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हर्बर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सिद्धांत | Herbert Simon Decision Making Theory in Hindi

हर्बर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सिद्धांत | Herbert Simon Decision Making Theory in Hindi
हर्बर्ट साइमन के निर्णय निर्माण सिद्धांत | Herbert Simon Decision Making Theory in Hindi

हर्बर्ट ए साइमन के निर्णय-निर्माण सिद्धान्त की विस्तृत व्याख्य कीजिए।

संगठन को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक होता है कि उसमें निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया सही रूप में क्रियान्वित हो। यदि व्यवस्थित रूप में निर्णय-निर्माण प्रतिमान को निर्धारित व सम्पन्न किया जाए तो संगठन या प्रबन्ध की सफलता को बहुत हद तक सुनिश्चित किया जा सकता है। लोक प्रशासन में निर्णय निर्माण प्रतिमान का महत्व कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। लोक प्रशासन के अर्थ को सार्थक करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि निर्णय-निर्माण के संदर्भ में वैज्ञानिकता को आधार बनाया जाए।

प्रशासन में निर्णय निर्माण सिद्धान्त के प्रतिपादक हर्बर्ट ए. साइमन हैं जिन्होंने सीमित बौद्धिकता के सिद्धान्त तथा व्यापक बौद्धिकता के सिद्धान्त के अनुपालन पर बल दिया है। हर्बर्ट ए. साइमन का मानना है कि सामान्यतः व्यक्ति एक प्रशासक के रूप में शीघ्र निर्णय लेता है तथा यह प्रवृत्ति मानव में स्वाभाविक होती है। निर्णय-निर्माण में शीघ्रता का परिचय देने से या मानवीय स्वभाव में निहित दोषों के कारण निर्णय समय अनुकूल एवं यथास्वरूप नहीं होता है, जिसका परिणाम होता है- संगठन या प्रशासन की विफलता। हर्बर्ट ए. साइमन ने अपनी सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना ‘एडमिनिस्ट्रेटिव बिहेवियर’ में प्रशासनिक संगठन के अन्तर्गत निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया का विस्तृत विवेचन किया है। अपने इस सिद्धान्त में उन्होंने संगठन से सम्बद्ध तकनीकी पहलुओं पर विचार किया है तथा तार्किक चयन से सिद्धान्त को प्रतिपादित किया है। यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि हर्बर्ट ए. साइमन के अनुसार लोक प्रशासन के अन्तर्गत होने वाले निर्णय, जिसे प्रशासनिक निर्णय कहा जाता है के अन्तर्गत तथ्यों एवं मूल्यों का समन्वय है तथा इस बात पर जोर दिया गया है कि मूल्यों का तथ्यों में परिवर्तन नहीं हो सकता है।

हर्बर्ट ए. साइमन, जिन्हें निर्णय-निर्माण प्रतिमान के एक प्रसिद्ध प्रतिपादक व एक विश्लेषक के रूप जाना जाता है, के सिद्धान्तों में तार्किकता के साथ संवेदनात्मक आयाम भी समाहित है। दूसरे शब्दों में, हर्बर्ट ए. साइमन के मतानुसार निर्णय-निर्माण प्रशासनिक व्यवहार के विभिन्न स्वरूपों का ही एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन है; यह निर्णय चक्र में निर्णयकर्ता की अभिचेतना एवं दूरदृष्टि है तथा इसमें मूल्यों एवं तथ्यों दोनों का सम्मिश्रण होता है। साररूप में, निर्णय-निर्माण प्रतिमान में निर्णयकर्ता की भूमिका ही महत्वपूर्ण होती है।

हर्बर्ट ए. साइमन अपने महत्वपूर्ण सिद्धान्त निर्णय-निर्माण प्रतिमान के अन्तर्गत निर्णय लेने हेतु तीन महत्वपूर्ण चरणों को आवश्यक मानते हैं-

1. अन्वेषणात्मक कार्य (Intelligence activity) –

हर्बर्ट ए. साइमन के द्वारा निर्णय-निर्माण प्रतिमान में अन्वेषणात्मक कार्य को प्रथम एवं महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। साइमन का मानना है कि निर्णय लेने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य यह होता है कि समस्या के स्वरूप का अध्ययन किया जाए, अर्थात् निर्णय प्रक्रिया का प्रथम चरण समस्या को पहचानने, समझने और स्वीकार करने जैसे अन्वेषणात्मक कार्य से सम्बन्धित है। अन्वेषणात्मक कार्य के अन्तर्गत तीन उपचरण महत्वपूर्ण हैं- प्रथम उपचरण का सम्बन्ध समस्या को समझने से होता है, द्वितीय उपचरण का सम्बन्ध समस्या के इतिहास को जानने से होता है तथा तृतीय उपचरण का सम्बन्ध सदस्यों से उत्पन्न स्थिति के सर्वेक्षण से होता है।

2. स्वरूप निर्धारण (Designing activity) –

निर्णय-निर्माण प्रतिमान के अन्तर्गत हर्बर्ट ए. साइमन ने प्रथम चरण में अन्वेषणात्मक कार्य को महत्वपूर्ण माना है, तो द्वितीय चरण में उनके द्वारा स्वरूप निर्धारण को आवश्यक माना गया है। द्वितीय चरण को तथ्यों की खोज भी कहा जा सकता है। द्वितीय चरण में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि समस्या का तथ्य क्या है, तथ्य की कसौटी कैसी होनी चाहिए, तथ्यों की जानकारी के स्रोत क्या हैं तथा वे कहाँ तक विश्वसनीय हैं। स्पष्टतः द्वितीय चरण के भी दो उपचरण हैं- प्रथम उपचरण में तथ्यों को संगतिपूर्ण ढंग से समस्या के वातावरण से चुना जाता है, तो द्वितीय उपचरण में तथ्यों का मूल्यांकन किया जाता है।

3. विकल्पों का चयन (Choice activity) –

हर्बर्ट ए. साइमन ने निर्णय-निर्माण के अन्तिम एवं तृतीय चरण के रूप में, विकल्पों के चयन को रखा है। निर्णय-निर्माण हेतु जब विकल्पों को निर्धारित कर दिया जाता है, तब निर्णमकर्ता उस एक विकल्प को चुनता है, जो सबसे अधिक लाभ देने वाला तथा सबसे कम हानि देने वाला होता है। साइमन का मानना है कि निर्णय-निर्माण के तृतीय चरण का आधार प्रथम एवं द्वितीय चरण है। वस्तुतः विकल्पों का चयन ही निर्णय को प्रभावकारी बनाता है।

हर्बर्ट ए. साइमन ने निर्णय-निर्माण सिद्धान्त हेतु एक व्यापक व संतुलित सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है; उन्होंने सीमित बौद्धिकता के सिद्धान्त का खण्डन किया है तथा निर्णय-निर्माण प्रक्रिया को तीन चरणों में सम्पन्न करने का वैज्ञानिक सुझाव दिया है। साइमन का निर्णय-निर्माण सिद्धान्त महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी कई आलोचनाएं की जाती हैं-

सर्वप्रथम- साइमन ने अपने निर्णय-निर्माण प्रतिमान में तथ्यों एवं मूल्यों का समन्वय किया है यानी प्रशासनिक प्रक्रियाओं में संवेदना को भी आधार बनाया है, जिसकी आलोचना की जा सकती है।

द्वितीय- साइमन ने अपने निर्णय-निर्माण सिद्धान्त में तथ्य एवं मूल्य के सम्बन्ध में जिस दृष्टिकोण का परिचय दिया है, वह भी कम आलोचनीय नहीं है। आलोचकों ने तो कहा कि साइमन ने द्विविभाजन सिद्धान्त को नवीन परिस्थिति में पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।

तृतीय- हर्बर्ट ए. साइमन के निर्णय-निर्माण प्रतिमान की आलोचना इस आधार पर की गई है कि यह बहुत ही सामान्य है तथा इनकी बौद्धिकता की अवधारणा भी आलोचनीय है।

अन्त में- साइमन ने अपने निर्णय-निर्माण सिद्धान्त में जिन चरणों का विश्लेषण किया है वह निर्णय लेने से सम्बन्धित है न कि परिणाम से। स्पष्टतः साइमन का निर्णय निर्माण सिद्धान्त निर्णय के परिणाम के संदर्भ में अपर्याप्त प्रतीत होता है।

हर्बर्ट ए. साइमन के निर्णय-निर्माण सिद्धान्त की चाहे जितनी भी आलोचना की जाए, लेकिन संगठन में इसके महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

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Anjali Yadav

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