निर्धनता की परिभाषा दीजिए।
किसी राष्ट्र का विकास उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। यदि राष्ट्र की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ और सम्पन्न है तो वह अपने नागरिकों के कल्याण के लिए हर प्रकार का आयोजन कर सकता है। सम्पन्न और सुदृढ़ राष्ट्र के नागरिक शिक्षित, स्वस्थ तथा प्रतिभावान होते हैं। इसके विपरीत, यदि राष्ट्र की आर्थिक स्थिति दुर्बल है तो वहाँ के नागरिक निरक्षर, अस्वस्थ तथा उदासीन होंगे, उनमें नागरिक उत्तरदायित्वों का पूरा करने की क्षमता नहीं होगी। किसी राष्ट्र की दुर्बल आर्थिक स्थिति उसकी सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न कर देती है। संक्षेप में, राष्ट्रव्यापी निर्धनता एक अभिशाप है, जो सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन को दुर्बल बना देती है।
निर्धनता का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सामान्य अर्थों में निर्धनता मनुष्य की वह दशा है, जबकि वह अपनी न्यूनतम मूल आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी असमर्थ होता है। दूसरे शब्दों में, समाज में जब व्यक्तियों का एक विशाल समूह अपने दैनिक जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति में असफल रहता है, तो उस स्थिति को हम निर्धनता के नाम से सम्बोधित करते हैं। निर्धनता की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार की है-
1. गोडार्ड (Goddard) के अनुसार- “निर्धनता उन वस्तुओं का अभाव है, जो किसी व्यक्ति और उसके आश्रितों को स्वस्थ तथा शक्तिशाली बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। “
2. वीवर (Weaver) के अनुसार- “निर्धनता एक ऐसे जीवन-स्तर के रूप में परिभाषित की जा सकती है, जिसमें स्वास्थ्य और शारीरिक क्षमता बनी नहीं रह पाती।”
3. गिलिन तथा गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार- “निर्धनता वह दशा है, जिसमें व्यक्ति पर्याप्त आय या अविवेकपूर्ण व्यय के कारण अपने जीवन स्तर को इतना ऊँचा रखने में असमर्थ होता है कि उसकी शारीरिक-मानसिक कुशलता बनी रह सके और न ही वह व्यक्ति तथा उसके आश्रित उस समाज द्वारा, जिसका कि वह सदस्य है, निश्चित स्तर के अनुसार उपयोगी ढंग से कार्य कर पाते हैं। “
4. एडम स्मिथ (Adam Smith) के अनुसार- “मनुष्य की दरिद्रता अथवा धनाढ्यता को मानव-जीवन की आवश्यक वस्तुओं, आराम व मनोरंजन के साधनों को प्राप्त मात्रा से आँका जा सकता है।” उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि निर्धनता वह स्थिति है, जिसमें व्यक्ति की आय उसकी तथा उसके आश्रितों की शारीरिक क्षमता बनाए रखने के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए अपर्याप्त है।
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