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सोरोकिन के सिद्धान्त की आलोचना | Criticism of Sorokin’s Theory in Hindi

सोरोकिन के सिद्धान्त की आलोचना | Criticism of Sorokin's Theory in Hindi
सोरोकिन के सिद्धान्त की आलोचना | Criticism of Sorokin’s Theory in Hindi

सोरोकिन के सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of Sorokin’s Theory)

सोरोकिन का सिद्धान्त वैज्ञानिक और तुलनात्मक दृष्टिकोण से निर्मित हुआ है। उनकी पुस्तकें सोशल एण्ड कल्चरल डायनेमिक्स, दि क्राइसिस ऑफ अवर ऐज और दि सोशियोलोजी ऑफ रिवोल्यूशन इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने इस सिद्धान्त के प्रतिपादन में असीम बौद्धिक क्षमता का परिचय दिया है, परन्तु फिर भी उनके सिद्धान्त की निम्नलिखित आलोचनाएँ प्रस्तुत की जाती है-

1. सोरोकिन ने सभी ऐतिहासिक घटनाओं को उनके ऐतिहासिक सन्दर्भ से अलग करके उनमें कृत्रिमता पैदा कर दी है। हमारे अनुसार यह आलोचना सही नहीं है, क्योंकि यदि आपको किसी सिद्धान्त को सिद्ध करने के लिए ऐतिहासिक घटनाओं को उनके स्थान से हटाकर सिद्धान्त को सुविधानुसार नए क्रम में रखना पड़े तो उसमें कृत्रिमता कैसी।

2. सोरोकिन पर दूसरा आरोप यह है कि वे उस वस्तु को नापसन्द करते हैं, जोकि आधुनिकता की देन है। उनके लिए हर संवेदनात्मक वस्तु बुरी है। यह आरोप भी निराधार ही जान पड़ता है, क्योंकि जिस वस्तु को हमारे सार्वभौमिक (Universal) सामाजिक मूल्य अच्छा न समझते हों, उसे बुरा कहने में क्या बुराई है। चोरी करना बुरा है तो चोर चाहे अमेरिका का हो चाहे भारत का वह अच्छा नहीं हो सकता। हम जानते हैं कि जीवन का वास्तविक सुख परम सत्य की प्राप्ति में है, जिससे आत्मा का परम विकास होता है और हमें मानसिक शान्ति मिलती है। मात्र भौतिक उपकरण हमारे दृष्टिकोण को सीमित करते हैं, परोपकारी एवं सबके कल्याण की भावना से हटाकर हम में तीव्र व्यक्तिवादी विचारों को भरने हैं और हम एकपक्षीय हो जाते हैं। आज अमेरिका के नवयुवक हर प्रकार के ऐशो-आराम के सामान होते हुए भी बेचैन हैं और मानसिक नैराश्य उनका पीछा नहीं छोड़ता। इस चिन्ता एवं नैराश्य के अतिरिक्त सिजोफ्रेनिया तथा अन्य गुप्तांग रोग जैसे आतशक एवं सूजाक आदि की दर भी संसार के किसी भी देश में इतनी नहीं है, जितनी कि अमेरिका में। वहाँ का पारिवारिक जीवन इतना अस्थिर है कि शाम को कार्यालय से लौटकर घर जाने पर पत्नी मिलेगी यह भी निश्चित नहीं है। अतः यदि अच्छी से अच्छी मोटर, अच्छे से अच्छा बंगला, सुन्दर गद्देदार डनलपपिलो के पलंग और आधुनिक विलासिता की वस्तुएँ सुरा, सुन्दरी तथा धन सभी कुछ होने पर भी किसी को नींद न आए तो कौन इन वस्तुओं को अच्छा बताएगा। अत: सोरोकिन के विचार बड़े सटीक हैं। उसने ऐतिहासिक घटनाओं का गहन अध्ययन करके सामान्य नियमों का उद्घाटन किया है और इस बात की परवाह कतई नहीं की कि कौन इसे पसन्द और नापसन्द करेगा, भले ही हँसस्पीयर जैसे कुछ लोग उसे एक विक्षिप्त अध्यापक ही क्यों न कहें।

3. सोरोकिन पर यह भी आरोप लगाया जाता है कि पश्चिमी संस्कृति के बारे में उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी में बड़ा उतावलापन है। यह आरोप भी सही नहीं है। समाजशास्त्र में भविष्यवाणी करने का साहस हर समाजशास्त्री में नहीं होता, क्योंकि उसके लिए विभिन्न समाजों का दीर्घकालीन तुलनात्मक वैज्ञानिक अध्ययन प्रथम शर्त है और संसार का कोई भी विद्वान् बिना शर्त भविष्यवाणी नहीं कर सकता। अतः सोरोकिन पर यह आरोप भी मिथ्या है।

4. परिवर्तन होता कहाँ से है ? इसके लिए सोरोकिन ने स्वाभाविक या अन्तःस्थ परिवर्तन की बात कही है। उसके अनुसार परिवर्तन किसी संस्कृति का स्वभाव है और स्वयं उसमें निहित शक्तियाँ ही परिवर्तन को जन्म देती हैं। जब तक उन शक्तियों को परिभाषित न कर दिया जाए, तब तक सोरोकिन की यह बात मान्य नहीं हो सकती, क्योंकि उनकी यह व्याख्या अस्पष्ट है।

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Anjali Yadav

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