जनतन्त्र को परिभाषित कीजिए और उसके दोषों को उदाहरण देकर समझाइये।
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जनतन्त्र (Democracy)
हमारे देश के लोगों ने लगभग 350 वर्ष तक शोषित जीवन व्यतीत किया। अंग्रेजों के साम्राज्यवादी राज्य का विरोध प्रारम्भ हुआ। अहिंसा तथा सत्याग्रह पर आधारित क्रान्ति प्रारम्भ हुई। क्रान्ति के फलस्वरूप भारत स्वतन्त्र हुआ। सरकार का सर्वाधिक लोकप्रिय स्वरूप प्रजातन्त्र का प्रारम्भ देश की आजादी के साथ प्रारम्भ हुआ। Democracy शब्द यूनानी भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है- Demos + Kratos । डिमोस का अर्थ जनता तथा क्रेटॉस का अर्थ शक्ति है। अतः जनता की शक्ति ही जनतन्त्र अथवा प्रजातन्त्र है। लिंकन (Abraham Lincoln) ने जनतन्त्र को स्पष्ट करते हुए कहा है कि, “Democracy is the Government of the people, for the people, and by the people.” स्पष्ट है कि प्रजातन्त्र या जनतन्त्र का अर्थ उस राज्य व्यवस्था से है, जिसके संगठन में जनता का अपना हाथ होता है। इस सम्बन्ध में कुछ अधिक कहने से अच्छा होगा कि जनतन्त्र का सही अर्थ समझ लिया जाये।
जनतन्त्र की परिभाषा (Definition of Democracy)
1. आइजनेक और उनके साथियों (1972) के अनुसार, “जनतन्त्र का अर्थ उस निर्णय या विचार विनिमय से है, जिसमें एक समूह के सदस्यों को अल्पमत दृष्टिकोणों से व्यक्तियों की सहनशीलता और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है। जनतन्त्र में समूह निर्णय और समूह कार्य के लिए सभी को समान अवसर प्राप्त होते हैं।”
2. मैकाइवर (1953) के अनुसार, “प्रजातन्त्र बहुमत अथवा अन्य किसी साधन द्वारा शासन करने की पद्धति मात्र ही नहीं है वरन् प्राथमिक रूप से इस बात के निर्णय करने का तरीका है कि कौन शासन करेगा और व्यापक रूप से किन उद्देश्यों तक।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि, “जनतन्त्र का अर्थ उस निर्णय या विचार विनिमय से है, जिसमें व्यक्तियों को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता ही नहीं होती है, बल्कि सामूहिक कार्यों तथा सामूहिक निर्णय के लिए सबको समान अवसर प्राप्त होते हैं जनतन्त्र में बहुमत द्वारा इस बात का निर्णय किया जाता है कि किन उद्देश्यों के लिए कौन शासन करेगा।” इस प्रकार के प्रजातन्त्र में निश्चय ही व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास की व्यवस्था है। आधुनिक युग में विज्ञान जहाँ एक ओर मनुष्य को चन्द्रमा और अन्य ग्रहों तक पहुँचा रहा है, वहीं वह सामाजिक व्यवस्था को भी टुकड़ों में बाँट रहा है, सामाजिक जीवन में देखने को बहुत से आराम है, किन्तु वास्तव में आराम और शान्ति नहीं है। आधुनिक युग में गतिशीलता अधिक है और इस युग में शुद्ध जनतन्त्र के दर्शन कठिन हैं। जनतन्त्र में सभी मनुष्यों को समान ही नहीं माना जाता है, बल्कि इनको समान महत्व दिया जाता है। जनतन्त्र या प्रजातन्त्र के अनेक गुण हैं। कुछ प्रमुख गुण निम्न प्रकार से है-
1. जनतन्त्र में यह भी विश्वास किया जाता है कि समूह के सभी सदस्यों को समान अवसर प्राप्त होंगे तथा किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा।
2. चूँकि प्रजातन्त्र के एक समूह के सभी व्यक्तियों को समान अधिकार और सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, अतः असन्तोष और क्रान्ति की भावनाएँ कम होती हैं। असन्तोष होने पर जनता जिस व्यक्ति या दल के कारण असन्तोष हुआ है, उसे परिवर्तित कर देती है।
3. जनतन्त्र समानता और मानवता और समाज कल्याण जैसे श्रेष्ठ सिद्धान्तों पर आधारित है। जनतन्त्र में शिक्षा के विकास की उपयुक्त सुविधा है। सार्वजनिक शिक्षा की योजनाएँ तैयार कर नागरिकों के ज्ञान में वृद्धि के प्रयास किये जाते हैं।
4. जनतन्त्र में जनता के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। जनहित हेतु प्राथमिकता के आधार पर हो जनप्रतिनिधियों का चुनाव होता है। वह चुनाव इस विश्वास के साथ होता है कि यह चुने हुए प्रतिनिधि जनता की भलाई करेंगे और उसकी समस्याओं का समाधान करेंगे।
5. जनतन्त्र की अवस्था में प्रशासन जनता के ही हाथ में होता है। जो व्यक्ति या चुने हुए प्रतिनिधि जो जनता के हितों के अनुसार कार्य नहीं करते, प्रशासन में उन्हें अधिक दिनों तक रहने नहीं दिया जाता है।
6. जनतन्त्र में चूँकि सभी व्यक्तियों को समान अवसर प्राप्त होते हैं, अतः नागरिकों में श्रेष्ठ गुणों का विकास होता है। यह श्रेष्ठ गुण व्यक्ति की नैतिकता के विकास में भी सहायक है
जनतन्त्र के दोष (Demerits of Democracy)
जनतन्त्र में अनेक गुणों के होते हुए भी अवगुण भी कम नहीं हैं। जनतन्त्र के अवगुणों के सम्बन्ध में लोग यहाँ तक कहते सुने जाते हैं कि जनता के लिए जनता को जनता द्वारा शोषित करना ही जनतन्त्र हैं। जनतन्त्र के कुछ प्रमुख अवगुण निम्न प्रकार हैं-
1. अल्पमत के प्रभुत्व पाने की प्रवृत्ति – प्रत्येक प्रकार के संगठन में प्रभुता कुछ व्यक्तियों के हाथ में ही होती है। नाम के लिए भले ही प्रतिनिधि पद्धति हो, परन्तु जनसत्ता कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के हाथों में ही होती है। ऐसे शासन को जनतन्त्र कहना उपयुक्त नहीं है। प्रभुता केवल कुछ लोगों के हाथ में पहुंचने के निम्न दो प्रमुख कारण है-
(i) नेताओं में प्रभुत्व पाने की इच्छा- जनतन्त्र में शासन अल्पमत के हाथों में रहने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण नेताओं की प्रभुत्व प्राप्त करने की इच्छा है। चूँकि जनता उदासीन रहती है। अतः नेताओं को यह अवसर शीघ्र प्राप्त हो जाता है। कि वह शासन अपने हाथों में सम्भाल ले। एक बार सत्ता में आ जाने पर आत्मप्रदर्शन को प्रवृत्ति तथा अन्य प्रेरणाओं के कारण व्यक्ति या नेता प्रभुत्व जमाने का प्रयास करता रहता है।
(ii) नेता की उपेक्षा और उदासीनता- सत्ता कुछ ही लोगों के हाथों में रहती है, इसका प्रमुख कारण जनता की शासन के प्रति उपेक्षा और उदासीनता है। जिन्सबर्ग (1953) के अनुसार, जनता की उदासीनता का कारण कल्पना का अभाव और समाज की जटिल समस्याओं को समझ न पाना है। समूह छोटा हो अथवा बड़ा, कार्यभार नेताओं के हाथ म रहता है। •ऐसे नेताओं को जब प्रभुत्व प्राप्त हो जाता है तो पथभ्रष्ट हो जाते हैं। जनतन्त्र में प्रत्येक सदस्य और दल को अपनी बात कहने का पूर्ण अधिकार होता है, परन्तु जनता की उदासीनता और नेताओं के वाक्चातुर्य के कारण शासन अल्पमत के हाथों में रहता है।
2. जनता का बौद्धिक स्तर निम्न स्तर का होता है- जनतन्त्र में बहुमत को महत्व दिया जाता है और राज्य शक्ति जनता के हाथों में आती है, क्योंकि जनता का अधिकांश भाग निम्न वर्ग का होता है, जिसका बौद्धिक विकास और बौद्धिक स्तर निम्न कोटि का होता है। यदि इस प्रकार के व्यक्तियों के हाथ में सत्ता होगी तो निश्चय ही न वह शासन को व्यवस्थित रख पायेंगे और न सभ्यता और संस्कृति के उच्च स्तर तक पहुँच पायेंगे। टरमन ने एक हजार बालकों की बुद्धि का अध्ययन बुद्धि परीक्षणों के आधार पर किया। ये बालक विभिन्न वर्गों तथा व्यवसाय वाले परिवारों से सम्बन्धित थे। उसने अपने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि “केलीफोर्निया के शामिक का 10 वर्षीय प्रखर बुद्धि बालक यूरोप निवासी श्रमिक के पुत्र से अधिक बुद्धिमान नहीं है, भले ही शिक्षा के समस्त साधन समान क्यों न रखे गये हों।” उसने अपने अध्ययनों में यह भी देखा कि निम्न वर्ग परिवार के बालकों में बुद्धि अपेक्षाकृत कम होती है। टरमन के अध्ययन परिणामों का आज खण्डन हो चुका है, फिर भी इतना तो सत्य प्रतीत होता है कि निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्ग के लोगों की बुद्धि अपेक्षाकृत कम विकसित होती है, क्योंकि बौद्धिक क्षमता का विकास पर्यावरण पर भी निर्भर करता है। साहस, नेतृत्व करने की क्षमता, समस्याओं को सुलझाने की सूझ-बूझ, नये ढंग से कार्य करने का उत्साह, उत्तरदायित्व सम्भालने का साहस, आदि कुछ ऐसे गुण हैं, जिनका विकास अधिकांशतः वातावरण पर निर्भर करता है। जनता के अधिकांश व्यक्तियों को ऐसा वातावरण सुलभ नहीं होता कि उनमें यह गुण विकसित हो सकें। अतः स्पष्ट है कि अधिकांश जनता शासन की शक्ति सम्भालने के योग्य नहीं होती है।
3. चुने जाने के बाद नेताओं का परिवर्तन व्यवहार- अधिकांश जनता के उदासीन होने के कारण जनता नेता पर निर्भर करने लगती है और नेता ऐसी अवस्था में बदल जाते हैं। वह जिस जनता के द्वार चुने जाते हैं, चुन लिए जाने के बाद उसी जनता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शोषण करने लग जाते हैं। यदि जनतन्त्रवादी व्यवस्था में तालाबन्दी, हड्ताले अधिक होती हैं तो निश्चय ही व्यवस्था जनतन्त्रवादी न होकर ऐसी हो जाती है, जहाँ पर नेता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने स्वार्थों की पूर्ति कर रहे होते हैं।
4. जनता की अज्ञानता – प्राय: यह देखा गया है कि जनता में राजनीतिक चेतना कम मात्रा में पायी जाती है या जनता में राजनैतिक अज्ञानता पायी जाती है। जनता की इस अज्ञानता की उपस्थिति में निश्चय ही नेता लोग जनता की अज्ञानता का पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं विद्वानों के अनुसार जनतन्त्र शासन की असफलता का कारण जनता की अज्ञानता ही है। यदि बड़े-बड़े मतदानों का सर्वेक्षण किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि काफा लोग मतदान करते ही नहीं हैं। मतदान न करने का मुख्य कारण जनता की अज्ञानता और उदासीनता है। जनता अपनी अज्ञानता और उदासीनता के कारण अक्सर उन व्यक्तियों का चुनाव प्रतिनिधि के रूप में करती है, जिनमें जनता का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता नहीं होती है। ऐसे व्यक्ति अपने वाक्चातुर्य, झूठ, आश्वासन तथा प्रचार के आधार पर चुन लिए जाते हैं। सच्चे, ईमानदार व्यक्ति जो जनता का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, वह चुने जाने से रह जाते हैं।
5. भ्रष्टाचार तथा शोषण– प्रजातन्त्र का एक दोष यह भी है कि इनमें भ्रष्टाचार, शोषण तथा चापलूसी से सम्बन्धित समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। नेता जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए भ्रष्ट तरीके ही नहीं अपनाता है, बल्कि साधनों का दुरुपयोग भी करता है। वह समाज के कुछ ठेकेदारों की चापलूसी करने के लिए गलत कार्य करता है। सैद्धान्तिक रूप से जनतन्त्र में सभी व्यक्तियों को समान अवसर प्राप्त होते हैं, किन्तु शासन कुछ ही व्यक्तियों के हाथों में रहता है। यह समाज के कुछ सम्पन्न व्यक्ति, जिनके हाथों में शासन रहता है अधिकांश जनता का शोषण करते हैं। यह शासन के धन का तो दुरुपयोग करते ही हैं, साथ ही साथ सीधी-सादी अधिकाँश जनता की सेवा उनकी जेब और पेट काट कर सकते है।
6. दोषपूर्ण दलबन्दी – जनतन्त्रीय प्रक्रिया में सत्ता में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं। परिवर्तनों के कारण चुने हुए नेताओं को जनता का समय-समय पर समर्थन प्राप्त करना पड़ता है। परिणामस्वरूप दलबन्दी को प्रोत्साहन मिलता है। प्रत्येक राजनीतिक दल के अपने अलग राजनैतिक सिद्धान्त तथा आदर्श होते हैं। जनता की बहुत सी समस्याएँ इन राजनैतिक पार्टियों के कारण निखर कर जहाँ एक ओर सामने आती हैं, वहाँ इन पार्टियों के शासक विरोधी पार्टी का विरोध करने के कारण समस्याएँ बढ़ा-चढ़ा कर कहते हैं, जिससे जनता का लाभ होने के स्थान पर हानि हो जाती है।
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