निर्देशम के उद्देश्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
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निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Guidance)
साधारणत: निर्देशन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- व्यक्ति को उसकी योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों व शक्तियों को विकसित करने में सहयोग देना।
- व्यक्ति को संतुलित, शारीरिक, मानसिक, भावात्मक एवं सामाजिक प्रगति में इस प्रकार सहायता देना, जिससे वह अपने वातावरण के साथ सन्तोषजनक ढंग से समायोजित हो सके।
- व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुरूप शैक्षिक एवं व्यावसायिक अवसरों का ज्ञान कराना ।
- व्यक्ति को इस योग्य बनाना कि वह विभिन्न परिस्थितियों में अपनी समस्याओं को इस प्रकार सुलझा सके कि इससे वह स्वयं का तथा समाज का अधिकाधिक हित कर सके।
बागर मेहदी (Bager Mehdi) के अनुसार, निर्देशन के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
- विद्यार्थियों को शिक्षा के नये उद्देश्यों से परिचित करवाने में सहायता ।
- छात्रों को श्रेष्ठ नियोजन की आवश्यकता से परिचित करवाने में सहायता।
- छात्रों को अध्ययन के लिए उचित अभिप्रेरणा उत्पन्न करना।
- छात्रों को उनकी रुचि के विषयों के चयन में सहायता देकर शिक्षा के समायोजन में सहायता ।.
- छात्रों में, विषय से सम्बन्धित कठिनाइयों को दूर करके और अच्छे अध्ययन कौशलों का विकास करके शिक्षा में उन्नति करने में सहायता करना ।
हम्फरी तथा ट्रैक्सलर (Humphery and Traxler) ने निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्य बताये हैं-
- स्वयं को समझना।
- अपनी प्रतिभाओं, रुचियों एवं अन्य गुणों का पूर्ण लाभ उठाना।
- समाज में योगदान के लिए अपना पूर्ण सहयोग देना।
- अपने पूर्ण परिवेश में विभिन्न स्थितियों में सामंजस्य स्थापित करना।
- व्यक्ति में अपने निर्णय स्वयं लेने की योग्यता का विकास करना।
- व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुरूप शैक्षिक एवं व्यावसायिक अवसरों का ज्ञान करवाना।
- व्यक्ति को इस योग्य बनाना कि वह विभिन्न परिस्थितियों में अपनी समस्याओं का इस प्रकार समाधान करने योग्य हो जाये कि वह स्वयं का तथा समाज का अधिक हित कर सके।
इरिक्सन (Erickson) के अनुसार निर्देशन के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
1. व्यक्ति का सावधानीपूर्वक अध्ययन (Careful Study of Individual) – निर्देशन कार्यक्रम को प्रभावी बनाने हेतु व्यक्ति का पूर्ण अध्ययन आवश्यक है। निर्देशन में परीक्षाओं तथा तकनीकी विधियों की सहायता से ऐसा किया जाता है।
2. परामर्श – परामर्श से आशय उस वैयक्तिक सहायता से है, जो किसी व्यक्ति को उसके समायोजन की समस्या के सन्दर्भ में दी जाती है। निर्देशन में समायोजन की आवश्यकता तब होती है, जब विद्यार्थियों को विशिष्ट एवं वैयक्तिक सहायता की आवश्यकता हो।
3. नियुक्ति और अनुकरण (Placement and Follow up) – निर्देशन कार्यक्रम छात्रों को विभिन्न संस्थाओं एवं व्यवसायों में नियुक्त करने में सहायता देता है। वह बाद में इस बात का भी अध्ययन करता है कि वे अपने काम में कहाँ तक सफल हैं ? यह उन्हें सफलता प्राप्ति में सहायता देता है।
4. स्कूल स्टॉफ की सहायता करना (Assisting the School Staff) – निर्देशन कार्यक्रम द्वारा समूचे स्कूल की सेवा प्रदान की जाती है। यह सभी को महत्वपूर्ण सूचनायें प्रदान करता है। वस्तुतः निर्देशन कार्यक्रम का उद्देश्य स्कूल की सभी क्रियाओं को सशक्त बनाना और विकसित करना है।
5. सूचनात्मक सेवायें (Informational Services) – छात्र अपनी समस्याओं का समाधान तभी कर सकेंगे, जब उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के सम्बन्ध में पर्याप्त सूचनायें उपलब्ध हों। निर्देशन कार्यक्रम द्वारा ये सूचनायें प्रदान की जानी चाहिएँ। ऐसी सूचनाओं के लिए विभिन्न सूचना सेवाओं जैसे वैयक्तिक परिसूची सेवा व व्यावसायिक सूचना सेवा की। व्यवस्था की जानी चाहिए।
6. सामंजस्य (Coordination) – अन्त में, निर्देशन बालक पर स्कूल, घर और समुदाय के प्रभावों में सामंजस्य अर्थात् तालमेल उत्पन्न करने का प्रयास करता है।
विभिन्न स्तरों पर निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Guidance at Different Levels)
प्राथमिक स्तर पर
- छात्रों को स्कूल के रीति-रिवाजों तथा स्कूल की कानून व्यवस्था के अनुसार ढालने में सहायता।
- स्कूल-क्रियाओं के प्रति उचित दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता।
- छात्रों में सहयोग की भावना उत्पन्न करना।
- छात्रों के शारीरिक एवं सांवेगिक स्थिरता के विकास में सहायता।
- स्कूल में समायोजन सम्बन्धी समस्याओं को ज्ञात करना तथा उन्हें नियन्त्रित करना ।
- छात्रों को स्वावलम्बी बनाने में सहायता।
- सभी प्रकार के कार्यकर्ताओं के कार्यों में तालमेल बैठाना जैसे शिक्षक, चिकित्सा सेवा के कर्मचारी, स्कूल समाज के कार्य तथा निर्देशन प्रदान करने वाले व्यक्ति के कार्य इत्यादि ।
- उच्च स्तर के लिए छात्रों को तैयार करना, इस दृष्टि से उच्च स्तर की कक्षाओं के पाठ्यक्रम तथा अन्य कार्यक्रमों सम्बन्धी पुस्तकों व पुस्तिकाओं को छात्रों तथा उनके अभिभावकों में वितरित करना।
माध्यमिक स्तर पर
1. नवीन विद्यालय-जीवन से परिचित करवाने का उद्देश्य (Objective of Introducing with New School Life) – प्राथमिक विद्यालय से अध्ययन समाप्त कर जब बालक नये विद्यालय में प्रवेश लेता है, तो उसे वहाँ नये साथियों के बीच तालमेल बिठाने में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है। अतः निर्देशन सेवा का यह उद्देश्य है कि वह विद्यार्थियों की इस प्रकार की कठिनाइयों को दूर करे ।
2. वातावरण के निर्माण का उद्देश्य (Objective of Creating Environment) – को और को के अनुसार, किशोर तथा यौवनावस्था के अनुरूप शैक्षिक वातावरण का निर्माण अत्यन्त आवश्यक होता है, जिससे छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अभिप्रेरित किया जा सके तथा योग्यतानुसार विषय चुनने में सहायता दी जा सके।
3. विषयों के चयन में सहायता का उद्देश्य (Objective of Helping in Selecting the Subjects) – इस स्तर पर छात्रों के समक्ष उपयुक्त विषयों के चयन की कठिन समस्या होती है। विषयों की अनेकता तथा विशिष्टीकरण के कारण भी विषयों का चयन अत्यधिक कठिन कार्य हो गया है। अतः इस स्तर पर निर्देशन सेवा का उद्देश्य छात्रों की इस प्रकार की कठिनाई को दूर करना है।
4. स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने का उद्देश्य (Objective of Fulfilling the Needs Related to Students’ Health) – निर्देशन सेवा का महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी होता है कि वह बच्चों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित आवश्यकताओं की ओर ध्यान दे तथा समय रहते छात्रों के स्वास्थ्य में उत्पन्न विकारों की सूचना तुरन्त सम्बन्धित व्यक्तियों तक पहुँचाये, जिससे उचित समय पर कार्यवाही की जा सके।
5. सहगामी क्रियाओं का उद्देश्य (Objective of Co-curricular Activities) – विद्यार्थियों के शारीरिक विकास के लिए सहगामी क्रियाओं, जैसे वाद-विवाद, खेल-कूद, सांस्कृतिक क्रियायें व सामाजिक सेवा आदि के कार्यक्रमों का बहुत महत्व है। अतः निर्देशन सेवाओं का यह उद्देश्य भी होता है कि छात्रों को ऐसी क्रियाओं के बारे में उचित निर्देशन दिया जा सके |
6. संवेगात्मक तथा व्यक्तिगत आवश्यकताओं का उद्देश्य (Objective of Emotional and Individual Needs) – इस स्तर पर बालक किशोरावस्था में प्रवेश करता है, जिसके परिणामस्वरूप बालक में संवेगात्मक तथा व्यक्तिगत आवश्यकताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। अतः निर्देशन सेवाओं का यह उद्देश्य होना चाहिए कि छात्रों की ऐसी आवश्यकताओं से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान ढूँढ़ा जाये।
7. सहयोग का उद्देश्य (Objective of Co-operation) – बालक की समस्याओं के समाधान के लिए यह अत्यधिक आवश्यक है कि सभी प्रकार के स्तरों के निर्देशन में परस्पर सहयोग हो । निर्देशन सेवाओं का यह उद्देश्य होना चाहिए कि सेवा में कार्यरत सभी प्रकार के कार्यकर्ताओं में उचित सहयोग की भावना उत्पन्न हो सके, क्योंकि यही सहयोग आगामी उच्चतर स्तर पर दिए जाने वाले निर्देशन के लिए ठोस आधार का कार्य करता है।
8. वातावरण के निर्माण का उद्देश्य (Objective of Creating Environment) – क्रो तथा क़ो के अनुसार किशोर और यौवनावस्था के अनुरूप शैक्षिक वातावरण का निर्माण अत्यधिक आवश्यक होता है, जिससे छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अभिप्रेरित किया जा सके और योग्यतानुसार विषय चुनने में सहायता प्रदान की जा सके।
कॉलेज तथा विश्वविद्यालय स्तर पर
1. छात्रों को विषय चयन में सहायता करना, जिससे उस विषय में विशिष्टीकरण प्राप्त कर सकें, क्योंकि ऐसे विशिष्टीकरण से भावी व्यावसायिक योजनाओं में छात्रों को सहायता मिलती है।
2. छात्रों को व्यावसायिक सूचना प्रदान करना, जिससे कि वे अपने भविष्य के बारे में कोई निर्णय ले सकें।
3. छात्रों को उनकी आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने में सहायता प्रदान करना।
4. कॉलेज और विश्वविद्यालय में प्रवेश आदि से सम्बन्धित आवश्यक सूचनायें उपलब्ध कराना ।
5. छात्रों के परीक्षण की व्यवस्था करना।
6. छात्रों को कॉलेज और विश्वविद्यालयों में सहगामी क्रियाओं के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करना।
7. छात्रों को उपलब्ध छात्रावास सुविधाओं से परिचित कराना और उनके रहने सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करना।
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