राज्य स्तर पर योजना व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
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राज्य स्तर पर योजना व्यवस्था
भारत में राज्य स्तर पर योजना आयोग नहीं है। बल्कि राज्य योजना विभाग होता है जो मुख्यमंत्री के सीधे अधीन होता है। यह विभाग केन्द्रीय योजना आयोग तथा राज्य सरकार के ऐसे विभिन्न विभागों से सम्पर्क रखता है जो विकास के लिए कार्यक्रमों का तालमेल करते हैं तथा समस्त राज्य के लिए विकास योजनाएं बनाते हैं। इनके- द्वारा निर्मित योजना पहले राज्य के मंत्रिपरिषद के समक्ष प्रस्तुत की जाती है और इसके बाद राज्य विकास बोर्ड तथा योजना सलाहकार समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तथा अन्त में विधानमण्डल के समक्ष पेश किया जाता है।
योजना आयोग के सुझाव पर राज्यों ने योजना बोर्ड का गठन किया है। इसका गठन योजना आयोग के नमूने पर किया गया है ताकि ये राज्य सरकार की मुख्य नीतियों के निर्माण एवं कार्यान्वयन के सम्बन्ध में सहायता दे सके। मुख्यमंत्री योजना बोर्ड का अध्यक्ष, कुछ मंत्री और दो या तीन विशेषज्ञ इसके सदस्य होते हैं।
म.प्र. राज्य योजना मण्डल- 1972 में राज्य योजना मण्डल का गठन किया गया। मुख्यमंत्री योजना मण्डल का अध्यक्ष होता है। एक उपाध्यक्ष, दो मंत्री और कुछ विशेषज्ञ इसके सदस्य हैं। राज्य सरकार के योजना विभाग द्वारा इसके सचिवालय के रूप में कार्य किया जाता है।
राज्य योजना मण्डल की योजना रचना अब केन्द्र व राज्य दो स्तरों तक ही सीमित नहीं रहेगी। अब स्थानीय परिस्थिति, आवश्यकताओं एवं संसाधनों की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए योजनाएँ विकास खण्ड स्तर पर बनायी जायेगी तथा इन्हीं का एकीकृत स्वरूप ‘जिला योजना’ कहलायेगा। यह कार्य जिला विकास योजना समितियाँ, नवनिर्वाचित जिला पंचायत, परिषद तथा जिला प्रशासन के सहयोग से करेंगे।
उ०प्र० राज्य विकास परिषद- इसका गठन 2004-05 में किया गया। उ०प्र० सरकार द्वारा इस परिषद के निम्न कार्य सौंपे गये।
1. उ0प्र0 के मानवीय, पूँजीगत एवं भौतिक संसाधनों का अनुमान लगाना और उनके सर्वाधिक प्रभावी एवं संतुलित उपयोग के लिए योजना निर्मित करना ।
2. योजना के प्रत्येक चरणों का निर्धारण और प्राथमिकता के आधार पर संसाधनों के आवंटन करने का प्रावधान करना ।
3. आर्थिक विकास में बाधक तत्वों को उजागर करना एवं उन परिस्थितियों का निर्धारण करना, जो वर्तमान सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों में योजना के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक है।
4. योजना विशेष के प्रत्येक चरण के क्रियान्वयन के फलस्वरूप प्राप्त सफलता की समय-समय पर समीक्षा करना और यथेष्ट सुधारात्मक सुझाव देना।
5. राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर किसी समस्या के सम्बन्ध में राय माँगने पर अपनी सलाह देना।
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