गोखले के कार्य और व्यक्तित्व का मूल्यांकन कीजिए।
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गोखले का मूल्यांकन
हालैंड ने गोपाल कृष्ण गोखले की मूल्यांकन बहुत ही अच्छे ढंग से किया है। उन्होंने लिखा है कि “गोपाल कृष्ण गोखले का नैतिक स्तर इतना प्रभावपूर्ण था, उनकी व्यक्तित्व महत्ता इतनी स्पष्ट थी, कि भारत के प्रबुद्ध तथा सद्भावनापूर्ण शासन यथासम्भव, उनकी सलाह को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करते थे। यही कारण है कि उनकी सलाह का मार्ले मिण्टो सुधारों के ऊपर उतना गहरा प्रभाव पड़ा, उनके संघर्ष के फलस्वरूप करारबद्ध श्रम की दासता का युग समाप्त हुआ। वर्ष प्रतिवर्ष महान बजट भाषणों में उनकी सिफारिशों का सरकार की वित्तीय नीति के निर्धारण पर निर्णयात्मक प्रभाव पड़ता था, सरकारी सेवाओं के भारतीयकरण की उनकी अथक हिमायत का निश्चित फल निकला, उसकी मृत्यु के बाद मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार में उनको बहुत कुछ अंश प्राप्त हो गया, जिसके लिए उन्होंने प्रयास किया था।”
गोखले ने राजनीति का आध्यात्मीकरण किया। उन्होंने सभी क्षेत्रों की नैतिकता का स्पर्श किया। उनके आदर्शों की महात्मा गाँधी के जीवन पर गहरी छाप पड़ी। इसीलिए महात्मा गांधी ने उनके बारे में कहा, “इस महान देशभक्त के जीवन का एक महान पाठ जो हम सीख सकते हैं, वह हैं. एक भक्त की भावना के साथ कार्य करने की उनकी पद्धति हम सभी साहस, सत्यवादिता, सन्तोष, विनम्रता, न्यायप्रियता, निष्कपटता तथा धैर्य आदि सद्गुणों को अपने अन्दर विकसित कर सकते हैं और उन्हें अपने राष्ट्र को अर्पित कर सकते हैं, वह है एक भक्त की भावना । गोखले के सार्वजनिक जीवन के आध्यात्मीकरण की बात कहने का यही आशय था।”
गोखले और तिलक की तुलना करते हुए डाक्टर पट्टाभि सीतारमैया ने लिखा है कि “गोखले नरम थे और तिलक गरम गोखले वर्तमान में सुधार चाहते थे, जबकि तिलक उसके पुनर्निर्माण के पक्ष में थे। गोखले को नौकरशाही के साथ काम करना पड़ता था, तो तिलक की नौकरशाही के साथ भिड़न्त रहती थी। गोखले संभवतः सहयोग चाहते थे, तिलक का झुकाव अडिग नीति की तरफ था। गोखले का उद्देश्य था स्वशासन जिनके लिए जनसाधारण को अंग्रेजी की कसौटी पर खरा उतरकर अपने योग्य सिद्ध करना था, तिलक का उद्देश्य था स्वराज्य जो प्रत्येक भारतवासी का जन्मसिद्ध अधिकार था और जिसे वे विदेशियों की बाधा की परवाह किये बिना लेकर ही रहना चाहते थे। गोखले अपने समय के साथ थे और तिलक अपने समय के बहुत आगे।”
अपनी मृत्यु के समय उन्होंने भारत सेवक संघ के सदस्यों को कहा, एक जीवन कथा के लिखने अथवा एक प्रतिभा के स्थापित करने में अपने समय का अपव्यय न करना, बल्कि अपनी सम्पूर्ण आत्मा को भारत की सेवा में लगा देना केवल तभी उनकी गणना उसके सच्चे तथा निष्ठावान सेवकों में होगी। महात्मा गाँधी ने उनके बारे में अपनी सच्ची श्रद्धा अर्पित करते हुए कहा था कि, “सर फिरोजशाह मेहता मुझे हिमालय की तरह दिखाई पड़े जिसे मापा नहीं जा सकता और लोकमान्य तिलक सागर की लहर जिसमें उतरा नहीं जा सकता, परन्तु गोखले गंगा के समान थे जो सबको अपने पास बुलाती है।” राजनीतिक क्षेत्र में उनके जीवनकाल में और उसके अनन्तर गोखले का मेरे हृदय में जो स्थान रहा है, वह अपूर्व है। तिलक ने गोखले की मृत्यु पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें महाराव रत्न और देशसेवकों का राजा बताया। लार्ड कर्जन ने कहा था, “ईश्वर ने उन्हें असाधारण योग्यताओं से विभूषित किया था जिनका प्रयोग उन्होंने देश के हितार्थ किया।”
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