शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
निर्देशन एक गतिशील एवं विकासशील प्रक्रिया है। छात्रों की उचित उन्नति एवं प्रगति के लिए शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षा के प्राथमिक स्तर से उच्च स्तर तक शैक्षिक निर्देशन छात्रों की उन्नति एवं प्रगति में सहायक होता है। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर निर्देशन के कार्य निम्नलिखित हैं-
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1. प्राथमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance at Primary School Stage)-
प्राथमिक स्तर के छात्रों का मानसिक विकास कम हुआ होता है। उनकी मानसिक शक्तियाँ अपरिपक्व होती हैं, इसलिए इस स्तर पर छात्रों को ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जो अन्य व्यक्तियों को बड़ी साधारण-सी कठिनाइयाँ प्रतीत होती हैं, लेकिन वास्तव में प्राथमिक स्तर के छात्रों के लिए वे कठिनाइयाँ बहुत गम्भीर प्रकृति की होती हैं। अतः इस स्तर पर शैक्षिक निर्देशन की अधिक आवश्यकता रहती है। इस स्तर पर शैक्षिक निर्देशन निम्नलिखित हो सकता है-
(i) छात्रों को उचित गरम्भ करने में सहायता देना (Assisting Pupils to make a proper Beginning) – प्राथमिक स्तर पर अध्यापक बालकों को अपने शैक्षिक कैरियर की शुभारम्भ करने में सहायता दे सकता है ताकि बालकों को किसी प्रकार की कुँठा (Frustration) का सामना न करना पड़े। इसके लिए विभिन्न प्रोत्साहनों (Incentives) की मदद ली जा सकती है।
(ii) छात्रों को उनकी शिक्षा में से अति उत्तम प्राप्त करने में सहायता देना (Aiding Pupils to get the best out of their Education) – बालकों की बौद्धिक योग्यताएँ, स्वास्थ्य, अभिरुचियाँ (Aptitudes), रुचियाँ (Interests), माता-पिता के ध्येय (Ambitions of Parents), आर्थिक परिस्थितियाँ आदि बालकों की शैक्षिक उन्नति या अवनति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालती हैं। अतः बालकों की शैक्षिक उन्नति के लिए उन्हें अच्छी शैक्षिक निर्देशन सेवाएँ प्रदान करके उपरोक्त क्षेत्रों में इन्हें लाभ पहुँचाया जा सकता है।
(iii) छात्रों की विवेकपूर्ण योजना बनाने में सहायता करना (Aiding Pupils to Plan Intelligently) – छात्रों को विभिन्न पाठ्यक्रमों से अवगत कराया जाना चाहिए। विभिन्न विषयों के कार्य क्षेत्र (Scope) के बारे में ज्ञान दिया जाना चाहिए। इसके पश्चात् ही भविष्य के बारे में योजना बनाई जानी चाहिए।
(iv) सैकेण्डरी स्कूल में प्रवेश के लिए तैयारी में सहायता (Preparing Pupils to Enter the Secondary School) – प्रारम्भिक शैक्षिक निर्देशन छात्रों को सैकेण्डरी स्तर में प्रवेश के लिए तैयार करता है या इस कार्य में छात्रों की सहायता करता है।
निर्देशन कार्यक्रम में, प्राथमिक स्तर पर शिक्षक की भूमिका एक केन्द्रीय भूमिका होती है। शिक्षकों, बालक के समूहों तथा उनके माता-पिता या अभिभावकों के बीच निर्देशन कार्यकर्ता का कार्य करता है तथा बालकों के विकास के लिए सुझाव देता है।
प्राथमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन कार्यक्रम की सफलता प्रधानाध्यापक, शिक्षक, परामर्शदाता आदि में समन्वय (Co-ordination) पर निर्भर करती है। इन सबके सम्मिलित प्रयासों द्वारा ही इस कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकता है।
प्राथमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन कार्यक्रम में निम्नलिखित बातें भी सम्मिलित की जा सकती हैं-
- छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार वर्ग बनाने।
- मन्द-बुद्धि तथा तीव्र बुद्धि बालकों को उनकी आवश्यकतानुसार अवसर प्रदान करने।
- असमायोजित तथा विकलांग बालकों की सहायता करना।
2. माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance at Secondary and Higher Secondary Stage) –
बालक प्राथमिक स्तर से निकलकर माध्यमिक स्तर में प्रवेश पाता है, तब उसका शिक्षा के साथ सम्बन्धों का स्वरूप कुछ नया ही होता है। इस स्तर पर बालक की मित्रता तथा सम्बन्ध बढ़ने शुरू हो जाते हैं। बालक के सोचने-विचारने का तरीका भी बदल जाता है तथा नये क्षेत्रों के साथ सम्बन्ध स्थापित होते हैं। इस स्तर पर स्कूल तथा शिक्षकों के प्रति दृष्टिकोण (Attitudes) बन चुके होते हैं या बनने लगते हैं। कुछ रुचियाँ परिपक्व हो जाती हैं, कुछ लगाव तथा अलगाव ( Likes and Dislikes) भी विकसित हो जाते हैं। बुद्धि और योग्यताएँ इस स्तर पर पूर्ण विकास ग्रहण कर लेती हैं। जिन बालकों को इस स्तर तक विकास के अवसर नहीं मिल पाते, इस स्तर के बाद उनका विकास सम्भव नहीं। सफल कार्यों से सम्बन्धित व्यक्तित्व के गुण भी स्थायी हो जाते हैं। इन सभी प्रकार के विकासों के परिणामस्वरूप बालक का वातावरण के साथ विशेष सम्बन्ध (Unique relationship) स्थापित हो जाता है। यह सम्बन्ध बालक के बौद्धिक व्यवहार को प्रभावित करता है।
यदि हम प्राथमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन ढंग से प्रदान नहीं करेंगे, तो माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन का कार्य बहुत ही कठिन तथा जटिल हो जायेगा। इस स्तर पर बालक के सभी साधनों को एकत्रित करके उसे अपने शैक्षिक और व्यावसायिक वातावरण को समझने में सहायता कर सकते हैं। बालक को इस योग्य भी बनाना है कि वह स्वयं को अपनी पढ़ाई के अनुसार समायोजित करे। ऐसा वह पाठ्यक्रम का विवेकपूर्ण चयन करके तथा विषय-वस्तु की कठिनाइयों को दूर करके कर सकता है। बालक को नई रुचियों और नये कौशलों के विकास के अवसर भी प्रदान करने चाहिए, ताकि प्रत्येक बालक स्वयं और समाज में वह अपना प्रभावी योगदान कर सके।
इस स्तर पर शैक्षिक निर्देशन निम्नलिखित क्रियाओं से भी किया जा सकता है-
(i) छात्रों को शिक्षा के नये उद्देश्यों से अवगत होने में सहायता देना (Aiding pupils to orient themselves to the new purposes of Education) – बालकों को इस स्तर पर यह निर्देशन देना आवश्यक होता है कि उन्हें किस प्रकार की शिक्षा उल्लासपूर्ण जीवन बिताने में सहायक हो सकती है और कौन-सी शिक्षा उन्हें व्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप से खुशहाल बना सकती है। माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन बालकों को यह समझाने में सहायक होता है कि उनकी क्षमता एवं साधनों के अनुसार उन्होंने किस क्षेत्र में प्रवेश करना है। इस स्तर के बाद छात्र व्यावसायिक प्रशिक्षणों एवं पाठ्यक्रमों की ओर अग्रसर होते हैं। इसलिए इस स्तर पर छात्रों को उनकी शिक्षा के उद्देश्यों से अवगत कराना अत्यन्त आवश्यक हो गया है।
(ii) छात्रों को उत्तम योजना की आवश्यकता से परिचित कराना (Aiding pupils to orient themselves to the need for good planning) – बालक प्रायः अच्छी या बुरी योजना बनाने की आवश्यकता से अनभिज्ञ (Ignorant) होते हैं, जो उनके जीवन को भविष्य में प्रभावित कर सकती है। यदि बालकों को दसवीं कक्षा में विवेकपूर्ण योजना से परिचित करा दिया जाये तो पाठ्यक्रम के चयन में होने वाली कई गलतियों को रोका जा सकता है। ऐसा कक्षावार्ताओं के प्रतिबद्ध कार्यक्रमों द्वारा किया जा सकता है।
(iii) अध्ययन के विषयों का विवेकपूर्ण चयन करके छात्रों को उनकी कक्षा में समायोजन करने में सहायता (Aiding pupils to adjust themselves in their education by making wise choices of the subjects of study) – fay चयन के समय प्रत्येक छात्र की सहायता की जानी चाहिए। इसे आमतौर पर पाठ्यक्रम निर्देशन के नाम से किया जाता है। इस स्तर पर पाठ्यक्रम-निर्देशन शैक्षिक निर्देशन का एक प्रमुख कार्य होता है। यदि छात्र सही पाठ्यक्रम का चयन कर लेता है तो वह अपनी शक्तियों एवं योग्यताओं का अधिकतम उपयोग कर पायेगा। भारत में पुनः रचित सैकेण्डरी शिक्षा पद्धति में विभिन्न पाठ्यक्रम (Diversified Curriculum) की व्यवस्था की गई है। यह कक्षा ग्यारहवीं से प्रारम्भ होता है। इस विविध पाठ्यक्रम का उद्देश्य भी यही है कि छात्र अपनी विकसित योग्यताओं, अभिरुचियों, रुचियों तथा व्यक्तित्व के गुणों (Abilities, Aptitudes, Interests and Personality Qualities) के अनुसार पाठ्यक्रम को चुनकर अपनी शैक्षिक शक्तियों का अधिकतम लाभ उठा सकें।
माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर छात्र की शैक्षिक क्षमताओं (Educational Potentialities) के बारे में सूचनायें एकत्रित करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन्हीं सूचनाओं के आधार पर ही बालकों को पाठ्यक्रम के चयन के बारे में निर्देशन प्रदान किया जाता है। इसलिए निर्देशन कार्यक्रम छात्रों को पाठ्यक्रम के चयन के बारे में विभिन्न पहलुओं से अवगत कराना अनिवार्य है, जैसे-
- (a) छात्रों को उच्च माध्यमिक स्कूल पाठ्यक्रम की प्रकृति और उद्देश्य से अवगत कराना। ऐसा कक्षा में वार्ताओं द्वारा तथा हॉबी (Hobby) क्लबों द्वारा किया जा सकता है।
- (b) छात्रों को 10 + 2 स्तर पर व्यावसायीकरण की पृष्ठभूमि में दर्शन (Philosophy) समझाना।
- (c) विभिन्न पाठ्यक्रमों के व्यावसायिक महत्व से अवगत कराना।
- (d) स्कूल छोड़ने वाले छात्रों को पॉलीटैक्नीकल और विश्वविद्यालय शिक्षा के बारे में सूचनाएँ प्रदान करना।
- (e) छात्रों को उनको अपनी योग्यताओं, अभिरुचियों (Aptitudes), कौशलों (Skills) और रुचियों (Interests) का अनुमान लगाने में सहायता प्रदान करना ।
- (f) क्षेत्र में उन स्कूलों के बारे में सूचना प्रदान करना, जो किसी विशिष्ट प्रकार के पाठ्यक्रम चलाते हों और वे पाठ्यक्रम किसी दूसरे स्कूल में न हों।
(iv) छात्रों को विषयों में कठिनाइयों को दूर करने और उत्तम अध्ययन कौशलों का विकास करके उनकी शिक्षा में उन्नति करने में सहायता करना (Aiding pupils to make progress in their education by removal of subject difficulties and development of good study skills)- उत्तम अध्ययन कौशलों तथा उपचारात्मक शिक्षण के महत्व को पहचाना जाने लगा है। शैक्षिक निर्देशन के एक अच्छे कार्यक्रम में यह सब कुछ सम्मिलित किया जाना चाहिए।
(v) अध्ययन के लिए उपयुक्त अभिप्रेरणा निर्मित करने में छात्रों की सहायता करना (Aiding pupils to build proper motivation for study)- स्कूलों में अध्ययन के लिए उपयुक्त अभिप्रेरणा का विकास बहुत ही आवश्यक है। यह कार्य इतना सरल नहीं होता। प्रत्येक स्कूल को अभिप्रेरणा की अपनी विधियों की खोज स्वयं ही करनी चाहिए। शिक्षा के उद्देश्यों तथा लक्ष्यों के स्पष्टीकरण द्वारा इस सम्बन्ध में बहुत कुछ किया जा सकता है।
इस प्रकार से सभी शैक्षिक क्रियायें निर्देशन-क्रियायें हैं। इसके अलावा निम्न क्रियायें भी इस स्तर के शैक्षिक निर्देशन में सम्मिलित की जानी चाहिएँ-
- (a) संचित अभिलेख (Cumulative Record) अवश्य रखा जाना चाहिए।
- (b) छात्र के व्यक्तित्व का क्रमबद्ध विकास ।
- (c) छात्र की रुचियों का क्रमबद्ध (Systematic) विकास
- (d) छात्र में उपयुक्त व्यावसायिक प्रेरकों (Motives) का क्रमबद्ध विकास ।
- (e) जब कभी छात्र विशेष समस्याओं का सामना करे तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से परामर्श देना।
- (f) पिछड़ेपन और समस्यात्मक व्यवहार से ग्रस्त छात्रों का उपचारात्मक विधियों से उपचार करना।
3. उच्च स्तर पर शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance at the Colleges Stage) –
उच्च स्तर पर छात्रों के व्यक्तित्व का स्वरूप परिपक्व हो जाता है। कई छात्रों के सम्मुख अधिक स्पष्ट लक्ष्य होते हैं। कुछ छात्र अपने उत्तरदायित्व को अनुभव करने लगते हैं। ऐसे छात्र अपने अध्ययन के प्रति बहुत गम्भीर होते हैं तथा सफलता और असफलता के अर्थ को समझते हैं, लेकिन फिर भी कई छात्र ऐसे होते हैं, जो यह सोचे बिना कॉलेज में प्रवेश पा लेते हैं कि कॉलेज शिक्षा का अर्थ क्या है। वे कॉलेज में इसलिए प्रवेश पा लेते हैं, क्योंकि उन्हें यह मालूम नहीं होता कि वे इसके अतिरिक्त और क्या करें ।
लेकिन कॉलेज में प्रवेश पाने के बाद उन्हें बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे छात्र अक्सर उस शिक्षा का कोई अर्थ नहीं मानते, जो कॉलेज स्तर पर वे प्राप्त करते हैं। वे कॉलेज में बिना किसी उद्देश्य के जाते हैं।
कॉलेज के निर्देशन कार्यक्रम में छात्रों की तात्कालिक आवश्यकताओं की ओर ध्यान देने की व्यवस्था हो। इसमें दोनों प्रकार के छात्रों की समस्याओं की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए, जैसे, वे छात्र जो विभिन्न कारणों से अपने कॉलेज कार्यों में कोई प्रगति नहीं कर पाते तथा वे छात्र जो उत्तम सुविधाओं का अधिक उपयोग नहीं कर पाते।
कॉलेज में प्रवेश के समय यदि छात्रों को शैक्षिक निर्देशन प्रदान किया जाए तो कई छात्रों को अधिक लाभदायक क्रियाओं की ओर भेजा जा सकता है। इससे विश्वविद्यालय शिक्षा पर भार भी कम होगा। निर्देशन से छात्रों को अपने विशिष्टीकरण (Specialization) का विषय चुनने में सहायता प्राप्त होती है, जोकि बाद में उसको व्यवसाय के चयन में सहायक होगा।
ट्यूटोरियल्स (Tutorials) के एक उत्तम संगठित कार्यक्रम द्वारा तथा उत्तम लाइब्रेरी सुविधाओं द्वारा छात्र की पढ़ाई में उन्नति के लिए उसे सहायता दी जा सकती है। यदि कॉलेज शिक्षा के शुरू में ही छात्रों को कॉलेज शिक्षा के कार्य क्षेत्र, प्रकृति तथा उद्देश्यों से परिचित करवा दिया जाए तो बहुत ही उत्तम हो। अक्सर यह सब कुछ छात्र पर ही छोड़ दिया जाता है। इससे छात्रों का समय बहुत नष्ट होता है। कॉलेज का प्रत्येक संकाय (Faculty) शैक्षिक निर्देशन का व्यापक कार्यक्रम शुरू करे, जैसे-प्रसार भाषण (Extension Lectures), ट्यूटोरियल्स (Tutorials), सेमीनार (Seminars) तथा बहसें (Discussions) इत्यादि। इस प्रकार की गतिविधियों से न केवल कॉलेज-शिक्षा अर्थपूर्ण हो सकेगी, अपितु कॉलेज-शिक्षा का स्तर भी ऊँचा उठ सकेगा।
इसलिए संक्षेप में कॉलेज स्तर पर शैक्षिक निर्देशन कार्यक्रम में निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल की जा सकती हैं-
- कॉलेज शिक्षा के शुरू में ही छात्रों को कॉलेज शिक्षा के कार्य क्षेत्र तथा उद्देश्यों से छात्रों को परिचित कराना।
- कॉलेज में प्रवेश के समय ही शैक्षिक निर्देशन शुरू किया जाना चाहिए।
- कॉलेज स्तर पर छात्रों की तात्कालिक आवश्यकताओं की ओर ध्यान देना।
- कॉलेज स्तर पर उन छात्रों को सहायता दी जाए, जो विविध कारणों से अपने कॉलेज कार्यों में कोई प्रगति नहीं कर पाते।
- कॉलेज स्तर पर शैक्षिक निर्देशन ट्यूटोरियल्स, प्रसार भाषणों, सेमीनार तथा बहस (Tutorials, Extension, Lectures, Seminars and Discussions) द्वारा प्रदान किया जा सकता है।
- कॉलेज का प्रत्येक संकाय (Faculty) व्यापक शैक्षिक निर्देशन कार्यक्रम अपने विद्यार्थियों के लिए प्रारम्भ करें।
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