फ्रेडरिक हर्जबर्ग के अभिप्रेरण सिद्धान्त
फ्रेडरिक हर्जबर्ग का द्विघटक अभिप्रेरण सिद्धान्त – फ्रेडरिक हर्जबर्ग ने अभिप्रेरणा के आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत एक नवीन सिद्धान्त ‘द्विघटक सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया है, जिसे स्वास्थ्य या आरोग्य विचारधारा के नाम से भी जाना जाता है। फ्रेडरिक हर्जबर्ग तथा उनके साथियों ने साइकोलॉजिकल सर्विस, पिट्सबर्ग में अनेक अध्ययनों के आधार पर इस विचारधारा का विकास किया है। अपने इस सिद्धान्त में फ्रेडरिक हर्जबर्ग ने इस मान्यता पर जोर दिया है कि मानवीय व्यवहार को समझने के लिए उनकी कार्य-प्रवृत्तियों का अध्ययन किया जाना आवश्यक है। इसके लिए उन्होंने अपने अध्ययन पद्धति द्वारा ‘साक्षात्कार की प्रक्रिया’ में शामिल होने वालों से अग्रलिखित प्रश्नों को पूछा-
(i) किस तरह का बातें आपको कार्यों के सम्पादन के दौरान नाखुश करती हैं ?
(ii) किस तरह की बातें आपको कार्यों के सम्पादन के दौरान खुश करती हैं ?
साक्षात्कार से प्राप्त तथ्यों के विश्लेषण से हर्जबर्ग ने यह निष्कर्ष निकाला है कि व्यक्तियों की दो प्रकार की आवश्यकताएँ होती हैं, जिनका स्वरूप अलग-अलग है तथा ये मानवीय व्यवहार को अपने अलग-अलग तरीके से प्रभावित करती हैं। फ्रेडरिक हर्जबर्ग कहते हैं कि जब व्यक्ति अपने कार्य से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह कार्य वातावरण पर अधिक ध्यान देने लगता है। इसको ही उन्होंने आरोग्य घटक का नाम दिया है। ठीक इसके विपरीत जब व्यक्ति को कार्य में संतुष्टि मिलती है तो उसका ध्यान कार्य के वातावरण पर न जाकर कार्य की तरफ जाता है। इससे कार्य में अधिक कुशलता आती है और उत्पादकता में वृद्धि होती है, जिसे फ्रेडरिक हर्जबर्ग ने उत्प्रेरक कहा है।
(क) आरोग्य घटक (Hygiene Factors) –
आरोग्य या स्वास्थ्य सम्बन्धी घटक उसे कहते हैं, जिनका सम्बन्ध कार्य के वातावरण या परिस्थितियों से है। इन परिस्थितियों से कर्मचारी को या तो संतोष प्राप्त होगा या असंतोष प्राप्त होगा, लेकिन इनसे संतुष्टि प्राप्त नहीं होगी तथा इसका सम्बन्ध कार्यों के बाह्य वातावरण से होता है।
(ख) उत्प्रेरक घटक (Motivating Factors) –
उत्प्रेरक घटक वे घटक हैं, जिनका सम्बन्ध कार्य की विषय-वस्तु से है तथा इसके अन्तर्गत व्यक्ति के वैसे अनुभव आते हैं, जो उन्हें संतुष्टि प्रदान करते हैं। इन घटकों का सम्बन्ध कार्यों के आन्तरिक वातावरण से होता है।
फ्रेडरिक हर्जबर्ग के मतानुसार आरोग्य घटकों से उत्पादन में वृद्धि सम्भव नहीं है। आरोग्य घटक तो कार्य अवरोधों के द्वारा होने वाले नुकसानों को सुरक्षित रखते हैं अर्थात् इसे निवारक उपाय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके अस्तित्व का मतलब है कि कार्य की बाधाएँ गौण होने लगती हैं, साथ ही इसकी अनुपस्थिति से कार्य के प्रति असंतुष्टि में वृद्धि होती है। दूसरी ओर संतुष्टि प्रदान करने वाले उत्प्रेरक घटकों से दीर्घावधि के परिवर्तन होते हैं। तथा इनका सम्बन्ध कार्य के विषय-वस्तु, कार्य की प्रकृति, कार्यक्षमता का विकास इत्यादि से होता है। ऐसे घटक व्यक्ति को उच्चस्तरीय कार्यक्षमता के लिए प्रेरणा देने में प्रभावशाली प्रमाणित होते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि फ्रेडरिक हर्जबर्ग के आरोग्य घटकों को असंतुष्टकारी घटकों के साथ-साथ रख-रखाव सम्बन्धी घटक भी कहा है, जबकि संतुष्टिदायक घटकों को प्रेरणात्मक तत्वों के साथ विकासमूलक तत्व भी कहा जाता है। स्पष्ट है कि आरोग्य घटक और उत्प्रेरक घटक अलग-अलग अवश्य हैं, लेकिन एक-दूसरे के प्रतिकूल नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, कार्य- संतुष्टि के विपरीत कार्य असंतुष्टि नहीं है। इसी तरह कार्य असंतुष्टि के विपरीत कार्य-संतुष्टि नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि एक प्रकार के घटकों की उपस्थिति दूसरे प्रकार के घटकों की अनुपस्थिति की ओर संकेत करते हैं, हालांकि दोनों प्रकार के घटक एक-दूसरे को थोड़ा-बहुत योगदान भी देते हैं।
सन् 1960 में फ्रेडरिक हर्जबर्ग के द्वारा कार्य समृद्धि की मौलिक अवधारणा का प्रतिपादन किया गया, जिसे व्यावहारिक व प्रभावी बनाने का काम रिचर्ड हाकमेन ने किया है। कार्य समृद्धि की अवधारणा प्रबन्ध की लाभोन्मुख प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कार्मिकों के निष्पादित कार्यों को अर्थपूर्ण बनाया जाता है। प्रबन्धकों के द्वारा कार्यों में वृद्धि हेतु इस अवधारणा को एक तकनीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तथा इसे कार्य-संतुष्टि के एक मौलिक स्रोत के रूप में भी स्वीकार किया जाता है। कार्य समृद्धि की अवधारणा से इस बात को बल मिलता है कि कर्मचारी स्वयं के निष्पादित कार्यों एवं निष्पादन से प्राप्त अनुभवों के माध्यम से स्थायी रूप में अभिप्रेरित होते हैं। इस अवधारणा से दूसरी तरफ यह बात भी प्रमाणित हो जाती है कि प्रबन्धकों के द्वारा कार्मिकों को स्थायी रूप से अर्थ-प्रलोभन एवं दण्ड-भय से अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता है।
यह बात सही है कि कार्य-निष्पादन से प्राप्त अनुभवों के माध्यम से कार्मिक स्थायी रूप से अभिप्रेरित होते हैं, लेकिन इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि वेतन-भत्ता, कार्य की प्रकृति एवं पर्यवेक्षण की प्रकृति आदि घटकों से भी कार्मिक अभिप्रेरित होते रहे हैं। यदि इन घटकों के संदर्भ में कार्मिकों को असंतुष्टि मिलती है, तो इनकी उत्तम स्थिति को प्रदान कर असंतुष्टि को दूर किया जा सकता है।
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