निर्देशन के विभिन्न वर्गीकरणों को समझाइए।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के कारण उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्यायें व्यक्ति, जीवन और समाज के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित होती हैं। विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान उचित प्रकार से न किया जाये तो अनेक बाधायें उत्पन्न हो जाती हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न प्रकार की निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता होती है।
यदि इन निर्देशन सेवाओं का वर्गीकरण कर लिया जाये तो निर्देशन सेवाओं का उपयोग अधिक प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। अतएव समस्याओं के समाधान के लिए निर्देशन का वर्गीकरण अत्यन्त आवश्यक है।
Contents
निर्देशन का वर्गीकरण (Classification of Guidance)
विभिन्न विद्वानों ने निर्देशन के विभिन्न प्रकार बताये है, जिनका विवरण निम्न प्रकार है-
ब्रीवर का वर्गीकरण (Brewer’s Classification)
जॉन एम० ब्रीवर ने अपनी पुस्तक ‘शिक्षा निर्देशन है’ (Education is Guidance) में निर्देशन के निम्नलिखित इन प्रकारों का वर्गीकरण किया है-
- शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance) |
- व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance)।
- धार्मिक निर्देशन (Religious Guidance ) ।
- घरेलू समस्याओं में निर्देशन (Guidance for Home Relationships)।
- अवकाश एवं मनोरंजन के लिए निर्देशन ( Guidance of Leisure and Recreation)
- नागरिकता के लिए निर्देशन (Guidance for Citizenship) |
- व्यक्तिगत उन्नति सम्बन्धी निर्देशन (Guidance in Personal Well-being) |
- उन्नति कार्य करने के लिए निर्देशन (Guidance of Right Doing) |
- सांस्कृतिक कार्यों से सम्बद्ध निर्देशन (Guidance Related to the Cultural Activities) |
- सहयोग एवं विचार सम्बन्धी निर्देशन (Guidance in Co-operation and Thoughtfulness) |
प्रोक्टर द्वारा किया गया वर्गीकरण (Proctor’s Classification)
विलियम मार्टिन प्रोक्टर (William Martin Proctor) ने सन् 1930 में अपनी पुस्तक ‘शैक्षिक पद व्यावसायिक निर्देशन’ नामक पुस्तक में निर्देशन के छः निम्नलिखित प्रकार बताये हैं-
- शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance) |
- व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance) |
- स्वास्थ्य एवं शारीरिक समस्याओं से सम्बन्धित निर्देशन (Guidance Related to the Health and Physical Activities) |
- सामाजिक एवं नागरिक कार्यों में निर्देशन ( Guidance in Social and Civil Activities)
- चरित्र निर्माण के कार्यों में निर्देशन (Guidance in Character Building Activities) |
- अवकाश के उत्तम उपयोग के लिए निर्देशन ( Guidance in Worthy Use of Leisure time)|
कूफ और कीफोवर का वर्गीकरण (Koof and Kefauver’s Classification)
कूफ और कीफोवर ने निर्देशन के निम्नलिखित पाँच प्रकार बताए हैं—
- शिक्षा सम्बन्धी निर्देशन (Educational Guidance )
- व्यवसाय सम्बन्धी निर्देशन (Vocational Guidance ) ।
- मनोरंजन सम्बन्धी निर्देशन (Recreational Guidance ) ।
- स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देशन (Health Guidance) |
- नागरिक, सामाजिक तथा नैतिक निर्देशन (Civil, Social, Moral Guidance) |
पैटरसन का वर्गीकरण (Paterson’s Classification)
पैटरसन ने निर्देशन के निम्नलिखित पाँच प्रकार बताए हैं-
- शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)।
- व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance) |
- व्यक्तिगत निर्देशन (जिसमें सामाजिक, मनोवेगात्मक एवं अवकाश सम्बन्धी निर्देशन सम्मिलित हैं) (Personal Guidance ) ।
- स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देशन (Health Guidance)।
- आर्थिक निर्देशन (Economic Guidance) |
अतएव, यह स्पष्ट है कि विभिन्न विद्वानों ने निर्देशन के विभिन्न प्रकारों का वर्णन किया है। इन विभिन्न प्रकारों में प्रमुख प्रकार के निर्देशनों के कार्य क्षेत्रों से अवगत होना भी आवश्यक है। संक्षेप में, इन प्रमुख प्रकार के निर्देशनों का अर्थ एवं कार्य क्षेत्र का वर्णन निम्न प्रकार है
1. शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance) – शैक्षिक निर्देशन एक सर्वमान्य प्रक्रिया है। सभी विद्वानों ने इसे एक मत से स्वीकार किया है। यह व्यक्ति की अपनी शिक्षा के लिए उपयुक्त परिवेश चुनने में सहायता करता है। अन्य शब्दों में, शिक्षक के क्षेत्र में व्यक्ति की मानसिक एवं क्षमतागत सीमाओं तथा उपलब्ध विकल्पों में व्यक्ति के लिए उपयुक्त शिक्षा की योजना बनाने में निर्देशन प्रक्रम सहायक होता है। व्यक्ति के शैक्षिक कार्यक्रम को विचारपूर्ण ढंग से नियोजित करने में शैक्षिक निर्देशन सहायक होता है।
2. व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance) – व्यावसायिक निर्देशन भी निर्देशन का एक महत्वपूर्ण तथा सर्वमान्य प्रकार है। वह निर्देशन व्यक्ति को व्यवसाय के चुनाव, उसके लिए तैयार होने, उसमें लगने और उसमें उन्नति करने में सहायता प्रदान करने वाली प्रक्रिया है। प्रायः लोग निर्देशन तथा शिक्षा की भाँति व्यावसायिक शिक्षा एवं व्यावसायिक निर्देशन को एक ही समझने की भूल कर बैठते हैं, जबकि सत्य यह है कि व्यावसायिक शिक्षा किसी विशिष्ट व्यवसाय में कार्य करने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को दीक्षा देने का कार्य करती है तथा व्यावसायिक निर्देशन किसी व्यवसाय के चुनाव और उसके बाद होने वाली दीक्षा से जुड़ी सूचनायें एवं सहायता प्रदान करती है।
3. व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) – इस निर्देशन के अन्तर्गत पैटरसन ने सामाजिक, संवेगात्मक और अवकाश सम्बन्धी निर्देशन को शामिल किया है। इसलिए व्यक्तिगत निर्देशन के क्षेत्र में हमें स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें, संवेगात्मक समायोजन, सामाजिक समायोजन तथा अवकाश और मनोरंजन की समस्याओं को स्थान प्रदान करना चाहिए। सामाजिक समायोजन के अन्तर्गत व्यक्तियों की आर्थिक समस्याओं को स्थान दिया जाता है। स्पष्ट है, कि शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन के क्षेत्र में जिन समस्याओं को स्थान नहीं दिया जा सकता, उन्हें व्यक्तिगत निर्देशन के अन्तर्गत शामिल किया जा सकता है। इस प्रकार, व्यक्तिगत निर्देशन के चार प्रमुख पक्ष हैं-सामाजिक, पारिवारिक, शारीरिक तथा मानसिक। इन सभी क्षेत्रों में उत्पन्न समस्यायें हैं—स्वास्थ्य, संवेग, धार्मिक, सामाजिक, सामंजस्य इत्यादि । इस प्रकार के निर्देशन के अन्तर्गत व्यक्ति के जीवन को आनन्दमय बनाने के लिए सहायता प्रदान की जाती है। स्पष्ट है, कि व्यक्तिगत निर्देशन स्वास्थ्य तथा शारीरिक क्रियाओं, नैतिक विकास की क्रियाओं, सामाजिक एवं नागरिक समस्याओं तथा अवकाश के सदुपयोग की क्रियाओं से सम्बन्ध रखता है।
4. पारिवारिक निर्देशन (Family Guidance) – व्यक्तित्व के अपेक्षित विकास के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति को उसकी बाल्यावस्था से ही उचित पारिवारिक निर्देशन प्राप्त हो। इसलिए लोगों में व्याप्त यह धारणा ठीक नहीं है कि प्रारम्भिक पारिवारिक प्रभाव केवल बाल्यावस्था तक ही सीमित रहते हैं। अब तो मनोवैज्ञानिक तथा समाजशास्त्रीय अध्ययनों के आधार पर यह निश्चित हो गया है कि प्रारम्भिक प्रभाव और संस्कार व्यक्ति की प्रौढ़ावस्था की व्यवहार सम्बन्धी क्रियाओं में परिलक्षित होते हैं। इस प्रकार के निर्देशन में परिवर्तित पारिवारिक परिस्थितियों के बारे में निर्देशन दिया जा सकता है। स्त्रियों की पारिवारिक भूमिका में परिवर्तन तथा विवाह सम्बन्धी अवधारणा में परिवर्तनों के बारे में यही निर्देशन मार्ग प्रशस्त करता है।
5. यौन निर्देशन (Sex Guidance) – वर्तमान युग में छात्रों को यौन शिक्षा तथा यौन निर्देशन देने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। इसलिए यौन सम्बन्धों की इच्छा एक मूल प्रवृत्ति है और सभी में इसके प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होना स्वाभाविक है। अवस्था के अनुकूल प्रायः सभी छात्र-छात्राएँ यौन सम्बन्धों के सन्दर्भ में जिज्ञासा प्रकट करते हैं और अपने सहपाठियों, मित्रों तथा चलचित्रों तथा सस्ते साहित्य से इनके बारे में गलत जानकारी प्राप्त करते हैं। इस गलत जानकारी से इन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। भारतवर्ष में तो बालकों को यौन सम्बन्धी जानकारी प्रदान करने में अनेक कठिनाइयाँ हैं, परन्तु वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में अब माता-पिता भी यह अनुभव करने लगे हैं कि उनके बालकों को यौन शिक्षा तथा यौन निर्देशन प्राप्त होना चाहिए, जिससे वे भविष्य में कोई गलत कदम न उठा सकें।
6. अवकाश सम्बन्धी निर्देशन (Guidance for Leisure) – जोन्स के अनुसार-अवकाश वह समय है जो जीविकोपार्जन की क्रियाओं तथा शारीरिक क्षमता के बनाए रखने की क्रियाओं में व्यतीत नहीं होता।”
इसलिए अवकाश के समय को व्यक्ति अपनी इच्छानुसार व्यतीत करता है और इस समय पर अन्य किसी का नियन्त्रण नहीं होता। व्यक्ति इस समय की सृजनात्मक कार्यों के लिए व्यतीत कर सकता है।
वर्तमान युग में मशीनों के प्रयोग के परिणामस्वरूप कार्यों को शीघ्रता से कर लेने के कारण व्यक्ति के पास खाली समय अधिक बचने लगा है। निर्देशन के द्वारा व्यक्ति यह जान सकता है कि वह इस खाली समय का उपयोग कैसे करे वास्तव में, निर्देशन द्वारा व्यक्ति इस अवकाश के समय में अपनी रचनात्मक क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर अपने जीवन को अधिक सार्थक तथा सफल बना सकता है।
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