राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के विभिन्न कार्यों की विवेचना कीजिए।
शिक्षा जिस प्रकार व्यक्ति तथा समाज के जीवन में क्रियाशील तथा लाभकारी है; राष्ट्रीय जीवन के विकास तथा दिशा निर्देश में भी उसका अत्यन्त महत्व है। मैकआइवर ने ठीक ही कहा है-राष्ट्र का गुण उसकी सामाजिक इकाइयों का गुण है। सामाजिक इकाइयों का जीवन ही राष्ट्र का जीवन है। यदि ईंधन ही खराब हो तो ज्योति कैसे तेज हो सकती है। यदि सामाजिक इकाइयाँ ही निर्बल हैं तो राष्ट्र कैसे दैदीप्यमान हो सकता है। इस दृष्टि से राष्ट्र के जीवन को विकसित करने के लिये शिक्षा निम्न कार्य करती है-
1. नेतृत्व का प्रशिक्षण- प्रजातन्त्र का निर्माण योग्य नेताओं द्वारा होता है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में दूरदर्शी, निष्ठावान तथा क्रियाशील नेतृत्व शिक्षा के द्वारा ही विकसित होता हैं। डॉ० आर० एस० मणि के अनुसार-“विशेष रूप से इस समय जबकि देश में प्रजातन्त्र जीवन का ढंग हो गया है, अच्छे नेतृत्व की आवश्यकता है। सच्चे नेतृत्व के लिये सेवा की भावना के साथ-साथ, अच्छे प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। “
2. राष्ट्रीय विकास- राष्ट्र का विकास शिक्षा के द्वारा होता है। शिक्षित व्यक्ति राष्ट्र की धरोहर होता है। वह राष्ट्र का सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक विकास करता है।
3. राष्ट्रीय एकता- राष्ट्र विकास, राष्ट्रीय एकता के अभाव में नहीं हो सकता। राष्ट्रीय एकता का बीजारोपण शिक्षा के द्वारा होता है। पंडित नेहरू के शब्दों में- “राष्ट्रीय एकता के विषय में जीवन की प्रत्येक वस्तु आ जाती है। शिक्षा ही राष्ट्रीय एकता का आधार है। “
4. भावात्मक एकता – राष्ट्र में अनेक धर्म, सम्प्रदाय तथा वर्गों के व्यक्ति होते हैं। उनमें पारस्परिक सद्भाव शिक्षा के द्वारा ही विकसित होता है। शिक्षा के द्वारा व्यक्ति में भावात्मक एकता विकसित होती है।
5. राष्ट्रीय अनुशासन- कोई भी राष्ट्र उस समय तक सुदृढ़ नहीं हो सकता, जब तक कि उसमें राष्ट्रीय अनुशासन न हो। राष्ट्रीय अनुशासन से अभिप्राय है-समस्त नागरिकों द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना। शिक्षा ऐसे सभी कर्तव्यों का पालन करती है
6. कर्त्तव्य पालन- प्रत्येक नागरिक अपने सामाजिक कर्त्तव्यों का पालन करे, शिक्षा का यही प्रयत्न रहता है। इसी प्रयत्न द्वारा वह राष्ट्र के जीवन को गतिशील बनाता है।
7. नैतिकता का शिक्षण-राष्ट्र के विकास में नैतिकता एक बीज मन्त्र है। अनैतिक व्यक्ति राष्ट्र को पतन की ओर ले जाते हैं। नैतिक व्यक्ति राष्ट्र का उत्थान करते हैं। शिक्षा के द्वारा व्यक्ति में नैतिक गुणों को विकसित किया जा सकता है। हरबर्ट के अनुसार शिक्षा का एक मात्र कार्य है नैतिकता। नैतिक आधार पर खड़ा राष्ट्र कभी भी निर्बल नहीं होता।
8. कुशल श्रमिकों का निर्माण- राष्ट्र के निर्माण में कुशल श्रमिकों का योगदान महत्वपूर्ण है। बड़ी-बड़ी योजनाओं द्वारा जितने भी उत्पादक कार्य किये जा रहे हैं; उनके मूल में कुशल श्रमिकों की कुशलता है। शिक्षा कुशल श्रमिकों का निर्माण करती है।
9. राष्ट्रीय हित- शिक्षा अपनी शैक्षिक प्रक्रिया के मध्य राष्ट्रीय हितों को प्रमुखता देती है। राष्ट्र हित में सभी का हित है। डा० राधाकृष्णन के अनुसार- “भारत में प्रजातन्त्र का भविष्य, अनुशासन में रहने की इच्छा तथा व्यक्ति बलिदान पर आधारित है। यदि भारत को स्वतन्त्र, संयुक्त तथा प्रजातान्त्रिक रहना है तो शिक्षा को चाहिये कि वह लोगों को प्रादेशिकता तथा तानाशाही के बजाय, एकता तथा प्रजातन्त्र के लिये विकसित करे।’
10. सामाजिक कुशलता- राष्ट्र के जीवन को विकसित करने के लिये शिक्षा सामाजिक कौशल को विकसित करती है। वह ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करती है, जो राष्ट्र के लिये भार न होकर, उपयोगी हों अतः स्पष्ट है कि शिक्षा, राष्ट्रीय जीवन का निर्माण करने, निर्देश देने और प्रत्येक नागरिक के जीवन को सुखी करने के लिये महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है।
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