विद्यालय के प्रबन्ध में प्रधानाध्यापक की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
विद्यालय प्रबन्ध में प्रधानाध्यापक की भूमिका (Role of a Headmaster in School Administration)
प्रधानाध्यापक जो प्रबन्धक मशीनरी की धुरी भी कहा जा सकता है स्कूल को जीवन प्रदान करता है। वास्तव में, यह शिक्षक तथा प्रबन्धन दोनों ही रूप में मुखिया होता है। यह एक विद्वान प्रबन्धक, नेता तथा दार्शनिक होता है। यह विद्यालय के लिए योजनायें बनाता है, कार्य का विभाजन करता है, स्टाफ को निर्देशन प्रदान करता है। वह स्कूल का सर्वोच्च अधिकारी तथा प्रशासक होता है। इसलिए ठीक ही कहा गया है, “जैसा प्रधानाध्यापक वैसा ही स्कूल” (As is the Headmaster, so is the School) । इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध विद्वान शिक्षाविदों के विचार निम्न प्रकार हैं-
1. डब्ल्यू० एम० रायबर्न (W. M. Ryburn) ने लिखा है, “हैडमास्टर का स्कूल में वही मुख्य स्थान होता है, जिस प्रकार एक समुद्री जहाज में इसके कैप्टन का होता है। हैडमास्टर मेल-जोल का ऐसा-साधन है, जो संतुलन कायम रखता है, सारी संस्था के पूर्ण विकास का विश्वास दिलाता है। वह स्कूल की आवाज स्थापित करने और प्राचीन विचारधारा को बदलने का मुख्य स्रोत है, जिसका समयानुसार सुधार होता रहता है।” (“The Headmaster holds the key position in a school just as the captain of a ship holds the very position on a ship. The Headmaster is the co-ordinating agency which keeps the balance, ensures the harmonious development of the whole institution. He sets the tone of the school and is the chief force in moulding the traditions which develop as time goes on.”)
2. पी० सी० रैन (P. C. Wren) ने लिखा है, “जो कुछ घड़ी का मुख्य स्प्रिंग, मशीन का मुख्य पहिया या भाप के जहाज का इन्जन होता है, उसी प्रकार ही स्कूल के लिए हैडमास्टर होता है।” (“What the main spring is to the watch, the fly-wheel to the machine, or the engine to the steamship, the Headmaster is the school.”)
3. मोहीउद्दीन (Mohiyud-din) का कथन है कि, “कोई भी स्कूल तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक इसके अध्यापक व्यक्तियों के तौर पर काम करते हैं, एक समूह की भाँति नहीं, जैसे प्रत्येक समूह को नेता ही की आवश्यकता है, उसी तरह ही स्कूल का नेता हो, जो इसको उत्साहित करे और निर्देशन दे। ऐसा नेता हैडमास्टर होता है।” (“No school can succeed if the teachers work only as individuals, and not as a group. But just as every group needs a leader so also a school must have a leader who would stimulate and direct its work. Such a leader is the Headmaster.”)
4. जनरल प्रांट (General Grant) का कथन इस प्रकार है, “घटिया रजिमेंट नहीं, बल्कि घटिया कर्नल हुए हैं। इसी प्रकार स्कूल का भी हाल है।” (“There are no poor Regiments but only poor Colonels. So is it with the school also.”)
5. सैकण्डरी शिक्षा कमीशन (The Secondary Education Commission) ने इस सम्बन्ध में कहा है, “स्कूल की प्रसिद्ध और समाज में दर्जा अधिक उस प्रभाव पर निर्भर है, जो अपने काम करने वाले साथियों, विद्यार्थियों, उनके माता-पिता और साधारण जनता पर छोड़ता है।” (“The reputation of the school and the position it holds in the society depends in large measure on the influence that he exercises over his colleagues, the pupils and their parents and the general public.”)
6. डॉ० जसवन्त सिंह (Dr. Jaswant Singh) के मतानुसार, “हैडमास्टर या स्कूल का प्रिंसिपल शिक्षा प्रणाली की धुरी होते हैं। उसके प्रभाववश शिक्षक नेता होने की योग्यता और निपुणता पर ही स्कूल की सफलता निर्भर है।” (“The Headmaster or a Principal of a school is the hub of the educational process. On his ability and skill as a sound and effective educational leader depends the success of a school system.”) उपरोक्त कथन एवं विचारधाराओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि विद्यालय के प्रधानाध्यापक की विशेष भूमिका है। वह स्कूल का सर्वोच्च अधिकारी होता है।
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