भारत में संघ लोक आयोग के संगठन, उसके कार्य, अधिकार एवं प्रशिक्षण का वर्णन कीजिए।
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संघ लोक सेवा आयोग का संगठन
भारत में लोक सेवा आयोग एवं संघ लोक सेवा आयोग का विकास क्रमशः 1919 तथा 1935 के भारत शासन अधिनियमों से हुआ। उन प्रावधानों को संशोधित रूप में स्वतंत्र भारत के संविधान में सम्मिलित किया गया।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 313(1) के अनुसार, “लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति यदि वह संघीय या संयुक्त आयोग है तो राष्ट्रपति द्वारा और यदि वह राज्य आयोग है तो राज्य के राज्यपाल द्वारा की जायेगी।” संविधान द्वारा सदस्यों की एक निश्चित संख्या निर्धारित नहीं की गयी है। आयोग के सदस्यों की संख्या और सेवा-शर्तें विभिन्न प्रशासकीय प्रावधानों द्वारा निर्धारित की जाती है। वर्तमान में संघ लोक-सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और आठ सदस्य हैं। इसका प्रधान कार्यालय धौलपुर हाऊस, नई दिल्ली में स्थित है।
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के अवकाश पर जाने या किसी कारण से कार्य न करने की स्थिति में उसके रिक्त स्थान पर आयोग के अन्य सदस्यों में से एक सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करता है। राज्य आयोग के मामले में ऐसे कार्यवाहक अध्यक्ष की नियुक्ति राज्यपाल करता है।
लोक-सेवा आयोग के सदस्यों का कार्यालय, पदभार ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्ष तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक जो भी पहले हो, होता है। राज्य आयोग या संयुक्त आयोग में 60 वर्ष की आयु का प्रावधान है। संघीय लोक-सेवा आयोग का कोई भी सदस्य अपने कार्यकाल से पूर्व ही राष्ट्रपति को सम्बोधित कर अपना त्याग-पत्र प्रस्तुत करते हुये पद- त्याग कर सकता है। कदाचार के आधार पर भी आयोग के सदस्य को हटाने या निलम्बित किये जाने का प्रावधान संविधान में है। इसके लिये राष्ट्रपति आदेश जारी करता है। कदाचार को प्रमाणित करने की प्रक्रिया संविधान द्वारा निश्चित की गयी है। राष्ट्रपति द्वारा यह विषय सर्वोच्च न्यायालय के पास विचारार्थ प्रस्तुत किया जायेगा। अनुच्छेद 145 द्वारा यह विषय निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार जाँच करने के बाद न्यायालय राष्ट्रपति के सम्मुख अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा। इस जाँच के दौरान राष्ट्रपति उक्त सदस्य या सदस्यों को आयोग से निलम्बित कर सकता है।
संविधान से भिन्न स्त्रोत जो लोक-सेवा आयोग का कार्य और अधिकार के बारे में निर्देशित करते हैं मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं-
(i) संसद द्वारा निर्मित कानून जैसे टेरीटोरियल अधिनियम 1959, दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन अधिनियम, 1959 आदि। इनके द्वारा व्यवस्था है कि इन संस्थाओं के उच्च पदों पर भर्ती संघीय लोक सेवा आयोग द्वारा की जायेगी।
(ii) नियम, विनियम और कार्यपालिका के आदेश ।
(iii) अभिसमय ऐसी भर्तियाँ जो संविधान की व्यवस्था के अनुसार आयोग के दायित्व में नहीं हैं, किन्तु परम्परानुसार करता आ रहा है।
संघ लोक सेवा आयोग के कार्यों का विवरण निम्नलिखित है-
(i) भर्ती की रीतियों, सिविल या असैनिक सेवाओं और पदों पर सीधी या पदोन्नति द्वारा नियुक्ति आदि में अपनाये जाने वाले सिद्धान्तों से जुड़े सभी मामलों में सरकार को सुझाव एवं परामर्श देना ।
(ii) नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानान्तरण आदि के लिये प्रत्याशियों की उपयुक्तता के सम्बन्ध में सुझाव एवं परामर्श देना ।
(iii) सेवाओं के नियुक्ति करने के लिये परीक्षाओं का संचालन करना ।
(iv) लोक-सेवाओं को प्रभावित करने वाले अनुशासनात्मक मामलों में परामर्श देना।
(v) किसी लोक-सेवक द्वारा अपने कर्त्तव्य पालन में किये गये कार्यों के सम्बन्ध में उसके विरूद्ध की गयी कार्यवाही का व्यय जो वह लोक-सेवक उस दावे के सम्बन्ध में अपनी रक्षा करता है और किसी लोक-सेवक द्वारा निवृत्ति वेतन या पेंशन के लिये किये जाने वाली उस दावे के सम्बन्ध में परामर्श देना जो वह अपने उत्तरदायित्वों का पालन करते समय घायल हो जाने की स्थिति में करता है।
(vi) कोई अन्य अतिरिक्त मामला या कार्य जो राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा विशेष रूप से आयोग को सौंपा जाये।
संविधान में यह भी प्रावधान है कि वह संसद या राज्य विधान मण्डल द्वारा केवल सरकारी सेवाओं के ही सम्बन्ध में नहीं, बल्कि उन सेवाओं के सम्बन्ध में भी जो कि स्थानीय प्राधिकारियों, निगमों या सार्वजनिक संस्थाओं के अधीन हो, आयोग के कार्यों का विस्तार किया जा सकेगा।
(vii) आयोग के कार्यक्षेत्र से कुछ पदों को अलग करके इसका अधिकार क्षेत्र कम किया गया है। इन पदों के सम्बन्ध में आयोग कोई परामर्श नहीं देता है।
(viii) आयोग को अनुशासनात्मक मामलों में भी सलाह देने का अधिकार प्राप्त है।
(ix) आयोग निम्नलिखित विषयों में सरकार को परामर्श दे सकता है-
1. अनुशासन के वे सभी मामले जो भारत सरकार के लोक-सेवकों को प्रभावित करते हैं, जिनमें ऐसे मामलों से सम्बन्धित स्मरण-पत्र या याचिकायें भी सम्मिलित हैं।
2. किसी भी अधिकारी द्वारा ऐसा दावा कि पदाधिकारी के रूप में किये गये कार्य के ‘सम्बन्ध में उसके विरूद्ध जो कानूनी कार्यवाहियाँ की गयी हैं उनसे बचने में हुए व्यय को सरकार अदा करें और
3. सरकारी कार्य करते समय लगी चोटों के सम्बन्ध में, पेंशन के पुरस्कार सम्बन्धी कोई दावे या ऐसे पुरस्कार की मात्रां से सम्बन्धित कोई भी प्रश्न ।
(x) संघ लोक सेवा आयोग द्वारा समय-समय पर विशेष कार्यों के लिये समितियाँ गठित की जाती है। लोक-सेवा आयोग परामदर्शदात्री संस्थायें होती हैं, किन्तु इनकी संस्तुतियाँ प्रायः स्वीकार कर ली जाती है।
इस प्रकार से स्पष्ट है कि संविधान में आयोग के कार्यों एवं उत्तरदायित्व को व्यापक महत्व दिया गया है। यह भी प्रावधान किया गया है कि आयोग कार्यपालिका के दबाव से मुक्त होकर कार्य करें।
प्रशिक्षण- संघ लोक सेवा आयोग में विभिन्न संवर्ग की सेवाएँ आती हैं। इनका प्रशिक्षण भारत के भिन्न-भिन्न में होता है। भारतीय पुलिस सेवा के चयनित प्रशिक्षुओं का प्रशिक्षण हैदराबाद में होता है। वहाँ उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षुओं का प्रशिक्षण मसूरी में होता है। यह संस्थान भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के स्मृति में बनाया गया है।
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