विद्यालय एक समुदाय के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह किस प्रकार करता है विवेचना करो।
विद्यालय पारस्परिक अन्तः सम्बन्धों (व्यक्तियों) का संगठन है। वे सभी व्यक्ति जो विद्यालय में मिलते हैं, अन्तः सम्बन्धों की रचना के लिए जिम्मेदार है। जॉन डीवी (John Dewey) ने इसीलिए कहा है – “मनुष्य समाज में उन वस्तुओं के आधार पर रहते हैं, जो सभी के लिए सामान्य रूप से लाभदायक हैं। एक समुदाय या समाज बनाने के लिए वे उद्देश्य, विश्वास, महत्वाकांक्षा, ज्ञान तथा सामान्य अवबोध रखते हैं।” गैलन एवं विलियन के अनुसार- “स्कूल को नवयुवकों की शिक्षा के लिए स्थापित किया जाता है। इससे वे समाज में अपनी निरन्तरता को बनाए रखते हैं तथा समूह में अपने गुणों को विकसित करते हैं। स्कूल एक ऐसा साधन है, जिसके द्वारा समाज अपने बालकों तथा नवयुवकों में समाज का सदस्य होने के नाते रहने-सहने के उन ढंगों को विकसित करता है, जिन्हें समूह अपने लिए सबसे अच्छा समझता है। “
वोगार्ड्स ने समुदाय की परिभाषा देते हुए कहा है- “समुदाय एक ऐसा समूह है, जिसमें हम की भावना होती है एवं क्षेत्र विशेष होता है, ये दोनों तत्व समुदाय में पाये जाते हैं। “
“Community is a social group with some degree of feeling and living in a given arca.”
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विद्यालय एक समुदाय है
प्रत्येक विद्यालय एक समुदाय होता है। इस समुदाय की एक विशेषता यह है कि यह समुदाय द्वारा संचालित समुदाय के लिए समुदाय है। विद्यालय में समुदाय के प्रतिनिधि एकत्र होकर विद्याध्ययन करते हैं और समुदाय में जीवन व्यतीत करने की तैयारी करते हैं। विद्यालय समुदाय के रूप में ये कार्य करते हैं-
1. समायोजन का केन्द्र – पार्क एवं वर्गीज (Parke and Burgees) के अनुसार- “विद्यालय का अहाता समायोजन की प्रक्रिया का केन्द्र है। यह सामाजिक सम्बन्धों तथा अभिवृत्तियों का संगठन है, यह संघर्ष को कम करता है, प्रतिस्पर्धा पर नियन्त्रण करता है, एवं जीवन की विभिन्न क्रियाओं को करने वाले भिन्न रुचिपूर्ण व्यक्तियों को समाज व्यवस्था के आधार पर सुरक्षा प्रदान करता है। “
2 सांस्कृतिक विकास का केन्द्र- पार्क एवं वर्गीज ने विद्यालय को संस्कृति का रक्षण केन्द्र माना है। सांस्कृतिक सात्मीकरण में विद्यालय महत्वपूर्ण योग देता है। विद्यालय में विभिन्न समूहों के सामान्य अनुभवों से एक विचित्र किन्तु व्यवस्थित वातावरण की सृष्टि होती है। इससे सामुदायिक अभिवृत्ति, प्रविधि तथा ज्ञान का संवहन होता है।
3. सामाजिक गतिशीलता – विद्यालय समुदाय में सामाजिक गतिशीलता पाई जाती है। यह गतिशीलता लम्बात्मक होती है। विद्यालय में निम्न वर्ग या जाति का व्यक्ति शिक्षा के द्वारा अपने वैयक्तिक परिवेश को बदलता है और वह समाज में अपनी पूर्व स्थिति को बदल देता है। ऐसे बच्चे अपने भविष्य के बारे में योजना बना लेते हैं। प्रायः देखा गया है कि निर्धन परिवार के छात्र अपने परिवार के उन व्यवसायों को भावी जीवन में नहीं अपनाते। पित्रिम सोरोकिन के अनुसार– “विद्यालय के अनिवार्य कार्यों में अनिवार्य बात यह नहीं कि वे पुस्तकों में क्या पढ़ते हैं ?”
समुदाय, विद्यालय के लिए अनेक सुविधाओं तथा प्रभावों का आयोजन करता है। समुदाय का प्रभाव इस प्रकार पड़ता है-
- आदर्श तथा परम्पराओं का विद्यालय पर प्रभाव
- सामुदायिक आवश्यकताओं की पूर्ति।
- समुदाय के गुण तथा दोषों का प्रभाव।
- समुदाय की आर्थिक स्थिति का प्रभाव।
- सामुदायिक राजनीति का प्रभाव।।
4. समुदाय के कार्य – विद्यालय एक समुदाय के रूप में कार्य करता है। ये कार्य इस प्रकार हैं-
- सामाजिक परम्परा का संरक्षण विद्यालय तथा समुदाय दोनों ही करते हैं।
- शिक्षा समुदाय का दिशा निर्देश करती है। डीवी के अनुसार- “शिक्षा में ही सामाजिक एवं अल्पमत साधनों द्वारा समाज के कल्याण, सुधार एवं उन्नति की रुचि का विकसित होना पाया जाता है।”
- शिक्षा अच्छी नागरिकता का निर्माण करती है।
- शिक्षा तथा विद्यालय सामाजिक नियन्त्रण का कार्य करते हैं।
- शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का साधन है।
विद्यालय का भी समुदाय पर प्रभाव पड़ता है, ये प्रभाव इस प्रकार हैं-
- समुदाय की आवश्यकताओं पर प्रभाव।
- समुदाय की समस्याओं पर प्रभाव।
- समुदाय की संस्कृति पर प्रभाव।
- सामुदायिक सभ्यता तथा संस्कृति पर प्रभाव।
- व्यवसाय तथा उद्योग पर प्रभाव।
- नागरिकों तथा सामुदायिक जीवन पर प्रभाव।
- समुदाय में सामाजिक परिवर्तन ।
- पारस्परिक सद्भाव बनाये रखना।
भारतीय समुदाय और विद्यालय
भारतीय समुदाय अनेक कारणों से विद्यालयों के सम्पर्क में नहीं आ पाता। इसीलिए माध्यमिक शिक्षा आयोग ने कहा है— “शिक्षा में सुधार करने के लिए हमें पहला कदम स्कूल और समुदाय के सम्बन्धों को फिर से जोड़ने के लिए उठाना चाहिए और इन दोनों के उस घनिष्ठ सम्बन्ध को पुनः स्थापित करना चाहिए, जो औपचारिक शिक्षा के कारण टूट गया है।
भारत में विद्यालय तथा समुदाय के मध्य अन्तर के अनेक कारण हैं शिक्षा का सामुदायिक उद्देश्यों को पूरा न करना, शिक्षकों का चेतन न होना, बेरोजगारी आदि इसके अनेक कारण हैं।
भारतीय समुदाय भी अशिक्षित, निर्धन हैं, परम्परावादी हैं और शिक्षा के प्रति उनमें रुचि नहीं है। भारतीय समुदायों तथा विद्यालयों को एक-दूसरे के निकट लाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएँ-
- उद्देश्य प्राप्ति ।
- समस्या समाधान ।
- संस्कृति का व्यावहारिक ज्ञान ।
- फिल्म शो, प्रदर्शनियाँ ।
- स्कूल समिति की सदस्यता ।
- शिक्षक अभिभावक सम्पर्क ।
- सामाजिक शिक्षा की सुविधायें।
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