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टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त (Taylor’s Scientific Management Principles in Hindi)

टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त (Taylor's Scientific Management Principles in Hindi)
टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त (Taylor’s Scientific Management Principles in Hindi)

टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।

टेलर का सिद्धान्त ‘एक लाभकारी सिद्धान्त के रूप में भी प्रसिद्ध है, इसका कारण यह है कि इसने प्रबन्ध जगत् में प्रबन्धकों, कामगारों तथा उपभोक्ताओं के बीच एक मानसिक क्रांति को उत्पन्न कर दिया। प्रबन्ध जगत् में मानसिक क्रान्ति का परिणाम हुआ कि उत्पादकता में व्यापक वृद्धि हुई। सेवा या उत्पादकता में व्यापक वृद्धि से न केवल प्रबन्ध जगत से जुड़े हुए लोग लाभान्वित हुए, बल्कि उपभोक्ता भी बहुत अधिक लाभान्वित हुए। टेलर ने वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त के प्रतिपादन में पहले दण्ड और पुरस्कार के सिद्धान्त को अपनाया, लेकिन उन्हें यह लगा कि दण्ड का सिद्धान्त एक परम्परागत सिद्धान्त है, जो कार्मिकों को भयभीत कर सकता है तथा उत्पादकता में कमी आ सकती है, जो कार्मिकों को भयभीत कर सकता है तथा उत्पादकता में कमी आ सकती है। उन्होंने बोनस को पुरस्कार माना तथा ‘आर्थिक मानव’ के संदर्भ में इसे सही माना, लेकिन दण्ड सम्बन्धी परम्परागत सिद्धान्त को उन्होंने अस्वीकार कर दिया।

टेलर के द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध सिद्धान्त की चार मान्यताएं निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत है-

1. वास्तविक कार्य-विज्ञान का विकास- वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त की प्रथम मान्यता प्रबन्ध के कार्य विज्ञान का विकास करना है। टेलर ने अपने अध्ययन में यह पाया कि शास्त्रीय मान्यताओं पर आधारित प्रबन्ध व्यवस्था इसलिए असफल हुई है कि उसके पास कार्य विज्ञान का अभाव था, संगठन के सिद्धान्त कार्य व परिस्थिति से सम्बन्धित नहीं थे, भर्ती, प्रशिक्षण, कार्य प्रक्रिया तथा कार्यालय प्रबन्ध का अभाव था। परम्परागत प्रबन्ध व्यवस्था की कमियों को देखते हुए तथा अपने विभिन्न अध्ययनों के माध्यम से टेलर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्रबन्ध की सफलता हेतु कार्य का सम्बन्ध परिस्थिति से होना चाहिए, कार्य व उत्पादकता के अनुसार गति को कायम किया जाना चाहिए तथा कार्य निष्पादन में कामगारों को अनावश्यक थकान से बचाने का भरपूर प्रयास करना चाहिए। टेलर ने कार्य विज्ञान के विकास को संगठन की प्रकृति तथा परिस्थिति से जोड़ा है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया है कि मानव एक ‘आर्थिक मानव’ होता है, जिससे अर्थ के प्रभाव में कार्य कराया जा सकता है या कार्य के प्रति उसकी सक्रियता को आर्थिक संदर्भ में अधिक-से-अधिक बढ़ाया जा सकता है।

2. वैज्ञानिक आधार पर कार्मिकों का चयन तथा चयनोपरान्त उनका प्रशिक्षण- प्रबन्ध के शास्त्रीय सिद्धान्त के द्वारा वैज्ञानिक आधार पर कार्मिकों का चयन नहीं होता था और न ही चयनोपरान्त कार्मिकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था थी। टेलर ने सर्वप्रथम प्रबन्ध के क्षेत्र में कार्य की प्रकृति व आवश्यकता के संदर्भ में योग्य कार्मिकों को चयनित करने तथा उनके प्रशिक्षण पर बल दिया। टेलर की यह मान्यता थी कि जब तक संगठन से योग्य लोगों को नहीं जोड़ा जायेगा, तब तक संगठन का विकास नहीं हो सकता है। संगठन के विकास हेतु समय व परिस्थिति के अनुसार प्रशिक्षण को आयोजित करने की आवश्यकता होती है। स्पष्टतः वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त भर्ती और प्रशिक्षण की वैज्ञानिक व्यवस्था का समर्थन करता है।

3. कार्य-विज्ञान का विकास तथा चयनित व प्रशिक्षित कार्मिकों के बीच तालमेल- टेलर ने अपने वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त के अन्तर्गत कार्य-विज्ञान के विकास पर जोर दिया तथा कार्मिकों के वैज्ञानिक चयन एवं प्रशिक्षण की बात कही। इतना ही नहीं, टेलर के द्वारा इस बात पर सबसे अधिक बल दिया गया कि कामगारों तथा प्रबन्धकों के बीच बेहतर तालमेल कायम हो जब तक कामगारों और प्रबन्धकों के बीच बेहतर तालमेल का सम्बन्ध अर्थात् सहयोगात्मक सम्बन्ध कायम नहीं होता है, तब तक प्रबन्ध व्यवस्था को सफल नहीं बनाया जा सकता है। वस्तुतः टेलर संगठन में इसी आवश्यकता को प्रतिस्थापित करने के लिए कार्य-विज्ञान के विकास तथा चयनित एवं प्रशिक्षित कार्मिकों के बीच समन्वय स्थापित करना चाहते हैं।

4. कार्य व उत्तरदायित्व का समान विभाजन – प्रबन्ध के परम्परागत सिद्धान्त के अन्तर्गत कार्य एवं उत्तरदायित्व का समान विभाजन नहीं होता था। सामान्यतः यह देखा जाता था कि कार्य का बोझ कामगारों पर लाद दिया जाता था, संगठन के वरिष्ठ पदों पर कार्य करने वाले लोग बहुत कम कार्य सम्पन्न करते थे तथा उत्तरदायित्व से अलग रहते थे। टेलर ने परम्परागत सिद्धान्त की इस मान्यता का खण्डन किया और इस बात पर बल दिया कि संगठन के अन्तर्गत कार्य एवं उत्तरदायित्व का समान विभाजन होना चाहिए। कार्य एवं उत्तरदायित्व के समान विभाजन से टेलर के ‘कार्यकारी अध्यक्षता’ के सिद्धान्त को समर्थन मिलता है।

टेलर द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त वैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन इस सिद्धान्त की कई आलोचनाएँ हुई हैं- सर्वप्रथम टेलर का वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त इसलिए आलोचनीय है कि यह मानव को केवल आर्थिक मानव मानता है। यह बात भी सही है कि मानव अर्थ के प्रभाव से काम करता है, लेकिन यह कहना भी सही नहीं है कि वह केवल अर्थ के लिए ही काम करता है, मानव में अर्थ के प्रति लालसा होती है, परन्तु उसमें प्रेम, सहयोग एवं सहानुभूति जैसे भावनात्मक तत्वों की भी प्रधानता होती है। टेलर अपने वैज्ञानिक सिद्धान्त के प्रतिपादन में इन मानवीय मूल्यों के समावेश को कायम करने में असफल रहे हैं।

द्वितीय- जॉर्ज एल्टन मायो का मानना है कि टेलर का वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त कार्य और कार्य की परिस्थितियों के बीच समन्वय स्थापित करने में असफल रहा है। एल्टन मायो के समान अन्य आलोचक भी कहते हैं कि टेलर उत्पादकता पर ध्यान देते हैं, परिस्थिति पर नहीं ।

तृतीय- टेलर अपने वैज्ञानिनक प्रबन्ध सिद्धान्त के अन्तर्गत अधिक-से-अधिक उत्पादन को प्राप्त करना चाहते हैं तथा वे भूल जाते हैं कि उत्पादन से संलग्न लोग मानव हैं, मानव का पुर्जा नहीं। स्पष्टतः टेलर ने संगठन या प्रबन्ध का मशीनीकरण किया है, जिसके औचित्य को शत-प्रतिशत प्रमाणित नहीं किया जा सकता है।

अन्त में- टेलर का प्रबन्ध सिद्धान्त जिस मानसिक क्रान्ति को उत्पन्न करना चाहता है, उसकी अस्पष्ट तथा परिस्थितिजन्य है। आलोचकों का तो यह भी कहना है कि मानसिक क्रान्ति की अवधारणा को हमेशा एक रूप में कायम नहीं रखा जा सकता है।

इन आलोचनाओं के बाद भी टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त को महत्वहीन नहीं माना जा सकता है। वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त ने प्रबन्ध विज्ञान को वैज्ञानिक बनाया है तथा प्रबन्ध की परम्परागत मान्यताओं का खण्डन किया है, यह इसके महत्व का द्योतक है। वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त का यह कहना प्रशासनिक मूल्य को अभिनिर्धारित करता है ‘प्रबन्ध एक विज्ञान है’ वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त की कमियों ने मानव सम्बन्ध सिद्धान्त के प्रतिपादन को आधार प्रदान किया, इस रूप में भी वैज्ञानिक प्रबन्ध सिद्धान्त का महत्व है।

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Anjali Yadav

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