व्यक्तिगत निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप को समझाइये।
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व्यक्तिगत निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा
प्राय: निर्देशन कार्य व्यक्तिगत रूप से ही सम्पन्न होता है, चाहे वह व्यावसायिक निर्देशन हो अथवा शैक्षिक निर्देशन या अन्य किसी प्रकार का निर्देशन। यह अपने स्वरूप तथा प्रतिक्रियात्मक दृष्टि से मूलतः वैयक्तिक क्रिया है। इसी कारण ‘व्यक्तिगत निर्देशन’ शब्द के प्रयोग से अक्सर भ्रान्ति उत्पन्न होती है और लोग भूल से यह समझ लेते हैं कि निर्देशन के अन्य प्रकारों में व्यक्तिगत पुट नहीं होता है। क्रो एण्ड को ने इस सम्बन्ध में स्पष्टीकरण देते हुये कहा कि सही अर्थ में “व्यक्तिगत निर्देशन का तात्पर्य व्यक्ति को प्रदत्त उस सहायता से है, जो उसके जीवन के सभी क्षेत्रों और अभिवृत्तियों के विकास को दृष्टिगत रखकर बेहतर समायोजन के प्रति निर्दिष्ट होती है।”
व्यक्तिगत समस्याओं का स्वरूप
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में समय-समय पर अनेक व्यक्तिगत समस्याओं का सामना करता है। समस्याओं का समाधान ही वास्तव में जीवन है। अब प्रश्न उठता है कि व्यक्तिगत समस्यायें कितने प्रकार की और कौन-कौन सी होती हैं ? व्यक्तिगत समस्याओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है— (1) व्यक्तिगत समस्यायें तथा (2) सामाजिक समस्यायें। व्यक्तिगत समस्याओं को भी अध्ययन की सुविधा के लिए दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- (i) शरीर से सम्बन्धित व्यक्तिगत समस्यायें तथा (ii) मनोवैज्ञानिक समस्यायें। शरीर से सम्बन्धित समस्याओं को हम रोग, अस्वस्थता और विकास की असामान्यता को शामिल कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक समस्याओं में उन समस्याओं को शामिल किया जाता है, जो मूल प्रवृत्तियों की सन्तुष्टि से सम्बन्धित होती हैं, जैसे कि यौन इच्छा की तृप्ति की समस्या । इसके अलावा अनेक संवेगों के अनुकूलन की समस्या भी एक व्यक्तिगत समस्या है। चूँकि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में विभिन्न समस्याओं का सामना करता है, लेकिन जब समस्यायें अधिक जटिल हो जाती हैं और निरन्तर रूप से किसी व्यक्ति के जीवन में उपस्थित होती हैं तो इनसे उस व्यक्ति का व्यक्तित्व अत्यधिक प्रभावित होता है। इन समस्याओं के फलस्वरूप व्यक्ति उदासीन, चिन्तामग्न, पलायनवादी तथा चिड़चिड़े स्वभाव वाला बन जाता है। कभी-कभी ऐसे व्यक्ति अपराध तथा अन्य असामान्य व्यवहार करने लगते हैं।
वैयक्तिक निर्देशन के आधारभूत सिद्धान्त
- व्यक्ति की अनेक समस्याओं में अन्तर्सम्बन्ध विद्यमान रहता है।
- व्यक्ति की समस्या तथा समस्या के समाधान के प्रति निजी धारणा का समस्या के समाधान का हल ढूँढ़ने में महत्वपूर्ण स्थान है।
- वैयक्तिक समस्यायें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कारणों से उत्पन्न होती हैं। परामर्शदाता को केवल लक्षणों पर हो अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहिए, बल्कि समस्या के मूल कारणों को ज्ञात करके निर्देशन प्रदान करना चाहिए।
- व्यक्ति अखण्डित तथा जटिल होता है।
- व्यक्ति को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अपनी अन्तर्दृष्टि का विकास करना चाहिए।
- यह आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।
- निर्देशन सेवाओं में लगे व्यक्तियों को विशिष्ट प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
- वैयक्तिक समस्याओं के साथ संवेगात्मक पहलू भी होता है।
- व्यक्ति के विशिष्ट पक्ष पर ध्यान देना।
- व्यक्ति की प्रतिष्ठा तथा महत्व को स्वीकार करना।
- वैयक्तिक भिन्नताओं के आधार पर निर्देशन प्रदान करना।
- निर्देशन प्रक्रिया में कार्यकर्ता द्वारा किए जाने वाले कार्यों में सामंजस्य होना चाहिए।
- निर्देशक को समकालीन सामाजिक तथा राजनीतिक स्थितियों का ज्ञान होना चाहिए।
- अधिक से अधिक व्यक्तियों को सामान्य मानकर निर्देशन प्रदान किया जाना चाहिए।
- निर्देशनकर्त्ता द्वारा निर्देशन के नैतिक आचरण तथा संहिता का पालन करना चाहिए।
शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन का स्वरूप
प्राथमिक स्तर पर प्राथमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन का रूप विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखकर निर्धारित किया जा सकता है। क़ो और क़ो के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के कैलीफोर्निया राज्य के माटेवेलों के स्कूलों में चलने वाले निर्देशन कार्यक्रमों में विद्यार्थियों की निम्नलिखित आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयत्न किया जाता है-
1. अनुशासन – स्नेहपूर्ण तथा दृढ़ आत्मानुशासन की ओर उन्नति ।
2. सुरक्षा तथा भरोसे की भावना घर, विद्यालय तथा विद्यालय की सम्पूर्ण क्रियाओं में ।
3. अच्छा स्वास्थ्य- सन्तुलित तथा पर्याप्त भोजन, अपेक्षित निद्रा या विश्राम ।
4. व्यावसायिक कौशल- संसार के कार्यों का सामान्य ज्ञान ।
5. आधारभूत कौशलों का ज्ञान- सीखने तथा समझने की योग्यता के अनुसार।
6. अवकाश के समय के क्रिया-कलाप- वैयक्तिक रुचियों तथा मनोरंजन के सन्दर्भ में मित्रों तथा सामाजिक स्वीकृति की इच्छा, विद्यार्थियों के बीच में और प्रौढ़ों के मध्य ।
7. जूनियर स्तर पर – वैयक्तिक निर्देशन का प्रयोजन यह है कि विद्यार्थियों के नेतृत्व के गुणों का विकास तथा अनुमान करने का गुण उनमें विकसित किया जा सके। वे एक समूह में एकता की भावना से कार्य कर सकें। उनकी शैक्षिक, व्यावसायिक तथा वैयक्तिक समस्याओं का अन्तर्सम्बन्ध इस स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन प्रदान करते हुए ध्यान में रखा जाना चाहिए।
क्रो और क्रो के अनुसार- जूनियर स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन की व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों को दृष्टिगत रखा जाये-
- विद्यार्थियों को इस तथ्य से परिचित कराना कि वैयक्तिक सामंजस्य की कुछ समस्यायें विकास के प्रक्रम में सामान्य रूप से आती रहती हैं।
- श्रम के महत्व तथा जीविकोपार्जन के विभिन्न प्रकारों से उन्हें परिचित कराना।
- उन गुणों का विकास करने की प्रेरणा देना जो रचनात्मक जीवन के लिए आवश्यक हैं।
- आवश्यकता पड़ने पर वैयक्तिक परामर्श के लिए निःसंकोच प्रस्तुत होना।”
- उनको अपने तथा दूसरों के हित के लिए उत्तरोत्तर अधिक उत्तरदायित्व के निर्वाह की प्रेरणा प्रदान करना।
- आगे की शिक्षा के प्रति उत्साहित करना तथा क्रियाशील बनाना ।
- विद्यार्थियों के विभिन्न व्यवसायों के प्रारम्भिक अध्ययन में उन्हें निर्देशन देना। अपनी योग्यता तथा रुचि के अनुसार व्यवसाय की धारणा का विकास करना।
- जीवन की वर्तमान तथा भावी योजनाओं के विषय में अपने माता-पिता, शिक्षक, परामर्शदाता के बीच सह-चिन्तन की आवश्यकता पर जोर देना।
- उन्हें कतिपय व्यावसायिक समस्याओं से परिचित कराना, जिनका साक्षात्कार उन्हें बाद में हो सकता है।
माध्यमिक स्तर पर – हाईस्कूल स्तर पर विद्यालयों की आवश्यकताओं, रुचियों को ध्यान में रखते हुए इस स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन का स्वरूप निर्धारित किया जा सकता है। हाईस्कूल स्तर पर विद्यार्थियों में इस भावना को विकसित किया जाना चाहिए कि समस्यायें सभी के सम्मुख आती हैं। समस्याओं की प्रकृति को समझाना तथा उनका हल खोजने की प्रवृत्ति विद्यार्थियों में विकसित करने में वैयक्तिक निर्देशन विद्यार्थियों की सहायता करता है। किशोरों के लिए स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था की जा सकती है, उनमें उचित निर्देशन से परिपक्वता तथा अच्छी नागरिकता के गुणों को विकसित किया जाना चाहिए। उन्हें आत्म-विश्वास उत्पन्न करने तथा अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए उत्साहित किया जाए।
छात्रों के नैतिक तथा सामाजिक विकास की दृष्टि से माध्यमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। सामुदायिक सेवा कार्यों तथा सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना के विकास के लिए उन्हें जन सेवा के कार्यों में लगाया जाना चाहिए। इस स्तर पर विद्यार्थियों की समस्याएँ बहुमुखी होती हैं। इसलिए उन्हें व्यापक सेवाएँ भी सुलभ की जाएँ। उनकी शैक्षिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक सम्बन्धों के अन्तर्सम्बन्ध पर ध्यान रखते हुए अभिभावकों, शिक्षकों तथा निर्देशन कर्मचारियों को सहयोगपूर्वक माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
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