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जनसंख्या का घनत्व | Density of Population in Hindi

जनसंख्या का घनत्व | Density of Population in Hindi
जनसंख्या का घनत्व | Density of Population in Hindi

जनसंख्या के घनत्व से क्या आशय है ? जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए। भारत में जनसंख्या वृद्धि को कम करने के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रम क्यों आवश्यक है ? परिवार कल्याण के लिए सरकार द्वारा किए गये प्रयासों का उल्लेख करते हुए जनसंख्या शिक्षा की विवेचना कीजिए। 

जनसंख्या का घनत्व (Density of Population)

किसी देश के प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या को ‘जनसंख्या का घनत्व’ (Density of Population) कहते हैं। किसी देश में उपलब्ध भूमि के कुल क्षेत्रफल को वहाँ की कुल जनसंख्या से भाग देकर जनसंख्या के घनत्व को ज्ञात किया जा सकता है।

भारत में जनसंख्या के घनत्व को निम्न तालिका में दिखाया गया है-

तालिका

वर्ष जनसंख्या का घनत्व :
1921 81
1931 90
1941 103
1951 117
1961 142
1971 177
1981 216
1991 267
1920

उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि हमारे देश में जनसंख्या का घनत्व निरन्तर बढ़ता ही गया है। इसके अतिरिक्त, देश के विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व असमान है। कुछ मुख्य क्षेत्रों का जनसंख्या का घनत्व इस प्रकार है—आन्ध्र प्रदेश 242, बिहार 497, अरुणाचल प्रदेश 10, गुजरात 211, हिमाचल प्रदेश 93, नागालैण्ड 73, केरल 749, उत्तर प्रदेश 432, पंजाब 403, चण्डीगढ़ 5,632, प० बंगाल 767, दिल्ली 6,352।

जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले तत्व

जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्व निम्नांकित हैं—

1. वर्षा- जिस क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा के कारण अच्छी कृषि उपज होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। वर्षा की पर्याप्तता के कारण ही पश्चिम बंगाल, बिहार व उत्तर प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व अधिक है। इसके विपरीत, जहाँ वर्षा बहुत अधिक (असम) अथवा बहुत कम (राजस्थान) होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व भी कम होता है।

2. मिट्टी की उर्वरता- जिन क्षेत्रों में मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है, वहाँ अधिक लोग निवास करते हैं। बंजर अथवा पठारी क्षेत्रों (राजस्थान, पठारी भाग) में भूमि की उर्वरता कम होने के कारण जनसंख्या का घनत्व कम पाया जाता है।

3. यातायात एवं सन्देशवाहन के साधन- जिन क्षेत्रों में यातायात एवं सन्देशवाहन के साधनों का विकास हो गया है। (उत्तर प्रदेश, प० बंगाल, महाराष्ट्र), वहाँ व्यापार आदि की सुविधाओं के उपलब्ध होने के कारण जनसंख्या का घनत्व अधिक है। इसके विपरीत, जिन क्षेत्रों में इन साधनों का पर्याप्त विकास नहीं हुआ है (अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम आदि), वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम है।

4. वनस्पति – जिन क्षेत्रों में अधिक घने वन पाए जाते हैं (असम, मेघालय) वहाँ पर मनुष्यों के रहने और कृषि कार्यों के लिए स्थान की कमी होती है। अतः जनसंख्या का घनत्व कम होता है।

5. राजधानी- देश अथवा राज्य की राजधानी में अनेक कार्यालय, संस्थाएँ, व्यापार तथा वाणिज्य केन्द्रों की स्थापना होने के कारण जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। दिल्ली, लखनऊ, नागपुर, भोपाल, चण्डीगढ़, बंगलौर आदि शहरों की जनसंख्या इनके राजधानी होने के कारण ही अधिक है।

6. जलवायु – जिस क्षेत्र की जलवायु अनुकूल एवं स्वास्थ्यवर्द्धक होती है, वहाँ अधिक लोग निवास करते हैं। इसी कारण पश्चिम बंगाल, बिहार तथा उत्तर प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व अधिक तथा असम व राजस्थान में कम है।

7. भूमि की बनावट – प्रायः पठारी, पहाड़ी व रेगिस्तानी क्षेत्रों में जनसंख्या अत्यधिक कम तथा समतल एवं मैदानी क्षेत्रों (गंगा का मैदान) में जनसंख्या अधिक पाई जाती है।

8. सिंचाई की सुविधाएँ- सिंचाई के साधन वर्षा की कमी को पूरा करते हैं। अतः जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं (पंजाब), वहाँ पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है तथा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं, वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम होता है।

9. औद्योगिक विकास – औद्योगिक दृष्टि से विकसित क्षेत्रों (कानपुर, जमशेदपुर, अहमदाबाद, मुम्बई) में जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है, क्योंकि वहाँ पर लोगों को जीविकोपार्जन के साधन सरलता से मिल जाते हैं।

10. ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान – अनेक धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों (मथुरा, हरिद्वार, वाराणसी, आगरा) पर तीर्थयात्रियों के आने-जाने के कारण इनकी सुविधा के लिए अनेक व्यवसाय स्थापित हो जाते हैं। अतः ऐसे स्थानों पर जनसंख्या का अधिक होना स्वाभाविक है।

11. खनिज सम्पदा- जिन क्षेत्रों में खनिज सम्पदा अधिक पाई जाती है, वहाँ पर सरलता से व्यवसाय मिल जाने के कारण अधिक जनसंख्या निवास करती है। अतः जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

12. आप्रवास एवं उत्प्रवास – विभिन्न कारणों से आप्रवास होने पर जनसंख्या का घनत्व बढ़ जाता है और उत्प्रवास होने पर जनसंख्या का घनत्व कम हो जाता है।

13. शिक्षा केन्द्र– ऐसे स्थानों पर जहाँ शैक्षिक एवं प्रशिक्षण की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

14. शान्ति एवं सुरक्षा- जिन क्षेत्रों में शान्ति एवं सुरक्षा की व्यवस्था रहती है, जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, सीमान्त क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम पाया जाता है।

15. व्यापारिक केन्द्र- व्यापारिक केन्द्रों (मुम्बई, कोलकाता, अहमदाबाद, कानपुर) में अनेक प्रकार के व्यवसाय स्थापित होने और रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध होने के कारण जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

भारत जनाधिक्य की स्थिति में है। हमारी जनसंख्या हमारे देश में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों की अपेक्षा अधिक है, जिसके कारण देश में अनेक प्रकार की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। अतः जनसंख्या पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है। परिवार नियोजन तथा परिवार कल्याण कार्यक्रम जनसंख्या को नियन्त्रित करने का एक महत्वपूर्ण उपाय है।

परिवार नियोजन का आशय योजनानुसार अपने परिवार की रचना से है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक दम्पत्ति को अपने परिवार की रचना के लिए अपने बच्चों की संख्या को सीमित करने और दो बच्चों के जन्म के बीच समय को बढ़ाने के लिए एक निश्चित योजना का निर्माण करना पड़ता है।

परिवार नियोजन की आवश्यकता अथवा महत्व

देश में परिवार नियोजन की आवश्यकता या महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. खाद्यान्न एवं अन्य वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि- खाद्यान्न एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति को बढ़ाने के लिए जनसंख्या वृद्धि को कम करना आवश्यक है, जो परिवार नियोजन द्वारा ही सम्भव है।

2. बेरोजगारी की समस्या का समाधान- जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ बेरोजगारी भी तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। अतः बेरोजगारी की समस्याओं को हल करने के लिए यह आवश्यक है कि हम जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करें। इस दृष्टि से परिवार नियोजन अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

3. पूँजी निर्माण में वृद्धि- जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी होती है, बचत में कमी होती है और पूँजी निर्माण की दर भी निम्न होती है। पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि के लिए जनसंख्या में वृद्धि की दर को कम करना आवश्यक होता है।

4. सामाजिक कल्याण कार्यों में वृद्धि- तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण सामाजिक कल्याण कार्यों का लाभ सभी को नहीं मिल पा रहा है। परिवार को नियोजित करके इन सुविधाओं का लाभ सबको प्राप्त हो सकता है।

5. परिवार तथा समाज को सुखी बनाना- पारिवारिक सुख के लिए सभी सदस्यों का स्वस्थ एवं आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होना आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, जब परिवार का आकार सीमित हो ।

6. जीवन-स्तर को ऊँचा करना- जीवन-स्तर आय पर निर्भर करता है। आय में वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि प्राकृतिक साधनों की तुलना में जनसंख्या कम हो। इसके लिए परिवार नियोजन की सहायता से परिवार के सदस्यों की संख्या को सीमित करना आवश्यक है।

7. कृषि पर जनसंख्या के भार को कम करना- कृषि क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इसे घटाने के लिए जनसंख्या वृद्धि में कमी करना आवश्यक है।

8. उत्पादन तकनीक में सुधार एवं मशीनीकरण- जनसंख्या की अधिकता के कारण हम उत्पादन कार्यों में श्रमप्रधान तकनीक को अपनाते हैं। यदि हम पूँजीगहन आधुनिक तकनीक को अपनाना चाहते हैं तो हमें बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगानी होगी।

9. बढ़ते कीमत- स्तर में कमी लाना- जनसंख्या में वृद्धि के अनुपात में खाद्यान्नों एवं अन्य वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि न होने के कारण वस्तुओं के कीमत-स्तर में वृद्धि हो रही है। इसे रोकने के लिए परिवार नियोजन के उपाय अपनाकर जनसंख्या में कमी करना आवश्यक है।

10. जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण- हमारे देश में जनसंख्या में तीव्र गति (2-1% वार्षिक) से वृद्धि हो रही है। देश को सुखी एवं समृद्ध बनाने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण आवश्यक है।

11. निर्धनता को दूर करना- परिवार के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होने के कारण जीवन-यापन के लिए पर्याप्त आय प्राप्त नहीं हो पाती, जिससे निर्धनता बढ़ती जा रही है। निर्धनता को दूर करने के लिए परिवार को सीमित रखना आवश्यक है।

परिवार नियोजन जनसंख्या को कम करने का एक प्रभावपूर्ण उपाय है। परिवार नियोजन का अर्थ है-परिवार को योजनाबद्ध तरीके से सीमित करना। भारत में परिवार नियोजन राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया गया है। इसके बावजूद हमें परिवार नियोजन कार्यक्रम में अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है। इसके मुख्य कारण अग्रलिखित हैं-

1. धार्मिक दृष्टि से पुत्र को अधिक महत्व- धार्मिक दृष्टि से परिवार में एक पुत्र को आवश्यक माना जाता है और पुत्र की आशा में परिवार का आकार बढ़ता जाता है।

2. धार्मिक मान्यताएँ- धार्मिक मान्यताएँ परिवार नियोजन के उपायों को अपनाने के लिए अनुमति प्रदान नहीं करतीं। ऐसे परिवार सन्तान को ईश्वरीय देन मानते हैं।

3. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास- हमारे देश में लगभग 48% जनता अभी भी अशिक्षित है। अतः वे परिवार कल्याण कार्यक्रमों के महत्व को ठीक प्रकार से नहीं समझ पाते। इसके अतिरिक्त, उनका यह विश्वास है कि सन्तान ईश्वर की देन है। अतः वे परिवार नियोजन के उपायों को नहीं अपनाते।

4. परिवार नियोजन की विधियाँ- सन्तान निरोध की कोई ऐसी विधि है, जो सरल, प्रभावी एवं सुरक्षित हो। उपलब्ध विधियाँ अधिक प्रभावी नहीं हैं और ऑपरेशन कराने से लोग डरते हैं।

5. राष्ट्रीय भावना में कमी- हम राष्ट्रीय हित की तुलना में व्यक्तिगत हित को अधिक महत्व देते हैं। यही कारण है कि हम परिवार कल्याण कार्यक्रम की सफलता के लिए प्रयास नहीं करते।

परिवार नियोजन को प्रभावी बनाने के लिए सुझाव

परिवार नियोजन को प्रभावी बनाने के लिए निम्नांकित सुझाव दिए जा सकते हैं-

  1. परिवार नियोजन कार्यक्रमों का विस्तार करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों की सहायता ली जाए।
  2. इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कार्य करने वाले उन सभी कर्मचारियों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाएँ, जो ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे हों।
  3. जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से धार्मिक मान्यताओं के कारण उत्पन्न बाधाओं को समाप्त किया जाए।
  4. परिवार कल्याण सेवाएँ प्रदान करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों को समुचित आर्थिक सहायता दी जाए।
  5. माता एवं शिशु को उचित स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने की व्यवस्था की जाए।
  6. परिवार नियोजन कार्यक्रम को वैज्ञानिक विधियों से प्रभावपूर्ण बनाया जाए।
  7. परिवार कल्याण कार्यक्रमों का उचित प्रचार किया जाए। इसे गाँवों तथा घनी औद्योगिक बस्तियों तक पहुँचाया जाए।
  8. कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण दिया जाए।
  9. नसबन्दी ऑपरेशन के बाद उचित चिकित्सा की व्यवस्था होनी चाहिए।
  10. गर्भ निरोधक उपकरण अथवा औषधियाँ मुफ्त अथवा न्यूनतम मूल्य पर वितरित की जाएँ।
  11. ग्रामीण क्षेत्रों व घनी औद्योगिक बस्तियों में अधिक परिवार कल्याण केन्द्र खोले जाएँ।
  12. गहन-परिवार-जिला कार्यक्रम बनाए जाएँ।

देश में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या के प्रति सरकार का चिंतित होना स्वाभाविक है। इस दृष्टि से सर्वप्रथम सन् 1930 में मद्रास राज्य में एक परिवार नियोजन क्लीनिक की स्थापना की गई। सन् 1936 में डॉ० ए० पी० पिल्लई ने परिवार नियोजन कोर्स की ट्रेनिंग प्रारम्भ की तथा सन् 1940 में श्री पी० एन० सप्रू ने जन्म निरोध क्लीनिकों की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। सन् 1942 में ‘स्वास्थ्य सर्वेक्षण और विकास समिति ने सरकारी अस्पतालों में जन्म निरोध क्लीनिकों की स्थापना का सुझाव दिया। सन् 1949 में श्रीमती रामाराव की अध्यक्षता में परिवार नियोजन संघ की स्थापना की गई।

पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करने तथा परिवार कल्याण कार्यों के लिए अग्रलिखित प्रयास किए गए हैं-

1. परिवार कल्याण एवं नियोजन केन्द्रों की स्थापना- परिवार कल्याण सम्बन्धी सुविधाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए स्थान-स्थान पर परिवार कल्याण केन्द्रों की स्थापना की गई है। इन केन्द्रों पर जनता को परिवार नियोजन सम्बन्धी उपाय निःशुल्क बताए जाते हैं।

2. अनुकूलतम जनमत तैयार करना- समय-समय पर ‘परिवार कल्याण सप्ताह आयोजित किए जाते हैं, जगह-जगह ‘ऑपरेशन शिविर लगाए जा रहे हैं तथा परिवार कल्याण की शिक्षा देने के लिए स्वास्थ्य शिक्षकों की नियुक्तियाँ की गई हैं।

3. विवाह की आयु में वृद्धि- सरकार ने कानून में विवाह की आयु में संशोधन करके लड़कों की आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष तथा लड़कियों की आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया है।

4. परिवार कल्याण मन्त्रालय की स्थापना- सरकार ने ‘परिवार कल्याण मन्त्रालय’ की स्थापना की है, जो परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यों एवं नीतियों का निर्धारण करता है तथा इस बात का मूल्यांकन करता है कि योजना के अन्तर्गत किए गए कार्यक्रमों को कितनी सफलता मिली है।

5. पुरस्कार व दण्ड का प्रावधान- सरकार ने परिवार नियोजन कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार एवं दण्ड की व्यवस्था की थी। तीन से अधिक बच्चों के बाद भी ऑपरेशन न कराने पर लोगों को अनेक सुविधाओं से वंचित कर दिया गया था। प्रेरक नसबन्दी कराने वालों को नकद रुपये व अन्य सुविधाएँ दी जाती हैं। दो बच्चे अथवा कम होने पर सरकार एक अग्रिम वेतन वृद्धि दे रही है।

6. गर्भपात को वैधानिक मान्यता- 11 अप्रैल, 1972 से ‘Medical Termination of Pregnancy Act’ के लागू हो जाने पर गर्भपात को वैधानिक मान्यता प्राप्त हो गई है।

7. जनसंख्या शिक्षा- सरकार पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों में जनसंख्या सम्वन्धी शिक्षा सामग्री का उचित ढंग से समावेश करने का प्रयास कर रही है।

1 अप्रैल, 1996 से सरकार द्वारा परिवार कल्याण कार्यक्रम ‘लक्ष्य युक्ति दृष्टिकोण’ के आधार पर लागू किया गया है। इस नए दृष्टिकोण में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर विकेन्द्रित भागीदारी योजना की व्यवस्था द्वारा शीर्ष से गर्भनिरोधक लक्ष्यों को स्थापित करने की प्रणाली को प्रतिस्थापित किया गया है।

जनसंख्या शिक्षा

जनसंख्या शिक्षा का अर्थ- जनसंख्या शिक्षा वह शिक्षा है, जिससे राज्य, देश तथा विश्व की जनसंख्या के सभी पक्षों का ज्ञान प्राप्त होता है। इससे जनसंख्या तथा उससे सम्बन्धित समस्याओं के प्रति ऐसे विचार एवं व्यवहार का विकास होता है, जो व्यक्ति तथा राष्ट्र के हितों के लिए आवश्यक हैं।

भारत में जनसंख्या शिक्षा का प्रारम्भ- भारत सरकार ने सन् 1952 में राष्ट्रीय जनसंख्या शिक्षा नीति अपनाई। सन् 1970 में राष्ट्रीय स्तर पर एक ‘जनसंख्या कोष्ठ’ स्थापित किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत स्कूल स्तर पर तथा प्रशिक्षण संस्थाओं के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा ‘United Nations Fund for Population Activities’ के सहयोग से जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम को देश में कार्यान्वित करने के लिए कदम उठाया गया। उत्तर प्रदेश में सन् 1981-82 में ‘जनसंख्या शिक्षा परियोजना प्रारम्भ की गई ।

जनसंख्या शिक्षा का उद्देश्य- जनसंख्या शिक्षा का उद्देश्य है-जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए जनसाधारण में ऐसी चेतना का विकास करना, जो व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के लिए हितकारी हो। जनसंख्या शिक्षा के द्वारा छात्र-छात्राओं को इस योग्य बनाया जाता है कि वे भविष्य में यह निर्णय लेने में सक्षम हो सकें कि उनके परिवार का क्या आकार होना चाहिए। इस शिक्षा के द्वारा छात्र-छात्राओं को विश्व के परिप्रेक्ष्य में देश राज्य तथा क्षेत्र की जनसंख्या के बारे में जानकारी दी जाती है तथा जनसंख्या में वृद्धि के कारणों एवं उसके दुष्प्रभावों से अवगत कराया जाता है।

जनसंख्या शिक्षा का रूप तथा क्षेत्र देश में दी जाने वाली जनसंख्या शिक्षा के अग्रलिखित रूप हैं-

1. विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को दी जाने वाली जनसंख्या शिक्षा एक शैक्षिक कार्यक्रम है। इसके अन्तर्गत उन्हें ऐसी शिक्षा दी जाती है, जिससे उनमें उत्तरदायित्व की भावना के साथ-साथ ऐसे व्यवहार का भी विकास हो सके कि ये भविष्य में एक कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिक के रूप में जनसंख्या की समस्याओं के अनुरूप व्यावहारिक जीवन में उचित दृष्टिकोण अपनाएँ। उन्हें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के जीवन का गुणात्मक स्तर सुधारने के लिए उपलब्ध प्राकृतिक तथा अन्य साधनों तथा जनसंख्या में सन्तुलन स्थापित करना आवश्यक है और इसके लिए परिवार को सीमित किया जाना चाहिए।

2. विवाहित व्यक्तियों को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के द्वारा जनसंख्या शिक्षा दी जाती है और परिवार नियोजन के लिए प्रेरित किया जाता है। उपर्युक्त प्रयास अधूरे हैं। अतः पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों में ‘जनसंख्या शिक्षा’ का समावेश किया जाना चाहिए।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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