शिक्षा के साधनों से आपका क्या अभिप्राय है ? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
सर गॉड फ्रेथॉमसन के शब्दों में-“व्यापक अर्थ में सम्पूर्ण वातावरण व्यक्ति की शिक्षा का साधन है, परन्तु उस वातावरण में कुछ तत्व अधिक महत्वपूर्ण हैं, जो शिक्षा से विशेष रूप से सम्बन्धित हैं, जैसे–परिवार, स्कूल, धर्म, प्रेस, व्यवसाय, सार्वजनिक जीवन मनोरंजन तथा प्रिय कार्य।” स्पष्ट है शिक्षा केवल विद्यालयों में ही नहीं मिलती, अपितु वह सम्पूर्ण परिवेश में मिलती है। शिक्षा के परिवेश में घर तथा बाहर, वे सभी साधन आते हैं, जो अनेक प्रकार के अनुभव प्रदान करते हैं।
शिक्षा के साधनों (Agencies) से अभिप्राय उन साधनों, संस्थाओं तथा व्यक्तियों से है, जो शिक्षा को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। समाज में आरम्भ से ही शिक्षा के कार्यों को सम्पन्न करने के लिए अनेक माध्यम विकसित हुए हैं।
टी० रेमण्ट (T. Raymont) के शब्दों में- “अध्यापक ही केवल शिक्षक या गुरु नहीं होता, विद्यालय एवं कॉलेज ही केवल शिक्षण संस्थायें नहीं हैं, वरन् अन्य संस्था से भी, चाहे वे हित या अहितवादी हैं, निःसन्देह अपने प्रभाव में शैक्षिक हैं।”
गॉड फ्रे थॉमसन (God Frey Thomson) ने भी कहा है-“व्यापक अर्थ में, सम्पूर्ण वातावरण ही मनुष्य को शिक्षा का साधन है, परन्तु इस वातावरण में कुछ तत्व अधिक महत्वपूर्ण हैं, जिनका शिक्षा से सीधा सम्बन्ध है। उदाहरणार्थ-परिवार, चर्च, प्रेस, व्यवसाय, सार्वजनिक जीवन, मनोरंजन तथा प्रिय व्यापार।”
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शिक्षा के साधन
शिक्षा के साधन अनेक हैं और विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से इनका वर्गीकरण भी किया है। यह वर्गीकरण इस प्रकार है-
पहला वर्गीकरण- इस वर्गीकरण में शिक्षा के साधनों को दो भागों में बाँटा गया है-(i) साविधिक या औपचारिक (Formal) । (ii) आविधिक या अनौपचारिक (Informal)। स्कूल औपचारिक साधन है, परिवार अनौपचारिक ।
दूसरा वर्गीकरण- इस वर्गीकरण के अन्तर्गत शिक्षा के सक्रिय (Active) तथा निष्क्रिय (Passive) साधन बताये गये. हैं। सक्रिय के अन्तर्गत घर, विद्यालय, धार्मिक संस्थायें, समाज, राज्य, क्लब, सामुदायिक केन्द्र आदि आते हैं। निष्क्रिय साधनों में रेडियो, टेलीविजन, प्रेस, चलचित्र आदि आते हैं।
तीसरा वर्गीकरण- इस वर्गीकरण के अन्तर्गत ब्राउन ने चार प्रकार के शिक्षा के साधन बताये है-
(i) साविधिक (Formal) साधन- विद्यालय, धार्मिक संस्थायें, पुस्तकालय, संग्रहालय आदि।
(ii) आविधिक (Informal) साधन- परिवार, समाज, राज्य आदि।
(iii) व्यावसायिक साधन– प्रेस, टेलीविजन, चल-चित्र, रंगमंच, पत्र-पत्रिकायें आदि व्यावसायिक साधन हैं
(iv) अव्यावसायिक साधन– खेलकूद संस्थायें, नाट्य संघ, समाज कल्याण संस्थायें, स्काउटिंग-गाइडिंग आदि इसी प्रकार की शिक्षण संस्थायें हैं।
उपरोक्त सभी वर्गीकरणों को कुल दो वर्गों में रखा जा सकता है- (i) साविधिक, (ii) आविधिक। हम इन दोनों के विषय में चर्चा कर रहे हैं।
शिक्षा के साविधिक या औपचारिक साधन
ब्राउन ने शिक्षा के साविधिक तथा औपचारिक साधनों को व्यक्ति की नियोजित तथा विधिवत् शिक्षा आवश्यक माना है। ब्राउन की धारणा है कि विद्यालयों में ही वास्तविक शिक्षा दी जाती है। जॉन डीवी के अनुसार-“औपचारिक शिक्षा के अभाव में जटिल समाज के साधनों तथा सिद्धान्तों को हस्तान्तरित करना सम्भव नहीं है। यह एक ऐसे अनुभव की प्राप्ति का द्वार खोलती है, जिसको बालक दूसरों के साथ रहकर अनौपचारिक शिक्षा के द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते।”
साविधिक या औपचारिक साधनों में विद्यालय, धार्मिक संस्थायें संग्रहालय, वाचनालय, पत्र-पत्रिकायें आदि ही निहित हैं, जिनके द्वारा व्यक्ति स्पष्ट रूप से ज्ञान तथा कौशल के सम्पर्क में आता है। औपचारिक साधनों के बिना यद्यपि शिक्षा-व्यवस्था चल नहीं पाती, फिर भी डीवी ने इसके दोषों पर प्रकाश डाला है— “औपचारिक शिक्षा बड़ी सरलता से तुच्छ, निर्जीव, अस्पष्ट तथा किताबी बन जाती है। कम विकसित समाजों में जो संचित ज्ञान होता है, उन्नत संस्कृति में जो बातें सीखी जाती हैं, वे प्रतीकों के रूप में होती हैं और उनको कार्यों में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इस बात का भय सदैव रहता है कि औपचारिक शिक्षा जीवन के अनुभव से कोई सम्बन्ध न रखकर केवल स्कूलों की विषय-सामग्री न वन जाए। “
शिक्षा के औपचारिक साधनों में विद्यालय, चर्च, पुस्तकालय, संग्रहालय, पुस्तकें आदि आते हैं।
शिक्षा के अनौपचारिक या आविधिक साधन
शिक्षा के अनौपचारिक साधनों में परिवार, समुदाय आदि आते हैं। ये शिक्षा के अनौपचारिक साधन हैं। इन साधनों के द्वारा व्यक्ति, देश, काल तथा परिस्थिति से अनुभव प्राप्त करता है। परिवेश में रहकर अनेक प्रभाव तथा अनुभव प्राप्त करके व्यक्ति अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है। राज्य, रेडियो, चलचित्र, दूरदर्शन आदि अनौपचारिक साधन हैं। जॉन डीवी के अनुसार- “शिक्षा के अनौपचारिक साधन आकस्मिक, स्वाभाविक एवं महत्वपूर्ण होते हैं। इन साधनों के द्वारा बालकों की स्वाधीनता पर किसी बाह्य शक्ति का नियन्त्रण नहीं होता। अनौपचारिक साधन बालकों में रुचि का विकास करते हैं और वातावरण में परिवर्तन करते हैं।”
डीवी के अनुसार- “बालक दूसरों के साथ रहकर अनौपचारिक ढंग से शिक्षा प्राप्त करता है और साथ रहने की प्रक्रिया ही शिक्षा देने का कार्य करती है। यह प्रक्रिया अनुभव को विस्तृत करती है और कल्पना को प्रेरणा देती है। कथनी तथा करनी में शुद्धता तथा सजीवता लाती है। “
शिक्षा के सक्रिय एवं निष्क्रिय साधन
शिक्षा के साधनों को सक्रिय (Active) तथा निष्क्रिय (Passive) भागों में भी बाँटा जाता है। सक्रिय साधन शिक्षा की प्रक्रिया पर नियन्त्रण करते हैं। परिवार, राज्य, समाज, धर्म, विद्यालय, क्लब, पुस्तकालय, सामुदायिक केन्द्र, अध्ययन कक्ष आदि शिक्षा के सक्रिय साधन हैं।
शिक्षा के निष्क्रिय साधन व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। इनमें केवल एक पक्ष ही सक्रिय रहता है। रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्र, सिनेमा आदि शिक्षा के निष्क्रिय साधन हैं। आजकल पत्राचार द्वारा शिक्षा भी शिक्षा के निष्क्रिय साधन के रूप में विकसित हुई है।
शिक्षा के इन साधनों के कुछ दोष भी हैं, जो इस प्रकार हैं-
- अनौपचारिक साधनों से सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान देना सम्भव नहीं है।
- अनौपचारिक साधनों की कोई निश्चित योजना नहीं होती।
- समय तथा शक्ति अधिक व्यय होते हैं।
- केवल सामान्य ज्ञान तथा अनुभव ही प्रदान किए जा सकते हैं।
- विशेषीकरण की गुंजायश नहीं है।
- अवगुण विकसित होने की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं।
शिक्षा के अभिकरणों के वर्गीकरण करने में ब्राउन ने भ्रम उत्पन्न किया है। वह शिक्षा के अभिकरणों तथा साधनों को एक मानता है। साधनों का उपयोग अभिकरणों द्वारा किया जाता है। इनमें पहला वर्गीकरण— (i) साविधिक, (ii) आविधिक ही उचित है और तर्कसंगत है।
शिक्षा के साधनों का बालक के शैक्षिक ही नहीं, सर्वांगीण विकास में विशेष महत्व है। शिक्षा के इन साधनों का महत्व इस प्रकार है-
1. बालकों की शिक्षा, अनौपचारिक वातावरण में आरम्भ होती है। घर, समुदाय और समाज का प्रभाव बालक के विकास पर पड़ता है।
2. औपचारिक साधन, बालकों को व्यवस्थित रूप से विकसित करने में सहायक होते हैं। विद्यालय में बालकों की रुचि, अभिवृत्ति तथा अभिरुचि का विकास होता है।
3. शिक्षा के औपचारिक तथा अनौपचारिक साधनों में परस्पर निर्भरता पाई जाती है। घर तथा विद्यालय के आदर्शों में समानता का होना आवश्यक है।
4. मनुष्य समाज में रहकर ही अपनी शिक्षा ग्रहण करता है। समाज में उसका विकास होता है।
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