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भारत में जिला प्रशासन का उद्भव एवं विकास
भारत में राज्य प्रशासन के मूल इकाई के रूप में जिला प्रशासन का उद्भव मौर्य काल में हुआ। मौर्य शासकों ने अपने विशाल साम्राज्य को प्रान्तों एवं जिलों विभाजित किया था। मौर्य काल में जिला को ‘अहर’ (E) ‘विश्यास’ और ‘प्रदेश’ कहा जाता था। अशोक के शिलालेखों में जनपद प्रदेश या जिलों के कल्याण के लिए ‘राजुका’, ‘प्रदेशिका’ अधिकारियों का उल्लेख मिलता है। गुप्त-काल में उनका विस्तृत साम्राज्य प्रान्तों में तथा प्रान्त ‘विश्मा’ या ‘मण्डल’ में विभक्त होते थें। विश्मा का प्रभारी अधिकारी ‘आयुक्त’ या ‘विश्वपति’ कहलाता था। मुगल सम्राटों ने इस पद्धति का अनुसरण कर इसे निरन्तरता प्रदान की। प्रशासन तथा राजस्व संग्रह के लिए साम्राज्य को प्रान्त या ‘सूबों’ में और सूबों को ‘सरकार’ या जिलों में विभाजित किया। प्रत्येक ‘सरकार’ (जिला) अनेक ‘परगना’ और प्रत्येक परगना अनेक गाँवों को मिलाकर बनता था। सरकार आधुनिक ‘जिला’ का प्रतिरूप था। इसका महत्वपूर्ण कार्य ‘सम्पूर्ण प्रशासन’ था। ब्रिटिश शासकों ने क्षेत्र प्रशासन की इस सदियों पुरानी पद्धति को अपरिवर्तित रखा और प्रशासन की इस आधारभूत इकाई को गौरव प्रदान कर “जिला’ कहना आरम्भ किया। इस प्रकार ब्रिटिश शासन में वस्तुतः जिला प्रशासनिक और राजनीतिक उप-राजधानी बन गये। स्वतन्त्र भारत में भी इस परम्परा का अनुसरण कर जिले यथावत् प्रशासनिक ढाँचे और राज्य शासन की धुरी बने रहे। इस स्तर पर राज्य शासन की नीतियाँ कार्यन्वित की जाते हैं तथा स्थानीय व्यक्तियों की समस्याओं का अध्ययन कर उन्हें राज्य शासन को सम्प्रेषित किया जाता है। जिला स्तर पर शासन का बड़ा एवं जटिल तन्त्र कार्यरत रहता है और इस महत्वपूर्ण केन्द्र द्वारा शासन की नीतियों योजनाओं और कार्यक्रमों की सफलता का मूल्यांकन किया जा सकता है। यह सत्य ही कहा गया है कि जिला प्रशासन की इस इकाई के सम्पर्क में प्रायः सभी नागरिक आते हैं। देश का प्रत्येक गाँव तथा शहर जिले का भाग है था शायद ही कोई ऐसा नागरिक हो जो अपने जिले का नाम न जानता हो। जिला निर्वाचन की भी महत्त्वपूर्ण इकाई है और प्रत्येक राजनीतिक दल इस स्तर पर अपना शक्तिशाली संगठन स्थापित करने का प्रयास करता है। इसी अर्थ में जिला राजनीति तथा प्रशासनिक जीवन का केन्द्र बना हुआ है।
जिला प्रशासन के कार्य ( Functions of District Administration )
राज्य में सचिवालय के बाहर से विभागों की बाह्य एवं क्षेत्रीय सेवाएँ जिले में स्थित होती है। कुछ प्रकरणों में केन्द्र शासन की क्षेत्रीय सेवाएँ भी इस स्तर पर स्थित है। इन विभागों की गतिविधियाँ एवं केन्द्र शासन की सेवा तन्त्र की संरचना करती है। खेडा के अनुसार, “जिले में शासन के समस्त क्रियाकलाप जिला प्रशासन, भौगोलिक आधार पर सुनिश्चित जिला क्षेत्र के अन्तर्गत पूर्ण तथा जटिल संगठन, लोक-कार्यों सम्बन्धी मामलों का स्थिर नहीं अपितु गतिशील प्रबन्ध करता है- जिला प्रशासन में शासन की समस्त इकाइयाँ सम्मिलित है, वैयक्तिक अधिकारी एवं कर्मचारी, लोक सेवाएँ– लोक-कार्यों के प्रबन्ध में संलग्न समस्त संस्थाएँ विविध प्रकार की पंचायत सदृश निगमात्मक संस्थाएँ- प्रशासन से सम्बन्धित सभी परामर्शदात्री संस्थाएँ आदि सम्मिलित है।”
जिला प्रशासन के विविध कार्यो की निम्नलिखित समूहों में विभक्त किया जा सकता है। (i) नियामक कार्य (Regulatory Functions) (ii) विकास से सम्बन्धित कार्य (Functions related to development) (iii) स्थानिय निकायों से सम्बन्धित कार्य (Functions related to local unit) (iv) निर्वाचन सम्बन्धित कार्य (Function related to Election) (v) आपात (Emergency work) (vi) अवशिष्ट (Residuary) जिला प्रशासन के नियामक कार्य अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण होते हैं। नियामक कार्यो में कानून एवं व्यवस्था बनाये रखना, अपराध नियन्त्रण, न्याय प्रशासन, भूमि प्रशासन, भू-राजस्व तथा अन्य करों का निर्धारण एवं संग्रह, अन्य देय, भू-राजस्व बकाया, विक्रय कर, वन कर, चुंगी कर, आयकर, आदि एकत्र करना सम्मिलित है। साथ में खाद्यान्न और नागरिक आपूर्ति, नियमन और वितरण, शासकीय नीतियों एवं कार्यकर्मों को लागू करना, सर्वेक्षण, कार्यक्रम मॉनीटरिंग प्रचार तथा मूल्यांकन करना।
विकास कार्य के अन्तर्गत कृषि उत्पादन, सहकारिता, पशुधन एवं मत्स्य, लोकहितकारी कार्य, जैसे- जन-स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज-कल्याण, पिछड़े वर्गो, असहाय लोगों के कल्याण के लिए प्रयास आदि कार्य करते है।
स्थानीय संस्थाओं (शहरी एवं ग्रामीण) प्रशासन को सुचारू रूप से संचालित करने में सहयोग प्रदान करना।
लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकायों के चुनाव करवाना जिला प्रशासन का महत्त्वपूर्ण कार्य है।
प्राकृतिक तथ अन्य आपदाओं के समय राहत कार्य संचालित करना।
अवशिष्ट श्रेणी में कार्यपालिका कार्य आते हैं। जिलाधीश शासन के मुख्य प्रतिनिधि के रूप में निम्न कार्यो को करता है- शस्त्र लाइसेन्स प्रदान करना, नवीनीकरण एवं निरस्तीकरण विशेष अधिनियम लागू करने, लघु बचत, प्रचार और जनसम्पर्क, शिष्टचार कार्य, विभिन्न प्रकार की सामाजिक शैक्षिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियाँ आयोजित करना, सामुदायिक सहभागिता सुनिश्चित करना, जनता की शिकायते सुनना और निराकरण करना, सरकारी सम्पत्ति तथा जान-माल की रक्षा करना, पर्यावरण सुरक्षा, शरणार्थी मामले, उपभोक्ता संरक्षण, मानवाधिकार रक्षा, भ्रष्टाचार नियन्त्रण, जनगणना सम्बन्धी कार्य करना, स्वयंसेवी संगठनों, केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों, निजी संगठनों, अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों तथा अन्य सम्बद्ध संस्थानों में समन्वय स्थापित करना। इसके अवशिष्ट शक्तियों का विस्तार असीमित हुआ है।
जिला प्रशासन का संगठन (Organisation of District administration)
ब्रिटिश शासन काल के दौरान औपनिवेशिक भारत में जिला स्तर पर शासन के समस्त कार्यों का प्रत्यक्ष प्रभारी एकल सत्ता प्रतिनिधि जिलाधीश / उप-आयुक्त होता था। समय के साथ स्थानीय स्वशासन संस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ और तकनीकी विभागों की शुरूआत हुई। अतः आदेश की एकता के स्थान पर आदेश की बहुलता का विकास हुआ। 1919 के अधिनियम और तत्पश्चात् 1935 के अधिनियम के लागू होने के उपरान्त यह परिवर्तन और अधिक स्पष्ट हुआ । इसलिए केन्द्रीय प्रशासनिक सुधार आयोग से सुक्षाव दिया कि नियामक कार्य जिलाधीश द्वारा सम्पन्न किये जाये और विकाय कार्य पंचायती राज्य संस्थाओं को सौंप दिये जाये। जिला स्तर पर कार्यात्मक विभागों की स्थापना के कारण तकनीकी विभागों की क्षेत्रीय इकाइयाँ स्थापित करने की आवश्यकता हुई। फलस्वरूप जिले के क्षेत्र – प्रशासन में कार्यत्मक प्रशासन सम्मिलित किया गया और आज्ञा की बहुलता बढ़ी। यह दोहरी स्थिति तक प्रचलित है। जिला इस प्रकार एक उप-राजधानी बन गया जहाँ अनेक तकनीकी विभागों के जिला मुख्यालय स्थापित है। जिला प्रशासन में उप-जिला, तहसील, ग्राम पंचायते तथा नगरपालिका नामक इकाइयों को सम्मिलित किया जाता है।
राज्य सरकार के विभिन्न विभाग जिला स्तर पर अपने-अपने विभागों की इकाइयाँ स्थापित करते हैं और विभागीय कार्यो का संचालन करते हैं। जिला स्तर पर राज्य सरकार और केन्द्रीय सरकार के जितने भी विभाग स्थापित होते हैं वे सभी संयुक्त रूप से जिला प्रशासन के अन्तर्गत आते हैं। जिले का क्षेत्र व्यापक होता है और जिला प्रशासन को इसके अन्तर्गत सभी दायित्वों का निर्वाह करना होता है इसलिये इसे अनेक प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया जाता है। सर्वप्रथम जिला स्तर की संस्थाये होती है। इसके प्रमुख अधिकारी कलेक्टर या जिलाधीश, पुलिस अधीक्षक, जिला स्वास्थ्य अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी आदि होते हैं। जिला प्रशासन और राज्य प्रशासन के बीच समन्वय रखने के लिए सम्भागीय अधिकारी या कमिश्नर होते है जो जिला प्रशासन को निर्देश देने और समन्वय स्थापित करने में भूमिका निभाते हैं।
जिला स्तर के निचले प्रशासन में एस0डी0ओ0, डिप्टी कलेक्टर, उप-जिलाधिकरी, अतिरिक्त जिला अधिकारी, पुलिस उपाधीक्षक या पुलिस वृत्ताधिकारी, तहसीलदार आदि होते हैं। तहसीलदार से निचले स्तर के कर्मचारियों में नायब-तहसीलदार, कानूनगो, पटवारी तथा लेखपाल आदि होते हैं।
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