनको आधार बनाकर उस परीक्षा विशेष की मानकीकरण प्रक्रिया पूरी होती है।
16) प्रतिनिधित्वता (Representativeness) – प्रतिनिधित्व का तात्पर्य है कि व्यक्ति के व्यवहार के जिस न्यादर्श का मापन करने के लिए परीक्षण की रचना की गई उसका मापन परीक्षण प्रतिनिधित्व में कर सके। एक उत्तम परीक्षण की व्यावहारिक विशेषता यह भी है कि उसे प्रतिनिधि होना चाहिए। व्यवहार के जिन-जिन पहलुओं के मापन हेतु उसकी रचना की गई है उनका प्रतिनिधित्व रूप से मापन करना उसकी प्रमुख विशेषता है। वह व्यक्ति के व्यवहार में से प्रतिदर्श लेकर उसका प्रतिनिधित्व रूप से मापन करता है।
17) सुगमता (Simplicity) – उत्तम परीक्षण की एक अन्य विशेषता यह है कि उसे प्रशासन, फलांकन एवं विवेचना के दृष्टिकोण से सदैव सुगम होना चाहिए। मनोवैज्ञानिकों को ऐसे परीक्षण का निर्माण करना चाहिए जिसका प्रशासन उसकी परिस्थितियों के अनुकूल किया जा सके। निर्देश एकदम स्पष्ट एवं संक्षिप्त होने चाहिए जिससे परीक्षार्थी उन्हें आसानी से समझ सके तथा उसकी भाषा में किसी भी प्रकार का दोहरापन न हो क्योंकि जब तक परीक्षार्थी निर्देशों को भली-भाँति नहीं समझ पाता है तब तक वह उस परीक्षण को करने में असमर्थ होता है।
18) भाषा (Language) – एक उत्तम परीक्षण तथा सटीक परिणाम के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि परीक्षण की भाषा सरल हो तथा जिस आयु वर्ग के लिए उसका निर्माण किया गया है, उस आयु वर्ग को आसानी से समझ में आ जाएं। इसके साथ ही परीक्षण जिन क्षेत्र विशेष के लिए निर्मित किया हो उससे सम्बंधित भाषा भी होनी चाहिए।
19) सक्षमता (Capability) – परीक्षण की सक्षमता उसके निर्माण करने, प्रशासन करने, अंकन करने तथा परीक्षण में लगने वाले समय की सीमा से है क्योंकि कम समय में प्रशासित किया जा सकने या अंकित किया जा सकने वाला परीक्षण सक्षम तथा उत्तम परीक्षण माना जाता है।
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- अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
- भारार्पण के तत्व अथवा प्रक्रिया | Elements or Process of Delegation in Hindi
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