विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

पाठ्यक्रम के प्रकार | Types of Curriculum in Hindi

पाठ्यक्रम के प्रकार | Types of Curriculum in Hindi
पाठ्यक्रम के प्रकार | Types of Curriculum in Hindi

पाठ्यक्रम के कितने प्रकार हैं ? पाठ्यक्रम के विभिन्न प्रकारों पर प्रकाश डालिए।

Contents

पाठ्यक्रम के प्रकार (Types of Curriculum )

पाठ्यक्रम संगठन के सम्बन्ध में पृथक्-पृथक् दृष्टिकोण होते हैं। इसीलिए पाठ्यक्रम विभिन्न प्रकार के होते हैं। निम्नलिखित पंक्तियों में हम पाठ्यक्रम के विभिन्न प्रकारों पर प्रकाश डाल रहे हैं :

  1. विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Subject Centred Curriculum)
  2. अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Experience Centred Curriculum)
  3. बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम (Child Centred Curriculum)
  4. सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम (Correlated Curriculum)
  5. कार्य-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Activity Curriculum)
  6. कोर पाठ्यक्रम (Core Curriculum) 

1. विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Subject Centred Curriculum)

विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं, जिसका प्रमुख उद्देश्य, बालकों को तर्कयुक्त तथा क्रमिक रूप से ज्ञान देने के लिए विषय एवं पाठ्यवस्तु को अच्छी तरह व्यवस्थित करना है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम की सहायता से शिक्षक बालकों के समक्ष पूर्व निश्चित ज्ञान को विभिन्न विषयों के रूप में पृथक्-पृथक प्रस्तुत कर देता है। कहने का अभिप्राय यह है कि विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में शिक्षक तथा विषयों को महत्व दिया जाता है। चूँकि विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम में पुस्तकों पर ही बल दिया जाता है, इसलिए ऐसे पाठ्यक्रम को ‘पुस्तक- केन्द्रित पाठ्यक्रम’ के नाम से भी जाना जाता है।

विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Subject-Centred Curriculum)

विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. सरल संगठन (Easy Organization) – विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम के अन्तर्गत जाति के विभिन्न क्षेत्रों में किए गए अनुभवों का ज्ञान विभिन्न विषयों के रूप में तर्कयुक्त तथा क्रमिक रूप में संगठित होता है। ऐसे सुव्यवस्थित ज्ञान को बालकों के मस्तिष्क में पहुँचाने के लिए शिक्षक को कोई कठिनाई नहीं होती।

2. समाज की रुचि (Interest of Society)-विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम में विषयवस्तु पहले से ही निश्चित होती है। इससे शिक्षकों एवं बालकों को ही नहीं, अपितु अभिभावकों एवं संचालकों को भी लाभ होता है। शिक्षक यह जानते हैं कि उन्हें वर्ष भर में क्या पढ़ाना है तथा बालकों को यह मालूम रहता है कि उन्हें क्या-क्या पढ़ना है। ऐसे ही विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम से अभिभावकों को ग्रह सरलता से पता लग जाता है कि उनके बालक स्कूल में क्या पढ़ रहे हैं और संचालकों को भी शिक्षकों की प्रगति के सम्बन्ध में पूरा-पूरा ज्ञान होता रहता में है।

3. सह-सम्बन्ध स्थापित करने में आसानी (Easy Correlation) – विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में एक विषय का दूसरे विषय से सम्बन्ध सरलतापूर्वक स्थापित किया जाता है। इससे बालक ज्ञान को स्पष्ट रूप से हृदयंगम कर लेते हैं।

4. उद्देश्य की स्पष्टता (Clarity of Aim) – विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम का उद्देश्य स्पष्ट होता है, जिससे शिक्षक एवं बालक दोनों भली-भाँति परिचित रहते हैं। उद्देश्य की इस स्पष्टता से यह लाभ होता है कि बालक पाठ में रुचि लेने लगते हैं और शिक्षण की क्रिया सुचारु रूप से संचालित होती रहती है।

5. सरल मूल्यांकन (Easy Evaluation) – विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में बालकों की उन्नति का मूल्यांकन सरलतापूर्वक हो जाता है। शिक्षक इस बात का पता लिखित परीक्षा द्वारा किसी भी समय लगा सकता है कि बालकों को पढ़ाई हुई विषय-सामग्री याद हुई या नहीं।

6. निश्चित सामाजिक तथा शैक्षिक विचारधारा पर आधारित (Based on Definite Social and Educational Philosophy) – विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम एक निश्चित सामाजिक एवं शैक्षिक विचारधारा पर आधारित होता है। इससे एक विशेष प्रकार के जीवन दर्शन तथा सामाजिक आदर्शों का विकास होता है।

7. ज्ञान को कम समय तथा थोड़ी सी शक्ति से प्रस्तुत करने की सुविधा (Facility of Presenting Knowledge in Short Time and Less Energy) – विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में प्रत्येक विषय का ज्ञान पृथक्-पृथक् प्रस्तुत किया जाता है। इससे बालक एक निश्चित ज्ञान राशि को कम समय में थोड़ी-सी शक्ति के द्वारा आसानी से ग्रहण कर लेते हैं।

विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम की सीमायें (Limitations of Subject Centred Curriculum)

विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम की मुख्य सीमायें निम्नलिखित हैं-

1. कठोर, औपचारिक तथा परम्परागत (Rigid, Formal and Traditional) – विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम अधिकतर कठोर, औपचारिक और परम्परागत होता है। इसमें बदलती हुई परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार कोई भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

2. सर्वांगीण विकास की कोई सम्भावना नहीं (No Possibility of All Round Development) – विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम से बालकों का मानसिक विकास भले ही हो जाए, किन्तु उनका शारीरिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास नहीं किया जा सकता। दूसरे शब्दों में, कठोर, औपचारिक तथा परम्परागत विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम से बालकों का सर्वांगीण विकास नहीं होता।

3. रटने पर तथा परीक्षाओं पर बल (Emphasis on Cramming and Examinations) – विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम सीखने की मनोवैज्ञानिक क्रिया को प्रोत्साहित न करके केवल पुस्तकों के रटने एवं समय-समय पर होने वाली परीक्षाओं पर बल देता है। ऐसा रटा हुआ ज्ञान बालकों के भावी जीवन में उपयोगी सिद्ध नहीं होता।

4. अमनोवैज्ञानिक (Unpsychological) – विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम अमनोवैज्ञानिक होता है। इसमें बालकों की स्वाभाविक रुचियों, रुझानों एवं आवश्यकताओं का दमन कर दिया जाता है।

5. अप्रजातान्त्रिक (Undemocratic) – विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम अप्रजातान्त्रिक होता है। इसके अन्तर्गत बालकों में जनतान्त्रिक मूल्यों को विकसित करने की अपेक्षा पाठ्य पुस्तकों को केन्द्रित स्थान दिया जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि देश में समस्त शिक्षा वैसी हो जाती है, जैसी पाठ्य पुस्तकें होती हैं।

6. व्यक्तिगत विभिन्नता की अवहेलना (Negligence of Individual Difference) – विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत विभिन्नता के सिद्धान्त को कोई स्थान नहीं दिया जाता। सभी बालकों को एक ही प्रकार से एक निश्चित ज्ञान-राशि दी जाती है। उन्हें स्वयं ज्ञान प्राप्त करने के अवसर नहीं दिए जाते। ऐसे बलपूर्वक ढूंसे हुए ज्ञान से बालकों का स्वाभाविक विकास कुण्ठित हो जाता है।

2. अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Experience Centred Curriculum)

अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम वह पाठ्यक्रम है, जिसमें बालकों की क्रियाओं एवं अनुभवों पर बल दिया जाता है। इस • प्रकार के पाठ्यक्रम में विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम की भाँति यह बात पहले से निश्चित नहीं होती कि बालकों को क्या-क्या विषय-सामग्री पढ़नी है, बल्कि उनकी मौलिक शक्तियों एवं रचनात्मक प्रवृत्तियों को विकसित करने के लिए ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाता है, जिसमें वे सक्रिय रहते हुए अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकें। दूसरे शब्दों में, अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में किसी ज्ञान-राशि को पहले से निश्चित नहीं किया जाता वरन् बालकों की स्वाभाविक रुचियों, रुझानों, क्रियाओं एवं अनुभवों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।

अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Experience Centred Curriculum)

अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. लचीला (Flexible) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम लचीला होता है। इसमें विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम की भाँति कोई पूर्व योजना नहीं होती। ऐसे पाठ्यक्रम में शिक्षक का यह कार्य है कि वह बालकों की आवश्यकताओं के अनुसार क्रियाओं एवं अनुभवों की व्यवस्था करता रहे।

2. मनोवैज्ञानिक (Psychological) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उपयुक्त होता है। इसका कारण यह है कि इस प्रकार के पाठ्यक्रम में बालकों की स्वाभाविक क्रियाओं एवं अनुभवों पर विशेष बल दिया जाता है। उनके समक्ष ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया जाता है, जिनसे टक्कर लेते हुए उनको अपनी-अपनी बुद्धि का अधिक से अधिक प्रयोग करना पड़े अर्थात् वे स्वयं क्रिया करके सीखें। चूँकि अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में बालक ज्ञान को सक्रिय रहते हुए ग्रहण करते हैं, इसलिए ऐसा स्वयं सीखा हुआ ज्ञान स्पष्ट, प्रभावात्मक और स्थायी होता है।

3. जनतान्त्रिक (Democratic) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम का आधार जनतान्त्रिक होता है। उसमें सभी बालक व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से सक्रिय रहते हुए इच्छानुसार भाग लेते रहते हैं। इससे उनमें स्नेह, सहानुभूति, सहयोग, सहनशीलता एवं नेतृत्व आदि अनेक जनतान्त्रिक गुण सहज में ही विकसित हो जाते हैं।

4. व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास निश्चित (All Round Development of Personality Definite) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में बालकों की मौलिक शक्तियों एवं रचनात्मक प्रवृत्तियों को विकसित करने के लिए अधिक से अधिक अवसर प्रदान किए जाते हैं। इससे उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास निश्चित रूप से हो जाता हैं।

5. सर्जनात्मक योग्यता का विकास (Development of Creativity)- अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में पाठ्य पुस्तकों द्वारा रटे हुए ज्ञान की अपेक्षा प्रत्येक बालक को विभिन्न समस्याओं पर अधिक से अधिक सोचने-विचारने की स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है। इससे उनकी मानसिक एवं सर्जनात्मक योग्यता का विकास हो जाता है।

6. व्यक्तिगत विभिन्नता पर बल (Emphasis on Individual Differences) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत विभिन्नता के सिद्धान्त पर बल दिया जाता है। प्रत्येक बालक अपनी-अपनी रुचियों, रुझानों, प्रवृत्तियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न प्रकार की स्वाभाविक क्रियाओं में भाग लेते हुए नाना प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है। और उन्हें अपने जीवन से सम्बन्धित करता है। संक्षेप में, अनुभव-केंन्द्रित पाठ्यक्रम में प्रत्येक बालक को अधिक से अधिक में विकसित होने के लिए अधिक से अधिक अवसर प्रदान किए जाते हैं।

अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ अनुभव-केन्द्रित (Limitations of Experience-Centred Curriculum)

अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

1. अनुभवों के संगठन का अभाव (Lack of Organization of Experienccs) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में ज्ञान की प्राप्ति बालकों की स्वाभाविक क्रियाओं पर निर्भर करती है। इससे ज्ञान या अनुभवों का क्रम तथा संगठन ठीक नहीं हो पाता। दूसरे शब्दों में, अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम द्वारा बालकों को जाति के विभिन्न क्षेत्रों में किए गए अनुभवों का ज्ञान तर्कयुक्त तथा क्रमिक रूप में व्यवस्थित ढंग से नहीं दिया जा सकता।

2. समाज की अरुचि (Social Apathy) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम को बालक, अभिभावक तथा संचालक नहीं चाहते। साथ ही शिक्षक भी इस प्रकार के पाठ्यक्रम में कोई रुचि नहीं लेते। इसका कारण यह है कि अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम का उपयोग केवल विशेष रूप से प्रशिक्षित एवं कुशल तथा मेधावी शिक्षक ही कर सकते हैं। हमारे देश में ऐसे शिक्षकों की कमी हैं, जो बालकों में उचित एवं पर्याप्त मात्रा में अनुभव जाग्रत कर सकें।

3. समन्वय की कठिनाई (Difficulty of Correlation) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में प्रत्येक बालक स्वाभाविक क्रियाओं द्वारा नाना प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है। इन अनुभवों में सह-सम्बन्ध स्थापित करना बहुत कठिन है।

4. उद्देश्य की स्पष्टता नहीं (No Clarity of Aim) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में शिक्षण के उद्देश्य की स्पष्टता नहीं होती। इससे शिक्षक एवं बालक दोनों ही अन्धकार में रहते हैं।

5. मूल्यांकन में कठिनाई (Difficulty in Evaluation) – अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में बालकों द्वारा प्राप्त किए हुए दिन-प्रतिदिन के अनुभवों का मूल्यांकन करते समय अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसका कारण यह है कि विभिन्न प्रकार के अनुभवों का मूल्यांकन करने के लिए अभी तक कोई निश्चित मानदण्ड नहीं बन पाए हैं।

6. ज्ञान को प्रस्तुत करने के लिए अधिक समय तथा शक्ति की आवश्यकता (Need of More Time and Energy for Presenting Knowledge)- अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम में विकास की अवस्थाओं के अनुसार रुचियों एवं रुझानों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक क्रिया की योजना बनाने एवं उसे पूर्ण रूप से करके अनुभव प्राप्त करने में बहुत अधिक समय लगता है। साथ ही शक्ति का अपव्यय भी होता है।

7. जनतान्त्रिक विचारधारा पर आधारित (Based on Democratic Philosophy) — अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम जनतान्त्रक विचारधारा पर आधारित होता है। इसके द्वारा बालकों के मस्तिष्क में ज्ञान को बलपूर्वक नहीं ठूसा जाता, बल्कि वे स्वयं क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त करते हैं। तानाशाही राज्यों में इस दर्शन का खण्डन किया जाता है।

विषय-केन्द्रित तथा अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम की तुलना (Comparison between Subject-Centred and Experience-Centred Curriculum)

विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Subject-Centred Curriculum) अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Experience-Centred Curriculum)
1. संगठन सरल होता है। 1. संगठन का अभाव होता है ।
2. इसको बालक, शिक्षक, अभिभावक तथा संचालक आदि सभी पसन्द करते हैं। 2. इसको बालक, अभिभावक तथा संचालक ही नहीं, शिक्षक भी नहीं चाहते।
3. विभिन्न विषयों में सह-सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। 3. सह-सम्बन्ध स्थापित करना कठिन है।
4. यह कठोर, अनौपचारिक तथा परम्परागत होता है। 4. यह लचीला, अनौपचारिक तथा प्रगतिशील होता है।
5. शिक्षण का उद्देश्य स्पष्ट होता है। 5. शिक्षण का उद्देश्य स्पष्ट नहीं होता।
6. ज्ञान को कम समय तथा थोड़ी शक्ति से प्रस्तुत किया जाता है। 6. ज्ञान को प्रस्तुत करने के लिए अधिक समय तथा शक्ति की आवश्यकता पड़ती है।
7. एक निश्चित, सामाजिक तथा शैक्षिक विचारधारा पर पर आधारित है। 7. जनतान्त्रिक विचारधारा पर आधारित है।
8. यह बालकों को सैद्धान्तिक ज्ञान देने पर बल देता है। 8. यह बालकों को व्यावहारिक ज्ञान देता है।
9. यह विषय, पाठ्य-पुस्तक तथा शिक्षक को मुख्य समझता है। 9. यह बालक की स्वाभाविक रुचियों, क्रियाओं तथा अनुभव पर बल देता है।
10. प्रगति का मूल्यांकन करना सरल है। 10. प्रगति के मूल्यांकन का कोई मानदण्ड नहीं है।
11. यह अमनोवैज्ञानिक है। इसमें बालक निष्क्रिय रहते हैं तथा उनके मस्तिष्क में ज्ञान को बलपूर्वक ढूंसा जाता है।  11. यह मनोवैज्ञानिक है। इसमें बालक सक्रिय रहते हुए स्फूर्त (Spontaneous) ढंग से विभिन्न अनुभवों द्वारा नवीनतम ज्ञान प्राप्त करते हैं।
12. इसमें शिक्षण एक निश्चित क्रम में चलता है, जिसके परिणामस्वरूप सभी बालकों को एक ही जैसी विषय सामग्री पढ़नी पड़ती है। 12. इसमें शिक्षण का क्रम निश्चित नहीं होता। प्रत्येक बालक अपनी-अपनी स्वाभाविक क्रियाओं के अनुसार नाना प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है।
13. रटने पर तथा परीक्षाओं पर बल देता है। 13. इसके द्वारा सृजनात्मक योग्यता का विकास होता है।
14. इसमें बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नता का गला घोंट दिया जाता है।  14. इसमें बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नता पर बल दिया जाता है।
15. यह बालकों का एकांगी विकास करता है। 15. इसके द्वारा सर्वांगीण विकास सम्भव है।

3. बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम (Child Centred Curriculum)

बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम वह पाठ्यक्रम कहलाता है, जिसमें विषयों की अपेक्षा बालक को प्रमुख स्थान दिया जाता है। ऐसे पाठ्यक्रम का निर्माण बालक की विभिन्न अवस्थाओं की रुचियों, आवश्यकताओं, क्षमताओं एवं योग्यताओं के अनुसार किया जाता है, जिससे उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो जाए। मॉन्टेसरी (Montessori) एवं किन्डरगार्टन (Kindergarten) पद्धतियाँ (Methods) बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम के उपयुक्त उदाहरण हैं।

बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Child-Centred Curriculum)

1. जीवन से सम्बन्ध (Relation with Life) – यह पाठ्यक्रम बालक के जीवन से सम्बन्धित होता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसका निर्माण करते समय बालकों की रुचियों एवं आवश्यकताओं को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है।

2. व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality)- यह पाठ्यक्रम पाठ्य पुस्तकों की अपेक्षा बालकों के सर्वांगीण विकास पर बल देता है। अतः बालक के विकास की दृष्टि से बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम अत्यन्त उपयोगी होता है।

3. मनोवैज्ञानिक संगठन (Psychological Organization) – बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम बालकों की रुचियों, आवश्यकताओं एवं अनुभवों के अनुसार होता है। दूसरे शब्दों में, इस पाठ्यक्रम का संगठन मनोवैज्ञानिक है।

4. रुचियों के अनुसार सीखना (Development of Personality) यह पाठ्यक्रम पाठ्य पुस्तकों की अपेक्षा बालकों के सर्वांगीण विकास पर बल देता है। अतः बालक के विकास की दृष्टि से बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम अत्यन्त उपयोगी होता है।

5. वांछित अभिवृत्तियों का विकास (Development of Suitable Attitudes)- बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम में जनतन्त्र के दर्शन होते हैं। इसके द्वारा बालकों में वांछित अभिवृत्तियों एवं मनोवृत्तियों के विकास में सहायता मिलती है।

बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ (Limitations of Child-Centred Curriculum)

1. सामाजिक उत्तरदायित्वों की अवहेलना (Negligence of Social Responsibilities)- बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम केवल बालक के विकास पर बल देता है। अतः इसके द्वारा स्कूल सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा नहीं कर सकता।

2. प्रत्येक बालक के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम (Separate Curriculum for each Child)- इस पाठ्यक्रम का संगठन प्रत्येक बालक की रुचियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है। इस दृष्टि से प्रत्येक बालक के लिए पृथक्-पृथक् पाठ्यक्रम होना चाहिए। यह सम्भव नहीं है।

3. महत्वपूर्ण विषयों का ज्ञान न प्राप्त करने की सम्भावना (Possibility of not Gaining Knowledge of Important Subjects) – इस पाठ्यक्रम का संगठन बालकों की उन आवश्यकताओं को दृष्टि में रखते हुए किया जाता है, जिनका अनुभव वे स्वयं करते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि बालक शैक्षिक दृष्टि से महत्वपूर्ण आवश्यकताओं का अनुभव ही न करें। इससे इस बात की सम्भावना हो सकती है कि बालक बहुत-से महत्वपूर्ण विषयों का ज्ञान प्राप्त ही न कर पाएँ।

4. क्रमिक रूप से सीखने की कठिनाई (Difficulty of Learning in a Sequence) – इस पाठ्यक्रम द्वारा विभिन्न विषयों के ज्ञान को एक निश्चित क्रम में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसके माध्यम से बालक ज्ञान को प्रायः असंगठित रूप में प्राप्त करते हैं। इस ढंग से प्राप्त किया हुआ ज्ञान बालकों के लिए लाभप्रद नहीं होता।

5. स्कूल संगठन में परिवर्तन की आवश्यकता (Need of Change in School Organization) – इस पाठ्यक्रम की सरलता के लिए स्कूल का संगठन विशेष प्रकार से किया जाता है। प्रत्येक देश में स्कूल संगठन के अन्दर आवश्यकतानुसार परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

4. सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम (Correlated Curriculum)

सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम का अर्थ (Meaning of Correlated Curriculum)- सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं, जिसमें विभिन्न विषयों को पृथक्-पृथक् न पढ़ कर एक-दूसरे से सम्बन्धित करके पढ़ने की व्यवस्था हो । अतः सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम इस बात पर बल देता है कि बालक के सामने ज्ञान को विभिन्न विषयों में अलग-अलग न बॉट कर सम्बन्धित रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

5. कार्य-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Activity Curriculum)

कार्य-केन्द्रित पाठ्यक्रम का अर्थ (Meaning of Activity Curriculum) – कार्य केन्द्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं, जिसमें विभिन्न कार्यों को विशेष स्थान दिया जाता है। जॉन डीवी के अनुसार कार्य केन्द्रित पाठ्यक्रम द्वारा बालक समाज उपयोगी कार्यों के करने में रुचि लेने लगेगा। इससे उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होना निश्चित है।

6. कोर पाठ्यक्रम (Core Curriculum) 

कोर पाठ्यक्रम का अर्थ (Meaning of Core Curriculum)- कोर पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं, जिसमें कुछ विषय तो अनिवार्य होते हैं तथा अधिक से अधिक विषय ऐच्छिक अनिवार्य विषयों का अध्ययन करना प्रत्येक बालक के लिए अनिवार्य होता है तथा ऐच्छिक विषयों को व्यक्तिगत रुचियों तथा क्षमताओं और आवश्यकताओं के अनुसार चुना जाता है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों प्रकार की समस्याओं के सम्बन्ध में ऐसे अनुभव प्रदान किए जाते हैं, जिनके द्वारा वह अपने भावी जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्या को सरलतापूर्वक सुलझाते हुए कुशल एवं समाज उपयोगी तथा उत्तम नागरिक बन जाएँ। संक्षेप में, कोर पाठ्यक्रम का लक्ष्य व्यक्ति तथा समाज दोनों का अधिक से अधिक विकास करना है। इस पाठ्यक्रम की कई विशेषताएँ भी हैं। पहली विशेषता यह है कि इसके अन्तर्गत कई विषयों को एक साथ पढ़ाया जाता है। दूसरे, विभिन्न विषयों को पढ़ाने का समय निश्चित होता है। तीसरे, यह पाठ्यक्रम बाल-केन्द्रित है और चौथे, इसके द्वारा बालकों को कार्यों के द्वारा सामाजिक समस्याओं के सुलझाने का अभ्यास कराया जाता है।

अपने पाठ्यक्रम का पुनर्गठन करते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-

1. अवकाश काल का सदुपयोग (Correct Use of Leisure Hour)- पाठ्यक्रम को अवकाश के समय का सदुपयोग करने की उचित शिक्षा देनी चाहिए। इससे बालकों को सही रूप से विकसित होने में सहायता मिलेगी।

2. क्रियाओं पर अधिक बल (More Emphasis on Activities) – पाठ्यक्रम में बालकों की क्रियाओं पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। क्रियाओं के द्वारा उन्हें अनुभव प्राप्त होंगे, जिनके आधार पर वे अपने भावी जीवन की अनेक समस्याओं को सुलझा सकेंगे ।

3. लचीलापन (Flexibility)- पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए। इससे यह लाभ होगा कि सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन की आवश्यकताओं तथा आदर्शों को बदलती हुई परिस्थितियों के सन्दर्भ में सरलतापूर्वक प्रतिबिम्बित किया जा सकेगा।

4. कार्य अनुभवों को महत्व (Importance of Work Experiences) – पाठ्यक्रम में कार्य अनुभवों को विशेष महत्व मिलना चाहिए ।

5. जीवन की वास्तविकताओं को स्थान (Place for Realities of Life) – पाठ्यक्रम में जीवन की वास्तविकताओं को प्रमुख स्थान मिलना चाहिए। इससे बालकों को जीवन के लिए शिक्षा मिलेगी।

7. शिल्पकला-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Craft-Centred Curriculum) शिल्पकला-केन्द्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार की शिल्पकलाओं जैसे—कताई, बुनाई, चमड़े और लकड़ी आदि के काम को केन्द्र मानकर दूसरे विषयों की शिक्षा दी जाय। देश की वर्तमान ‘बेसिक शिक्षा’ (Basic Education) में शिल्पकला-केन्द्रित पाठ्यक्रम का विशेष महत्त्व है।

8. एकीकृत पाठ्यक्रम (Integrated Curriculum ) एकीकृत पाठ्यक्रम वह पाठ्यक्रम कहलाता है, जिसमें विभिन्न विषयों के बीच कोई अवरोध नहीं होता, अपितु एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। जेकोटाट के शब्दों में, ज्ञान एक इकाई है। पाठ्यक्रम के सभी विषय ज्ञान रूपी इकाई के विभिन्न अंग हैं। हमें चाहिए कि हम बालकों को ज्ञान की एकता से परिचित कराने के लिए पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों को अलग-अलग रूप में पढ़ाने की अपेक्षा एक-दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करके पढ़ाएँ। इससे बालक ज्ञान की एकता से सरलतापूर्वक परिचित हो जाएंगे। संक्षेप में, पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों को अलग-अलग पढ़ाने से कोई लाभ नहीं । इसीलिए आजकल एकीकृत पाठ्यक्रमों का निर्माण हो रहा है।

हेन्डरसन (Henderson) के अनुसार- “वह पाठ्यक्रम, जिसमें विषयों के बीच कोई अवरोध न हो, एकीकृत पाठ्यक्रम कहलाता है।” इस पाठ्यक्रम के अन्तर्गत विभिन्न विषयों में इस प्रकार से सम्बन्ध स्थापित किया जाता है कि उनके बीच की सभी दीवारें टूट जाती हैं। इससे पाठ्यवस्तु का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। साथ ही, बालक ज्ञानेन के समग्र रूप से परिचित हो जाते हैं।

एकीकृत पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Integrated Curriculum)

वर्तमान पाठ्यक्रम में ज्ञान को विभिन्न विषयों में अलग-अलग बाँट दिया जाता है। शिक्षकों का प्रमुख कर्तव्य यह समझा जाता है कि वे बालकों को विभिन्न विषयों का अलग-अलग ज्ञान दें। चूँकि पाठ्यक्रम के विभिन्न विषय एक-दूसरे से सम्बन्धित करके नहीं पढ़ाए जाते, इसलिए बालकों को वास्तविक ज्ञान नहीं मिल पाता। अर्थात्, उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से बचने के लिए पाठ्यक्रम का एकीकरण करना परम आवश्यक है। एकीकृत पाठ्यक्रम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. मनोवैज्ञानिक (Psychological)- इस पाठ्यक्रम में बालकों की रुचियों एवं अनुभवों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। अतः एकीकृत पाठ्यक्रम का आधार मनोवैज्ञानिक होता है।

2. विभिन्न विषयों में सह-सम्बन्ध (Correlation Among Various Subjects) – इस पाठ्यक्रम से विभिन्न विषयों का परस्पर सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इससे बालक नवीन ज्ञान को आसानी से ग्रहण कर लेते हैं।

3. सीखने की प्रक्रिया में मितव्ययता लाने के लिए लाभप्रद (Useful in Economising the Learning Process) – एकीकृत पाठ्यक्रम तार्किक दृष्टि से अनुकूल होता है। इससे यह सीखने की प्रक्रियाओं में मितव्ययता लाने के लिए अत्यन्त लाभप्रद सिद्ध हुआ है।

4. जीवन से सम्बन्धित (Related with Life) – एकीकृत पाठ्यक्रम का जीवन से सम्बन्ध होता है। इसमें अनेक विषयों को सम्मिलित किया जाता है, जिनका बालकों के जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।

5. ज्ञान एक इकाई के रूप में (Knowledge as One Unit) – इस पाठ्यक्रम में ज्ञान को एक पूर्ण इकाई माना जाता है। अतः इसके अन्तर्गत ज्ञान एवं अनुभवों की अखण्डता को बनाए रखने पर बल दिया जाता है।

6. अनेकता में एकता (Unity in Diversity) – इस पाठ्यक्रम के अन्तर्गत अनेकता में एकता के सिद्धान्त को मुख्य स्थान दिया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार ऐसे पाठ्यक्रम के अन्दर एक विषय में कई विषयों का शिक्षण सरलतापूर्वक हो जाता है, जैसे—सामाजिक विषयों में भूगोल, इतिहास एवं नागरिकशास्त्र आदि ।

एकीकृत पाठ्यक्रम की सीमाएँ (Limitations of Integrated Curriculum)

एकीकृत पाठ्यक्रम की रचना करने और इसे प्रयोग करने की कुछ सीमाएँ हैं, जो निम्नलिखित हैं-

1. स्वाभाविकता (Spontaniety) – इस पाठ्यक्रम में विषयों का संकलन स्वाभाविक रूप से करना चाहिए, जिससे बालक ज्ञान को आसानी से समझ जाये। बिना आवश्यकता के विषयों का संकलन करना एकीकृत पाठ्यक्रम की स्वाभाविकता का गला घोंटना है।

2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता (Need of Scientific Outlook)- इस पाठ्यक्रम की रचना करते समय एक शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना परम आवश्यक है। इसके अन्दर विभिन्न विषयों का संकलन वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा होना चाहिए।

3. विशेष रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता (Need of Specially Trained Teachers) – एकीकृत पाठ्यक्रम को केवल वही शिक्षक प्रयोग कर सकता है, जिसे विभिन्न विषयों के एकीकरण में रुचि हो । अतः एकीकृत पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment