बाल अपराध से आप क्या समझते हैं ? उसके कारणों पर प्रकाश डालिए।
प्रत्येक मानव समाज में समाज की व्यवस्था तथा सदस्यों की सुरक्षा को बनाये रखने के लिए कुछ नियम और कानून होते हैं। जब कोई सदस्य इन नियमों और कानूनों में से कुछ को अथवा एक तो तोड़ता है तो उस व्यक्ति को अपराधी कहते हैं। कानून तोड़ने वाले व्यक्ति बाल्यावस्था से बूढ़े होने तक किसी भी आयु के हो सकते हैं। अपराध और बाल अपराध की परिभाषाएँ निम्न प्रकार से हैं-
1. डॉ० सेठना (1958) के अनुसार, “बाल अपराध से तात्पर्य किसी स्थान विशेष के नियमों के अनुसार एक निश्चित आयु से कम के बच्चे अथवा किशोर द्वारा किये जाने वाला अपराध है।”
2. लैण्डिस और लैण्डिस (1956) के अनुसार, “अपराध वह कार्य है, जिसे राज्य ने समूह के कल्याण के लिए हानिप्रद घोषित कर दिया है और जिसे करने पर राज्य दण्ड दे सकता है।”
3. कोलमैन (1976) के अनुसार, “बाल अपराध 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों द्वारा किया गया वह व्यवहार है जो समाज द्वारा मान्य नहीं होता है। बहुधा इस व्यवहार के लिए चेतावनी दी जाती है, दण्ड दिया जाता है या सुरक्षात्मक कार्य किया जाता है। “
भारतीय दण्ड विधान के अनुसार 7 वर्ष से 17 वर्ष तक का अपराधी बाल अपराध के अन्तर्गत आता है। कानून के दृष्टिकोण से कानून विरोधी कार्य अपराध है, जबकि सामाजिक दृष्टिकोण से सामाजिक नियमों के विरुद्ध कोई भी व्यवहार अपराध है। 7 से अधिक किन्तु 12 वर्ष से कम आयु वाले नासमझ बालकों को भारतीय विधान की धारा 83 के अनुसार अपराधी नहीं माना जाता है, परन्तु किशोर अपराधियों की अधिकतम आयु 16 वर्ष है। इसी प्रकार Reformatory School Act, 1957 के अनुसार बाल अपराधियों की अधिकतम आयु 16 वर्ष है। सामान्य रूप से बाल अपराधियों की आयु 17 वर्ष तक है।
परिभाषा के दृष्टिकोण से देखा जाये तो अपराधियों तथा बाल अपराधियों में केवल आयु का अन्तर है।
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घटनाक्रम (Incidence)
अपने देश में बाल अपराधियों की संख्या लाखों में है। अमेरिका में बाल अपराधियों की संख्या 10 लाख से भी ऊपर है। बाल अपराधियों में चोरी, हत्या, बलात्कार, सेंधमारी तथा डकैती आदि सभी में इनको कार्यरत देखा गया है। कोलमैन (1976) के अनुसार, अमेरिका में सन् 1974 में 3 में से 1 चोरी में, 5 में से 1 बलात्कार में तथा 10 में से 1 हत्या के अभियोग में संलग्न देखे गये हैं। इन सभी बाल अपराधियों में से 14 में से 1 दस वर्ष से कम आयु का होता है।
एक अध्ययन (R. J. Ostrow 1974) के अनुसार निम्न सामाजिक स्तर वाले वाल अपराधियों की संख्या अधिक होती है। गन्दी बस्तियों में भी इसकी संख्या अधिक पायी जाती है। एक अन्य अध्ययन (B. Haney and Gold, 1973) में यह देखा गया कि सामाजिक स्तर तथा बाल अपराध में कोई घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं है।
अमेरिका में अपराधियों की संख्या जनसंख्या के आधार की वृद्धि की अपेक्षा 15 गुना बढ़ गयी है। अमेरिका के आँकड़ों के अनुसार आधे अपराध 18 वर्ष से कम आयु के लोगों के द्वारा किये जाते हैं तथा 75% अपराध 25 वर्ष तक आयु वाले अपराधियों द्वारा किये जाते हैं। अतः केवल 25% अपराधियों की आयु 25 वर्ष से अधिक होती है। स्त्री अपराधियों की अपेक्षा पुरुष अपराधियों की संख्या कई गुना अधिक होती है।
बाल अपराध के कारण (Causal Factors)
बाल अपराध के कुछ प्रमुख कारक निम्न प्रकार से हैं-
आर्थिक कारक (Economic Factors)
1. निर्धनता (Poverty) – बाल अपराधों को बढ़ावा देने में निर्धनता भी एक महत्वपूर्ण कारक है। बर्ट (Burt, 1948) ने अपने एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला कि बाल अपराधियों में लगभग आधे अपराधी निर्धन परिवार के होते हैं। अधिकतर देखा गया है कि पैसे के अभाव में बच्चे चोरी करना बड़ी जल्दी सीख जाते हैं।
2. नौकरी (Service) – बालक-बालिकाओं को अनेक प्रकार की नौकरियों में काम करते देखा जा सकता है। यह परिवार, होटल, फैक्टरी आदि जगहों पर अधिक संख्या में नौकरी करते हैं। इस तरह के बालकों में चोरी और सेक्स सम्बन्धी अपराधी बालक अधिक होते हैं।
3. बेकारी (Unemployment) – किशोरावस्था में यह कारक अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। किशोरावस्था में यह इच्छा प्रबल होने लगती है कि जीविकोपार्जन के लिए कोई साधन होना चाहिए, जिससे कि दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। गरीब घर के बेरोजगार बैठे किशोरों के मस्तिष्क में तरह-तरह की अपराधी प्रवृत्तियाँ जागृत होती रहती हैं। खाली मस्तिष्क शैतान का घर कहा गया है।
4. घनी वस्ती (Slums) – गन्दी और घनी बस्तियों में जो बालक रहते हैं, उनके अपराधी होने की भी अधिक सम्भावना रहती है। घनी बस्तियों में सुविधाओं के अभाव में तो अपराध होते ही हैं, अधिकांश परिवारों को एक-एक कमरे में रहना और सोना पड़ता है। बच्चे अक्सर माता-पिता अथवा पड़ौसियों को यौन सम्भोग करते हुए देखकर सेक्स सम्बन्धी अपराधों की ओर उन्मुख होते हैं।
5. क्षुधा और भुखमरी (Hunger and Starvation) – यह निर्धनता भी कभी-कभी चरम सीमा पर होती है। जब बच्चों को अपनी भूख शान्त करने के लिए निम्नतम स्तर का भी भोजन प्राप्त नहीं होता है तो वह अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। लड़कियाँ बहुधा सेक्स अपराध करने को तैयार हो जाती हैं। क्षुधा और भुखमरी की अवस्था में अपराध के विलक्षण दृश्य देखे जा सकते हैं।
सामाजिक और विकृतिजनक पारिवारिक कारक (Social and Pathogenic Family Factors)
1. पक्षपात (Favouritism) – कुछ परिवारों में यह देखा जाता है कि माता-पिता अपने एक बच्चे को अधिक लाड़-प्यार करते हैं, दूसरे को उतना नहीं, एक को सुविधाएँ अधिक मिलती हैं, दूसरे को कम। एक परिस्थिति यह भी हो सकती है कि माँ एक बालक को अधिक स्नेह करती है तो पिता दूसरे बालक को लाड़ प्यार अधिक करते हैं। ऐसी अवस्था में परिवार में अनुशासन नहीं रहता है; परिवार के बच्चे बिगड़ जाते हैं।
2. सौतेली माँ ( Step Mother) – जब बच्चों की माँ सौतेली है तो इस अवस्था में बालक को लाड़ प्यार मिलने के बहुत कम अवसर होते हैं। अतः लाड़-प्यार के अभाव में सौतेली माँ के निर्दयतापूर्ण व्यवहार के कारण बालकों के अपराधी बनने की सम्भावना अधिक होती है।
3. अशिक्षित माता-पिता (Illiterate Parents) – जब माता-पिता अशिक्षित होते हैं तो वह अपने बच्चों का उपयुक्त ढंग से लालन-पालन नहीं कर पाते हैं। वे अपने बच्चों को सही रास्ते पर चलाने में अशिक्षा के कारण असमर्थ होते हैं। फलस्वरूप, बालकों के अपराधी होने की सम्भावना अधिक होती है।
4. बुरे साथी (Bad Companions) – बालक के बुरे साथियों में उसके समान आयु वाले लोग भी हो सकते हैं और उसके वयस्क साथी भी हो सकते हैं। बालक के साथी यदि अपराधी प्रवृत्ति के होंगे, तो निश्चय ही इसका प्रभाव बालक के व्यवहार पर पड़ेगा। बालक में भी अपराधी प्रवृत्तियाँ शीघ्र उत्पन्न हो जाती हैं। साथी प्रभाव में बुरे पड़ोस को भी ले सकते हैं। पड़ौसी यदि जुआरी, शराबी, चोर, गुण्डे हैं तो निश्चय ही इसका प्रभाव बालकों के व्यवहार पर पड़ता है।
5. अनैतिक परिवार (Immoral Home) – अध्ययनों में यह देखा गया है कि जिन परिवारों के सदस्य स्वयं अपराधी होते हैं या अनैतिक कार्यों में मस्त होते हैं तो ऐसे परिवार के बालकों के अनैतिक कार्यों को करने की सम्भावना अधिक होती है। परिवार में माता-पिता और भाई-बहनों का प्रभाव बालक पर सर्वाधिक पड़ता है। यदि इनमें से कोई अनैतिक कार्य या व्यवहार करने वाला है तो बालक द्वारा अपराधी प्रवृत्ति अपनाने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है।
6. सामाजिक प्रथाएँ (Social Customs) – कुछ सामाजिक प्रथाओं जैसे दहेज प्रथा, अनमेल विवाह आदि ने भी अपराधों को बढ़ावा दिया है। अनमेल विवाह में बहुधा छोटी उम्र की लड़कियों का विवाह अधिक आयु के व्यक्तियों से होता है। यौन इच्छाओं की सन्तुष्टि न होने पर ऐसी लड़कियों से यौन अपराध होते हैं।
7. माता-पिता का तिरस्कार और दोषपूर्ण अनुशासन (Parental Rejection and Faulty Discipline) – परिवार में माँ अथवा पिता या दोनों यदि बालक के प्रति तिरस्कृत व्यवहार अपनाते हैं तो बालक ऐसे माता-पिता को आदर्श मॉडल के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं और वे आक्रामक तथा अपराधी व्यवहार की ओर प्रेरित होते हैं। एक अध्ययन (M. K. Bacon et al., 1963) में यह देखा गया कि अनपढ़ परिवारों में जहाँ बच्चों को कुछ सुविधाओं से वंचित रखा जाता है तो उनमें बालकों के अपराध का घटनाक्रम बढ़ जाता है। कुछ अन्य अध्ययनों में यह देखा गया है कि जब संरक्षकों का बालकों के प्रति तिरस्कृत व्यवहार होता है और बालकों पर दोषपूर्ण अनुशासन रहता है तो बालकों में झूठ बोलने, चोरी करने, घर से भागने तथा आक्रामक व्यवहार करने की प्रवृत्ति विकसित होती है।
8. भग्न परिवार ( Broken Homes) – तलाक, मृत्यु तथा आपसी लड़ाई-झगड़े के कारण परिवार का संगठन बिगड़ जाता है। परिवार के सदस्य एक-दूसरे से अलग रहने लग जाते हैं। इस प्रकार के टूटे परिवारों में संरक्षण के अभाव के कारण बालकों के अपराधी प्रवृत्ति अपनाने के अधिक अवसर होते हैं। अनेक अध्ययनों से भी यही निष्कर्ष निकाला गया है कि भग्न परिवारों में बाल अपराधियों की संख्या सामान्य परिवारों की अपेक्षा अधिक होती है।
9. सामाजिक विकृतिजन्य संरक्षक मॉडल (Sociopathic Parental Model) – बन्दूरा (A. Bandura, 1973) ने अपने अध्ययनों में यह देखा कि अधिकांश बाल-अपराधियों के माता-पिताओं में सामाजिक विकृतिजन्य विशेषताएँ (Sociopathic Traits) पायी जाती हैं। कुछ मुख्य सामाजिक विकृतिजन्य विशेषताएँ जैसे शराबी, समाज-विरोधी अभिवृत्तियाँ अनावश्यक रूप से बाहर रहना, क्रूरता (Brutality) आदि विशेषताएँ यदि माता अथवा पिता या दोनों में पायी जाती हैं तो बालकों के अपराधी बनने के बहुत अधिक अवसर होते हैं। एक अध्ययन (M. Scharfman and R. W. Clark, 1967) में यह निष्कर्ष निकाला गया कि लड़कियों के अपराधी व्यवहार के मुख्य कारण हैं-टूटे परिवार (Broken Homes) का संवेगात्मक वंचन (Deprivation), संरक्षकों का अतार्किक और असंगत अनुशासन। इसके अतिरिक्त एक अन्य कारक भी लड़कियों में अपराधी व्यवहार को जन्म देता है-अभिभावकों द्वारा प्रदर्शित आक्रमण और सेक्स सम्बन्धी व्यवहार।
जैविक कारक (Biological Factors)
कुछ विद्वानों का मत है कि ‘Delinquents are born’। इस कथन का तात्पर्य है कि अपराध वंशानुगत है। इस दिशा में हुए प्रारम्भिक अध्ययनों में भी यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कुछ परिवारों में अपराधी व्यक्ति अन्य परिवारों की अपेक्षा अधिक होते हैं।
कुछ आधुनिक genetic अध्ययनों में यह देखा गया है कि अपराधियों में एक y-Chromosome अधिक पाया जाता है। इस प्रकार एक अधिक क्रोमोसोम पाया जाना जैविक असंगति अथवा अनियम है। यहाँ पाठकों को यह बता देना आवश्यक है कि स्त्रियों में XX-Chromosome पाये जाते हैं तथा पुरुषों में XY-Chromosome पाये जाते हैं, किन्तु किसी पुरुष में XYY-Chromosomes पाये जाने को असंगति ही कहेंगे। जिन व्यक्तियों में XYY-Chromosomes पाये जाते हैं, वे व्यक्ति अधिक लम्बे, सामान्य बुद्धि के किन्तु आक्रामक व्यवहार वाले होते हैं। एक अध्ययन (Jacobes. et al., 1956) में 197 अपराधियों के अध्ययन में देखा कि इनमें से 7 अपराधियों में XYY-Chromosomes का संयुक्तीकरण था। XYY क्रोमोसोम्स संयुक्तीकरण वाले अपराधियों की संख्या सम्पूर्ण अपराधियों में केवल 2% ही है। XYY-क्रोमोसोम्स वाले अपराधियों के लिए कहा जाता है कि वह अतिरिक्त क्रोमोसोम्स पिता का होता है जो आक्रामक अथवा अपराधी होता है अर्थात् आक्रामक अथवा अपराधी पिता से प्राप्त अतिरिक्त क्रोमोसोम की उपस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार अपराधी होने की सम्भावना अधिक होती है। यदि यह अतिरिक्त Y क्रोमोसोम सीधे-सादे पिता का है तो बालक के अपराधी (केवल इस क्रोमोसोम के कारण) होने की सम्भावना नहीं होती है
व्यक्तिगत व्याधिकी (Personal Pathology)
1. मस्तिष्क क्षति और मन्द बुद्धि (Brain Damage and Mental Retardation)- कुछ आधुनिक अध्ययनों में यह देखा गया है कि जब मस्तिष्क का एक भाग विशेष क्षतिग्रस्त हो जाता है तो व्यक्ति में आक्रामक व्यवहार उत्पन्न हो जाता है (E. Jr. Kiestr, 1974)। क्षतिग्रस्त मस्तिष्क वाले व्यक्ति आवेगी, संवेगात्मक तथा अत्यधिक क्रियाशील होते हैं तथा वे तीव्र उद्दीपकों के प्रति अपने आपको नियन्त्रित नहीं कर पाते हैं। कुछ अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि सम्पूर्ण बाल अपराधियों में 5% माल-अपराधी निम्न बुद्धि-स्तर के होते हैं। अतः मस्तिष्क की बाल अपराधियों में 5% बाल-अपराध को प्रभावित करने वाले सार्थक कारक हैं।
2. मनोष्याधिकीय व्यक्तित्व (Psychopathic Personality)- अध्ययनों में देखा गया है कि आदतजन्य अपराधियों का व्यक्तित्व दोषपूर्ण होता है या ये अपराधी समाज-विरोधी व्यक्तित्व वाले होते हैं। इसके व्यक्तित्व की कुछ मुख्य विशेषताएँ हैं- आवेगी, उपेक्षापूर्ण, रोषपूर्ण (Resentful), पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने के अयोग्य आदि। इस प्रकार की विशेषताएँ पुरुष अपराधियों में पायी जाती हैं। जिन व्यक्तियों में इस प्रकार की व्यक्तित्व विशेषताएँ पायी जाती हैं, उनके अपराधी होने की अधिक सम्भावना होती है। महिला अपराधियों में अनुपयुक्तना, विद्रोह, आवेग, अस्थिरता तथा अपरिपक्वता की विशेषताएँ पायी जाती हैं।
3. मनस्ताप और मनोविक्षिप्तता (Neuroses and Psychoses)- बहुत-से मानसिक रोगी भी बाल-अपराधी बन जाते हैं। सम्पूर्ण बाल-अपराधियों में लगभग 5% तक मनस्ताप से पीड़ित व्यक्ति अपराधी होते हैं। इसी प्रकार सम्पूर्ण बाल-अपराधियों में 6% अपराधी मनोविक्षिप्तता रोगों से पीड़ित होते हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि बाल-अपराध का कारण विभिन्न मानसिक रोग भी हैं। मनोग्रस्तता बाह्यता मनस्ताप चोरी करने वाले अपराधियों में अधिक पाया जाता है।
4. नशीले पदार्थों का गलत प्रयोग (Drug Abuse) – अध्ययनों में देखा गया है कि वैश्यागमन करने वाले, चोरी करने वाले और हमला करने वाले अपराधी नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। बहुधा देखा गया है कि नशा करने वाले व्यक्तियों के अपराधी बनने के अवसर अधिक होते हैं। नशा करने के लिए जब इन्हें पैसों की जरूरत होती है तो यह व्यक्ति चोरी और हमला करके लूटने जैसे अपराध करते हैं।
अवांछनीय साथी सम्बन्ध (Undesirable Pair Relations)
जब व्यक्ति अपराधी व्यक्तियों से मित्रता रखता है, तब इस व्यक्ति के अपराधी बनने की सम्भावना बढ़ जाती है। बाल-अपराधी गिरोह से जो एक बार सम्बन्धित हो जाता है, उसे इन गिरोहों से सम्बन्ध तोड़ना बहुत कठिन हो जाता है। इन गिरोहों की अपनी अलग मूल्य व्यवस्था होती है। इन गिरोहों में स्त्री सदस्यों को भर्ती किया जाता है। इन स्त्री सदस्यों का कार्य प्रमुखतः हथियारों और अवैध वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचाना तथा समय-समय पर गैंग के पुरुष सदस्यों के कामुक प्रस्तावों को स्वीकार करना है। विकसित देशों में अब लड़कियों के अलग गैंग बनते हैं। पुरुष गिरोहों की भाँति ही ये गैंग कार्य करते हैं। हैने और गोल्ड (1973) के अनुसार, दो-तिहाई अपराध किसी एक अथवा दो व्यक्तियों के साथ मिलकर किये जाते हैं तथा शेष अपराधों में तीन से अधिक व्यक्ति होते हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक कारक (Socio-cultural Factors)
1. समाज से तिरस्कृत (Social Rejects)- अपने समाज में एक नये प्रकार के लोगों की जनसंख्या बढ़ रही है। इन नये प्रकार के लोगों में प्रेरणा का अभाव होता है। ये पढ़ने-लिखने में होशियार नहीं होते हैं। अधिकतर यह स्कूल से भागने वाले होते हैं। ऐसे लोग किसी भी व्यावसायिक कार्य के लिए अधिक उपयुक्त नहीं होते हैं। अतः इन्हें काम-धन्धा मुश्किल से मिल पाता है। इस प्रकार के छात्र सभी सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले परिवारों के हो सकते हैं। इन लोगों में समान रूप से यह भावना पायी जाती है कि समाज से हम तिरस्कृत हैं। इस प्रकार के लोगों में कुछ लोगों को काम-धन्धा मिल जाता है, शेष अपराधी कार्यों की ओर उन्मुख होते हैं और अपराधी कार्यों से प्राप्त धन से अपना जीवन-निर्वाह करते हैं।
2. विद्रोह की भावनाएँ (Feelings of Rebellion ) – सभी सामाजिक आर्थिक स्तर वाले समूहों के बालकों और किशोरों में विद्रोह की भावनाएं पर्याप्त मात्रा में पायी जाती हैं। अध्ययनों में देखा गया है कि इस प्रकार की भावना रखने वाले व्यक्ति घर से भाग जाते हैं और बहुधा वे ऐसे लोगों में शरण पाते हैं, जो पहिले से ही अपराधी होते हैं। अतः भागे हुए व्यक्ति के अपराधी बनने की सम्भावना बढ़ जाती है।
प्रतिबल (Stress)
कभी-कभी प्रतिबल परिस्थितियाँ बालकों तथा वयस्कों को अपराध करने के लिए प्रेरित करती हैं। क्लार्क (J. Clarke, 1961) ने अध्ययन में देखा कि परिवार में प्रतिबल परिस्थितियाँ अधिक उत्पन्न होती हैं तो व्यक्ति के अपराधी बनने की अधिक सम्भावना होती है। इस अध्ययन में क्लार्क ने यह देखा कि लगभग एक-तिहाई बाल-अपराधी अत्यधिक तनावपूर्ण घटनाओं के कारण अपराधी व्यवहार अपनाते हैं। उदाहरणार्थ, जब अभिभावकों की मृत्यु हो जाती है या उनका पारिवारिक जीवन अवरुद्ध हो जाता है, ऐसी घटनाएँ बालकों के व्यक्तित्व को विघटित करती हैं, जिससे उनके स्कूल की उपलब्धि में बाधा पड़ती है और वे स्कूल से भागने लगते हैं और धीरे-धीरे अपराधी व्यवहार अपना लेते हैं।
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