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जनसंख्या के सिद्धान्त | Population Theory in Hindi

जनसंख्या के सिद्धान्त | Population Theory in Hindi
जनसंख्या के सिद्धान्त | Population Theory in Hindi

जनसंख्या के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

माल्थस प्रथम अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने जनसंख्या सिद्धान्त की अर्थशास्त्रीय दृष्टि से वैज्ञानिक तथा पूर्ण व्याख्या की। उन्होंने यह व्याख्या सन् 1789 में प्रकाशित An Essay on the Principles of Population’ में की, जिसका दूसरा संस्करण सन् 1803 में प्रकाशित हुआ।

माल्थस के सिद्धान्त की मान्यताएँ

माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

  1. जीवन स्तर तथा जनसंख्या में घनिष्ठ एवं सीधा सम्बन्ध पाया जाता है।
  2. कृषि में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है।
  3. मनुष्य की काम-वासना तीव्र एवं स्थाई है।
  4. जीवित रहने के लिए मनुष्य को भोजन की आवश्यकता होती है।
सिद्धान्त का कथन

“उत्पादन कला की एक दी हुई स्थिति के अन्तर्गत जनसंख्या जीवन निर्वाह के साधनों से अधिक तीव्र गति से बढ़ने की प्रवृत्ति रखती है। “

सिद्धान्त की व्याख्या

1. जनसंख्या वृद्धि जीवनयापन के साधनों (खाद्यान्न) द्वारा सीमित होती है।

2. प्रत्येक 25 वर्ष में राष्ट्र की जनसंख्या दो गुनी हो जाती है।

इस प्रकार जनसंख्या और खाद्यान्न के मध्य असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। इस असन्तुलन को दूर करने के दो उपाय है-

(i) नैसर्गिक प्रतिबन्ध- नैसर्गिक प्रतिबन्ध अकाल, महामारी भूकम्प, युद्ध आदि के रूप में होते हैं। इन प्रतिबन्धों में मृत्यु दर बढ़ती है तथा जनसंख्या घटकर खाद्यान्नों के बराबर हो जाती है।

(ii) निवारक प्रतिबन्ध – निवारक प्रतिबन्ध से उनका आशय स्वयं मनुष्य द्वारा जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने से है। माल्थस ने निवारक प्रतिबन्धों में अविवाहित रहने, देर से विवाह करने, संयम से रहने आदि उपायों का सुझाव दिया था।

3. जनसंख्या वृद्धि की दर खाद्यान्न वृद्धि की दर से अधिक होती है। जनसंख्या तथा खाद्यान्न वृद्धि की दरों को उन्होंने निम्न प्रकार समझाया है-

(i) जनसंख्या वृद्धि की दर जनसंख्या ज्यामितिक वृद्धि (Geometrical Progression) के अनुसार बढ़ती है। ज्यामितिक वृद्धि इस प्रकार होती है – 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64, 128…. ।

(ii) खाद्यान्न वृद्धि की दर खाद्यान्न अंकगणितीय वृद्धि (Arithmetical Progression) के अनुसार बढ़ते हैं। अंकगणितीय वृद्धि इस प्रकार होती है— 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8…..।

नैसर्गिक प्रतिबन्ध अत्यन्त कष्टदायक होते हैं। अतः दैवी प्रकोपों से सुरक्षित रहने के लिए मानव को निवारक प्रतिबन्धों का उपयोग करना चाहिए। माल्थस के अनुसार-“प्रत्येक व्यक्ति को यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि वह अपनी निर्धनता का कारण स्वयं है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह प्राकृतिक विपदाओं से बचने के लिए निवारक प्रतिबन्धों को अपनाए।”

उन्होंने स्पष्ट किया है-“प्रकृति की मेज सीमित अतिथियों के लिए लगी है। अतः जो बिना निमन्त्रण के आएगा उसे अवश्य ही भूखों मरना पड़ेगा।”

माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त की आलोचनाएँ

माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त की तीव्र आलोचनाएँ हुई हैं। गॉडविन ने माल्थस को “वह काला एवं भयानक राक्षस बताया है जो मानव जाति की आशाओं का गला घोंटने के लिए सदैव तैयार रहता है।” प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं-

1. काम-वासना की सन्तुष्टि एवं सन्तान की उत्पत्ति का कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है- यह आवश्यक नहीं है कि काम-वासना की सन्तुष्टि के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति में सन्तानोत्पत्ति की भी प्रबल इच्छा हो, क्योंकि मनुष्य में काम-वासना का होना तो अनिवार्य है, किन्तु सन्तान की इच्छा धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों से प्रभावित होती है।

2. जनसंख्या तथा खाद्य सामग्री की वृद्धि की दरों का अनुमान ठीक नहीं- माल्थस का यह विचार कि जनसंख्या में वृद्धि ज्यामितीय गति से तथा खाद्य सामग्री में वृद्धि अंकगणितीय गति से होती है तथा जनसंख्या 25 वर्षों में दोगुनी हो जाती है, सत्य नहीं है। गत वर्षों के जनसंख्या एवं खाद्यान्न सम्बन्धी आँकड़े इसकी पुष्टि नहीं करते।

3. माल्थस के जनसंख्या के सिद्धान्त में सत्यता का अभाव है- अनेक देशों में कृत्रिम साधनों का प्रयोग करके जनसंख्या को नियन्त्रित कर लिया गया है तथा आधुनिक विधियों द्वारा खाद्य सामग्री के उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है। इस प्रकार इस सिद्धान्त में सत्यता का अभाव है।

4. मनुष्य की काम-वासना का स्थिर एवं एक-समान रहना आवश्यक नहीं है – सामान्यतः जीवन स्तर के ऊंचा होने पर मनुष्य की काम-वासना में कमी आती है और जीवन स्तर के नीचा रहने पर काम-वासना जाती है।

5. जनसंख्या में वृद्धि सदैव हानिकारक नहीं- वास्तव में, जनसंख्या की तुलना देश के प्राकृतिक साधनों से करनी चाहिए। यदि किसी देश की जनसंख्या वहाँ के प्राकृतिक साधनों की तुलना में बहुत कम है तो उस देश के विकास के लिए जनसंख्या में वृद्धि लाभदायक होगी।

6. जीवन स्तर के ऊँचा होने पर जनसंख्या में वृद्धि नहीं होती- उच्च जीवन-स्तर के लोग अधिक सन्तान को वरीयता नहीं देते। वास्तविकता तो यह है कि जीवन-स्तर में वृद्धि होने पर मानव में सन्तान की इच्छा बढ़ने के स्थान पर कम हो जाती है। माम्बर्ट के अनुसार, “आरामदायक वस्तुएँ तथा मानवीय समृद्धि जनसंख्या को नियन्त्रित करने का अच्छा कार्य करती हैं। “

7. नैसर्गिक प्रतिबन्ध अति-जनसंख्या का सूचक नहीं है- नैसर्गिक प्रतिबन्ध प्राकृतिक विपत्तियाँ हैं। ये केवल अति जनसंख्या वाले देशों में ही नहीं आतीं, अपितु किसी भी देश में आ सकती हैं।

8. माल्यस कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में वैज्ञानिक आविष्कारों का ठीक अनुमान नहीं लगा सके- माल्थस आधुनिक युग के वैज्ञानिक आविष्कारों का सही अनुमान नहीं लगा सके। आधुनिक तकनीकी के प्रयोग ने कृषि उत्पादकता में असाधारण वृद्धि की है। इसके अतिरिक्त, परिवहन के साधनों के विकास के कारण भी खाद्य सामग्री की अन्य स्थानों से पूर्ति की जा सकी है।

9. जनसंख्या वृद्धि से खाद्यानों की माँग ही नहीं, वरन् पूर्ति में भी वृद्धि होती है- जनसंख्या में वृद्धि होने पर खाद्यान्नों की माँग में वृद्धि होने के साथ-साथ श्रम शक्ति में भी वृद्धि होती है, जिससे उत्पादन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।

10. जनसंख्या नियन्त्रण का सुझाव प्रभावी नहीं – माल्थस ने जनसंख्या नियन्त्रण के लिए संयमित एवं ब्रह्मचर्य जीवन व्यतीत करने का सुझाव दिया है। ऐसे सुझाव अव्यावहारिक हैं।

11. माल्थस का सिद्धान्त इतिहास सम्मत नहीं- आज अनेक देशों में समस्या अति जनसंख्या की न होकर न्यून जनसंख्या की है। प्रो० जीड एवं रिस्ट के शब्दों में, “इतिहास ने उसके मतों की पुष्टि नहीं की है।”

12. केवल खाद्य उत्पादन ही किसी देश का कुल उत्पादन नहीं होता- कुल उत्पादन में खाद्यान्न के अतिरिक्त औद्योगिक तथा अन्य उत्पादन को भी शामिल किया जाता है। अतः उत्पादन का अनुमान लगाते समय केवल खाद्य उत्पादन की ओर ही ध्यान देना अनुचित है।

उपर्युक्त आलोचनाओं से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि यह सिद्धान्त व्यर्थ है। इसमें कुछ सत्यता का अंश अवश्य है, जिसकी हम उपेक्षा नहीं कर सकते। प्रो० वॉकर के अनुसार, “कटु वाद-विवाद के बीच भी माल्थस का सिद्धान्त अडिग खड़ा है।” क्लार्क के शब्दों में, “माल्थस के सिद्धान्त की जितनी अधिक आलोचनाएँ की गई हैं उतनी ही अधिक दृढ़ता उसमें आई है।”

माल्ब्यूजियन चक्र- जब जनसंख्या खाद्य सामग्री की तुलना में अत्यधिक तीव्र गति से बढ़ती है, तो देश में अति जनसंख्या की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में इस बढ़ती हुई जनसंख्या पर प्रकृति स्वयं ही प्राकृतिक प्रतिबन्ध लगाती है। देश में भूकम्प, अकाल, युद्ध, सूखा, बीमारियाँ तथा बाढ़ आदि प्राकृतिक विपत्तियों के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है। इन प्राकृतिक अवरोधों के कारण बढ़ती हुई जनसंख्या कम हो जाती है। इस प्रकार जनसंख्या तथा खाद्य सामग्री में सन्तुलन स्थापित हो जाता है। जब-जब जनसंख्या खाद्यान्न की पूर्ति से अधिक होती है, प्रकृति की ओर से नैसर्गिक प्रतिबन्ध क्रियाशील हो जाते हैं और इनसे पुनः सन्तुलन स्थापित हो जाता है। इस प्रकार यह चक्र बराबर चलता रहता है। इसे ही ‘माल्थ्यूजियन चक्र’ (Malthusian Cycle) कहते हैं।

माल्ब्यूजियन चक्र का चित्र द्वारा स्पष्टीकरण

अग्रांकित चित्र में ‘माल्थ्यूजियन चक्र’ का स्पष्टीकरण किया गया है-

निवारक प्रतिबन्ध अधिक महत्वपूर्ण- नैसर्गिक प्रतिबन्ध मनुष्य के लिए अधिक कष्टप्रद होते हैं। अतः मनुष्य को निवारक प्रतिबन्धों का सहारा लेकर स्वयं जनसंख्या पर रोक लगानी चाहिए। निवारक प्रतिबन्धों से माल्थस का आशय संयम से रहना, देर से शादी करना, ब्रह्मचर्य जीवन बिताना आदि उपायों से है। माल्थस के ही शब्दों में, “प्रत्येक व्यक्ति को यह बात स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि वह अपनी निर्धनता का कारण स्वयं है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह नैसर्गिक अवरोध की भयंकरता से बचने के लिए निवारक प्रतिबन्धों को अपनाए। “

माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त तथा भारत

माल्यस का जनसंख्या सिद्धान्त भारत पर पूर्ण रूप से लागू होता है। इस सम्बन्ध में निम्न तर्क दिए जाते हैं-

  1. देश में जनसंख्या 2.1% वार्षिक की दर से बढ़ रही हैं, किन्तु खाद्यान्नों की पूर्ति मन्द गति से बढ़ रही है।
  2. देश में अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित है। जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए कृत्रिम साधनों का प्रयोग अत्यधिक कम होता है तथा नैसर्गिक प्रतिबन्ध जैसे-सूखा, बाढ़, बीमारी- क्रियाशील रहते हैं।
  3. देश की लगभग 36 करोड़ जनसंख्या गरीबी की रेखा से भी नीचे का जीवन व्यतीत कर रही है।
  4. विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में आज भी जन्म दर मृत्यु दर की अपेक्षा काफी अधिक है।
  5. हमारे देश में कृषि जोत का आकार बहुत छोटा है, कृषि तकनीकी परम्परागत है और कृषि में उत्पत्ति हास नियम की प्रवृत्ति क्रियाशील है।
  6. औद्योगिक विकास की गति मन्द है, बेरोजगारी बढ़ रही है और जीवन स्तर निम्न है।

प्रो० सेमुअल्सन के शब्दों में, “भारत, चीन तथा संसार के अन्य भागों में, जहाँ जनसंख्या तथा खाद्य-पूर्ति में असन्तुलन बना हुआ है, जनसंख्या का व्यवहार समझने के लिए माल्थस के सिद्धान्त में आज भी सत्यता के तत्व महत्वपूर्ण हैं।”

माल्थस ने किसी देश की जनसंख्या की तुलना वहाँ के खाद्यान्नों से की थी। अतः उन्होंने जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि को हानिकारक माना था। उनकी यह धारणा दोषपूर्ण थी। वास्तव में, जनसंख्या में वृद्धि को देश के कुल उत्पादन तथा उसके उचित वितरण के सन्दर्भ में देखना चाहिए। अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त (Optimum Theory of Population) इसी नए दृष्टिकोण पर आधारित है।

सिद्धान्त का उद्देश्य- इस सिद्धान्त का उद्देश्य यह बताना है कि किसी देश के लिए जनसंख्या का कौन-सा आकार आर्थिक दृष्टि से सर्वोत्तम, आदर्श तथा अनुकूलतम है।

सिद्धान्त की मान्यताएँ- अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त निम्नांकित मान्यताओं पर आधारित है-

  1. समय विशेष पर देश में प्राकृतिक साधन, तकनीकी ज्ञान, पूँजी दशाएँ आदि स्थिर रहती हैं।
  2. कुल जनसंख्या में कार्यवाहक जनसंख्या (अर्थात् श्रम शक्ति) का अनुपात स्थिर रहता है।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त का अर्थ तथा परिभाषाएँ

किसी देश में एक निश्चित समय पर जनसंख्या का वह आकार जो समस्त साधनों के पूर्ण उपयोग एवं अधिकतम उत्पादन के लिए आवश्यक होता है, उसे उस देश की अनुकूलतम जनसंख्या कहते हैं। जनसंख्या के इस अनुकूलतम बिन्दु पर प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है।

कुछ प्रमुख परिभाषाएँ अग्रलिखित है-

1. रोबिन्स- “वह जनसंख्या जो अधिकतम उत्पादन सम्भव करती है, आदर्श जनसंख्या है।”

2. हिक्स – “अनुकूलतम जनसंख्या, जनसंख्या का वह स्तर है, जिस पर प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिकतम होगा।”

3. डाल्टन— “अनुकूलतम जनसंख्या, वह जनसंख्या है, जो अधिकतम प्रति व्यक्ति आय प्रदान करती है।”

4. प्रो० बोल्डिंग- “यह जनसंख्या जिससे जीवन-स्तर अधिकतम होता है, अनुकूलतम जनसंख्या कहलाती है।”

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की व्याख्या

किसी देश के प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपयोग करने के लिए उचित मात्रा में श्रम-शक्ति (जनसंख्या) की भी आवश्यकता होती है। जब किसी देश में जनसंख्या कम होती है, तो प्राकृतिक साधनों का समुचित उपयोग न होने के कारण प्रति व्यक्ति आय कम होती है। ऐसी दशा में यदि जनसंख्या बढ़ जाती है, तो साधनों का पूर्ण उपयोग होने लगता है। उत्पादन में वृद्धि होती है तथा राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। इस प्रकार जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ आय में भी वृद्धि होती रहती है। आय में यह वृद्धि एक अधिकतम सीमा पर पहुँच जाती है। प्रति व्यक्ति अधिकतम आय के इस बिन्दु पर जनसंख्या की जो मात्रा होती है, उसी को अनुकूलतम या आदर्श जनसंख्या कहते हैं। इस बिन्दु के बाद जनसंख्या में वृद्धि होने पर आय में कमी होने लगती है।

इसे निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखाया गया है-

अनुकूलतम जनसंख्या स्थिर नहीं होती- अनुकूलतम जनसंख्या कोई निश्चित या स्थिर जनसंख्या नहीं है, यह परिस्थितियों में परिवर्तन के अनुसार बदलती रहती है। तकनीकी ज्ञान व उत्पादन विधियों में परिवर्तन होने पर अनुकूलतम जनसंख्या में भी परिवर्तन हो जाता है।

निम्न रेखाचित्र में पहले OM अनुकूलतम जनसंख्या है, किन्तु वैज्ञानिक तकनीकी प्रगति के साथ-साथ अनुकूलतम जनसंख्या का आकार बढ़कर OM1 हो जाता है।

समायोजन- अभाव (Maladjustment) के अंश को मापने की विधि- जनसंख्या के अनुकूलतम स्तर के विचलन की मात्रा का मापन करने के लिए डाल्टन ने निम्न सूत्र दिया है-

M = A – O/O

जहाँ M = समायोजन अभाव की मात्रा (अर्थात् न्यून अथवा अति जनसंख्या की माप ।

A =  वास्तविक (Actual) जनसंख्या,

0 = अनुकूलतम (Optimum) जनसंख्या ।

 सूत्रानुसार,

  1. यदि M ऋणात्मक है, तो देश में न्यून जनसंख्या की स्थिति होगी।
  2. यदि M धनात्मक है, तो देश में अति जनसंख्या की स्थिति होगी।
  3. यदि M शून्य है, तो देश में अनुकूलतम जनसंख्या की स्थिति होगी।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ

  1. अनुकूलतम जनसंख्या का बिन्दु स्थिर न रहकर गतिशील होता है।
  2. यह सिद्धान्त परिवर्तनशील अनुपातों के नियम पर आधारित है।
  3. अनुकूलतम जनसंख्या परिमाणात्मक विचार के साथ-साथ एक गुणात्मक विचार भी है।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की आलोचनाएँ

मुख्य आलोचनाएँ निम्न प्रकार हैं-

1. यह सिद्धान्त अव्यावहारिक है किसी भी देश की आर्थिक स्थितियों में परिवर्तन होता रहता । इनके साथ-साथ अनुकूलतम जनसंख्या में भी परिवर्तन होता रहता है। अतः इस सिद्धान्त का कोई व्यावहारिक महत्व नहीं रह जाता।

2. यह सिद्धान्त जनसंख्या सम्बन्धी केवल आर्थिक तत्वों को ध्यान में रखता है- जनसंख्या के आकार पर विचार करते समय यह सिद्धान्त केवल उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति आय को ही ध्यान में रखता है तथा सामाजिक, राजनीतिक एवं अन्य परिस्थितियों पर ध्यान नहीं देता।

3. प्रति व्यक्ति आय का सही माप सम्भव नहीं है- इस सिद्धान्त के अनुसार, अनुकूलतम जनसंख्या वह बिन्दु है, जहाँ प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है। इस बिन्दु का निर्धारण करना व इसमें होने वाले परिवर्तनों को मापना अत्यधिक कठिन है।

4. यह सिद्धान्त वास्तव में जनसंख्या का सिद्धान्त नहीं है – यह सिद्धान्त केवल जनसंख्या के अनुकूलतम स्तर की विवेचना करता है। यह जनसंख्या वृद्धि के सम्बन्ध में किसी नियम का प्रतिपादन नहीं करता।

5. यह सिद्धान्त भौतिकवादी है- यह सिद्धान्त भौतिकवादी है, क्योंकि इसमें मानव के स्वास्थ्य, चरित्र आदि में सुधार पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।

6. यह सिद्धान्त राष्ट्रीय आय के वितरण की ओर ध्यान नहीं देता- यह सिद्धान्त राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय के अधिकतम होने की ओर संकेत करता है, किन्तु उसके वितरण की ओर कोई ध्यान नहीं देता जबकि राष्ट्रीय आय का उचित वितरण समाज के लिए अति आवश्यक है।

7. यह सिद्धान्त अवास्तविक धारणाओं पर आधारित है यह सिद्धान्त तकनीकी ज्ञान को स्थिर मानकर चलता है, जबकि वास्तव में इनमें विशेषकर विकसित राष्ट्रों में इसमें निरन्तर परिवर्तन (वृद्धि) होता रहता है।

वास्तव में, एक राष्ट्र का वास्तविक धन उस देश की भूमि तथा पानी, जंगलों तथा खानों में पशुओं तथा डॉलरों में नहीं है, अपितु उस देश के स्वरूप तथा सुखी पुरुषों, स्त्रियों व बच्चों में निहित है। उपर्युक्त आलोचनाओं के आधार पर प्रो० हिक्स ने कहा है- “यह बहुत ही कम महत्व का विचार है।”

माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त एवं अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त की तुलना

माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त एवं अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त में अन्तर को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. माल्थस के अनुसार जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि हानिकारक है, जबकि अनुकूलतम सिद्धान्त के अनुसार जनसंख्या में वृद्धि तभी हानिकारक होती है, जब देश की जनसंख्या अनुकूलतम बिन्दु (Optimum Point) से अधिक हो जाती है।

2. माल्थस का सिद्धान्त वैज्ञानिक नहीं है। यह किसी देश के लिए जनसंख्या के अनुकूलतम आकार के बारे में कुछ नहीं बताता। इसके विपरीत, अनुकूलतम सिद्धान्त यह बतलाता है कि किसी समय विशेष पर देश की आदर्श जनसंख्या क्या होनी चाहिए।

3. माल्थस का जनसंख्या का सिद्धान्त स्थैतिक है, जबकि जनसंख्या का अनुकूलतम सिद्धान्त एक प्रावैगिक धारणा है।

4. माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त का सम्बन्ध खाद्य पदार्थों की पूर्ति से है, जबकि अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त का सम्बन्ध देश के कुल उत्पादन से है। यह अधिक उचित है।

5. माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त निराशावादी है, जबकि जनसंख्या के अनुकूलतम सिद्धान्त का दृष्टिकोण आशावादी है।

6. माल्थस के अनुसार प्राकृतिक प्रकोप अति जनसंख्या के सूचक हैं, जबकि अनुकूलतम सिद्धान्त के अनुसार प्रति व्यक्ति आय में कमी होना अति जनसंख्या की कसौटी है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त से श्रेष्ठ है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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