संसद के विधि निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
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संसद में विधि-निर्माण की प्रक्रिया
संसद विधि या कानून का निर्माण दो प्रकार के विधेयकों से करती है-
1. साधारण विधेयकों- साधारण विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं। विधेयक शासन की ओर से किसी मन्त्री द्वारा अथवा संसद के किसी अन्य सदस्य द्वारा प्रस्तावित किया जा सकता है। जब विधेयक शासन की ओर से किसी मन्त्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, तो इसे ‘सरकारी विधेयक’ कहते हैं और जब इसे किसी ऐसे सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जो मन्त्रिमण्डल का सदस्य नहीं है तो इसे ‘गैर-सरकारी विधेयक’ या ‘निजी सदस्य का विधेयक’ कहते हैं।
भारत में विधेयक के तीन वाचन होते हैं, जो निम्न हैं:
प्रथम वाचन – विधेयक को प्रस्तावित करना – कुछ विषयों से सम्बन्धित विधेयकों को सदन में प्रस्तावित करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति आवश्यक होती है जैसे राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने वाले विधेयक । साधारणतया किसी भी विधेयक को प्रस्तुत करने की आज्ञा प्राप्त करने के लिए एक माह का नोटिस देना आवश्यक होता है। यदि कोई सदस्य किसी विधेयक को पेश करना चाहता है, तो उसे सदन की आज्ञा लेनी होती है। आज्ञा मिलने पर विधेयक प्रस्तुत करने वाला, सदस्य, यदि विधेयक महत्वपूर्ण हुआ, तो उसकी मुख्य बातों के सम्बन्ध में एक भाषण भी दे सकता है। इसी समय विधेयक के विरोधी सदस्य द्वारा भी अपने विचार व्यक्त किये जा सकते हैं। यही विधेयक का प्रथम वाचन कहलाता है और इसके बाद विधेयक सरकारी गजट में प्रकाशित किया जाता है। परन्तु जब कभी लोकसभा का अध्यक्ष किसी विधेयक को सदन में पेश करने की आज्ञा प्रदान करने के पूर्व ही उसे सरकारी गजट में प्रकाशित करने की आज्ञा दे दे, तो इससे प्रथम वाचन पूरा हुआ समझ लिया जाता है।
द्वितीय वाचन – इसके बाद एक निश्चित दिन विधेयक का द्वितीय वाचन प्रारम्भ होता है। उस दिन विधेयक का प्रस्तावक इन तीन में से कोई एक प्रस्ताव रखता है- (1) विधेयक प्रवर समिति को विचारार्थ सौंप दिया जाय। (2) जनमत जानने के लिए प्रस्तावित किया जाय। (3) उस पर तत्काल ही विचार किया जाय। साधारणतः अति आवश्यक सरकारी अथवा विवाद रहित विधेयकों को छोड़कर अन्य विधेयकों पर तत्काल विचार नहीं किया जाता है। समाज सुधार सम्बन्धी विधेयक बहुधा जनमत जानने के लिए प्रसारित किये जाते हैं किन्तु अधिकांश विधेयकों पर विचार हेतु ‘प्रवर समितियाँ’ बना दी जाती हैं। उपर्युक्त में से कोई सा भी प्रस्ताव पास होने पर सदन में विधेयक पर विचार हेतु ‘प्रवर समितियाँ’ पर वाद-विवाद होता है। इस समय विस्तार की बातों पर वाद-विवाद नहीं होता और न ही कोई संशोधन पेश किया जाता है।
इसके उपरान्त विधेयक तीसरी स्थिति में आता है, जिसे समिति स्तर कहते हैं। प्रवर समिति में विधेयक का प्रस्तावक तथा कुछ अन्य सदस्य होते हैं। प्रवर समिति विधेयकों की प्रत्येक धारा पर सूक्ष्म दृष्टि से विचार करती और उसमें आवश्यकतानुसार संशोधन करती है। इसके उपरान्त विधेयक का प्रस्तावक निश्चित दिन सदन के सम्मुख प्रवर समिति की रिपोर्ट पर विचार करने का प्रस्ताव रखता है। उसके स्वीकार हो जाने पर सदन में विधेयक के संशोधन रूप की एक-एक धारा पर विस्तारपूर्वक विचार होता है। इस समय विचाराधीन अनुच्छेद या उसके खण्ड पर सदस्य अपनी ओर से संशोधन प्रस्तुत करते हैं। पहले संशोधन पर वाद-विवाद होता है और उस पर मत लिया जाता है, तब संशोधित अनुच्छेद पर मत लिया जाता है। इस प्रकार विधेयक के एक एक अनुच्छेद को स्वीकार तथा अस्वीकार किया जाता है। वस्तुतः विधेयक के पास होने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण चरण यही होता है।
तृतीय वाचन- अन्त में, विधेयक को किसी निश्चित दिन सदन के विचारार्थ लाया जाता है, यह वाचन मुख्यतया औपचारिक ही होता है, क्योंकि इस चरण में विधेयक में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं किया जा सकता। तृतीय वाचन में साधारणतया विधेयक के अस्पष्ट शब्दों को अधिक स्पष्ट करने और उसमें भाषा सम्बन्धी सुधार किये जाते हैं। विधेयक पर मत लिये जाते हैं और यदि बहुमत विधेयक के पक्ष में हो, तो सदन का अध्यक्ष विधेयक को पास हुआ प्रमाणित करके उसे दूसरे सदन द्वारा विधेयक अस्वीकृत किये जाने या उसमें ऐसे संशोधन किये जाने पर, जो प्रथम सदन को स्वीकार्य न हों, अनुच्छेद 108 के अनुसार, राष्ट्रपति दोनों सदनों की एक संयुक्त बैठक बुला सकता है और संयुक्त बैठक में बहुमत में बहुमत के आधार पर विधेयक के भाग्य का निर्णय होता है। यदि दूसरा सदन 6 माह तक विधेयक पर कोई कार्यवाही न करे, तो भी राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलवा सकता है।
सामान्यतया प्रथम वाचन, द्वितीय वाचन और तृतीय वाचन आदि स्थितियों में विधेयक पर विधिवत् रूप से मतदान होता है लेकिन कभी-कभी विधेयक ऐसे विषय से सम्बन्धित होता हैं, जिस पर सदन की सामान्य सहमति हो। ऐसी स्थिति में सदस्य मौखिक रूप में और एक साथ घोषणा कर सकते हैं कि ‘हम विधेयक को स्वीकार करते हैं।’ इस प्रकार की घोषणा को ‘ध्वनि मत’ (Voice Vote) कहते हैं और मौखिक घोषणा के आधार पर विधेयक को स्वीकृत समझा जाता है। लेकिन यदि सदन का एक भी सदस्य इस बात की मांग करे कि विधेयक पर मतदान होना चाहिए, तो विधेयक पर मतदान होता है। संसद के समान राज्य विधानमण्डलों में भी ‘ध्वनि मत’ की स्थिति को अपनाया जा सकता है।
विधेयक के दोनों सदनों द्वारा पारित होने पर वह राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति उसे स्वीकृत या अस्वीकृत कर सकता है या विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाने पर यदि दोनों सदन विधेयक को संशोधन के साथ या बिना संशोधन के स्वीकार कर लेते हैं तो राष्ट्रपति उस पर स्वीकृति प्रदान करने के लिए बाध्य होता है।
संविधान संशोधन विधेयक पारित किये जाने की भी वही प्रक्रिया है जो प्रक्रिया साधारण विधेयकों के पास किये जाने की है। अन्तर केवल यह है कि संविधान संशोधन विधेयकों के सम्बन्ध में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की कोई व्यवस्था नहीं है और इस प्रकार के विधेयक के लिए संसद के दोनों सदनों से पृथक्-पृथक् स्वीकृत होना आवश्यक है।
वित्त विधेयक के अनुसार – साधारणतया आय-व्यय से सम्बन्धित सभी विधेयक वित्त विधेयक कहे जा सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 110 कोई विधेयक वित्त विधेयक हैं। अथवा नहीं, इसका अन्तिम निर्णय लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा किया जायेगा।
वित्त विधेयक पारित करने की भी प्रक्रिया लगभग वही है जो साधारण विधेयक पारित करने की है, फिर भी इस सम्बन्ध में कुछ विशेष बातें हैं। प्रथम, वित्त विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं और ये विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित हो सकते। हैं, और राज्यसभा में नहीं। द्वितीय, लोकसभा द्वारा पारित होने पर वित्त विधेयक राज्यसभा में उपस्थित किये जाते हैं और राज्य सभा को 14 दिन के भीतर वित्त विधेयक पर अपना मत प्रकट करने का अधिकार है। यदि लोकसभा राज्यसभा की सिफारिश स्वीकार न करे, तो विधेयक उस रूप में दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है, जिस रूप में वह लोकसभा द्वारा पारित हुआ था। यदि राज्यसभा 14 दिन में विधेयक पर अपना मत व्यक्त नहीं करती है तो 14 दिन की समाप्ति पर विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से कानून बन जाता है।
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