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भारत की निर्धनता के प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं ?

भारत की निर्धनता के प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं ?
भारत की निर्धनता के प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं ?

भारत की निर्धनता के प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं ? इसके निवारण हेतु सरकार ने क्या प्रयास किए हैं और वे कहाँ तक सार्थक हुए हैं ?

भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण

किसी भी देश में निर्धनता के कारण उसी देश में विद्यमान होते हैं। भारत में निर्धनता के मुख्य कारणों का विवरण निम्नलिखित है—

निर्धनता के व्यक्तिगत कारण

निर्धनता के कुछ कारण व्यक्ति की अपनी विशेषताओं और गुणों पर निर्भर करते हैं। ये कारण निम्नलिखित हैं-

1. शारीरिक अपंगता- जो व्यक्ति लंगड़े लूले, बहरे तथा अन्धे होते हैं, वे किसी कार्य को ठीक प्रकार से नहीं कर पाते और इस प्रकार उनकी आय दिन-प्रतिदिन कम होती जाती हैं। अपंग होने के कारण ऐसे व्यक्ति कोई विशेष कार्य भी नहीं कर सकते।

2. आलस्य तथा काहिली- कुछ व्यक्ति जन्मजात आलसी होते हैं। वे काम मिलने पर भी कुछ नहीं करना चाहते। ऐसे व्यक्तियों का निर्धन रहना स्वाभाविक ही है।

3. बुरे व्यसन- शराबखोरी, वेश्यावृत्ति, जुआ खेलना या सट्टा लगाना आदि अत्यधिक घातक व्यसन हैं, जो परिवार को निर्धनता से मस्त करने में सहायक होते हैं। जो धन मूल आवश्यकताओं पर खर्च होना चाहिए, उपर्युक्त व्यसनों पर खर्च हो जाता है

4. बीमारी – अस्वस्थ व्यक्ति कोई काम नहीं कर पाता तथा अपने रोग को ठीक करने में व्यय अधिक कर देता है। इस प्रकार, उसकी आय तो दिन-प्रतिदिन कम होती जाती है और व्यय बढ़ता जाता है। अन्त में, वह निर्धनता से प्रस्त हो जाता है। भारत में स्वास्थ्य का स्तर निम्न है, अतः निम्न आर्थिक वर्ग के व्यक्ति प्रायः विभिन्न रोगों के शिकार रहा करते हैं। इससे निर्धनता के चंगुल से मुक्त हो पाना कठिन रहता है।

5. निरक्षरता- निरक्षर व्यक्ति अपने किसी व्यवसाय को कुशलता से नहीं कर पाता, शिक्षा व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि करती है। निरक्षर व्यक्ति कुशलतापूर्वक काम न करने के कारण अधिक धन नहीं कमा पाता और न आय बढ़ाने के साधनों पर विचार कर पाता है।

6. अपव्यय की प्रवृत्ति- निर्धनता का एक व्यक्तिगत कारण अपव्यय की प्रवृत्ति भी है। कुछ व्यक्ति अपनी आय से अधिक खर्च करने के अभ्यस्त हो जाते हैं। वे मूल आवश्यकताओं की वस्तुओं पर खर्च न करके फैशन और शान-शौकत की वस्तुओं पर अधिक खर्च कर देते हैं। इस प्रकार, आमदनी से अधिक खर्च कर देने पर परिवार निर्धनता का शिकार हो जाता है।

7. मानसिक दोष- यदि व्यक्ति मानसिक रूप से रोगी है तो उसके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं होगा और धन के अभाव में उसे निर्धन कहा जाएगा।

8. कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु – किसी एक परिवार में जब किसी कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो समस्त परिवार निर्धनता में डूब जाता है।

निर्धनता के सामाजिक कारण

निर्धनता के लिए निम्नलिखित सामाजिक कारण भी उत्तरदायी होते हैं-

1. कर्मकाण्डों पर धन का अपव्यय- आज भी भारत की लगभग 75% जनसंख्या अन्धविश्वासों और परम्परागत कर्मकाण्डों पर धन का व्यय करती है। विभिन्न संस्कार एवं उत्सवों आदि पर ग्रामवासी कर्ज लेकर भी पैसा खर्च करते हैं। इस प्रकार का अपव्यय उन्हें निर्धन बना देता है।

2. गन्दी बस्तियाँ- नगरीकरण के कारण भारत में बड़े नगरों में घनी बस्तियाँ विकसित हो गई हैं। इन घनी बस्तियों में रहने वाले परिवारों का जीवन अत्यन्त नारकीय है। इन बस्तियों में स्वच्छता और प्रकाश का अभाव रहने के कारण नागरिक या श्रमिक अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। अस्वस्थ एवं निम्न स्वास्थ्य के कारण जहाँ एक ओर वे पर्याप्त धन नहीं कमा पाते, वहीं दूसरी ओर बीमारी पर काफी खर्च करते हैं तथा परिणामस्वरूप निर्धनता के शिकार हो जाते हैं।

3. साम्प्रदायिक दंगे- दुर्भाग्य का विषय है कि भारत में समय-समय पर स्थानीय अथवा व्यापक स्तर पर साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं। इन दंगों के समय लूट-पाट, आगजनी, जैसी विध्वंसकारी घटनाएँ होती हैं। इसके अतिरिक्त कानून की व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन द्वारा कर्फ्यू लगा दिया जाता है। इस स्थिति में समस्त उत्पादन कार्य एवं व्यापारिक-व्यावसायिक गतिविधियाँ ठप हो जाती हैं। ये समस्त कारक गरीबी बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान देते हैं।

4. बाह्य आडम्बर और शान- शौकत-जब किसी परिवार के सदस्य शान-शौकत, फैशन तथा बाह्य आडम्बरों से प्रस्त हो जाते हैं, तब उनके खर्च करने की योजना अव्यवस्थित हो जाती है और आवश्यक वस्तुओं पर होने वाले व्यय को फिजूल की बातों पर खर्च कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप बाद में आवश्यक वस्तुओं पर खर्च करने के लिए धन बचता ही नहीं। यही स्थिति निर्धनता की स्थिति होती है।

5. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली- हमारे देश की शिक्षा प्रणाली सैद्धान्तिक और पुस्तकीय है। इससे छात्रों में व्यावहारिक जीवन में प्रवेश करने की क्षमता का विकास नहीं होता। व्यावहारिक शिक्षा पर अभी तक बल नहीं दिया गया है। बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ प्राप्त करने के पश्चात् भी विद्यार्थी बेकार भटकते रहते हैं। यह बेकारी भी निर्धनता में वृद्धि करती है।

6. युद्ध- बाह्य आक्रमण के कारण देश की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है, राष्ट्र के आर्थिक साधन युद्ध-सामग्री तैयार करने में लगा दिए जाते हैं और जन-कल्याण कार्य रोक दिए जाते हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत को एक बार चीन तथा दो बार पाकिस्तानी आक्रमणों का सामना करना पड़ा, जिससे राष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा। कारखानी पर बम गिर जाने से अनेक कारखाने नष्ट हो गए। इस प्रकार, युद्ध भी निर्धनता को जन्म देता है।

निर्धनता के आर्थिक कारण

निर्धनता के कुछ प्रमुख आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं-

1. उद्योगों की पिछड़ी दशा- हमारे देश का औद्योगिक विकास अभी भी पिछड़ा हुआ है। वास्तव में, औद्योगिक विकास देश को सम्पन्न और समृद्धशाली बनाता है, परन्तु हमारे देश में औद्योगीकरण हमारी सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप नहीं हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिसके कारण ग्रामवासी आज भी निर्धन है।

2. पूँजी का दोषपूर्ण संचय- वैसे तो ग्रामीण किसान इतना निर्धन है कि वह पूँजी का संचय नहीं कर पाता, परन्तु यदि वह किसी प्रकार कुछ पैसा बचा भी लेता है तो उसके आभूषण बनवाकर जमीन में गाड़ देता है। आभूषण बनवाकर रखने की प्रवृत्ति अमीरों में भी पाई जाती है। इस प्रकार, जिस धन को उत्पादन कार्यों में लगाना चाहिए वह अनुत्पादक कार्यों में लगकर संचित होता रहता है। इसी कारण देश का औद्योगिक विकास नहीं हो पाता।

3. खेती का पिछड़ापन- हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की लगभग 70% जनता कृषि पर निर्भर करती है, परन्तु यह हमारे देश के लिए दुर्भाग्य का विषय है कि यहाँ कृषि की हालत बहुत पिछड़ी हुई है। हमारी कृषि मुख्यतः वर्षा पर निर्भर करती है। जिस वर्ष वर्षा नहीं होती, फसल पूर्णतया सूख जाती है। खेती करने के ढंग अभी भी परम्परागत तथा अवैज्ञानिक हैं। कृषि की यह पिछड़ी दशा हमारे देश के पिछड़ेपन तथा गरीबी के लिए उत्तरदायी है।

4. परिवहन और संचार के साधनों का असमान वितरण- हमारे देश में परिवहन और संचार के साधनों का असमान वितरण है। नगर में जितनी यातायात की सुविधाएँ हैं, उतनी गाँवों में नहीं। अनेक गाँव पक्की सड़कों के अभाव के कारण नगरों से पूर्णतया पृथक् हो गए हैं। अतः ग्रामवासी अपनी उपज को पूरे मूल्य पर नहीं बेच पाते हैं।

5. प्राकृतिक साधनों का उपयोग न किया जाना- हमारा देश प्राकृतिक सम्पत्ति का अगाध भण्डार है। यदि इनका उपयोग उचित ढंग से किया जाए तो हमारा देश सुखी व सम्पन्न हो जाए, परन्तु अभी तक उनका उचित ढंग से उपयोग नहीं किया जा सका है। रूढ़िवादिता एवं नवीन मूल्यों को तीव्रता से न अपनाने की प्रवृत्ति के कारण प्राकृतिक साधनों का उपयोग भी हम पूर्णतया नहीं कर पाए हैं।

निर्धनता के भौगोलिक कारण

निर्धनता के निम्नलिखित भौगोलिक कारण हैं-

1. प्रतिकूल जलवायु – हमारे देश की अत्यधिक गर्म जलवायु यहाँ की कार्य क्षमता पर प्रभाव डालती है। जिन दिनों अत्यधिक गर्मी पड़ती है, उन दिनों काम करना कठिन हो जाता है और इस प्रकार उत्पादन और आय दोनों पर प्रभाव पड़ता है।

2. प्राकृतिक प्रकोप – हमारे देश में प्रतिवर्ष कुछ भागों में भयंकर बाढ़ें आती हैं, जिससे अनेक गाँव जलमग्न हो जाते हैं। इसी प्रकार, कभी-कभी वर्षा न होने के कारण फसल पूरी तरह सूख जाती है। इस प्रकार प्रकृतिक प्रकोप प्रातवर्ष भारतीय किसानों की दरिद्रता में योग देते हैं। पिछले कुछ वर्षों में समुद्री तूफान, बाढ़ एवं सूख का प्रकोप इतना अधिक रहा है कि अधिकांश विकास योजनाओं के स्थान पर पैसा इनसे प्रभावित व्यक्तियों को राहत दिलाने के लिए खर्च करना पड़ा है। कभी-कभी भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी आर्थिक स्थिति को छिन्न-भिन्न कर देती हैं। अक्टूबर, 1991 में उत्तर प्रदेश में तथा 1993 में महाराष्ट्र में आने वाले भूकम्प से अरबों रुपये की हानि हुई है।

निर्धनता के परिणाम

यह कहना पूर्णतया सत्य है कि निर्धनता एक अभिशाप है। निर्धनता के कारण किसी समाज का ढाँचा चरमरा जाता है और विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। निर्धनता के प्रमुख परिणाम अग्रलिखित हैं-

1. वेश्यावृत्ति – भूख की ज्वाला स्त्रियों को शरीर बेचने के लिए विवश कर देती है। जब स्त्रियों के पास तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं होते और पेट भरने के लिए भोजन के लिए पैसे नहीं होते, तो वे अपना शरीर तक बेचने को विवश हो जाती हैं।

2. भिक्षावृत्ति को प्रोत्साहन – भिक्षावृत्ति को प्रोत्साहित करने में निर्धनता का विशेष योगदान रहता है। जब व्यक्ति को पेट भरने के लिए कोई साधन नहीं मिलता तो वह भीख माँगकर पेट भरता है। किसी भी समाज में भिखारियों की अधिक संख्या होना अत्यधिक लज्जाजनक है।

3. अपराधों की संख्या में वृद्धि – जब व्यक्ति को भर पेट भोजन नहीं मिलता तो वह अपराध की ओर उन्मुख होता है। वह मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चोरी, डकैती सभी कुछ कर सकता है। अपराधियों के अध्ययनों से यह पता चलता है कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति काफी सीमा तक उनकी अपराधी प्रवृत्ति के लिए उत्तरदायी है। कुछ लोग तो निर्धनता को अपराध का प्रमुख कारण मानते हैं।

4. आत्महत्याओं में वृद्धि – कभी-कभी परिवार का मुखिया अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पाता तो वह निराश होकर आत्महत्या तक कर लेता है। आए दिन समाचार पत्रों में ऐसे समाचार पढ़ने को मिलते हैं, जिसमें किसी माँ ने निर्धनता से तंग आकर अपनी तथा अपने बच्चों की जीवन लीला समाप्त कर ली।

5. बाल अपराधों में वृद्धि- निर्धन परिवारों के बालकों की जब मूल आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती तो वे भी चोरी तथा राहजनी आदि अपराधों की ओर उन्मुख होते हैं। इससे बाल अपराधियों की संख्या में वृद्धि होने लगती है।

उपर्युक्त संक्षिप्त विवरण द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि निर्धनता जीवन के प्रत्येक पक्ष पर बुरा प्रभाव डालती है। इसलिए कहा जाता है कि निर्धनता सभी बुराइयों की जड़ है।

निर्धनता को दूर करने के उपाय

निर्धनता एक अभिशाप है तथा प्रत्येक समाज़ इस अभिशाप से मुक्त होना चाहता है। निर्धनता के अभिशाप से मुक्त होने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं—

1. उद्योगों का समुचित विकास- निर्धनता को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के उद्योगों का विकास किया जाए। ग्रामीण स्तर पर लघु उद्योगों का विस्तार ग्रामीण निर्धनों एवं बेरोजगारों को रोजगार दिलाने में सहायक हो सकता है। अगर औद्योगीकरण की प्रक्रिया सुनियोजित रूप से हा तो निर्धनता दूर हो सकती है। उद्योगों को ग्रामीण क्षेत्रों में भी लगाया जाना जरूरी है।

2. कृषि में सुधार- यांत्रिक खेती तथा सिंचाई के साधनों का उपयोग करके कृषि की दशा को सुधारा जाए। यदि तकनीकी विकास अधिक होगा तो प्राकृतिक साधनों पर हमारी निर्धनता कम हो जाएगी। भूमि-व्यवस्था में सुधार करना भी आवश्यक है।

3. व्यापक शिक्षा-प्रसार – शिक्षा का व्यापक प्रसार किया जाए, परन्तु शिक्षा व्यावहारिक तथा व्यावसायिक होनी चाहिए केवल डिग्री बाँटने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि व्यक्ति केवल नौकरी के योग्य ही न बने, अपितु कुछ अन्य कार्य भी करना पीख जाए। तकनीकी एवं व्यावहारिक शिक्षा को अधिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

4. ऋण सुविधाओं की व्यवस्था- निधन नवीन रोजगार चला सकें, इसके लिए उन्हें सरकार द्वारा कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करने की व्यवस्था की जाए।

5. प्राकृतिक प्रकोपों से सुरक्षा- सरकार को बाढ़ तथा सूखा जैसे प्राकृतिक प्रकोपों पर नियन्त्रण की व्यवस्था करनी चाहिए।

6. बढ़ती महँगाई पर रोक- बढ़ती महँगाई निर्धनों के लिए एक समस्या है। अतः यथासम्भव विभिन्न उपार्यो द्वारा बढ़ती महंगाई पर नियन्त्रण स्थापित किया जाए।

7. कुटीर उद्योगों का विकास- बड़े उद्योगों के साथ कुटीर उद्योगों के विकास की ओर भी ध्यान देना आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों की स्थापना विशेष लाभदायक सिद्ध होगी।

8. जनसंख्या पर नियन्त्रण- तीव्रता के साथ बढ़ती जनसंख्या पर नियन्त्रण करके भी निर्धनता से मुक्त हुआ जा सकता है। इसके लिए परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जाए और जबरदस्ती के स्थान पर छोटे परिवार के प्रति जनमत तैयार किया जाना चाहिए।

9. बचत की आदत को प्रोत्साहन- जनसाधारण को बचत करने की आदत भी डलवायी जाए। इसके लिए फिजूलखर्ची की आदत को समाप्त करना होगा।

10. फिजूलखर्ची पर प्रतिबन्ध- विलासिता तथा शान-शौकत पर किए जाने वाले व्यय पर नियन्त्रण की व्यवस्था करनी चाहिए।

11. बेकारी को दूर करना- विभिन्न योजनाओं द्वारा बेकारी को दूर करने का प्रयास किया जाए। बेकार लोगों को उस समय तक बेरोजगारी भत्ता दिया जाए, जब तक कि वे किसी काम में न लग जाएँ।

12. न्यूनतम मजदूरी का निश्चय – श्रमिकों को पूँजीपतियों के शोषण से मुक्त करने के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जाए।

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Anjali Yadav

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