व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता तथा महत्व का उल्लेख कीजिए।
व्यवसाय निर्देशन की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Vocational Guidance)
वर्तमान शिक्षा पद्धति में शैक्षिक निर्देशन के साथ-साथ व्यावसायिक निर्देशन की व्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिये केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा भरसक प्रयत्न किये जा रहे हैं। प्रायः प्रत्येक सीनियर सैकण्ड्री स्कूल में ‘निर्देशन-कार्नर’ (Guidance Corner) की व्यवस्था की जाती है तथा इसके सुचारु संचालन के लिये किसी न किसी शिक्षक को सेवा-कालिक (In-service) प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है। प्रश्न उठता है कि ‘व्यावसायिक निर्देशन’ को ऐसी क्या आवश्यकता पड़ गई कि इसके गठन हेतु निरन्तर प्रयत्न किये जा रहे हैं। इसकी आवश्यकता तथा महत्ता के मुख्य कारण अग्रलिखित हैं-
1. शिक्षा का व्यावसायीकरण (Vocationalisation of Education)- स्वतन्त्रता के पश्चात् शिक्षा-विशेषकर माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। शिक्षा के व्यावसायीकरण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कोठारी आयोग (Kothari Commission) ने कहा है, “हमारी यह कल्पना है कि भविष्य में स्कूली शिक्षा की प्रवृत्ति सामान्य एवं व्यावसायिक शिक्षा के उपयोगी मिश्रण की ओर होगी। सामान्य शिक्षा में पूर्व-व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के कुछ तत्व सम्मिलित होंगे और इसी प्रकार व्यावसायिक शिक्षा में सामान्य शिक्षा के कुछ तत्व सम्मिलित होंगे।”
(“We visualize the future trend of school education to be towards a fruitful mingling of general education and vocational education. General education containing some elements of prevocation and technical education and vocational education in its turns having an element of general education.”)
कोठारी आयोग की यह धारणा शिक्षा के व्यावसायीकरण को तर्कसंगत बनाती है और विद्यार्थियों को सन्तुलित विकास की ओर अग्रसर करती है। शिक्षा के व्यावसायीकरण की यह प्रवृत्ति ‘व्यावसायिक निर्देशन’ के बिना स्वस्थ दिशा की ओर नहीं बढ़ सकती। देश में कौन-से नये व्यवसाय विकसित हो रहे हैं, उनमें प्रवेश करने तथा उन्नति करने के कितने अवसर हैं, उनमें प्रवेश प्राप्त करने के लिये क्या शैक्षणिक योग्यता होनी चाहिए और किस प्रतियोगिता में उत्तीर्ण होकर किस व्यवसाय में प्रवेश प्राप्त किया जा सकता है— आदि जानकारी के लिए ‘व्यावसायिक निर्देशन की व्यवस्था करना अत्यधिक आवश्यक है।
2. विविध व्यवसायों का विकास (Development of Various Professions) – विज्ञान तथा टैक्नॉलोजी के विकास के कारण कई प्रकार के नये-नये व्यवसायों का विकास हो रहा है। देश औद्योगीकरण की ओर अग्रसर है। कृषि का भी आधुनिकीकरण हो रहा है। पहले थोड़े से व्यवसाय हुआ करते थे, इसलिये अभिभावक अपने बालकों को व्यवसाय चुनने में कुछ सहायता प्रदान कर सकते थे, परन्तु आज अभिभावकों के लिये अपने बालकों का व्यावसायिक मार्ग-दर्शन करना अत्यधिक कठिन है। व्यावसायिक निर्देशन इस कठिनाई को सरल बनाता है तथा विद्यार्थियों को व्यवसायों की जटिलताओं से अपनी रुचियों तथा योग्यताओं के अनुरूप व्यवसाय चुनने में सहायता प्रदान करता है।
3. वैयक्तिक विभिन्नतायें (Individual Differences) – यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि कोई भी दो व्यक्ति जैसे नहीं होते। फिर सभी विद्यार्थियों को एक डण्डे से हांकना कहाँ का न्याय है ? प्रायः देखा गया है कि सामान्य विषयों – अंग्रेजी, हिन्दी, सामाजिक अध्ययन आदि में पिछड़े विद्यार्थी को मन्द बुद्धि समझ लिया जाता है, परन्तु ऐसा – समझना गलत है। हो सकता है कि यह विद्यार्थी किसी तकनीकी कार्य में रुचि रखता हो। यदि उसकी इस रुचि का विकास किया जाये तो निश्चित रूप से वह किसी तकनीकी-व्यवसाय में महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है। उसकी रुचि की खोज करके उसे वांछित दिशा की ओर अग्रसर करना ‘व्यावसायिक निर्देशन’ का कार्य है। इसलिए ‘व्यावसायिक निर्देशन’ वैयक्तिक विभिन्नता के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त पर आधारित है। इसलिए विद्यालयों में इसकी व्यवस्था करना अत्यधिक आवश्यक है।
4. बेरोजगारी की समस्या (Unemployment)- आज देश में बेरोजगारी की विकट समस्या विद्यमान है। जब कोई शिक्षित व्यक्ति बेरोजगार होता है तो समस्या और अधिक विकट हो जाती है और यह एक कड़वा सच है कि शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि शिक्षा अधिकांश विद्यार्थियों को किसी उत्पादक कार्य या व्यवसाय के लिए तैयार नहीं करती। महात्मा गाँधी ने कहा था, “बालकों के लिए सच्ची शिक्षा वह है जो बेरोजगारी के विरुद्ध बीमा हो ।” (“True education ought to be for children a kind of insurance against unemployment.”)
5. मानवीय शक्तियों का सदुपयोग (Utilisation of Human Potentialities) – विविध प्रकार के व्यवसायों के विकास ने मानवीय शक्तियों के सदुपयोग की समस्या खड़ी कर दी है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि समाज और व्यक्ति का हित इसी में है कि मानवीय शक्ति का सदुपयोग हो। यदि अधिकतर व्यक्ति गलत व्यवसाय अपना लेंगे तो उनको शक्तियों का दुरुपयोग होगा, जिसके फलस्वरूप उनका वैयक्तिक विकास तो रुक ही जायेगा, साथ में व्यवसायों के समुचित विकास में भी बाधा पड़ेगी। मानवीय शक्तियों के सदुपयोग के लिए प्रत्येक व्यक्ति की इस व्यवसाय की ओर अ करना जरूरी है, जिसमें उसकी रुचि हो-और इसके लिए ‘व्यावसायिक निर्देशन’ की व्यवस्था अत्यधिक आवश्यक है।
6. नैतिक मूल्यों में विकास (Development in Moral Values) – केवल रोटी कमाना ही मनुष्य के जीवन का उद्देश्य नहीं, बल्कि नैतिक विकास की ओर अग्रसर करना ही उसका महत्वपूर्ण उद्देश्य है। मनुष्य के व्यावसायिक विकास में उसका नैतिक विकास निहित है। समाज में कु-आयोजन तथा व्यवसाय-प्रसूत निराशा तथा हताशा इस बात का प्रमाण है। कि व्यक्ति को उसकी रुचियों के अनुरूप व्यवसाय नहीं मिला। ऐसे व्यक्ति से नैतिक विकास की अपेक्षा करता बेकार है। व्यावसायिक सन्तुष्टि ही व्यक्ति को नैतिक विकास की ओर अग्रसर करती है तथा व्यावसायिक सन्तुष्टि हेतु व्यावसायिक निर्देशन अत्यधिक आवश्यक है।
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